रोहतास: ‘इस बार भीड़ नहीं लग रही है, बस दो चार पड़ोसी आ रहा है भोज में,’ ये कहना था उमा शंकर का, जो 85 वर्षीय उर्मिला देवी के पड़ोसी और रिश्तेदार हैं, जिनकी बिहार के रोहतास ज़िले में, दो हफ्ता पहले कोविड के संक्रमण से मौत हो गई थी.
लेकिन शंकर के शब्दों को 600 लोगों की भीड़ ने ग़लत साबित कर दिया, जो सोमवार को उर्मिला देवी के भोज के लिए जमा हुए थे- ऐसी दावत जो मौत के 13वें दिन, परिवार की ओर से आयोजित की जाती है.
शंकर का ये मानना कि कार्यक्रम के लिए ज़्यादा लोग नहीं आएंगे, अपनी जगह ग़लत नहीं था. कोविड को लेकर गांव वासियों के बीच एक डर है, जो अकसर कलंक का रूप ले लेता है.
उर्मिला देवी के परिवार ने अपनी ओर से उनकी बीमारी के रहस्य को छिपाने की पूरी कोशिश की थी. उनके सबसे छोटे बेटे अमरेंदर सिंह ने कहा, ‘मुझे चिंता थी कि मेरी मां में कोविड जैसे लक्षण दिख रहे थे, जैसे खांसी, छाती में दर्द और बुख़ार’.
रोहतास ज़िले में नोखा ब्लॉक के बरांव गांव की निवासी, उर्मिला देवी ने 18 दिन तक वायरस से संघर्ष किया था. परिवार ने माना कि उनका कोविड टेस्ट कराने में देरी की गई, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर रिपोर्ट पॉज़िटिव आ गई, तो उन्हें अलग रहना पड़ेगा, और वो उनकी देखभाल नहीं कर पाएंगे. उन्हें दोस्तों और पड़ोसियों की प्रतिक्रिया, तथा संभावित सामाजिक बहिष्कार का भी डर था.
जब उन्होंने जांच करा ली, और रिपोर्ट में कोविड आ गया, तब भी परिवार ने किसी को इस बारे में नहीं बताया. न ही वो उर्मिला देवी को अस्पताल लेकर गए.
लेकिन फिर भी, बात फैल गई.
गांव के एक निवासी अजय कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘आजकल अगर कोई बीमार पड़ता है, तो लोगों को फौरन लगता है कि कोविड है. इसलिए वो उस व्यक्ति के घर जाने से बचने लगते हैं. और उनमें (उर्मिला देवी) में इस बीमारी के सारे लक्षण मौजूद थे’.
21 मई को उनकी अंत्येष्टि में, मुश्किल से दर्जन भर निकट संबंधी शरीक हुए थे. लेकिन यहां के निवासियों का कहना था, कोविड से पहले के दिनों में भी, ऐसा होना एक सामान्य बात थी.
लेकिन भोज एक बिल्कुल अलग मामला है- इसमें आमतौर से पूरा गांव शरीक होता है. उर्मिला देवी के परिजनों और पड़ोसियों का कहना था, कि उनके भोज में शरीक होने वाले, 600 लोगों की संख्या मामूली ही थी- कोविड से पहले के समय में 1,000 से अधिक मेहमान होते थे.
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मृतकों के लिए दावत
उर्मिला देवी का मामला अकेला नहीं है. पिछले एक महीने बिहार यात्राओं के दौरान, गांव दर गांव दिप्रिंट ने देखा, कि जहां संक्रमण के डर ने कोविड को इस हद तक कलंकित कर दिया है, कि परिवारों को अकसर मजबूरी में, इनफेक्शन्स को छिपाना पड़ता है, या मौत का शोक अकेले मनाना पड़ता है, वहीं शादियों और अंत्येष्टि की दावतें या भोज अभी भी, सैकड़ों लोगों को अपनी ओर खींच रहे हैं, जहां वो न तो मास्क पहनते हैं, और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग नियमों का पालन करते हैं.
वास्तव में इन दिनों भोज और श्राद्ध में- जो अंतिम संस्कार का हिस्सा होते हैं- शादियों से ज़्यादा लोग जमा हो सकते हैं, क्योंकि, जैसा कि शंकर ने समझाया, विवाह के विपरीत श्राद्ध या भोज के लिए, ब्लॉक प्रशासन से कोई पास लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती.
उर्मिला देवी के भोज में आए एक मेहमान ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘जब हम दूसरे परिवारों द्वारा आयोजित दावतों में जाकर खाते हैं, तो अपने परिवार में मौत होने पर, हमें भी दूसरे लोगों को आमंत्रित करना होता है. ये एक परंपरा है. अगर कोई उसका पालन नहीं करता, तो वो पूरे गांव से कट जाएगा. इसलिए भोज आयोजित करना होता है. भले ही दूसरों को खिलाने के लिए, आपको अपना घर या ज़मीन बेंचनी पड़ जाए’.
उन्होंने आगे कहा कि जब रीति रिवाजों पर चलने की बात आती है, तो फिर मौत का कारण मायने नहीं रखता. ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मृतक कोविड का मरीज़ था. परिवार को एक दावत आयोजित करके, लोगों को आमंत्रित करना होगा. जिन्हें डर है वो नहीं आएंगे, बाक़ी आएंगे’.
बिहार सरकार के आंकड़ों के अनुसार, सूबे में कोविड से 5,163 मौतें दर्ज हुईं हैं. इसका मतलब है कि तक़रीबन इतनी ही संख्या में, भोज के जमावड़े आयोजित किए गए.
डोम समुदाय के एक समूह ने- जिनका पेशा शवों का अंतिम संस्कार करना है- जो उर्मिला देवी के घर से एक किलोमीटर दूर रहता है, दिप्रिंट को बताया कि सोमवार को वो दो भोज समारोहों में शरीक होंगे, जिनमें एक उर्मिला देवी का है. एक अन्य डोम ने ऐसी अन्य दावतों की संख्या गिनाई, जहां वो अगले कुछ दिनों में शरीक होंगे.
सोमवार को, उर्मिला देवी की मौत के 13वें दिन, परिवार ने पड़ोसियों तथा भोज में शामिल रिश्तेदारों को खाना खिलाने में, क़रीब 2 लाख रुपए ख़र्च किए. उनके इलाज पर परिवार ने, केवल 12,000 रुपए ख़र्च किए.
दो दिन पहले, एक और अनुष्ठान श्राद्ध आयोजित किया गया था. 200 से अधिक लोगों के लिए, एक ‘छोटी’ दावत- भोज से छोटी- तैयार की गई थी.
अपने मेहमान की बात का समर्थन करते हुए, उर्मिला देवी के बेटे अमरेंदर सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘भोज तो करना ही पड़ेगा. हम लोगों को नाराज़ नहीं कर सकते ना. जब हमने दूसरे लोगों के समारोहों में खाया है, तो हमें भी उन्हें अपने यहां बुलाना ही होगा’.
इस बीच, परिवार के कुछ लोग श्राद्ध में शिरकत कर रहे हर आदमी को, आश्वस्त करने की पूरी कोशिश कर रहे थे, कि उर्मिला देवी की मौत कोविड से नहीं हुई थी.
उनके एक पोते अजीत ने पूछा, ‘अगर वो कोविड पॉज़िटिव थीं, तो हम में से किसी को उनसे ये क्यों नहीं लगा? हम 10 लोग एक ही छत के नीचे रह रहे थे, उनकी देखभाल कर रहे थे, उन्हें छू रहे थे’.
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