नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान आवश्यक आपूर्तियों एवं सेवाओं के वितरण संबंधी स्वत: संज्ञान के मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे को न्याय मित्र के तौर पर हटने की शुक्रवार को अनुमति दे दी.
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस आर भट की तीन सदस्यीय पीठ ने बृहस्पतिवार के आदेश को पढ़े बिना ही बयान देने के लिए कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं को फटकार लगाई और कहा कि उसने देश में कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े मामलों की सुनवाई करने से उच्च न्यायालयों को नहीं रोका है.
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआआई) बोबडे आज ही इस पद से अवकाश प्राप्त कर रहे हैं.
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने इस स्थिति पर अप्रसन्नता व्यक्त की ओर अब केन्द्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिये और वक्त देने के साथ ही इसे सुनवाई के लिये 27 अप्रैल को सूचीबद्ध कर दिया.
मामले में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे से पीठ ने कहा, ‘आपने हमारा आदेश पढ़े बिना ही हमपर आरोप लगाया है.’
पीठ ने कहा, ‘हमें भी यह जानकार बहुत दुख हुआ कि मामले में साल्वे को न्याय मित्र नियुक्त किए जाने पर कुछ वरिष्ठ वकील क्या कह रहे हैं.’ साथ ही कहा कि यह पीठ में शामिल सभी न्यायाधीशों का ‘सामूहिक निर्णय’ था.
साल्वे ने कहा कि यह ‘बेहद संवेदनशील’ मामला है और वह नहीं चाहते कि मामले के फैसले को लेकर यह कहा जाए कि वह सीजेआई को स्कूल और कॉलेज के दिनों से जानते हैं.
सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने साल्वे से न्याय मित्र के रूप में मामले से नहीं हटने का आग्रह किया और कहा कि किसी भी दबाव की इन युक्तियों के आगे हार नहीं माननी चाहिए.
देश में कोविड-19 के बढ़ते मामलों और मौतों की गंभीर स्थिति पर गौर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा था कि वह चाहती है कि केंद्र सरकार मरीजों के लिए ऑक्सीजन और अन्य जरूरी दवाओं के उचित वितरण के लिए एक ‘राष्ट्रीय योजना’ लेकर आए.
न्यायालय ने मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुये कल टिप्पणी की थी कि वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए ऑक्सीजन को एक ‘आवश्यक हिस्सा’ कहा जाता है और ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ हद तक ‘घबराहट’ पैदा हुयी जिसके कारण लोगों ने कई उच्च न्यायालयों से संपर्क किया है.
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