नई दिल्लीः कोविड-19 महामारी के मद्देनजर जेलों में भीड़ कम करने पर विचार करने के लिए गठित उच्च अधिकार समिति ने कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ‘भयानक’ और ‘भयभीत’ करने वाली स्थिति को देखते हुए कैदियों को 90 दिनों की जमानत या आठ हफ्तों के पैरोल पर रिहा करने की जरूरत है.
न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली समिति ने टिप्पणी की कि पूरा देश कोविड-19 महामारी की ‘चपेट’ में है और चिकित्सको एवं विशेषज्ञों की राय है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल वायरस का स्वरूप अधिक घातक है और गत कुछ हफ्तों से हर किसी की सांस पर बन आई है.
समिति ने कहा, ‘इसकी वजह से हर कोई सांस के लिए संघर्ष कर रहा है या उसका दम घुट रहा है जो मानव के लिए सबसे भयभीत करने वाला अनुभव है. साफ हवा में सांस की गारंटी होती है और हर मिनट दर्जनों बार व्यक्ति सांस लेता है. हालांकि, मौजूदा परिस्थिति में यह मुश्किल हो गया है.’
समिति ने कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार भारत के नागरिकों का सबसे कीमती मौलिक अधिकार है. यह बिना शर्त समाज से दूर विचाराधीन/दोषी को भी प्राप्त है.’
समिति ने कहा कि करीब चार हजार विचाराधीन कैदियों को 90 दिनों के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा करने के लिए नियम बनाये गए हैं.
उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर गठित समिति ने कहा कि इस साल फरवरी में हुई आखिरी बैठक के बाद परिस्थितियों में 360 डिग्री कोण का बदलाव आया है और हर दिन स्थिति भयानक होती जा रही है.
समिति ने कहा, ‘जेलों में कोविड-19 महामारी फैलने से रोकने के लिए समाजिक दूरी का अनुपालन कराने के लिए सक्रिय और तत्काल कदम उठाने की जरूरत है जिसके तहत एक बार चिह्नित श्रेणियों के कैदियों को अंतरिम जमानत/पैरोल पर रिहा करने की जरूरत है.’
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