नई दिल्ली: दिप्रिंट के मुताबिक यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों ने मोदी सरकार से अपील की है कि उन्हें भी कोविड का वैक्सीन दिया जाना सुनिश्चित किया जाए.
उत्तर प्रदेश से भाजपा के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने दिप्रिंट को बताया कि यूक्रेन में पढ़ने वाले राज्य के कुछ छात्रों ने उनसे संपर्क किया. उन्होंने कहा कि छात्रों को इस बात का डर था कि उन्हें भी कोविड-19 का संक्रमण हो सकता है.
आगे उन्होंने कहा कि वह इसे विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री एस जयशंकर के संज्ञान में ला चुके हैं.
यादव ने कहा, ‘कई छात्रों ने मुझे फोन करके कहा कि उन्हें वैक्सीन नहीं दिया जा रहा है जबकि अन्य दूसरे देशों के छात्रों को वैक्सीन दिया जा रहा है. ‘यूक्रेन के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में 10 हज़ार से अधिक भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं. वे बहुत डरे हुए हैं. मैंने उनकी मदद करने का आश्वासन दिया है और स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन व विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखकर छात्रों को वैक्सीन लगवाने में मदद करने को कहा है.’
विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इस मामले को आगे की कार्रवाई के लिए संबंधित अधिकारियों और भारत में स्थित यूक्रेन दूतावास को भेज दिया गया है.
यादव ने यह भी बताया कि निप्रॉपेट्रोव्स्क स्टेट मेडिकल एकेडमी और इवानोवो-फ्रैंकिव्स्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्र पहले ही यूक्रेनी अधिकारियों से उनके लिए वैक्सीन की कमी के बारे में शिकायत कर चुके हैं.
नाम न बताने की शर्त पर निप्रॉपेट्रोव्स्क स्टेट मेडिकल एकेडमी में एक छात्र ने कहा, ‘यहां टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई है और अन्य विदेशी छात्रों को वैक्सीन मिल रही है. लेकिन हमें इस बारे में सूचित नहीं किया गया है कि हमारे लिए वैक्सिनेशन कब शुरू होगा.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम डरे हुए हैं क्योंकि हम अपने देश में नहीं हैं.’ ‘यहां स्थिति सही नहीं है, हालांकि यह पिछले साल की तुलना में बेहतर है क्योंकि पिछले साल मास्क और सैनिटाइज़र्स की भी कमी थी. हमारे माता-पिता को भारत में वैक्सीन लग चुका है और वे भी डरे हुए हैं.’
एक अन्य छात्र रोहित शर्मा ने कहा कि अगर वे अपनी शिकायतों को लोगों को बताते हैं तो उन्हें स्थानीय अधिकारियों की प्रतिक्रिया झेलनी पड़ सकती है. उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम हॉस्टल में रहते हैं, इसलिए हम अपनी समस्याओं के बारे में ट्वीट या प्रसारित नहीं कर सकते क्योंकि इससे वे नाराज़ हो सकते हैं और हमें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. कई बार वे अगले साल के लिए दाखिले में भी समस्या पैदा करते हैं. स्थानीय अधिकारी भी समस्याएं पैदा करते हैं. हम केवल भारतीय छात्रों से ही वैक्सीन की अनुपब्धलता के बारे में बता सकते हैं.’
भारत ने यूक्रेन को भेजी थी वैक्सीन
भारत ने फरवरी में यूक्रेन को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की 5 लाख खुराकों का पहला बैच भेजा था, जिससे देश को वैक्सिनेशन की प्रक्रिया शुरू करने में मदद मिली थी.
पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र ने चीन के सिनोवैक वैक्सीन की 19 लाख (19 लाख) डोज खरीदने के भी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
चीनी टीकों का पहला बैच पहले ही देश में आ चुका है लेकिन यूक्रेन स्थानीय अधिकारियों को इसे वितरित करने से पहले लैब में इसकी टेस्टिंग कर रहा है.
यूक्रेन में 14 अप्रैल तक 19 लाख से अधिक कोविड के मामले और 39,950 मौतें दर्ज की गई हैं. देश में औसतन एक दिन में 14 हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं और राजधानी कीव में 20 मार्च से तीन दिन के लिए लॉकडाउन लगाया गया था.
यूक्रेन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अप्रैल के अंत तक 3,67,000 लोगों को इम्यूनाइज़ करने और साल के अंत तक अपनी 4.1 करोड़ की कुल आबादी के 35 प्रतिशत हिस्से को वैक्सीन देने का लक्ष्य रखा है.
हालांकि, वहां रह रहे भारतीय छात्रों को महामारी के दौरान लगातार समस्याएं होती रही हैं. पिछले साल लॉकडाउन के दौरान छात्रों ने मोदी सरकार से उन्हें यूक्रेन से निकलने में मदद करने की अपील की थी.
चेर्निवत्सी के मेडिकल कॉलेज में हिमाचल प्रदेश के 600 से अधिक एमबीबीएस छात्रों ने दवाओं और आवश्यक सुविधाओं की कमी को उजागर करने के लिए यूक्रेन में भूख हड़ताल भी शुरू की थी.
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