पूरी दुनिया में शायद मोदी सरकार ही ऐसी है जो अपने पूर्व में लिए गए निर्णय को पलट कर भी जश्न मनाती है. यानि नरेंद्र मोदी एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनके द्वारा लिया गया हर फैसला सही होता है. महत्वपूर्ण यह नहीं कि फैसले क्या हैं, बल्कि यह है कि फैसला ‘मोदी जी ‘ ने लिया है.
7 जून को शाम पांच बजे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ही पूर्व के फैसले को पलटते हुए राज्यों को फ्री वैक्सीन देने की घोषणा की. मालूम हो कि कांग्रेस समेत गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने काफी पहले से ही मुफ्त वैक्सीन देने की मांग की थी.
राहुल गांधी ने तो 24 मई को बाकायदा ट्वीट कर यह कहा था, ‘वैक्सीन की खरीद केंद्र करे और वितरण राज्य- तभी हर गांव तक वैक्सीन सुरक्षा पहुंच सकती है. ये सीधी सी बात केंद्र सरकार को समझ क्यों नहीं आती?’
वैक्सीन की ख़रीद केंद्र करे और वितरण राज्य- तभी हर गाँव तक वैक्सीन सुरक्षा पहुँच सकती है।
ये सीधी-सी बात केंद्र सरकार को समझ क्यों नहीं आती?
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 24, 2021
राहुल गांधी के इस सुझाव पर भाजपा प्रवक्ता और मंत्रीगण मीडिया में आलोचना करते हैं और सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी इसका उपहास करती है.
खैर कुछ दिनों बाद भारत का सुप्रीम कोर्ट भी सरकार से वैक्सीन को लेकर सवाल करता है. इसी क्रम में उच्चतम न्यायालय केंद्र सरकार की टीका नीति को मनमाना एवं तर्कहीन तक करार देती है. सुप्रीम कोर्ट पूछती है कि आप क्यों नहीं 100 % वैक्सीन की खरीदारी करते?
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यू-टर्न नीति
इन सारी परिस्थितियों के मद्देनज़र मोदी सरकार टीका नीति पर यू टर्न मारती है.
लोगों को भले ही ऐसा लगे कि यह फैसला विपक्षी दलों तथा सुप्रीम कोर्ट के दबाव में लिया गया है लेकिन मोदी सरकार ने ऐसा शमा बांधा है कि इस यू-टर्न नीति का भी जश्न ज़ोर शोर से मनाया जा रहा है. इस यू-टर्न नीति की घोषणा का प्रचार-प्रसार ऐसा किया जा रहा है कि मानो यह पीएम मोदी की कोई ‘क्रांतिकारी नीति’ हो.
और भला हो भी क्यों ना! यू-टर्न की नीति तो अपने आप में ‘क्रांतिकारी’ श्रेणी में आती ही है.
फेसबूक से लेकर ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ तक चहूं ओर पीएम मोदी की मुफ्त वैक्सीन की घोषणा का ही स्वर सुनाई दे रहा है. इस जश्न के चकाचौंध में लोग यह भूल जाते हैं कि सरकारें जो कुछ भी देती हैं वो चीज़ फ्री नहीं बल्कि जनता के टैक्स का पैसा ही होता है. लोग यह भी नहीं पूछ रहे हैं कि इतनी ‘क्रांतिकारी नीति’ को पहले क्यों नहीं किया गया?
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पहले भी लिए जा चुके हैं ‘यू-टर्न’
इसी तरह लॉकडाउन को लेकर भी मोदी सरकार के फैसले में ज़मीन आसमान का फर्क देखने को मिलता है. जहां पहला लॉकडाउन बिना किसी योजना के मनमाना और एक तरफा लिया गया निर्णय था वहीं कोविड की दूसरी लहर में मोदी ने लॉकडाउन का निर्णय राज्य सरकारों पर छोड़ दिया.
हालांकि यह कोई पहली दफा नहीं हुआ है जब पीएम मोदी ने अपने फैसले को पलटकर जश्न का माहौल बना दिया.
चीन के साथ सीमा विवाद के समय बुलाए गए सर्वदलीय बैठक मे प्रधानमंत्री ने कहा– ‘न कोई हमारी सीमा में घुसा, न ही कोई पोस्ट किसी के कब्ज़े मे है’. लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद भारत और चीन के बातचीत मे डिसइनगेजमेंट यानि दोनों देशों की सेना की वापसी पर सहमति बनी. इसके बाद तमाम इलेक्ट्रॉनिक चैनल ने इसे भारत के विजय के रूप में दिखाना शुरू कर दिया. डिसइनगेजमेंट की इस प्रक्रिया का ऐसा जश्न मनाया गया मानो भारत ने ही चीन की सीमा का अतिक्रमण कर लिया था!
इसी कड़ी में एक और यू-टर्न प्रधानमंत्री मोदी में तब लिया जब कोरोना महामारी से उपजी गंभीर बेरोज़गारी के कारण महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) का बजट बढ़ा दिया और 40,000 करोड़ की अतिरिक्त राशि की मंज़ूरी भी दी.
यदि आंकड़ों पर गौर करें तो मोदी सरकार के सात सालों में मनरेगा का बजट करीब तीन गुना बढ़ गया है. मालूम हो कि प्रधानमंत्री ने लोकसभा में वर्ष 2015 में मनरेगा का मज़ाक उड़ाते हुए इसे कांग्रेस सरकार की नाकामियों का स्मारक तक बताया था.
मोदी ने कहा था, ‘मेरी राजनीतिक सूझ बूझ कहती है कि मनरेगा को कभी बंद मत करो. मैं ऐसी गलती नहीं कर सकता हूं. क्योंकि मनरेगा आपकी विफलताओं का जीता जागता स्मारक है. आजादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा. ये आपकी विफलताओं का स्मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा.’
वहीं दूसरी तरफ भाजपा शासित गुजरात के मुख्यमंत्री ने मनरेगा योजना की प्रशंसा करते हुए इसे लॉकडाउन में जीवन रक्षक की संज्ञा तक दी है.
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क्या कृषि कानूनों पर भी यू-टर्न लेंगे मोदी?
यू-टर्न के इस ट्रेंड को देखते हुए क्या किसान भी यह उम्मीद कर सकते हैं कि हालिया तीन कृषि कानून को किसी दिन मोदी निरस्त कर जश्न मनाएंगे?
क्या शिक्षक और विद्यार्थी भी यह उम्मीद करें कि किसी दिन मोदी सरकार शिक्षा के बाज़ारीकरण और निजीकरण के अपने फैसले को पलट देगी? क्या बैंक कर्मी भी यह उम्मीद कर सकते हैं कि बैंकों के निजीकरण के फैसले भी बदले जा सकते हैं?
क्या आम आदमी भी यह उम्मीद कर सकता है कि मोदी सरकार यू-टर्न मारते हुए महंगाई समेत अन्य ‘जनविरोधी’ नीतियों को पलट देगी?
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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