बैरकपुर (पश्चिम बंगाल): पश्चिम बंगाल चुनाव तीसरे दौर में दाख़िल होने जा रहे हैं, और इसके साथ ही ‘अंदरूनी-बाहरी’ की राजनीति गर्माने लगी है. राज्य की ग़ैर-बंगाली आबादी को ‘अपमानित’ करने को लेकर, बीजेपी अब सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को घेरने की कोशिश कर रही है.
नॉर्थ 24 परगना ज़िले की बैरकपुर सब-डिवीज़न में, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ‘बाहरी’ के ताने का ख़ूब प्रचार करके, बीजेपी हिंदी भाषी लोगों के वोटों पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश कर रही, जो वहां की आबादी का 40 प्रतिशत हैं.
ये सब-डिवीज़न हिंदी-भाषी लोगों का एक प्रमुख केंद्र है, जहां हुगली नदी के आसपास, जूट मिलें और मध्यम स्तर के उद्योग स्थापित हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बिहार और उत्तर प्रदेश से आए, प्रवासी मज़दूर काम करते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को, सूबे की राजधानी कोलकाता से 60 किलोमीटर दूर जयनगर में, एक रैली को संबोधित करते हुए बनर्जी से कहा, कि बिहार और यूपी के उन लोगों का अपमान न करें, जो बंगाल में रह रहे हैं.
मोदी ने कहा, ‘आप मेरा अपमान कर सकती हैं, मुझ पर छींटे कस सकती हैं, लेकिन भारतीय संविधान का सम्मान कीजिए, और भारतीय नागरिकों को बाहरी मत कहिए. कभी दीदी मुझे सैलानी कहती हैं, कभी बाहरी कहती हैं. दीदी, आप घुसपैठियों को अपना कहती हैं, लेकिन भारत माता के बच्चों को बाहरी मत कहिए’. जयनगर में 6 अप्रैल को, तीसरे चरण में वोट डाले जाएंगे.
बनर्जी पर मोदी का हमला एक सोचा-समझा क़दम लगता है, चूंकि बंगाल की 15 प्रतिशत आबादी ग़ैर-बंगाली है, और बीजेपी अपेक्षा करती है, कि वो उसके समर्थन में आएंगे.
पार्टी ग़ैर-बंगाली वोट हासिल करने की उम्मीद कर रही है, जो आसनसोल, दुर्गापुर, नॉर्थ 24 परगना, खड़गपुर, हावड़ा, और कोलकाता के चारों ओर कुछ क्षेत्रों की, 30 से अधिक सीटों पर फैले हुए हैं.
चुनाव के अगले कुछ चरण ऐसी सीटों पर होंगे, जहां ग़ैर-बंगाली भाषी लोगों की अच्छी ख़ासी तादाद है, और बैरकपुर उन्हीं में से एक है.
बैरकपुर में पहले सीपीएम को मज़बूत समझा जाता था, लेकिन बाद में वो टीएमसी का गढ़ बन गया. लेकिन इस बार, बीजेपी के लिए ये चुनाव बहुत अहम है, क्योंकि टीएमसी के दो बड़े चेहरे बीजेपी में आ गए हैं- मुकुल रॉय और अर्जुन सिंह.
बैरकपुर के अंदर सात विधान सभा सीटें आती हैं. रॉय के बेटे सुभ्रांशु बीजापुर से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि सिंह के बेटे पवन, और साले सुनील सिंह, क्रमश: भातपारा और नोआपारा से चुनाव मैदान में हैं.
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बाहरी बनाम बंगाली पिच
वरिष्ठ बीजेपी नेताओं ने दिप्रिंट से कहा, कि बनर्जी की बाहरी की पिच ‘हमारी संभावनाओं को बढ़ा रही है’.
एक पार्टी नेता ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा ‘2019 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने (ग़ैर-बंगाली) बीजेपी को वोट दिए थे. ये वोटर्स कोलकाता के आसपास भी असर रखते हैं, जहां बीजेपी खाता खुलने की उम्मीद कर रही है…कोलकाता में, बहुत सारे मारवाड़ी और गुजराती हैं, और यूपी तथा बिहार के भी लोग हैं. वो बीजेपी को वोट देंगे. यही कारण है कि हम ममता के ‘बाहरी’ के ताने पर बल दे रहे हैं’.
बैरकपुर से बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह ने दिप्रिंट से कहा, कि ‘लोग टीएमसी को सबक़ सिखाएंगे, सिर्फ बैरकपुर में ही नहीं, बल्कि सभी बाहरी लोग इस चुनाव में, बीजेपी को वोट देने के लिए एक हो गए हैं’.
‘इससे 30 से अधिक सीटों के नतीजे प्रभावित होंगे. उन्हें लगता था कि वो बंगाल का ध्रुवीकरण कर लेंगे, लेकिन पूरा बंगाल जानता है, कि उन्होंने किस तरह अंफान राशि को लूटा है, और कट मनी को संस्थागत कर दिया है, जो अब उनके खिलाफ काम कर रहा है. बाहरी का राग अलापकर उन्होंने पहले ही, ग़ैर-बंगालियों को अलग-थलग कर दिया है’.
लेकिन, टीएमसी नेता सुखेंदु शेखर रॉय ने दिप्रिंट से कहा, कि पार्टी ने कभी बंगाली और ग़ैर-बंगाली में भेद नहीं किया. उन्होंने ये भी कहा, ‘ये बीजेपी ही है, जो दोनों समुदायों में मतभेद पैदा कर रही है’.
