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Friday, 29 March, 2024
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डेथ सर्टिफिकेट पर मौत की वजह नहीं लिखेंगे तो ‘कोविड’ के कारण अनाथ बच्चों को मदद कैसे मिलेगी

कोविड के कारण अपने मां बाप दोनों खो चुके बच्चों के मामले में केंद्र को स्थिति साफ करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बच्चा केन्द्र सरकार की योजनाओं के लाभ से वंचित न रह जाए.

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कोविड-19 के मृतकों के मृत्यु प्रमाण पत्र पर अगर मृत्यु का कारण ‘कोविड’ दर्ज नहीं होगा तो अनाथ बच्चों या दूसरे आश्रितों का सहायता कैसे मिलेगी?

इसके लिये एक पारदर्शी समान नीति की आवश्यकता है जिसमें मृत्यु का कारण ‘कोविड’ दर्ज करना अनिवार्य हो.

कोविड-9 महामारी के दौरान माता-पिता को खोने वाले बच्चों के कल्याण के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों ने बड़ी बड़ी योजनाओं की घोषणाएं की हैं . निश्चित ही इन योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये इन बच्चों की ओर से तमाम औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ेंगी. इनमें सबसे महत्वपूर्ण कोविड-19 महामारी की वजह से मृत्यु होने संबंधी मृत्यु प्रमाण पत्र हासिल करना. मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण कोविड-19 दर्ज होना जरूरी है लेकिन फिलहाल नौकरशाही के रवैये को देखते हुए ऐसा संभव नहीं हो रहा है.

मृत्यु प्रमाण पत्र में इस खामी का भी संज्ञान देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने लिया है. राज्यों के लिये एक समान मृत्यु प्रमाण पत्र की नीति के अभाव में ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि प्राधिकारी मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण कोविड-19 या कोरोना संक्रमण की बजाये दूसरी बीमारियों का उल्लेख कर रहे हैं या फिर उस कॉलम को रिक्त छोड़ रहे हैं.


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‘कल्याण योजनाओं का लाभ लेना लोहे के चने चबाने जैसा’

अब अगर ऐसी स्थिति है तो निश्चित ही कोरोना में अपने माता पिता को खोने वाली संतानों के लिये केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करना लोहे के चने चबाने जैसा हो जायेगा. शायद यही वजह है कि उच्चतम न्यायालय ने सरकार से स्पष्ट शब्दों में कहा है, ‘अस्पतालों में कोविड की वजह से मरने वाले व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाण पत्र में वे सभी तथ्य परिलक्षित होने चाहिए जो मरीज के साथ घटित हुई ताकि परिवार भविष्य में मिलने वाले लाभ प्राप्त कर सकें. मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण कोविड लिखा होना चाहिए.’

न्यायालय का यह प्रयास अगर सफल हो गया और मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण ‘कोविड’ दर्ज होना अनिवार्य हो गया तो निश्चित ही निकट भविष्य कोविड-19 की वजह से देश में जान गंवाने वाले व्यक्तियों की सही संख्या का पता चल सकेगा.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने सरकार से कहा कि कोविड-19 के मामलों में पारदर्शी तरीके से मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिये एक समान नीति अपनाई जाये. यह पीठ कोविड से जान गंवाने वाले व्यक्तियों के परिवारों को मुआवजे के रूप में चार चार लाख अनुग्रह राशि के भुगतान का सरकार को निर्देश देने लिये के लिये याचिका पर विचार कर रही है.

न्यायालय ने सरकार को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के दिशा निर्देश भी पेश करने का आदेश दिया है ताकि पता लगाया जा सके कि इसमें कोविड-19 के मामलों में मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया के बारे में भी कुछ कहा गया है या नहीं.

न्यायालय मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण ‘कोविड’ दर्ज नहीं होने की स्थिति में लोगों को होने वाली परेशानियों को महसूस कर रहा है. यही वजह है कि उसने सुनवाई के दौरान टिप्पणी भी की, ‘कोविड-19 पीड़ितों के परिजनों को अगर किसी प्रकार का मुआवजा दिया जाना होगा तो इसके लिये लोगों को दर दर भटकना पड़ेगा. यह कोविड-19 के पीड़ित परिवार के प्रति उचित नहीं होगा अगर कोविड की वजह से जान गंवाने वाले व्यक्ति की मृत्यु का कारण ‘कोविड’ की बजाये कुछ और लिखा होगा.’


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सुप्रीम कोर्ट का आदेश हलचल में आई केंद्र

बहुत संभव है कि कोविड की वजह से अनाथ हुए बच्चों के कल्याण के बारे में केंद्र अभी भी सुध नहीं लेती और इसे राज्य सरकारों के भरोसे छोड़ देती. लेकिन शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप ने स्थिति बदल दी है.

