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Thursday, 25 April, 2024
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अपराध, प्रदूषण, मुश्किल आवेदन प्रक्रिया- ASEAN छात्रों के लिए भारत क्यों नहीं है पहली पसंद

वियतनाम दूतावास में आयोजित एक कार्यक्रम में ASEAN देशों के प्रतिनिधियों ने उन चुनौतियों पर रोशनी डाली जिन्हें विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए भारत को पार करना होगा.

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नई दिल्ली: ‘शिक्षा एनक्लेवों’ की कमी, लंबी आवेदन प्रक्रिया, अपराध और प्रदूषण- ये कुछ वो कारण हैं जो शिक्षा के लिए भारत को आसियान छात्रों की पहली पसंद बनने से रोकते हैं. इस समूह के प्रतिनिधियों ने बुधवार को आयोजित एक कार्यक्रम में ये बात कही.

आसियान या दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ, 10 दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का एक समूह है, जो 1967 में वजूद में आया था. इसके सदस्य देशों में वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर और थाईलैड शामिल हैं और इस समूह को राजनीतिक व आर्थिक सहयोग बढ़ाने तथा क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए गठित किया गया था.

वियतनाम दूतावास में आयोजित इस कार्यक्रम से अलग भारत में वियतनाम के राजदूत फाम सान्ह चौ ने दिप्रिंट से कहा, ‘बहुत से कारण हैं जो वियतनामी छात्रों को भारत आने से रोकते हैं. उनके मन में सबसे बड़ा डर सुरक्षा का होता है, क्योंकि इस देश में बलात्कार की घटनाएं अक्सर सुनने में आती हैं. दूसरे फैक्टर हैं प्रदूषण और भोजन की उपलब्धता. छात्रों को यहां लाने के लिए उनके दिमाग से इन आशंकाओं को दूर करना होगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘दूसरा मुद्दा है भारत आने की लंबी आवेदन प्रक्रिया. छात्रों को ये प्रक्रिया न केवल बोझिल लगती है, बल्कि उनकी रूचि ऐसे प्रयास विकसित देशों में आवेदन करने में ज़्यादा रहती है’.

राजदूत ने कहा कि वियतनामी छात्रों की शंकाओं को दूर करने के लिए, ‘हम 2021 एम्बेसेडर्स अंडरग्रेजुएट, मास्टर्स, और पीएचडी स्कॉलरशिप शुरू करने जा रहे हैं’, जिसका छात्र सितंबर-अक्टूबर 2021 में फायदा उठा सकते हैं.

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उन्होंने कहा कि इस समय भारत में, वियतनामी छात्रों की संख्या 200 से भी कम है. ‘उनकी सबसे पसंदीदा जगहें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और यूरोपीय देश हैं’.

भारत सरकार विदेशी छात्रों को अपने यहां आमंत्रित करने के लिए काफी प्रयास कर रही है. 2018 में सरकार ने एक ‘स्टडी इन इंडिया’ कार्यक्रम शुरू किया जिसका उद्देश्य ‘भारत में आने वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या बढ़ाना है’.

पिछले साल सरकार ने एक प्रोजेक्ट ‘डेस्टिनेशन इंडिया’ शुरू किया था, जिसका मकसद विदेशी दाखिलों की प्रक्रिया को, सरल व कारगर बनाना है ताकि भारत को शिक्षा के हब के तौर पर आगे बढ़ाया जा सके.

हर साल करीब 43,000 विदेशी छात्र, उच्च शिक्षा के लिए भारत आते हैं और इस प्रोजेक्ट के ज़रिए सरकार 2022 तक विदेशी छात्रों की संख्या को बढ़ाकर 2 लाख करना चाहती है.


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अन्य चिंताएं

आयोजन में बोलते हुए इंडोनेशियन दूतावास में सामाजिक-सांस्कृतिक विभाग के काउंसलर, हनफी ने उन मसलों पर रोशनी डाली जो इंडोनेशियाई छात्रों को भारत में उठानी पड़ती है.

उन्होंने कहा, ‘इंडोनेशियाई छात्रों के सामने सबसे बड़ी चिंता ये होती है कि भारतीय डिग्रियां उनके अपने देश में मान्य नहीं होंगी. और हालांकि हम भारतीय शिक्षा व्यवस्था की कद्र करते हैं लेकिन विकसित देशों में भारतीय डिग्रियों की कद्र नहीं की जाती, जिसकी वजह से हमारे छात्रों के सामने समस्या खड़ी हो जाती है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसके अलावा, इंडोनेशिया के पेरेंट्स ज़्यादा सुरक्षित महसूस करेंगे, अगर छात्रों के रहने के लिए शिक्षा एनक्लेव स्थापित कर दिए जाएं. इस तरह से छात्र एनक्लेव के अंदर ही पढ़ भी सकते हैं और रह भी सकते हैं और शहर के ट्रैफिक तथा सुरक्षा जैसे मसलों से बच जाएंगे’.

शिक्षा एनक्लेव्ज़ एक संलग्न भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसके अंदर हॉस्टल्स और संस्थान दोनों होते हैं.

लाओस के छात्रों की चिंताओं के बारे में बात करते हुए, वहां के थर्ड सेक्रेटरी खू ज़ैइयाज़ा ने आयोजन में कहा कि उन्हें ‘आवेदन प्रक्रिया बहुत मुश्किल लगती है’. ‘छात्रों के हित में इसे आसान बनाया जाना चाहिए’.

ब्रूनेइ की थर्ड सेक्रेटरी ने कहा, ‘चीज़ें बहुत आसान हो जाएंगी, अगर यूनिवर्सिटियां अपनी अंतर्राष्ट्रीय मान्यताओं को स्पष्ट कर दें.’

आयोजन में सभी प्रतिनिधियों ने जिस दूसरी चुनौती को उजागर किया, वो ये थी कि दूसरे देशों की तरह भारत सरकार, सम्मेलनों तथा शिक्षा मेलों के ज़रिए आसियान देशों के साथ संपर्क नहीं साधती.

भारत का फैलोशिप कार्यक्रम

2018 में मोदी सरकार ने एक कार्यक्रम की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य तीन साल की अवधि में 1,000 आसियान छात्रों को 23 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटीज़) में डॉक्टरेट की पढ़ाई के लिए रिसर्च फैलोशिप देना है.

स्कीम के अंतर्गत 1,000 में से 250 छात्रों को पहले साल में फेलोशिप मिलेगी, 300 छात्रों को दूसरे साल में मिलेगी, और फिर 450 छात्रों को तीसरे साल मिलेगी. इस स्कीम के लिए सरकार ने 300 करोड़ रुपए आवंटित किए थे.

लेकिन पिछले साल जब ये प्रोग्राम औपचारिक रूप से लॉन्च किया गया था, तो कथित रूप से केवल 42 आसियान छात्र ही आईआईटीज़ में पंजीकृत हुए थे जबकि लक्ष्य 250 का था.

(देबलीना डे द्वारा संपादित)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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