नई दिल्ली : देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने से पहले जस्टिस एन.वी. रमन्ना ने शनिवार सुबह अपने आवास पर तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम और श्रीशैला देवस्थानम के अर्चकों (पुजारियों) से आशीर्वाद हासिल किया.
एक छोटा-सा समारोह पूरा होने के बाद नए सीजेआई कोविड-19 के मद्देनजर अदालत के कामकाज के बारे में चर्चा करने और उसकी रूपरेखा तय करने के उद्देश्य से कुछ वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ एक आवश्यक बैठक के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट स्थित अपने कार्यालय रवाना हो गए.
एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले कुछ दिनों से न्यायाधीशों के साथ-साथ कोर्ट स्टाफ भी यहां आने में असमर्थ हो रहा है क्योंकि उनके परिवार में कोई न कोई कोविड के कारण बीमार पड़ रहा है. अदालत का काम तो रुक नहीं सकता, इसलिए नए सीजेआई ने एक प्रोटोकॉल निर्धारित करने के लिए बैठक बुलाई.’
बैठक में जस्टिस आर.एफ. नरीमन, यू.यू. ललित, ए.एम. खानविल्कर, डी.वाई. चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एल.एन. राव मौजूद थे और यह रविवार को भी जारी रही.
जस्टिस रमन्ना के लिए मौजूदा अभूतपूर्व संकट के दौरान अदालत का कामकाज जारी रखना नए सीजेआई के तौर पर उनके सामने आने वाली चुनौतियों में से एक है.
जो लोग भी उन्हें जानते हैं, उनके मुताबिक जस्टिस रमन्ना ‘ईश्वर को मानने वाले’ व्यक्ति हैं और अदालती सुनवाई के दौरान हमेशा शांत और संतुलित व्यवहार कायम रखते हैं. उन्हें अपने फैसलों के जरिये बोलने के लिए जाना जाता है और संवैधानिक मूल्यों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को रेखांकित करने वाले कुछ फैसले सुनाने का श्रेय दिया जाता है.
पिछले वर्ष अक्टूबर में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी ने सार्वजनिक रूप से जस्टिस रमन्ना पर अपनी सरकार के खिलाफ फैसले देने के लिए राज्य हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को प्रभावित करने का आरोप लगाया था.
एक इन-हाउस इन्क्वायरी के बाद 24 मार्च को जस्टिस रमन्ना को क्लीन चिट दे दी गई, जिसके बाद तत्कालीन सीजेआई एस.ए. बोबडे ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नामित किया.
जस्टिस रमन्ना की नियुक्ति पर दिप्रिंट से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट की वकील स्नेहा कालिता ने कहा, ‘इस संकट के समय में हमें एक ऐसे सीजेआई की तलाश थी, जो न केवल सिद्धांतवादी इंसान हो, बल्कि विनम्र स्वभाव वाला भी हो. और मुझे पूरा यकीन है कि उनके नेतृत्व में निश्चित तौर पर हमारी न्यायिक व्यवस्था में लैंगिक समानता आएगी.’
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छात्र नेता, पत्रकार से लेकर सीजेआई तक
आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पोन्नवरम गांव में एक किसान परिवार में जन्मे जस्टिस रमन्ना एक न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल से पहले एक छात्र नेता, पत्रकार और वकील रहे हैं.
सीजेआई के रूप में उनका कार्यकाल 25 अगस्त 2022 तक होगा.
एक छात्र नेता के रूप में जस्टिस रमन्ना ने आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी और एक वर्ष के लिए पढ़ाई भी नहीं कर पाए थे. उन समय के अपने अनुभवों को याद करते हुए जस्टिस रमन्ना ने कुछ समय पहले एक बुक लॉन्च इवेंट के मौके पर कहा था कि उन्हें ‘इसका कोई पछतावा नहीं है क्योंकि उन्होंने कई युवाओं को मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान करते देखा था.’
1983 में अधिवक्ता के रूप में नामांकित होने से पहले जस्टिस रमन्ना ने एक पत्रकार के रूप में काम किया था. उन्होंने 1979 से 1980 तक ईनाडु अखबार के साथ काम किया और अखबार के लिए राजनीतिक और कानूनी मामलों पर रिपोर्टिंग की.
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में एक वकील के तौर पर उन्होंने संवैधानिक, आपराधिक, सेवा और अंतर-राज्यीय नदी कानूनों में विशेषज्ञता हासिल की.
2000 में राज्य हाईकोर्ट के स्थायी जज के रूप में नियुक्त जस्टिस रमन्ना को 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और एक साल बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया.
जस्टिस रमन्ना की पदोन्नति पर विवाद
न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति उस समय विवादों में घिर गई थी जब उन्हें हाईकोर्ट जज बनाए जाने के खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी. दोनों याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील दी कि जस्टिस रमन्ना दंगों के मामले में एक घोषित अपराधी थे और उन्होंने इस तथ्य को छिपाया था जब उन्होंने 1983 में खुद को वकील के रूप में पंजीकृत कराया.
यह मामला बड़े पैमाने पर दंगों से संबंधित था, जिसमें न्यायाधीश सहित गुंटूर स्थित नागार्जुन यूनिवर्सिटी के कई छात्रों ने परिवहन वाहनों और बसों सहित सार्वजनिक संपत्ति को कथित तौर पर काफी नुकसान पहुंचाया था.
दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता स्वर्गीय राम जेठमलानी ने किया था, जिनका उदाहरण सामने रखकर ही जस्टिस रमन्ना की नियुक्ति की गई थी.
जब इस तथ्य को राम जेठमलानी के संज्ञान में लाया गया, तो वह हैरत में पड़ गए कि उन्हें क्या करना चाहिए. फिर कोर्ट के सुझाव पर वरिष्ठ वकील मामले से पीछे हट गए.
फरवरी 2013 में याचिकाकर्ताओं पर 50,000 रुपये के जुर्माने के साथ याचिका खारिज कर दी गई थी.
न्यायिक अनुशासन के सिद्धांत का पालन करने वाले जज
जस्टिस रमन्ना कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें से कुछ को उन्होंने खुद लिखा है. वे न्यायिक अनुशासन की मिसाल और दूरगामी नतीजे दर्शाने वाले हैं.
केंद्रशासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी के खिलाफ कई याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुनाते हुए उनके नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि इंटरनेट तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है. इसने क्षेत्र की अर्ध-स्वायत्त स्थिति को खत्म करने के बाद दूरसंचार ब्लैकआउट को लेकर सरकार की खिंचाई की.
वह उस बेंच का भी हिस्सा रहे हैं जिसने सीजेआई कार्यालय को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत लाने वाला फैसला सुनाया. जस्टिस रमन्ना की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित कई मामलों पर मामलों पर फास्टट्रैक सुनवाई की जिसे तमाम लोगों ने रेड्डी की नाराजगी का कारण बताया.
जस्टिस रमन्ना ने 2019 में कर्नाटक विधानसभा से जुड़े एक फैसले सहित राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में कई फैसले सुनाए, जिसमें स्पष्ट किया गया कि दल-बदल के लिए 10वीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत अयोग्यता फिर से चुनाव लड़ने से रोकने का आधार नहीं हो सकती.
महाराष्ट्र के मामले में न्यायाधीश ने 2019 में विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए राज्य विधानसभा में तत्काल शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था.
और एक फैसले में, जिसने बीमा-दावों के मामलों में लैंगिक असमानता को सुर्खियों में ला दिया, न्यायाधीश ने ऐसे मामलों में कोई कमाई न करने वाली गृहिणियों के लिए एक काल्पनिक आय तय करने का आदेश दिया.
उन्होंने अपने फैसले में कहा था, ‘घरेलू कामकाज निपटाने में बहुत ज्यादा समय और प्रयास लगता है, जिसमें पुरुषों की तुलना में महिलाएं ही ज्यादा योगदान देती हैं, लेकिन बहुत हैरत की बात है कि हम इतने अहम काम को बहुत हल्के में लेते हैं.’
नए सीजेआई के सामने चुनौतियां
जस्टिस रमन्ना ने एक बेहद कठिन समय में न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला है. राजधानी में कोविड-19 संक्रमण में जबर्दस्त तेजी को देखते हुए फिजिकली अदालती कार्यवाही शुरू होने की संभावनाएं बेहद धूमिल नजर आ रही हैं.
सीजेआई के रूप में जस्टिस रमन्ना को डिजिटल सुनवाई को और सुव्यवस्थित करना होगा जिसमें कई मौकों पर तकनीकी खामियां सामने आने के कारण वकीलों की तरफ से इसकी आलोचना की जाती रही है.
जस्टिस रमन्ना के लिए एक और अहम चुनौती सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ हाई कोर्ट में भी रिक्त पदों को भरना होगा, जहां 1,080 की स्वीकृत संख्या के मुकाबले सिर्फ 416 जज मौजूद हैं.
उनके कार्यकाल के दौरान शीर्ष अदालत में भी 13 रिक्तियां होंगी.
जस्टिस रमन्ना को हाईकोर्ट में नियुक्तियों को सुव्यवस्थित करने के लिए भी उपाय करने होंगे जहां 50 लाख से ज्यादा मामलों की सुनवाई लंबित हो गई है. उन्हें मुख्य न्यायाधीशों की तरफ से सिफारिशें भेजे जाने की प्रक्रिया तेज कराने के लिए तत्काल उपाय करने होंगे, खासकर यह देखते हुए कि हाईकोर्ट ने 200 से अधिक पदों के लिए अब तक ऐसा कुछ नहीं किया है.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सुनील फर्नांडिस का मानना है कि जस्टिस रमन्ना की नियुक्ति एक बेहद नाजुक मोड़ पर हुई है.
अधिवक्ता ने कहा, ‘हर सीजेआई को हमेशा सुप्रीम कोर्ट के अंदर अपने हिस्से की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन जस्टिस रमन्ना को तो कोविड-19 महामारी की घातक दूसरी लहर के रूप में अदालत के बाहर भी एक कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. मैं एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय के रूप में सुप्रीम कोर्ट की छवि को बचाए रखने और समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट में न्यायिक रिक्तियों को भरने को उनके लिए अन्य दो बड़ी चुनौतियों के रूप में देखता हूं. लेकिन वह अपनी धैर्यशीलता और सहमति कायम करने वाले दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं और मुझे पूरा भरोसा है कि वह अच्छा काम करेंगे.’
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