गुवाहाटी : असम में भाजपा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद हिमंत बिस्वा सरमा का मुख्यमंत्री बनना तय है.
सरमा को करीब से जानने वालों की मानें तो सरमा की हमेशा से ही नजर असम के शीर्ष पद पर थी. वह कांग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों के साथ वर्षों तक काम करने के दौरान भी अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़संकल्पित रहे.
कई लोग उन्हें पूर्वोत्तर का सबसे शक्तिशाली नेता मानते हैं. वहीं 52 वर्षीय सरमा के समर्थक भी उनकी क्षमता का समर्थन करते हैं जबकि विरोधी उनकी अति महत्वकांक्षा की आलोचना करते हैं.
सरमा चार बार से विधायक और वर्ष 2001 से ही असम सरकार के मंत्री हैं. उन्हें ऐसा नेता माना जाता है जो सभी विपरीत परिस्थितियों में भी काम करता है. उनकी इस विशेषता का पुरस्कार उनके पूर्व मेंटर- पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया और तरुण गोगोई- ने भी दिया और उन्हें ऊंचाई प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया.
गोगोई द्वारा उनकी महत्वकांक्षा को समझने के बाद मतभेद हुआ और सरमा ने वर्ष 2015 में कांग्रेस छोड़ दी.
भाजपा ने उन्हें अपने पाले में लाने में देरी नहीं की क्योंकि भगवा पार्टी का मानना था कि वह पूर्वोत्तर में उसकी पकड़ मजबूत करने में मददगार साबित होंगे.
सरमा भाजपा के भरोसे पर खरे उतरे और पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन (एनईडीए) के समन्वयक रहते पूर्वोत्तर के सभी आठों राज्यों को राजग शासन के अधीन ला दिया.
सरमा ने 1980 के दशक के शुरुआत में राजनीति में उस समय कदम रखा जब असम में विदेशी विरोधी आंदोलन चल रहा था. उस समय उन्होंने आसू नेताओं प्रफुल्ल कुमार महंता और भृगु कुमार फुकान के ‘दूतवाहक’ का काम किया लेकिन वर्ष 2001 में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जलुकबाड़ी से चुनौती भी दी.
आसू में अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दे चुके सरमा पर कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया की नजर पड़ी और वह उन्हें अपने साथ ले आए, तब सरमा गुवाहाटी विश्वविद्यालय में विधि की पढ़ाई कर रहे थे.
पार्टी नियमों से इतर नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भी सरमा की राजनीतिक कुशलता से प्रभावित हुए और युवा होने के बावजूद उन्हें कृषि, योजना एवं विकास राज्य मंत्री बना दिया. बाद में उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दी.
सरमा इसके बाद से सफलता की सीढ़ियां चढते चले गए और गोगोई की आंखों का तारा बन गए. गोगोई जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तब सरमा को उन्होंने कैबिनेट मंत्री बनाया.
वर्ष 2011 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी लेकिन सरमा की रणनीति और प्रबंधन से पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता में आई और गोगोई ने इसका इनाम उन्हें कई विभाग देकर दिया.
हालांकि, सफलता राजनीतिक आशंका भी लेकर आती है और उन्हें गोगोई का उत्तराधिकारी माना जाने लगा.
असम कांग्रेस और सरमा के बीच दरार बढ़ने लगी. कई बार सरमा ने दिल्ली में डेरा डाला, कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की. इसी मुलाकात के बारे में सरमा ने एक साक्षात्कार में कहा कि गांधी मुद्दे को सुलझाने से अधिक रुचि पालतू कुत्ते को बिस्कुट खिलाने में ले रहे थे.
इसके बाद वर्ष 2015 में उन्होंने कांग्रेस, मंत्रिमंडल और बाद में विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया.
अगस्त 2015 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर हुई बैठक के बाद सरमा भाजपा में शामिल हुए.
सरमा को इसके बाद भाजपा ने तत्कालीन पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सर्वानंद सोनोवाल के साथ असम में भाजपा के चुनाव प्रबंधन समिति का समन्वयक बनाया और पार्टी वर्ष 2016 में राज्य की सत्ता में आई.
इस जीत का इनाम उन्हें एनईडीए के समन्वयक पद के रूप में मिला. राज्य मंत्रिमंडल में भी उन्हें अहम वित्त, स्वास्थ्य, शिक्षा और लोक निर्माण विभाग मिले जिससे वह सोनोवाल सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री बन गए.