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Thursday, 21 November, 2024
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IITs ने सरकार से कहा क्षेत्रीय भाषाओं में मुश्किल है डिग्रियां देना, NITs का रुख़ ज़्यादा पॉजिटिव

अपनी नई शिक्षा नीति के अंतर्गत, सरकार मातृ भाषा में कोर्सेज़ को बढ़ावा दे रही है. AICTE ने अपने संबद्ध संस्थानों को पहले ही हरी झंडी दे दी है.

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नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटीज़) के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में डिग्री देना मुश्किल है, लेकिन भाषा की बाधा पार करने में, वो ग़ैर-अंग्रेज़ी पृष्ठभूमि वाले छात्रों की सहायता कर सकते हैं. ज्ञात हुआ है कि संस्थानों ने एक सरकारी पैनल से ऐसा कहा है.

अपनी नई शिक्षा नीति के अंतर्गत, नरेंद्र मोदी सरकार मातृ भाषा में कोर्सेज़ को बढ़ावा दे रही है. इस नीति में इंजीनियरिंग संस्थानों को, मातृ भाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा में, शिक्षा देने की अनुमति दी गई है.

नीति की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए, सरकार ने दो पैनल गठित किए थे.

देश में तकनीकी शिक्षा की शीर्ष इकाई, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई), पहले पैनल की अगुआ थी. इसने पहले ही अपने संबद्ध संस्थानों को हरी झंडी दे दी है, कि वो क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग शिक्षा दे सकती है.

उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे, दूसरे पैनल की अगुवाई कर रहे हैं, जो आईआईटीज़ तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (एनआईटीज़) में, इसकी व्यवहार्यता का पता लगा रहा है. इस पैनल ने अभी अपनी रिपोर्ट पेश नहीं की है.

मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, कि आईआईटीज़ ने खरे की अगुवाई वाले पैनल से कहा है, कि छात्रों में एक-रूपता न होने की वजह से, उनके लिए क्षेत्रीय भाषाओं में पूर्ण डिग्री कोर्स ऑफर करना मुमकिन नहीं है. पैनल के कम से कम दो सदस्यों ने इसकी पुष्टि की है.

लेकिन, सूत्रों का कहना है कि एनआईआईटीज़ ने, क्षेत्रीय भाषाओं में डिग्रियां देने में दिलचस्पी दिखाई है.

दिप्रिंट ने ईमेल के ज़रिए शिक्षा मंत्रालय से, टिप्पणी लेने के लिए संपर्क किया, लेकिन इस ख़बर के छपने तक, उसकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था.


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‘छात्रों के वितरण में एक-रूपता न होना’ एक मुद्दा

दिप्रिंट से बात करते हुए पैनल के एक सदस्य ने बताया, कि तक़रीबन सभी आईआईटीज़ ने कहा है, कि उनके लिए क्षेत्रीय भाषाओं में डिग्रियां पेश करना मुमकिन नहीं है, ‘क्योंकि उनके यहां आने वाले छात्रों में एक रूपता नहीं होती’.

सदस्य ने कहा, ‘मसलन, आईआईटी दिल्ली में हिंदी भाषी से ज़्यादा तेगुलू-तमिल भाषी छात्र हो सकते हैं, इसके बावजूद कि दिल्ली में बहुत से लोगों की मातृ भाषा हिंदी है. तो ऐसे मामले में वो कैसे तय करें, कि कौन सी भाषा ऑफर की जाए’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए, उन्होंने हमसे कहा है कि फिलहाल डिग्री की जगह, वो ऐसे छात्रों को सहायता मुहैया कराएंगे, जो ग़ैर-अंग्रेज़ी पृष्ठभूमि से आते हैं. वो पहले साल में उन छात्रों की मदद करेंगे, और अगर उन्हें अंग्रेज़ी में अनुदेश समझ नहीं आते, तो उन्हें उनकी मातृ भाषा में पढ़ाया जाएगा’.

