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Tuesday, 5 November, 2024
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वाराणसी में ‘कोविड सुधार’ करने वाले मोदी के करीबी को UP में बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है BJP

पूर्व IAS अधिकारी एके शर्मा को वाराणसी को एक अपेक्षाकृत सुरक्षित जगह बनाने का श्रेय दिया जा रहा है. एक ऐसे राज्य में, जहां कोविड ने तबाही मचाई हुई है और प्रशासनिक अक्षमता तथा कुप्रबंध की क़लई खोल दी है.

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नई दिल्ली: यूपी में कोविड-19 की स्थिति से निपटने में सरकार की कमी को देखते हुए केंद्र सरकार के बड़े नेताओं की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, जिसकी वजह से बीजेपी नेतृत्व पीएम मोदी के विश्वासपात्र माने जाने वाले और गुजरात काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी एके शर्मा के लिए बड़ी भूमिका पर विचार कर रही है. इन्होंने उत्तर प्रदेश में एमएलसी बनने के लिए स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले लिया था.

प्रधानमंत्री ने उन्हें वाराणसी में कोविड प्रबंधन का ज़िम्मा सौंपा था, जो उनका संसदीय चुनाव क्षेत्र है, और पूर्व सिविल सर्वेंट यहां एक बदलाव लाने में कामयाब हो गए हैं. उन्होंने मंदिरों के इस शहर को अपेक्षाकृत एक सुरक्षित जगह बना दिया है, एक ऐसे राज्य में जहां कोरोनावायरस ने तबाही मचाई हुई है और प्रशासनिक अक्षमता तथा कुप्रबंध की क़लई खोल दी है.

एक सरकारी सूत्र ने बताया कि शुक्रवार को शर्मा ने दिल्ली में मोदी से मुलाक़ात की. इसके बाद उन्होंने शनिवार को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ से उनके सरकारी आवास पर मुलाक़ात की.

पीएम ने रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले, और यूपी बीजेपी महासचिव सुनील बंसल के साथ यूपी में कोविड कुप्रबंध के संभावित राजनीतिक नतीजों पर चर्चा की, जहां अगले साल के शुरू में चुनाव होने हैं.

एक दूसरे सूत्र ने बताया, ‘बीजेपी नेतृत्व में इस बात पर चर्चा चल रही है कि शर्मा को सूबे में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी दी जाए. मध्य अप्रैल के बाद से, जिस तरह शर्मा ने वाराणसी में काम किया और ज़िले में कोविड की स्थिति को नियंत्रण में लाए, यूपी की स्थिति पर हो रही बातचीत के दौरान, उसकी चर्चा हो रही है’.

वाराणसी के दौरों के दौरान सीएम द्वारा ली गई बैठकों में शर्मा की मौजूदगी को लेकर लखनऊ में, सत्ता के गलियारों में पहले ही उत्सुकता पैदा हो गई है.

दूसरे सूत्र ने कहा कि एक सोच ये है कि शर्मा जैसे बेहतर काम करने वाले लोगों को लाने से कोविड से निपटने के तरीके से खराब हुई सरकार की छवि को ठीक करने में फायदा पहुंच सकता है.

सूत्र ने कहा, ‘लोगों में इस बात को लेकर काफी नाराज़गी है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि उस समय कहीं नज़र नहीं आ रहे थे, जब महामारी तबाही मचा रही थी, और अस्पतालों में बिस्तरों, तथा ऑक्सीजन की कमी से, लोग मारे जा रहे थे’.

सिर्फ आम जन ही नहीं, सरकार ने जिस तरह स्थिति से निपटा है, उसे लेकर यूपी के मंत्रियों और विधायकों के एक वर्ग में भी, ख़ासी नाराज़गी पैदा हो रही है. कई बीजेपी सांसदों, विधायकों, और राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्रियों ने, सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर, बिस्तरों और मेडिकल ऑक्सीजन आदि की कमी के मुद्दों की ओर, उनका ध्यान खींचा है.

राज्य में कोविड से मरने वाले लोगों में, तीन मंत्री- विजय कश्यप, चेतन चौहान, और कमल रानी वरुण भी शामिल हैं.

दूसरी लहर में एक घातक झटका सहने के बाद, उत्तर प्रदेश की कोविड स्थिति कुछ सुधरती नज़र आ रही है. सोमवार को सूबे में 3,981 कोविड मामले दर्ज किए गए, जो कि 24 अप्रैल को 38,055 थे.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, केस पॉज़िटिविटी रेट जो 24 अप्रैल को 17 प्रतिशत थी, 24 मई तक घटकर 1.2 प्रतिशत रह गई है. सोमवार को, राज्य में 76,703 एक्टिव मामले थे, जिनकी संख्या 24 अप्रैल को 3,10,783 थी. लेकिन सरकारी आंकड़ों के बावजूद, चिंता ज़ाहिर की जा रही है, कि ख़ासकर ग्रामीण इलाक़ों में, ज़मीनी सतह पर हालात गंभीर बने हुए हैं.


