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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थकोविड के 'इलाज' में गोबर का रुख कर रहे लोग, डॉक्टरों ने गोबर-ब्लैक फंगस में संबंध के दिए संकेत

कोविड के ‘इलाज’ में गोबर का रुख कर रहे लोग, डॉक्टरों ने गोबर-ब्लैक फंगस में संबंध के दिए संकेत

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात में कुछ लोग ‘हफ्ते में एक बार गौशालाओं में जाते हैं और अपने शरीर पर गौमूत्र तथा गोबर का लेप करते हैं, ताकि इससे उन्हें कोरोनावायरस से बचने या उससे ठीक होने में सहायता मिलेगी.’

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नई दिल्ली: डॉक्टरों ने इन ख़बरों पर चिंता जताई है कि किस तरह लोग गाय के गोबर या मूत्र को अपने शरीर पर मल रहे हैं- जिसे ‘गाय के गोबर का उपचार’ कहा जा रहा है- इस विश्वास के साथ कि इससे उन्हें कोविड संक्रमण से बचने या ठीक होने में मदद मिलेगी. डॉक्टरों का कहना है कि ये तथाकथित इलाज संभावित रूप से ‘ब्लैक फंगस’ या म्यूकोरमाइकोसिस के मामलों की संख्या में इज़ाफा कर सकता है, जो कुछ ठीक हो गए ऐसे मरीज़ों में देखे जा रहे हैं, जिन्हें कोविड इलाज के दौरान स्टिरॉयड्स दिए गए थे.

ये चेतावनी उसके बाद जारी हुई, जब 12 मई को वायरल हुई रॉयटर्स की एक वीडियो रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात में कुछ लोग ‘हफ्ते में एक बार गौशालाओं में जाते हैं और अपने शरीर पर गौमूत्र तथा गोबर का लेप करते हैं, इस उम्मीद में कि इससे उनकी इम्यूनिटी बढ़ेगी, जिससे उन्हें कोरोनावायरस से बचने या उससे ठीक होने में सहायता मिलेगी.’

गुजरात उन राज्यों में से है जहां से म्यूकोरमाइकोसिस के मामले सामने आ रहे हैं, ख़ासकर उन लोगों में, जिनका डायबिटीज़ का इतिहास रहा है. इस तरह के मामले महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा और ओडिशा में भी देखे गए हैं.
13 मई को एक ट्वीट में अमेरिका स्थित डॉ फहीम यूनुस ने जो कोविड-19 पर एक अहम आवाज़ बनकर उभरे हैं, ने इस बात का संकेत दिया कि भारत में घातक ब्लैक फंगस बीमारी (म्यूकोरमाइकोसिस) के पीछे एक कारण गाय के गोबर का कोविड इलाज के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है.’

‘मैं इसे साबित तो नहीं कर सकता लेकिन इसकी संभावना बहुत ज़्यादा है. अपने जोखिम को देखिए’, ये ट्वीट करते हुए उन्होंने अमेरिका की शीर्ष स्वास्थ्य इकाई, सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (सीडीसी) एंड प्रिवेंशन की वेबसाइट से एक लिंक साझा किया जिसमें कहा गया है कि जानवरों के गोबर में, म्यूकोरमाइसिटीज़ मौजूद होते हैं.

सीडीसी के अनुसार, ‘म्यूकोरमाइसिटीज़, जो म्यूकोरमाइकोसिस पैदा करने वाले फंगी का समूह होते हैं, पूरे वातावरण में मौजूद होते हैं ख़ासकर मिट्टी में और ये पत्तियों, खाद के ढेर और जानवरों के गोबर जैसे सड़ने-गलने वाले कार्बनिक पदार्थ में खूब पाए जाते हैं.


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‘एक सीधा संबंध’

विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग कोविड-19 से ठीक हो गए हैं, उन्हें म्यूकोरमाइकोसिस के लक्षणों पर नज़र रखनी चाहिए, जैसे बंद नाक, सर दर्द, मुंह के अंदर तालू पर काले घाव, चेहरे में दर्द और आंखों की रोशनी का कमज़ोर होना.

नीति आयोग सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल के अनुसार, ब्लैक फंगस इन्फेक्शन ‘ऐसे मरीज़ों में बहुत कम होता है, जिन्हें डायबिटीज़ नहीं होती.’