आईआईटीज़ ने इस समस्या पर भी रोशनी डाली, कि किसी भाषा विशेष में पढ़ाने के लिए, प्रशिक्षित फैकल्टी सदस्यों का मिलना मुश्किल है.

एक दूसरे पैनल सदस्य ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसा मुमकिन है कि आईआईटी बॉम्बे, और आईआईटी दिल्ली में, ज़्यादा तमिल फैकल्टी मेम्बर हो सकते हैं, जो भाषा को अच्छे से जानते हों, लेकिन अपेक्षा की जाती है कि आईआईटी मद्रास में, तमिल छात्र ज़्यादा होंगे. हालांकि वास्तव में ऐसा नहीं है. आईआईटी मद्रास में देशभर के छात्र होते हैं, और अकसर यही होता है कि वो स्थानीय भाषा नहीं बोलते. ऐसे मामले में फैकल्टी और छात्रों के लिए, सही मैच बिठाना मुश्किल हो जाएगा’.

सूत्रों के मुताबिक़, पैनल ने इस बात पर विचार विमर्श किया, कि क्षेत्रीय भाषाओं में कोर्सेज़ ऑफर करना, एआईसीटीई कॉलेजों में ज़्यादा संभव है, क्योंकि अधिकतर प्रांतीय कॉलेजों में स्थानीय छात्र आते हैं. मिसाल के तौर पर, आंध्र प्रदेश के एआईसीटीई कॉलेजों में, बहुत सारे तेलुगू-भाषी छात्र आते हैं. दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही होता है.

लेकिन, पता चला है कि पैनल में चर्चा हुई है, कि आईआईटीज़ में महानगरीय प्रकृति ज़्यादा होने की वजह से, स्थिति अलग होती है.

IIT निदेशकों ने सार्वजनिक रूप से क्या कहा है

कुछ IIT निदेशकों ने सार्वजनिक रूप से भी, इस विषय पर बात की है.

पिछले साल दिसंबर में, आईआईटी दिल्ली के निदेशक रामगोपाल राव ने अपने फेसबुक पेज पर कहा, कि बीटेक छात्रों को क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाने का मतलब, ‘आईआईटीज़ के अंत की शुरूआत’ होगा.

इसे अपने संस्थान की नहीं, बल्कि अपनी निजी राय बताते हुए उन्होंने कहा, कि ‘पूरे बीटेक प्रोग्राम को स्थानीय भाषाओं में पेश करने का मतलब होगा, कि भाषा फैकल्टी नियुक्तियों का एक मानदंड बन जाएगी. ये आईआईटीज़ के अंत की शुरूआत होगी’.

लेकिन आईआईटी खड़गपुर निदेशक वीके तिवारी ने इस क़दम की सराहना की, और कहा कि तकनीकी शिक्षा में ‘क्षेत्रीय भाषा नीति’ की ज़रूरत है. नवंबर में उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा, कि तकनीकी शिक्षा में क्षेत्रीय भाषा को अपनाना, एक ‘आवश्यक दीर्घ-कालिक लक्ष्य’ है.

सूत्रों ने कहा कि एनआईटीज़, इस विचार को लेकर अधिक सकारात्मक रहे हैं, क्योंकि कुछ सूबों में इन संस्थानों में 50 प्रतिशत सीटें, स्थानीय छात्रों के लिए आरक्षित होती हैं.

पैनल के दूसरे सदस्य ने कहा, ‘अभी तक एनआईटी भोपाल, इलाहबाद, हिमाचल प्रदेश और जयपुर ने, क्षेत्रीय भाषा में डिग्री कोर्स पेश करने में दिलचस्पी दिखाई है’.

एनआईटीज़ में जेईई मेन आरक्षण मानदंड के अनुसार, 50 प्रतिशत सीटें गृह राज्य कोटा के तहत, योग्य उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होती हैं. भारत में 31 एनआईटीज़ हैं, लगभग हर राज्य में एक.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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