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वाराणसी में काम पर

पीएम के सबसे क़रीबी सहायकों में से एक, शर्मा ने मुख्यमंत्री के उनके दिनों से, मोदी के साथ काम किया है. वो मोदी के गुजरात मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में सचिव थे, और 2014 में उनकी जीत के बाद, बतौर संयुक्त सचिव पीएमओ में आ गए.

अप्रैल 2020 में, कोविड लॉकडाउन से उत्पन्न प्रवासी संकट के चरम पर, उन्हें एमएसएमई सचिव नियुक्त किया गया. उसके नौ महीने बाद, बीजेपी में शामिल होने के लिए, शर्मा ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले लिया. कुछ समय बाद ही, उन्हें उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कर दिया गया.

जनवरी में जब शर्मा को बतौर एमएलसी मनोनीत किया गया, तो अटकलें थीं कि उन्हें उप-मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. लेकिन दूसरी कोविड लहर की वजह से, मंत्रिमंडल में बदलाव की योजना रोक दी गई.

शर्मा 13 अप्रैल को वाराणसी पहुंचे, और उसके बाद से ज़िले में मोर्चा संभाले हुए हैं.

मई के पहले सप्ताह तक, वाराणसी उत्तर प्रदेश के पांच सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों में से एक था. 20 अप्रैल को राज्य सरकार के आंकड़ों में, वाराणसी में संक्रमण के ताज़ा मामलों की संख्या, 1,637 बताई गई थी. 25 अप्रैल को ये संख्या बढ़कर 2,057, और मौतों की संख्या 15 हो गई. पिछले हफ्ते, रोज़ाना सामने आ रहे मामलों की औसत संख्या 250, और मौतों की संख्या 13 थी.

उन्होंने जिस तरह स्थिति को संभाला- ख़ासकर ज़मीनी स्थिति पर नज़र रखने के लिए, जो काशी कोविड रेस्पॉन्स सेंटर उन्होंने स्थापित कराया- पिछले हफ्ते हुई एक बैठक में, पीएम नरेंद्र मोदी ने उसकी सराहना की.

काशी कोविड रेस्पॉन्स सेंटर न केवल कोविड केस लोड, बल्कि हर अस्पताल में उपलब्ध बिस्तरों की संख्या, ऑक्सीजन की मांग और उपलब्धता, और दवाओं आदि के स्टॉक आदि के रियल-टाइम आंकड़े देता है.

लखनऊ में सरकारी अधिकारियों ने बताया, कि शर्मा वाराणसी की स्थिति पर नज़र रखने के लिए, सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा बुलाई गई बैठकों में शरीक होते रहे हैं. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले एक महीने में सीएम ने दो बैठकें की हैं, जिनमें ज़िला प्रशासन के अधिकारियों के साथ, शर्मा ने भी शिरकत की’.

ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, कि शर्मा का फोकस सिर्फ वाराणसी पर ही नहीं था.

वाराणसी ज़िला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘वो पूर्वी यूपी के अन्य ज़िलों, बलिया, मऊ, आज़मगढ़, गाज़ीपुर, और जौनपुर में भी स्थिति पर क़रीबी नज़र बनाए हुए हैं. उन्होंने इन जगहों का दौरा किया और ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स तथा दूसरी आवश्यक मेडिकल वस्तुएं जुटाने में इन ज़िलों की भी मदद की’.


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शर्मा की तरक़्क़ी कब की जाए?

हालांकि बीजेपी नेतृत्व शर्मा को कोई बड़ी ज़िम्मेदारी देना चाहता है, लेकिन इस बात पर राय बंटी हुई है, कि उन्हें सरकार में कोई औपचारिक भूमिका इस समय दी जाए, या अगर पार्टी 2022 के यूपी विधान सभा चुनाव जीत जाए, तो उसके बाद दी जाए.

ऊपर हवाला दिए गए दूसरे सूत्र ने कहा, ‘नेतृत्व को अभी अंतिम फैसला लेना है कि शर्मा को सरकार में कोई औपचारिक भूमिक अभी दी जाए, या चुनावों का इंतज़ार किया जाए’.

सूत्र ने आगे कहा, ‘एक विचार ये है कि किसी औपचारिक पद के बिना, इतने कम समय में अगर वो वाराणसी में बदलाव लाने में कामयाब हो गए हैं, तो वो कहीं ज़्यादा कारगर साबित हो सकते हैं, अगर उन्हें कोई औपचारिक भूमिका, और बड़ी ज़िम्मेदारी दे दी जाए. चुनावों से पहले, उसका एक सही संदेश जा सकता है’.

लेकिन, यूपी के एक बीजेपी नेता ने कहा कि पार्टी को चुनावों का इंतज़ार करना चाहिए. नेता ने आगे कहा, ‘दस महीने में वो कितना काम कर सकते हैं?’

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