नई दिल्ली : सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अपने नए सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2021 पर आम जनता से सार्वजनिक टिप्पणी मांगी है.
प्रस्तावित विधेयक (बिल) पुराने पड़ चुके सिनेमैटोग्राफ अधिनियम (एक्ट), 1952 में परिवर्तन करता है, जो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) – जिसे आम बोलचाल में ‘सेंसर बोर्ड’ के रूप में जाना जाता है- के कामकाज का मार्गदर्शन करता है.
इस बिल द्वारा प्रस्तावित प्रमुख संशोधनों में केंद्र सरकार को किसी भी फिल्म की फिर से जांच करने की शक्ति देना, मौजूदा अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी (यूए) श्रेणी के आयु-आधारित श्रेणियों में उप-विभाजन, अनधिकृत रिकॉर्डिंग पर प्रतिबंध, और पायरेसी के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए अपराधियों के खिलाफ दंड को सूचीबद्ध करना शामिल है.
इस बिल का यह मसौदा नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा फिल्म प्रमाणपत्र अपीलीय न्यायाधिकरण (एफसीएटी) को समाप्त करने के कुछ ही हफ्तों बाद आया है, जो फिल्म निर्माताओं के पास उनकी फिल्मों के प्रमाणन को चुनौती देने के लिए एकमात्र अपीलीय निकाय था.
फिल्मों के प्रमाणन के मुद्दे पर दशकों तक चली बहस और दर्जनों फिल्मों पर सार्वजनिक विवादों के उपरांत, यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब सर्टफकैशन बोर्ड पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के आगमन ने सर्टीफिकेशन की पूरी प्रक्रिया को ही बेमानी कर दिया है.
इस आलेख में दिप्रिंट आपको बताता है कि नए प्रावधान क्या-क्या हैं और वे प्रमाणन प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करेंगे.
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सिनेमैटोग्राफ अधिनियम (एक्ट), 1952
सिनेमैटोग्राफ एक्ट भारत में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रिलीज होने वाली फिल्मों के प्रमाणन का निर्देशित करने वाला एकमात्र कानून है. यह मुंबई में मुख्यालय वाली सीबीएफसी को नियंत्रित करता है, जिसे भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली प्रत्येक फिल्म को प्रमाणित करने का अधिकार है.
हर साल 1,000 से भी अधिक फिल्में प्रमाणन के लिए सीबीएफसी के पास आवेदन करती हैं.
2013 में, सिनेमैटोग्राफ एक्ट के तहत प्रमाणन से जुड़े मुद्दों की पड़ताल के लिए न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था. इसके बाद इसी अधिनियम के दायरे में प्रमाणन के लिए व्यापक दिशानिर्देश विकसित करने के लिए 2016 में फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल के नेतृत्व में एक और पैनल स्थापित किया गया था.
दोनों पैनल ने उम्र के आधार पर प्रमाणन की मांग का समर्थन किया और सीबीएफसी की शक्तियों को सीमित करने के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं, लेकिन इनकी रिपोर्ट्स को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.
2019 में, सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया था, जहां पायरेसी से निपटने के उद्देश्य से अधिनियम की धारा 7 में एक नई धारा 6AA, और एक नई उप-धारा (1A) को सम्मिलित करने का प्रस्ताव किया गया था.
इसके बाद, सुचना और प्रसारण मंत्रालय ने 2020 में लोकसभा में सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट की समीक्षा की. नवीनतम मसौदा विधेयक उसी का परिणाम है.
पुनः परीक्षण की शक्ति को फिर से वापस लाना
नए विधेयक में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम की धारा 5बी(1) के उल्लंघन को लेकर किसी भी फिल्म के खिलाफ किसी तरह की शिकायत मिलने पर पहले से ही प्रमाणित फिल्म की ‘पुन: परीक्षा’ का आदेश देने का अधिकार केंद्र को देने का प्रस्ताव है.
धारा 5बी(1) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) से लिया गया है, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में एवम सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता का उल्लंघन अथवा अदालत की अवमानना, मानहानि या किसी को किसी अपराध के लिए उकसाने के संबंध में भांषा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध लगाता है.
