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Friday, 22 November, 2024
होमदेशबस्तर में 3 नए सुरक्षा शिविर - नक्सलियों के गढ़ पर कब्जे के लिए छत्तीसगढ़ का 'मास्टर प्लान'

बस्तर में 3 नए सुरक्षा शिविर – नक्सलियों के गढ़ पर कब्जे के लिए छत्तीसगढ़ का ‘मास्टर प्लान’

पुलिस का कहना है कि सुकमा जिले में तेलंगाना बोर्डर के पास बीजापुर-जगरगुंडा मार्ग पर सुरक्षा शिविर उन्हें दक्षिण बस्तर में माओवादियों के गढ़ों पर प्रभुत्व स्थापित करने में मदद करेंगे.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ के सिलगर में स्थापित सुरक्षा शिविर के विरोध में आदिवासियों की तरफ 28 दिन चला विरोध प्रदर्शन खत्म होने के कुछ दिनों बाद ही राज्य सरकार ने दावा किया कि वह नक्सलियों का गढ़ माने जाने वाले तेलंगाना बॉर्डर की ओर जाने वाली बीजापुर-जगरगुंडा रोड के आखिरी 15 किलोमीटर के छोर में तीन नए पुलिस कैंप स्थापित करने की अपनी योजना पर आगे बढ़ रही है.

पुलिस के मुताबिक, ये शिविर माओवादियों की गतिविधियों पर लगाम कसेंगे और उनकी गतिविधियों को दक्षिणी बस्तर तक सीमित कर देंगे. छत्तीसगढ़ में दक्षिणी और पश्चिमी बस्तर क्षेत्र नक्सलियों का आखिरी गढ़ माने जाते हैं.

दिप्रिंट से बातचीत करते हुए राज्य के पुलिस अधिकारियों ने कहा कि सुकमा जिले में तेलंगाना सीमा के पास समाप्त होने वाली लगभग 66 किलोमीटर लंबी बीजापुर-जगरगुंडा सड़क के आखिरी हिस्से में सुरक्षा शिविर स्थापित करने से उन्हें दक्षिणी बस्तर में माओवादियों के गढ़ में काफी बढ़त मिलेगी.

ये शिविर सिलगर गांव, जहां हाल ही में स्थानीय आदिवासियों ने 28 दिनों तक विरोध प्रदर्शन किया था, और जगरगुंडा के बीच जंगली क्षेत्रों में स्थापित किए जाएंगे.

पुलिस के मुताबिक, कैंप लगने से इलाके के ग्रामीणों के बीच माओवादियों का दबदबा खत्म हो जाएगा.

नक्सल विरोधी अभियान के प्रमुख और बस्तर के आईजी सुंदरराज पी. ने दिप्रिंट को बताया, ‘सिलगर गांव और जगरगुंडा के बीच के क्षेत्र में तीन नए सुरक्षा शिविर बनेंगे. यह मास्टर प्लान का हिस्सा है और सिलगर की तरह माओवादियों के समर्थन वाले प्रदर्शन हमें अपनी प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटा सकते. सुरक्षा कारणों से अभी शिविर के लिए निर्धारित जगहों के बारे में खुलासा नहीं किया जा सकता है… ये सीआरपीएफ, डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड और सीआरपीएफ की कोबरा इकाई के कर्मियों के संयुक्त शिविर होंगे.’

सिलगर गांव से जगरगुंडा तक लगभग 15 किलोमीटर का रास्ता माओवादियों और उनके कैडर के लिए आवाजाही का एक अहम रास्ता माना जाता है. मौजूदा समय में पूरा इलाका माओवादी क्षेत्र है.

गत 3 अप्रैल को दक्षिणी बस्तर के जंगलों में बीजापुर और सुकमा जिलों से शुरू किए गए एक बड़े नक्सल विरोधी अभियान के दौरान 22 जवान शहीद हो गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे.

सुकमा जिले के पुलिस अधीक्षक के.एल. ध्रुव ने कहा कि रास्ते में कोई सुरक्षा शिविर न होने के कारण ही 22 सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई.

इस बीच, स्थानीय आदिवासी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यहां के लोगों और और पुलिस के बीच आमने-सामने का टकराव खत्म होने के आसार नहीं है क्योंकि ‘ये शिविर स्थानीय ग्रामीणों को भरोसे में लिए बिना स्थापित किए जा रहे हैं’


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शिविरों के कारण ‘आक्रोश बढ़ेगा’

सुकमा के डीएसपी के.एल. ध्रुव ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक बार ये तीनों शिविर स्थापित हो जाने से उनका इलाका दक्षिणी बस्तर तक सीमित हो जाएगा, अभी वे आसानी से पूरे क्षेत्र में इधर-उधर आ जा पाते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘नक्सलियों से निपटने के लिए यह प्रमुख क्षेत्र है क्योंकि वे इसका इस्तेमाल दक्षिणी से पश्चिमी बस्तर की ओर, खासकर महाराष्ट्र की सीमा से लगे नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ जंगलों की ओर जाने के लिए करते हैं. अबूझमाड़ उनका बेस स्टेशन है और उनके लिए आजीविका का साधन भी है.’

बस्तर संभाग के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अपना नाम न देने की शर्त पर कहा, ‘बीजापुर-जगरगुंडा सड़क उस समय तक राज्य के बीजापुर और सुकमा जिलों के बीच आवाजाही का प्रमुख साधन थी, जब तक तत्कालीन भाजपा सरकार ने 2005 में माओवादी विरोधी सशस्त्र अभियान सलवा जुडूम शुरू नहीं किया था (सुप्रीम कोर्ट ने इसे 2011 में अवैध घोषित कर दिया था). इसके बाद, माओवादियों ने कई स्थानों पर सड़क क्षतिग्रस्त कर दी, उसे खोद डाला और अपना क्षेत्र बना लिया. हालांकि, अब पुलिस शिविर स्थापित करने के लिए इसे फिर से विकसित किया जा रहा है.’