न्यायालय ने इस विनाशकारी महामारी की वजह से बड़ी संख्या में बच्चों के अनाथ होने पर चिंता व्यक्त की और राज्य प्राधिकारियों को तत्काल ऐसे बच्चों की पहचान कर उन्हें राहत प्रदान करने का निर्देश दिया है. इस कार्य में किसी भी प्रकार की ढील की संभावना खत्म करने के इरादे से न्यायालय ने ऐसे बच्चों की पहचान करके उनके आंकड़े राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करने का भी निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकारों को इन बच्चों की स्थिति और उन्हें प्रदान की जा रही राहत के बारे में तत्काल उसे जानकारी देने का निर्देश दिया है. मतलब साफ है. राज्य सरकार के प्राधिकारियों और नौकरशाही के लिये इस मामले में किसी प्रकार की टाल मटोल करना संभव नहीं होगा.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने पिछले सप्ताह इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि किशोर न्याय कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत ‘ऐसे बच्चों की देखभाल करना प्राधिकारियों का कर्तव्य है.’

यही नहीं, न्यायाधीशों ने यह भी कहा था, ‘हमने कहीं पढ़ा था कि महाराष्ट्र में 2,900 से अधिक बच्चों ने कोविड-19 के कारण अपने माता-पिता में से किसी एक को या दोनों को खो दिया है. हमारे पास ऐसे बच्चों की सटीक संख्या नहीं है. हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि इस विनाशकारी महामारी के कारण इतने बड़े देश में ऐसे कितने बच्चे अनाथ हो गए.’

कोविड महामारी की वजह से अपने माता पिता को गंवाने वाले इन अनाथ बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य को लेकर जब देश में आवाज उठनी शुरू हुयी तो पहले कुछ राज्यों ने ऐसे बच्चों की जिम्मेदारी वहन करने की घोषणाएं कीं.

ऐसा लगता है कि न्यायालय के कड़े रुख और फिलहाल इस महामारी की दूसरी लहर को लेकर हो रही चौतरफा आलोचनाओं का मुंह बंद करने के इरादे से केन्द्र सरकार ने भी अनाथ बच्चों के लिये कई महत्वपूर्ण फैसलों की घोषणा कर दी.

केंद्र बताए

केन्द्र सरकार ने ऐसे सभी बच्चों को पीएम केयर्स फंड से 10 लाख रुपए की सहायता देने की घोषणा की और कहा कि यह रकम बच्चों के नाम से सावधि जमा करायी जायेगी. यह रकम बच्चों को 18 से 23 साल की उम्र के दौरान वजीफे के रूप में दी जाएगी या फिर 23 साल का होने पर एकमुश्त दी जायेगी.

केन्द्र ने ऐसे बच्चों को केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालयों में शिक्षा दिलाने और निजी स्कूलों में पढ़ाई करने की स्थिति में उसका खर्च वहन करने की भी घोषणा की है.

सरकार की इन घोषणाओं के साथ ही एक सवाल यह उठता है कि जिन परिवार में माता पिता दोनों की कोविड से मृत्यु हो गयी है और अब उनके दो या तीन बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है तो क्या ऐसे प्रत्येक बच्चे के नाम से दस दस लाख रुपए जमा होंगे या फिर यह भी लाल फीताशाही का शिकार हो जायेगी.

सरकार को ऐसे बच्चों के मामले में स्थिति साफ करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि इस व्यथा का सामना कर रहा कोई भी बच्चा केन्द्र सरकार की इन योजनाओं के लाभ से वंचित नहीं हो. अगर कोई नौकरशाह इन लाभों से ऐसे बच्चों को किसी प्रकार से वंचित करने का प्रयास करे तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई का भी प्रावधान होना चाहिए.

कोरोना महामारी से निपटने और इससे प्रभावित नागरिकों के इलाज के लिये समुचित दवाओं और ऑक्सीजन आदि की सुविधाओं के प्रबंधन में भारी अव्यवस्थाओं पर देश की शीर्ष अदालत लगातार केंद्र और राज्य सरकारों को आड़े हाथ ले रही है.

ऐसी स्थिति में उम्मीद की जानी चाहिए की केन्द्र और राज्य सरकारें किसी प्रकार का ढुलमुल रवैया अपनाये बगैर ही कोविड-19 की वजह से जान गंवाने वाले व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण ‘कोविड’ लिखना सुनिश्चित करने के साथ ही अनाथ बच्चों के लिये की जा रही घोषणाओं पर पूरी ईमानदारी से अमल करेंगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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