तृणमूल भी ग़ैर-बंगाली वोटों को ध्यान में रखे हुए है, और बनर्जी ने दो साल पहले एक हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित करने का ऐलान किया था. पिछले साल उन्होंने अपनी पार्टी के हिंदी प्रकोष्ठ के ढांचे को औपचारिक रूप से गठित किया. 2018 में, मुख्यमंत्री ने पहली बार छठ पूजा के लिए, दो दिन की छुट्टी का ऐलान किया.
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है, कि ममता ने ‘हिसाब लगा लिया था कि बाहरी लोग यक़ीनन बीजेपी को वोट देंगे’. रबींद्र भारती विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर बिश्वनाथ चक्रबर्ती ने कहा, ‘इसलिए उन्होंने बंगालियों पर ध्यान दिया. लेकिन दिक्क़त ये है कि ये देखा जाना बाक़ी है, कि बंगाली किस तरह ममता को वोट कर रहे हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘आने वाले दिनों में ये ध्रुवीकरण और तीखा हो जाएगा, चूंकि चुनाव अब बहुत से ग़ैर-बंगाली क्षेत्रों की तरफ जा रहा है’.
उत्तर प्रदेश के रहने वाले जितेंद्र सिंह ने, जो बैरकपुर में एक जूट मिल में काम करते हैं, कहा कि वो बीजेपी को वोट देंगे, क्योंकि उसी ने उन्हें टीएमसी के ‘ग़ुंडों’ से बचाया है.
उन्होंने कहा, ‘हमारे सूबे में बीजेपी की अच्छी मौजूदगी है, और हमारे परिवार ने वहां बीजेपी को वोट दिया है. जब टीएमसी के लोगों ने यहां हमें पीटा, तो स्थानीय सांसद के अलावा, कोई हमें बचाने नहीं आया, इसलिए मैं बीजेपी को वोट करूंगा’.
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अर्जुन सिंह और मुकुल रॉय के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई
बैरकपुर में अर्जुन सिंह के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है, जो 2019 के आम चुनावों से पहले, टीएमसी छोड़कर आए थे, और मुकुल रॉय के लिए भी, जिन्होंने 2017 में ही टीएमसी छोड़ दी थी.
सिंह कभी इस इलाक़े में बनर्जी के बाहुबली हुआ करते थे, और वो पूर्व सांसद दिनेश त्रिवेदी के चुनावी एजेंट भी रहे हैं.
2016 विधान सभा चुनावों में, बीजेपी बैरकपुर में एक भी विधान सभा सीट नहीं जीत पाई थी.
भातपारा में, जो अर्जुन का चुनाव क्षेत्र था जहां से उन्होंने चार विधान सभा चुनाव जीते, पवन 2019 के उप-चुनाव में विजयी रहे थे, जब उनके पिता ने बैरकपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा था. पवन इस बार टीएमसी के जीतू सिंह के मुक़ाबले खड़े हैं.
बीजापुर में, सुभ्रांशु रॉय टीएमसी उम्मीदवार सुबोध अधिकारी के खिलाफ लड़ रहे हैं.
सुभ्रांशु ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने कभी अंदरूनी या बाहरी पर राजनीति नहीं की है. मैंने सभी समुदायों के लिए काम किया है. वो सब मुझे पार्षद और विधायक के नाते जानते हैं. बंगाली और ग़ैर-बंगाली एकजुट होकर बीजेपी को वोट दे रहे हैं’.
बीजेपी सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा, कि चूंकि बैरकपुर मुकुल रॉय और अर्जुन सिंह का गढ़ है, इसलिए उनके बेटों और रिश्तेदारों को जगह देने के लिए, पार्टी ने नियमों में ढील दी है, जो सिटिंग विधायक थे.
बैरकपुर से एक बीजेपी नेता ने कहा, ‘सिर्फ दो चुनाव क्षेत्र हैं जहां कुछ समस्या है. एक बैरकपुर है जहां से पार्टी ने चंद्रमणि शुक्ला को टिकट दिया है, जो मनीष शुक्ला के पिता हैं. मनीष अर्जुन सिंह का वफादार समर्थक हुआ करता था, लेकिन 2019 में उसकी हत्या कर दी गई थी. यहां 70,000 वोट ग़ैर-बंगाली हैं, लेकिन बंगाली वोट 1,30,000 हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता 30,000 हैं, जो टीएमसी को वोट देंगे.
टीएमसी ने बैरकपुर से फिल्म निर्माता राज चक्रवर्ती को टिकट दिया है.
नेता ने आगे कहा, ‘बीजेपी के लिए इस इलाक़े में दूसरी कमज़ोर सीट अमदांगा है, जहां 47 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है, जो टीएमसी के पीछे ही आएंगे’.
बैरकपुर राजनीतिक हिंसा के लिए जाना जाता रहा है. दो दिन पहले, टीएमसी उम्मीदवार चक्रबर्ती और बीजेपी के सुभ्रांशु, बैरकपुर के सब-डिवीज़नल प्रशासनिक ऑफिस परिसर में, दोनों पार्टियों के समर्थकों के बीच हुई झड़प में घायल हो गए, जिसमें गोलियां चलीं और पुलिस पर ईंटें फेंकी गईं.
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