नई दिल्ली: ये संकेत देते हुए कि नरेंद्र मोदी सरकार भारत में काम कर रहीं ई-कॉमर्स कंपनियों की छानबीन को बढ़ाना चाहती है. उपभोक्ता संरक्षण नियमों के नए मसौदे में फ्लैश सेल्स पर पाबंदी और अनुपालन आवश्यकताओं में वृद्धि का प्रस्ताव दिया गया है और उसके साथ ही पंजीकृत विक्रेताओं के वादा किए गए माल को न पहुंचाने की सूरत में, इन प्लेटफॉर्म्स को ज़िम्मेदार ठहराने का प्रावधान है.
ये नए मसौदा नियम, 2020 में जारी पिछले नियमों का ज़्यादा कड़ा रूप हैं. जिन्हें उपभोक्ता मामलों के तत्कालीन मंत्री, राम विलास पासवान ने जारी किया था.
हितधारकों को अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 6 जुलाई तक का समय दिया गया है. जिसके बाद नियमों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा. ये नियम उस ई-कॉमर्स नीति के इतर होंगे, जिसे फिलहाल वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय अंतिम रूप दे रहा है. वाणिज्य तथा उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, फिलहाल केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के आधीन काम कर रहे हैं.
नए प्रावधान क्या हैं और उपभोक्ताओं तथा ई-कॉमर्स खिलाड़ियों के लिए उनके क्या मायने हैं. इसपर डालते हैं एक नज़र.
फ्लैश बिक्री पर पाबंदी
नियमों में ई-कॉमर्स इकाइयों द्वारा आयोजित फ्लैश बिक्री पर ख़ासतौर से पाबंदी होगी.
फ्लैश सेल्स की परिभाषा उस बिक्री के तौर पर की गई है, जो बहुत घटे हुए दामों और ऊंचे डिस्काउंट्स पर, बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए की जाती है.
लेकिन, एक अनुच्छेद में जिससे ई-कॉमर्स कंपनियों को बाहर निकलने का रास्ता मिल सकता है कहा गया है कि पाबंदी ऐसे मामलों में लागू होगी, जहां तकनीक की सहायता से ई-कॉमर्स कंपनी केवल किसी विशिष्ट विक्रेता या विक्रेताओं के समूह को, जिन्हें वो संभालती है अपने प्लेटफॉर्म पर वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री करने देगी.
मंगलवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में उपभोक्ता मामले विभाग के अधिकारियों ने इस पर भी बल दिया कि नियमों का उद्देश्य, ई-कॉमर्स कंपनियों की ओर से उपभोक्ताओं को दी जा रही छूट को रोकना नहीं है. लेकिन, इंतज़ार करके देखना होगा कि अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट जैसे बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स, अपनी विशाल सीज़नल बिक्री कैसे करते हैं.
स्वदेशी को बढ़ावा
मसौदे के पिछले संस्करण में, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को केवल वस्तुओं के आयातकों का विवरण देना था. लेकिन मौजूदा मसौदे में इन कंपनियों को अतिरिक्त जानकारियां भी देनी हैं. इसमें प्लेटफॉर्म्स को वस्तुओं के मूल देश के आधार पर उनकी पहचान करनी है. घरेलू स्तर पर निर्मित वस्तुओं में उनके विकल्प सुझाने हैं और सुनिश्चित करना है कि रैंकिंग में स्वदेशी वस्तुओं के साथ भेदभाव न हो.
उपभोक्ता संरक्षण: फ़ॉलबैक देयता व शिकायत निवारण
ई-कॉमर्स इकाई को अपनी वेबसाइट और एप पर शिकायत अधिकारी का नाम व संपर्क नंबर प्रमुखता से प्रकाशित करना होगा तथा उस प्रक्रिया का विवरण भी छापना होगा, जिसे इस्तेमाल करके उपभोक्ता अपनी शिकायतें दर्ज कर सकें.
इसके अलावा, विशेष रूप से कंपनियों के अपने प्लेटफॉर्म्स पर भ्रामक विज्ञापनों को बढ़ावा देने पर प्रतिबंध लगाया गया है. कंपनियों से ये भी कहा गया है कि राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन का हिस्सा बनें और अपने एकत्र किए गए डेटा को, विक्रेताओं से साझा न करें.
यह भी पढ़ें : मूडीज ने 2021 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 9.6% किया
मसौदा नियमों के अनुसार बाज़ारस्थल ई-कॉमर्स इकाई फ़ॉलबैक देयता के दायरे में भी आएगी. इसका मतलब है कि प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत कोई विक्रेता यदि ‘अपने लापरवाह आचरण, चूक या कृत्य के चलते, उपभोक्ता द्वारा ऑर्डर की गई वस्तुएं या सेवाएं उसे नहीं पहुंचाता’ जिससे उपभोक्ता को नुक़सान पहुंचे, तो इसका उत्तरदायित्व बाज़ारस्थल पर होगा.
ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए अनुपालन आवश्यकताओं में वृद्धि
भारत में कारोबार चलाने के लिए, ई-कॉमर्स इकाइयों को अनिवार्य रूप से, आंतरिक व्यापार एवं उद्योग संवर्द्धन विभाग के साथ पंजीकरण कराना होगा. उन्हें एक मुख्य अनुपालन अधिकारी भी नियुक्त करना होगा, जो क़ानूनों की अनुपालने के लिए ज़िम्मेदार होगा. साथ ही उन्हें एक निवासी शिकायत अधिकारी भी रखना होगा, जो उपभोक्ताओं की शिकायतों को देख सके.
इन इकाइयों को उपलब्ध जानकारी 72 घंटे के भीतर, सरकारी एजेंसियों को मुहैया करानी होगी, यदि क़ानून के अंतर्गत किसी भी अपराध से जुड़े मामले में, ऐसी जानकारी की मांग की जाए.
उद्योग की चिंताएं
एक बी2बी ई-कॉमर्स और सप्लाई चेन कंपनी के सह-संस्थापक तथा प्रबंध निदेशक अक्षय हेगड़े ने नए नियमों में कुछ ‘अपरिभाषित’ चीज़ों की ओर ध्यान आकर्षित कराया.
उन्होंने कहा, ‘हालांकि प्रस्तावित बदलावों में कहा गया है कि थर्ड पार्टी विक्रेताओं की पारंपरिक फ्लैश सेल्स को निशाना नहीं बनाया जा रहा है. फिर भी बड़े ई-कॉमर्स खिलाड़ियों ने जटिल ऑपरेटिंग स्ट्रक्चर्स खड़े कर लिए हैं, जिसकी वजह से बहुत सी चीज़ें स्पष्ट नहीं हैं और जिसके नतीजे में वो माल नियंत्रण पर लगे प्रतिबंधों से बचकर निकल जाते हैं. प्रस्तावित बदलाव भले ही लागू हो जाएं. लेकिन जब तक इस अपरिभाषित क्षेत्र में स्पष्टता नहीं आएगी. तब तक इरादा किया हुआ, निष्पक्ष और बराबरी का मैदान हासिल नहीं हो पाएगा.’
एक न्यूट्रीशन ब्राण्ड फास्ट एंड अप के सीईओ व सह-संस्थापक विजयराघवन वेणुगोपाल ने कहा कि अभी भी ये स्पष्ट नहीं है कि क्या ब्राण्ड स्वामित्व वाली वेबसाइटट्स फ्लैश सेल्स कर सकती हैं. उन्होंने ये भी कहा कि ये देखना दिलचस्प होगा कि उपभोक्ता मंत्रालय का प्रस्तावित नियम, कैसे विकसित होता है
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )