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Friday, 22 November, 2024
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SC के मराठा कोटा आदेश के बाद MVA-BJP में दोषारोपण का खेल शुरू, उद्धव का PM से ‘जल्द निर्णय’ लेने का अनुरोध

इस बीच बीजेपी के देवेंद्र फड़णवीस ने, आरोप लगाया कि MVA सरकार ने जिस तरह राज्य का पक्ष रखा, उसमें तालमेल की कमी थी. वो चाहते हैं कि जजों की एक कमेटी बनाई जाए, जो इन ख़ामियों को समझकर एक रिपोर्ट तैयार करे.

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मुम्बई: बुधवार को महाराष्ट्र में राजनीतिक रूप से संवेदनशील, मराठा कोटा अधिनियम को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, महा विकास अघाड़ी (एमवीए) और बीजेपी ने, ख़ुद पर से आंच को हटाने के लिए, एक दूसरे पर उंगली उठाना शुरू कर दिया है.

जहां बीजेपी ने कोटा क़ानून को रद्द करने के पीछे, एमवीए की ओर से राज्य का पक्ष रखने में, तालमेल की कमी को कारण बताया है, वहीं सत्तारूढ़ गठबंधन ने- जिसमें शिवसेना, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस शामिल हैं- गेंद को केंद्र के पाले में फेंक दिया है, और केंद्र सरकार से निर्णय लेने का अनुरोध किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र में मराठा कोटा को ‘असंवैधानिक’ घोषित कर दिया, जिसे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम 2018 के तहत पारित किया गया था. साथ ही कोर्ट ने एनजी गायकवाड़ कमीशन के निष्कर्षों को भी ख़ारिज कर दिया, जिनके आधार पर ये क़ानून बनाया गया था. कोर्ट ने कहा कि ऐसी कोई असाधारण परिस्थितियां नहीं हैं, कि आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को तोड़ा जाए.

मराठा लोग जो राज्य की आबादी का क़रीब 32 प्रतिशत हैं, कई सालों से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. 2016 में समुदाय ने दो साल के लिए, 58 ख़ामोश और ग़ैर-राजनीतिक विरोध प्रदर्शन शुरू किए थे. 2018 के आख़िर में इन प्रदर्शनों ने एक हिंसक मोड़ ले लिया, और एक समय तो इन्होंने फड़णवीस-विरोधी उपद्रव का भी रूप ले लिया. आख़िरकार महाराष्ट्र विधायिका ने सर्वसम्मति से, गायकवाड़ कमीशन रिपोर्ट मंज़ूर कर ली, और 30 नवंबर 2018 को मराठा कोटा क़ानून पारित कर दिया, जब बीजेपी के देवेंद्र फड़णवीस सीएम थे. बीजेपी-शिवसेना राज में, ये क़ानून बॉम्बे हाईकोर्ट की जांच पर भी पूरा उतर गया.

राजनीतिक रूप से मराठा समुदाय, एक ब्लॉक के तौर पर वोट नहीं करता, लेकिन राजनेताओं को डर लगता है, कि नाराज़ होने पर आबादी का इतना बड़ा हिस्सा, किसी पार्टी विशेष के खिलाफ, वोट देने के लिए प्रेरित हो सकता है.


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MVA, BJP के बीच दोषारोपण

एमवीए, सुप्रीम कोर्ट के 102वें संवैधानिक संशोधन के उल्लेख का हवाला दे रही है, जिसके बारे में सत्तारूढ़ गठबंधन का दावा है, कि उसने आरक्षण लागू करने, और समुदायों को पिछड़े घोषित करने का, राज्य का अधिकार उससे ले लिया है.

महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे ने बुधवार को एक बयान में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से अनुरोध किया, कि मराठा कोटा मुद्दे पर जल्द ही निर्णय लें.

सीएम ठाकरे ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का ये कहना, कि आरक्षण पर निर्णय लेने का अधिकार, राज्यों के नहीं बल्कि केंद्र और राष्ट्रपति के पास है, एक तरह से छत्रपति शिवाजी के महाराष्ट्र के लिए मार्गदर्शन था. अब हम हाथ जोड़कर पीएम और राष्ट्रपति से अपील कर रहे हैं, कि मराठा कोटा पर जल्द कोई निर्णय लें’.

उन्होंने आगे कहा कि केंद्र ने शाह बानो केस, अत्याचार निवारण अधिनियम, और धारा 370 रद्द करने में तेज़ी से फैसले लेते हुए, कानून में निष्पक्षता दिखाई है, और इनके लिए उसने जहां ज़रूरत पड़ी, वहां संवैधानिक बदलाव भी किए. ठाकरे ने कहा, ‘अब वही रफ्तार मराठा कोटा मामले में भी दिखाई जानी चाहिए’.

कांग्रेस मंत्री अशोक चव्हाण ने, जो मराठा कोटा मुद्दे पर बने पैनल के प्रमुख हैं, क़ानून के रद्द किए जाने के लिए, फड़णवीस को दोषी ठहराया.

चव्हाण ने कहा कि 102वां संविधान संशोधन, अगस्त 2018 में पास किया गया था. चव्हाण ने, जो ख़ुद मराठा समुदाय से आते हैं, एमवीए की ओर से एक प्रेस वार्तालाप में कहा, ‘15 नवंबर 2018 को, गायकवाड़ कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की. उस रिपोर्ट के आधार पर, राज्य विधायिका के दोनों सदनों ने, बिना किसी चर्चा के, 30 नवंबर 2018 को मराठा कोटा क़ानून को मंज़ूरी दे दी’.

उन्होंने कहा, ‘अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 102वें संविधान संशोधन के बाद, राज्यों के पास किसी समुदाय के पिछड़ेपन को तय करने का अधिकार नहीं रह जाता. इसलिए अस्ल में, उस समय फड़णवीस ने असैम्बली को गुमराह किया, और अब वो लोगों को छल रहे हैं’.

इस बीच फड़णवीस ने मांग की है, कि राज्य सरकार अब जजों की एक कमेटी गठित करे, जिसका काम होगा कि वो ख़ामियों को समझेगी, एक रिपोर्ट तैयार करेगी, और उसे राजनीतिक दलों के सामने रखेगी.

‘हमें अब बाक़ायदा एक रणनीति बनानी होगी, और आगे बढ़ना होगा’, ये कहते हुए पूर्व सीएम ने एमवीए पर निशाना साधा, कि उसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सही ढंग से अपना पक्ष नहीं रखा.

पत्रकारों से बात करते हुए फड़णवीस ने कहा, ‘जिस तरह से मौजूदा सरकार ने राज्य का पक्ष रखा, उसमें हम तालमेल की कमी देख सकते थे. कई बार वकीलों को कहना पड़ा, कि उनके पास अभी तक जानकारी या निर्देश नहीं हैं. इसकी वजह से कई बार सुनवाई स्थगित की गई, और साफ देखा जा सकता था, कि बड़े पैमाने पर तालमेल का अभाव था’.

‘आदेश ने MVA के लिए मुश्किलें पैदा कीं’

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा, कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने निश्चित रूप से एमवीए को, एक मुश्किल स्थिति में ला खड़ा किया है, ख़ासकर ऐसे समय, जब राज्य सरकार वैसे ही कोविड महामारी को क़ाबू करने में जूझ रही है.

देसाई ने कहा, ‘अगर इससे मराठा समुदाय के भीतर, आंदोलनों का एक और दौर शुरू हो जाता है, और वो हिंसक रुख़ इख़्तियार कर लेता है, तो उससे एमवीए के लिए, एक नकारात्मक माहौल पैदा हो जाएगा. यही कारण है कि एमवीए दिखाने की कोशिश कर रही है, कि अब ये विषय राज्य सरकार का मुद्दा नहीं रहा है. हमें देखना होगा कि मराठों को एमवीएम पार्टियों से दूर करने के लिए, बीजेपी इस फैसले का कैसे फायदा उठाती है’.

उन्होंने आगे कहा कि मराठा समुदाय को ख़ुश करने के लिए, तीन पार्टियों वाले एमवीए को मजबूरन, कल्याण योजनाओं, छात्रवृत्ति, और वित्तीय सहायता का सहारा लेना होगा, लेकिन राज्य की नाज़ुक आर्थित स्थिति और कोविड से लड़ाई के चलते, ख़र्चों में कटौती की वजह से, ये काम भी मुश्किल साबित होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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