डॉक्टरों का कहना है कि कोई भी कोविड मरीज़ जो डायबिटिक है या जिसकी इम्यूनिटी कमज़ोर हो चुकी है और जिसने स्टिरॉयड्स लिए हैं, उसे गाय के गोबर से बचने की चेतावनी दी जानी चाहिए.

रॉयटर्स की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, सर और गर्दन के कैंसर सर्जन तथा नागपुर के सेवन स्टार अस्पताल के डायरेक्टर, डॉ शैलेष कोठालकर ने कहा कि ये एक ‘चिंताजनक ट्रेंड’ है.

उन्होंने आगे कहा, ‘इस वीडियो ने मुझे चिंता में डाल दिया है. जिन लोगों को डायबिटीज़ है या जिनकी इम्यूनिटी कमज़ोर हो चुकी है और जिन्होंने हाल ही में स्टिरॉयड्स लिए हैं, अगर वो इस झूठ पर विश्वास करते हैं और मानते हैं कि गोबर लगाने से कोविड ठीक हो जाता है तो उनमें ब्लैक फंगस पैदा होने का बहुत जोखिम रहता है’. ‘इससे उनके शरीर में ब्लैक फंगस होने की संभावना, बहुत अधिक बढ़ जाएगी’.

कोठालकर ने कहा कि महामारी के दौरान उनके पास आने वाले म्यूकोरमाइकोसिस मामलों की संख्या में काफी इज़ाफा हुआ है. उन्होंने कहा कि दूसरी लहर से पहले दो दशकों के उनके अनुभव में उन्होंने म्यूकोरमाइकोसिस के केवल 12 मरीज़ों का ऑपरेशन किया था. उन्होंने आगे कहा कि पिछले दो महीनों से, वो म्यूकोरमाइकोसिस के लिए हर रोज़ तीन से चार सर्जरीज़ कर रहे हैं.

‘म्यूकोर मृत पौधों, लकड़ी या भोजन जैसे पदार्थों पर पनपता है. ये गोबर में बढ़ता है. गोबर का इस्तेमाल करने और म्यूकोर को आकर्षित करने में सीधा संबंध होता है.’

नारायण अस्पताल गुरुग्राम में नेत्र विभाग के प्रमुख, डॉ दिग्विजय सिंह ने कहा कि ‘इसमें कोई शक नहीं कि गोबर और म्यूकोर में एक रिश्ता होता है.’

कोठालकर की तरह, सिंह ने भी कहा कि पहले वो म्यूकोरमाइकोसिस के साल में बस दो या तीन केस देखते थे. अब डॉक्टर हर महीने ऐसे दो-तीन केस देख रहे हैं.

‘म्यूकोरमाइसिटीज़ हमारे आसपास, वातावरण में हर जगह होते हैं, जिसमें मिट्टी और गाय का गोबर भी शामिल हैं. हम उससे बच नहीं सकते. हम गाय का गोबर इस्तेमाल करने और ब्लैक फंगस होने के बीच रिश्ते को स्थापित तो नहीं कर सकते लेकिन ये सोचना बिल्कुल तर्कसंगत है कि गोबर का इस्तेमाल करने से म्यूकोर इनफेक्शन का ख़तरा निश्चित रूप से बढ़ जाता है’, ये कहना था सिंह का, जिनके फील्ड अनुभव में देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में बिताया गया एक दशक भी शामिल है.

गुरुग्राम स्थित मेदांता में इंटर्नल मेडिसिन कंसलटेंट डॉ नेहा गुप्ता ने कहा कि ब्लैक फंगस के मामले ‘वहीं देखे जा रहे हैं, जहां लोग अवैज्ञानिक उपचार और मिथकों का पालन कर रहे हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘रिश्ता तो यक़ीनन है. लेकिन अभी तक, (ब्लैक फंगस) मामलों में उछाल के प्रमुख कारणों का संबंध, वातावरण, अस्पतालों में जीवाणुओं का बढ़ा हुआ दबाव, मरीज़ों में अनियंत्रित डायबिटीज़ और साथ में स्टिरॉयड्स तथा इम्यूनिटी को दबाने वाली अन्य कोविड दवाओं के इस्तेमाल से होता है.’

‘भारत में, हालांकि आयुर्वेद जैसी प्राचीन चिकित्सा को अहमियत दी जाती है लेकिन कोविड-19 के उपचार के लिए हमारे चिकित्सा विशेषज्ञ निश्चित ही गाय के गोबर का प्रयोग नहीं कर रहे हैं.’

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


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