नवंबर 2000 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को कायम रखने के आदेश – जो सीबीएफसी द्वारा पहले से प्रमाणित फिल्मों के लिए केंद्र की ‘संशोधन शक्तियों’ को कम कर देता है – के तक़रीबन दो दशक बाद इस तरह के नियंत्रण को फिर से लागू करने की बात हो रही है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अनुसार, हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि विधायिका, कुछ मामलों में, उचित कानून बनाकर न्यायिक या कार्यकारी निर्णय को निष्प्रभावित अथवा रद्द कर सकती है.
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अन्य प्रावधान
मसौदा बिल यूए श्रेणी के तहत फिल्मों के प्रमाणन से संबंधित प्रावधानों को भी यू/ए 7+, यू/ए 13+ और यू/ए 16+ जैसी आयु-आधारित श्रेणियों में उप-विभाजित करके बदलने का प्रस्ताव करता है.
इसमें धारा 6एए को सम्मिलित करने का भी प्रस्ताव करता है, जिसमें कहा गया है कि मूल लेखक के लिखित रूप से अधिकृत किए बिना, किसी भी व्यक्ति को किसी भी ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग डिवाइस का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी ताकि कोई भी जानबूझकर किसी भी स्थान पर किसी फिल्म या उसके एक हिस्से की प्रतिलिपि बनाने या प्रसारित करने का प्रयास न करे अथवा इसे बनाने एवं प्रसारित करने के लिए किसी को प्रेरित न कर सके इसके अलावा, यह फिल्म पायरेसी में शामिल लोगों को दंडित करने वाले प्रावधानों की भी पेशकश करता है, जिसमें कहा गया है कि अपराधी को एक निश्चित अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जो कभी भी ‘तीन महीने से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे तीन साल तक भी बढ़ाया जा सकता है’ या जुर्माना भी लगाया जा सकता है जो 3 लाख रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो लेखापरीक्षित सकल उत्पादन लागत (ऑडिटेड ग्रॉस प्रोडक्शन कॉस्ट) के 5 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है अथवा इन दोनों प्रकार के दंडों को एक साथ भी लगाया जा सकता है.
सिनेमा उद्योग के दिग्गजों का इस बिल पर क्या कहना है?
इस मसौदा विधेयक में प्रस्तावित प्रावधानों पर भारतीय फिल्म उद्योग से कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली है, खास कर सरकार को पुनरीक्षण शक्तियां प्रदान करने वाले धारा के सन्दर्भ में.
फिल्म निर्माता राकेश शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि इन संशोधनों को अलग-थलग करके देखना महत्वपूर्ण नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘पहले, तो एफसीएटी को हटा दिया गया और फिर सीबीएफसी जैसे संवैधानिक निकाय को खत्म करने और सुपर सेंसर के रूप में कंटेंट पर सरकार का सख्त नियंत्रण कायम करने के लिए यह संशोधन किया गया है.’
वरिष्ठ फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल, जिन्होंने 2016 में बनाये गए पैनल का नेतृत्व किया था, ने कहा कि सीबीएफसी सरकार द्वारा स्थापित एक निकाय है और इसमें ऐसे लोग शामिल हैं जिन्हें सरकार जिम्मेदार मानती है और जिनकी समाज में कुछ हैसियत हैं.
उनका कहना था कि ‘अगर सीबीएफसी नाम को कोई संस्था है, तो आपको किसी फिल्म का मूल्यांकन करने के लिए सीबीएफसी के ऊपर और उससे परे और भी कोई नियंत्रण क्यों चाहिए?’
दूसरी तरफ सरकार के सूत्रों का कहना है कि मसौदा विधेयक के एक बार लागू होने के बाद यह फिल्मों की पायरेसी के लिए एक प्रमुख निवारक (डिटरन्ट) साबित होगा.
मार्च में प्रकाशित फिक्की –ई-वाई (एर्न्स्ट एंड यंग) की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र के 2023 तक 2.23 ट्रिलियन रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है. 2018 में मिंट न्यूज़ पेपर की एक रिपोर्ट में डिजिटल प्लेटफॉर्म, सुरक्षा और मीडिया एवं मनोरंजन के क्षेत्र में वैश्विक सेवा प्रदाता इरडेटो के हवाले से कहा गया था कि पायरेसी के कारण भारत में मनोरजंन उद्योग को सालाना 2.8 अरब डॉलर (करीब 20,000 करोड़ रुपये) के राजस्व का नुकसान होता है.
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