भारतीय रिजर्व बैंक ने बांड बाज़ार को शांत करने के लिए अप्रैल की अपनी मुद्रा नीति समीक्षा में एक नये नीतिगत उपाय की घोषणा की है. उसने चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में सेकेंडरी मार्केट से 1 ट्रिलियन (1 लाख करोड़) रुपये मूल्य की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करने का फैसला किया है.
‘जी-सेक एक्विजीशन प्रोग्राम 1.0’ (जी-एसएपी) नामक इस नये उपाय की घोषणा सरकार के लिए कम लागत पर उधार हासिल करने और उच्च स्तरीय सरकारी उधार कार्यक्रम के कारण लाभ में कमी का सामना करने के लिए की गई है.
रिजर्व बैंक की मुद्रा नीति कमिटी (एमपीसी) ने पॉलिसी रेट को लगातार पांचवें साल स्थिर रखने का फैसला किया है. रिवर्स रेपो रेट को 3.35 पर बनाए रखा गया है. आर्थिक वृद्धि की खातिर रिजर्व बैंक ने लचीला रुख बनाए रखने का भी फैसला किया है.
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व्यापक वित्तीय विस्तार
केंद्रीय बैंक खुले बाज़ार से खरीदारी करके सरकारी बांड्स पर ब्याज दरों को नीचे लाने की कोशिश करता रहा है. जी-एसएपी वैसा ही है जैसे सरकारी बांड्स की खुले बाज़ार से खरीदारी का निश्चित कैलेंडर जारी किया जाए. यह ‘क्वांटिटेटिव ईजिंग’ (क्यूई) पॉलिसी का एक रूप है जिसका पालन विकसित देशों के केंद्रीय बैंक वैश्विक वित्तीय संकट के बाद किया करते हैं.
क्यूई के तहत केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को प्रभावित करने और निजी क्षेत्र से कर्ज पर प्रीमियम की जोखिम लेने के लिए ट्रेजरी बिलों और निजी क्षेत्र के बांड्स समेत परिसंपत्तियों की बड़े पैमाने पर खरीद करते हैं.
रिजर्व बैंक केवल सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदने की बात कर रहा है. हाल में, विकासशील देशों के केंद्रीय बैंकों ने ‘क्यूई’ का सहारा लिया है ताकि स्थानीय बांड्स से मिलने वाले लाभ को काबू में रखा जा सके और यह संदेश जाए कि केंद्रीय बैंक महामारी के झटके के मद्देनज़र व्यापक वित्तीय विस्तार के बीच सरकारी बांड्स की खरीद के लिए तैयार है.
इस घोषणा से बांड में निवेश करने वालों को भरोसा होगा कि रिजर्व बैंक बांड्स को खरीदेगा, तरलता की स्थिति बनाएगा और लाभ को काबू में रखेगा. बाज़ार से ज्यादा उधार लेने की योजना और अमेरिकी बांड्स से लाभ में वृद्धि के कारण सरकारी बांड्स से लाभ बढ़ रहा था.
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परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाएं
‘जी-एसएपी’ की घोषणा पर परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाएं आई हैं. बांड बाज़ार ने 10 साल के बांड पर लाभ में 7 आधार अंकों की गिरावट दर्ज करके इस घोषणा का स्वागत किया है, इससे रुपये की कीमत में 1.52 प्रतिशत की कमी आई और वह नवंबर 2020 के बाद सबसे निचले स्तर 74.56 पर पहुंच गई.
उदाहरण के लिए, अमेरिका और भारत की ब्याज दरों में अंतर जब बढ़ जाता है तब वहां से विदेशी पूंजी की आवक होने लगती है. निवेशक उस देश से उधार ले सकते हैं, जहां दरें कम हैं और वहां निवेश कर सकते हैं जहां लाभ ज्यादा मिलता हो. हाल तक, दरों में इस अंतर के कारण पूंजी भारत में आ रही थी और रुपये की कीमत बढ़ रही थी. लेकिन पिछले कुछ महीनों से रिजर्व बैंक बांड की तेजी से खरीद कर रहा है तो लाभ में वृद्धि की रफ्तार घट गई है.
इसके विपरीत अमेरिका में बांड्स से लाभ में रिकॉर्ड गिरावट के बाद अब उसमें तेजी से वृद्धि हो रही है. इसके कारण भारत के 10 साल के बांड और अमेरिका के 10 साल के बांड के बीच अंतर घट गया है. मुद्रा नीति की घोषणा के बाद 10 साल के बांड से लाभ में 6.06 प्रतिशत की कमी आई है और रुपये की कीमत में तेजी से गिरावट आई है.
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कठिन है संतुलन लाना
सरकार के ‘डेब्ट मैनेजर’ के रूप में रिजर्व बैंक सरकारी बांड्स पर ब्याज दरें कम करने के उपाय घोषित कर रहा है लेकिन मुद्रास्फीति को लेकर भी चिंताएं उभर आई हैं इसलिए महंगाई पर लगाम लगाने के लिए उसे ब्याज दरों को बढ़ाना होगा.
रिजर्व बैंक को एक तो ‘डेब्ट मैनेजर’ की भूमिका निभानी है, दूसरे उसे मुद्रास्फीति को काबू में रखना है. आगामी महीनों में इन दोनों भूमिकाओं में टकराव बढ़ेगा और नीतिगत समायोजन में मुश्किलें बढ़ेंगी. रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कबूल किया है कि उसे सही संतुलन साधना होगा क्योंकि उसे परस्पर विरोधी कई भूमिकाएं निभानी होंगी.
यह तो उम्मीद की ही जा रही थी कि वह पॉलिसी रेट को नहीं छूएगा. और अपेक्षा यह है कि वह आर्थिक ‘रिकवरी’ को जारी रखते हुए मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने की अपनी भूमिका निभाता रहेगा. कोविड-19 के मामलों में तेज वृद्धि ने आर्थिक ‘रिकवरी’ को लेकर अनिश्चितता का माहौल बना दिया है. स्थानीय स्थर पर लॉकडाउन फिर से लागू करने के कारण आर्थिक वृद्धि में गिरावट आ सकती है लेकिन टीकाकरण में तेजी लाकर वृद्धि में गिरावट को थामा जा सकता है. शायद इसीलिए रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि चालू वर्ष के लिए वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रह सकती है.
विकसित देशों के, जहां मुद्रास्फीति लक्ष्य से नीचे है, के विपरीत भारत में यह पिछले पूरे वर्ष ऊंचाई पर रही. जींसों की बढ़ी हुई कीमतें और व्यवस्थागत लागतें मुद्रास्फीति में वृद्धि का जोखिम बढ़ाती हैं. खाद्य तेलों और दालों की महंगाई स्थिर रही है लेकिन हाल के महीनों में मूल महंगाई बढ़ी है, जिसके कारण मुद्रास्फीति के व्यापक आधारों में वृद्धि हुई है.
आर्थिक वृद्धि रिजर्व बैंक के लिए प्राथमिक लक्ष्य बना हुआ है मगर वृद्धि की रिकवरी को समर्थन देने और महंगाई पर लगाम लगाने के बीच के समीकरण को दुरुस्त रखना आगामी महीनों में चुनौती बनी रहेगी.
(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री हैं और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं राधिका पाण्डेय एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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