हालांकि, बस्तर के वन अधिकार कार्यकर्ताओं और एक्टिविस्ट का दावा है कि सिलगर-जगरगुंडा सड़क के किनारे सुरक्षा शिविर स्थापित किया जाना आने वाले दिनों में स्थानीय लोगों की तरफ से अधिक प्रतिरोध और अशांति का कारण बनेगा.

उनके मुताबिक, पुलिस सुरक्षा शिविरों को लेकर स्थानीय ग्रामीणों का भरोसा हासिल करने में नाकाम रही है और नए शिविर स्थापित होने से आदिवासी ग्रामीणों में आक्रोश और ज्यादा बढ़ेगा.

आदिवासी और मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया ने कहा, ‘स्थानीय ग्रामीणों को भरोसे में लिए बिना सुरक्षा शिविर खोले जा रहे हैं, इस तथ्य के बावजूद कि यह क्षेत्र संविधान के अनुसूचित क्षेत्र प्रावधान के तहत आता है. पुलिस कैंप से स्थानीय लोगों को काफी परेशानी हो रही है. और ज्यादा शिविर स्थापित होने से उनके और सुरक्षा बलों के बीच आमने-सामने टकराव बढ़ेगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘सिलगर में विरोध 28 दिनों से चल रहा था और सरकार ने अब तक ग्रामीणों को कोई आश्वासन नहीं दिया है. जाहिर है कि यह कहीं न कहीं कोई समस्या ही उत्पन्न करेगा.’


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उत्तरी, पूर्वी बस्तर में माओवादी हाशिये पर, दक्षिण और पश्चिम नए निशाने पर : पुलिस

बस्तर आईजी ने दावा किया कि पिछले ढाई साल में बस्तर में कम से कम 29 सुरक्षा शिविर स्थापित किए गए हैं, जिनमें से अधिकांश उत्तर और पूर्वी बस्तर में हैं, और अब दक्षिणी और पश्चिमी बस्तर में हावी होने के प्रयास किए जा रहे हैं.

सुंदरराज ने कहा, ‘पूर्वी बस्तर क्षेत्र में वे (माओवादी) लगभग ना के बराबर रह गए हैं, और सुरक्षा बलों ने सुरक्षा शिविर खोलकर आज उत्तरी बस्तर और दरभा घाटी क्षेत्र में पूर्ण प्रभाव हासिल कर लिया है.’

उन्होंने कहा, ‘सुकमा-बीजापुर जिलों सहित दक्षिणr बस्तर, और पश्चिम बस्तर—खासकर नारायणपुर जिला—उनके लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं. नारायणपुर में अबूझमाड़ उनके लिए एक सुरक्षित ठिकाना या आश्रय गृह है. यह नक्सलियों के लिए अर्थव्यवस्था चलाने वाला और रसद आदि के लिहाज से एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है, हालांकि उनकी गतिविधियां मुख्य रूप से दक्षिणी भाग में केंद्रित हैं.’

सुंदरराज के मुताबिक, नए शिविर न केवल सुरक्षा कर्मियों को नक्सलियों को पकड़ने और उनके खिलाफ आक्रामक अभियान चलाने में मददगार साबित होंगे, बल्कि इनके जरिये यहां पर अन्य क्षेत्रों की तरह विकास कार्य भी हो सकेंगे.

पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह इलाका पूरी तरह से माओवादियों के कब्जे में है, इसलिए पुलिस वहां घुसकर नक्सली क्षेत्रों को कब्जाने के लिए बाध्य है. लेकिन चूंकि यह एक विशाल इलाका है इसलिए सुरक्षा बलों को इसे पूरी तरह से अपने कब्जे में करने में समय लग सकता है.

विरोध अचानक खत्म हुआ

14 मई से सिलगर में विरोध कर रहे आदिवासी ग्रामीण शिविर हटाने की अपनी मांग पर अडिग रहने के दौरान भारी बारिश और खराब मौसम का भी सामना करते रहे थे.

उनके आंदोलन के 28 दिनों के दौरान चार मौतें भी हुईं.

लेकिन अपनी मांग पर कोई आश्वासन न मिलने के बावजूद 9 जून को वे अचानक धरना स्थल से पीछे हट गए.

हालांकि, यह निर्णय कथित तौर पर तब हुआ जब सिविल सोसाइटी के सदस्यों के एक पैनल ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की और वह प्रदर्शनकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल से मिलने को राजी हो गए. हालांकि, प्रदर्शनकारियों ने कहा कि उनका आंदोलन प्रतीकात्मक रूप से जारी रहेगा.

सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया का कहना है, ‘राज्य सरकार और प्रशासन ने स्पष्ट तौर पर प्रदर्शनकारियों में ही शामिल रहे कुछ मध्यस्थों की मदद से सिलगर आंदोलन खत्म करने में कामयाबी हासिल की. हमें यह देखना होगा कि क्या वे फिर वापस नहीं लौटते हैं या फिर प्रदर्शन खत्म करना ग्रामीणों की तरफ से एक अस्थायी कदम है क्योंकि सरकार उनकी शिकायतें दूर करने में नाकाम रही है.’

उन्होंने कहा कि सरकार को ग्रामीणों के साथ मिलकर उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए.


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