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Friday, 22 November, 2024
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अपने एल्कोहल का बेहतर इस्तेमाल करना चाहता है बिहार, बनना चाहता है एथनॉल हब

पेट्रोल में एथनॉल के मिश्रण को बढ़ावा देने की मोदी सरकार की कोशिशों के बीच, बिहार ने पिछले सप्ताह एक एथनॉल उत्पादन नीति 2021, लॉन्च की. ऐसा करने वाला वो देश का पहला सूबा है.

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पटना: बिहार मद्य निषेध के अंतर्गत हो सकता है, लेकिन सूबे की जेडी(यू)-बीजेपी सरकार, एथनॉल या एथाइल एल्कोहल के उत्पादन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, जिसका पेट्रोल में मिश्रण बढ़ रहा है, चूंकि उससे उत्सर्जन में कमी आती है.

बिहार उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज़ हुसैन ने पिछले सप्ताह एक एथनॉल उत्पादन नीति, 2021, लॉन्च की, जिसका एकमात्र उद्देश्य कार्बनिक मिश्रण का उत्पादन करना है. ऐसा करने वाला बिहार देश का पहला सूबा बन गया है.

विधान सभा में संशयी विपक्ष के समक्ष उन्होंने ऐलान किया, ‘इस ओर से गन्ना, मकई और टूटा चावल डाला जाएगा, और दूसरी ओर से डॉलर्स बाहर निकलेंगे’.

हुसैन ने बाद में दिप्रिंट को समझाया, कि ये नीति मोदी सरकार के उस फैसले का फायदा उठाने के लिए बनाई गई है, जिसमें तेल कंपनियों के लिए, पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण की समय सीमा को आगे बढ़ा दिया गया है. ये समय सीमा 2030 से बदलकर 2025 कर दी गई है.

फिलहाल, पेट्रोल में 2-3 प्रतिशत एथनॉल मिलाया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘मेरा मतलब दरअस्ल ये था, कि चूंकि भारत सरकार इस मिश्रण को, 2-3 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर देना चाहती है, इसलिए हम वो डॉलर्स बचा पाएंगे, जो भारत पेट्रोलियम आयात में ख़र्च करता है’.

‘बिहार एथनॉल उत्पादन के लिए एक स्वाभाविक जगह है. बिहार में 1.60 करोड़ मीट्रिक टन गन्ना पैदा होता है, जिसका आधे से कम चीनी के उत्पादन में जाता है. हम 40 लाख टन मक्का पैदा करते हैं. टूटा चावल भी बहुत मात्रा में है’.

हुसैन ने कहा कि सरकार को पहले ही एथनॉल उत्पादन के लिए 30 प्रस्ताव मिल चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘हम बड़े खिलाड़ियों के साथ बातचीत कर रहे हैं, लेकिन मैं घोषणा उसके बाद ही करूंगा, जब हम समझौता ज्ञापन पर दस्तख़त कर लेंगे’.

नई नीति में 5 करोड़ रुपए तक की पूंजि सब्सीडी, स्टांप और रजिस्ट्रेशन ड्यूटी में छूट, भूमि परिवर्तन फीस को वापस लेने, और अन्य कर संबंधित निवेशों के वायदे किए गए हैं.

एथनॉल एल्कोहल का एक सक्रिय अंश होता है, और ये गन्ने के अवशेष जैसे जैव ईंधन से बनाया जाता है. केंद्र सरकार इसका उत्पादन बढ़ाना चाह रही है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि एथनॉल मिश्रण से, चार सालों में भारत 12,000 करोड़ रुपए का, तेल आयात बचा सकता है.


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एक मुश्किल काम

लेकिन हुसैन के लिए बिहार को एक एथनॉल केंद्र बनाने का प्रयास करना, कोई आसान काम नहीं है.

उन्होंने स्वीकार किया कि फिलहाल, बिहार केवल 12 करोड़ लीटर एथनॉल पैदा करता है, जबकि 159 करोड़ लीटर के साथ यूपी इस सूची में पहले स्थान पर है, जिसके बाद महाराष्ट्र (128 करोड़ लीटर) और कर्नाटक (78 करोड़ लीटर) आते हैं.

हुसैन ने कहा, ‘लेकिन, अगर ये सब प्रस्ताव वास्तविकता में बदल जाते हैं, तो निकट भविष्य में हम क़रीब 50 करोड़ लीटर का उत्पादन कर रहे होंगे’.

ये भी पहली बार नहीं है, कि बिहार एथनॉल उत्पादन के बारे में विचार कर रहा है. 2006 में भी तत्कालीन नीतीश कुमार सरकार, इसी तरह की नीति को आगे बढ़ाना चाहती थी.

रिलायंस पेट्रोलियम समेत कई निवेशकों ने, सरकारी स्वामित्व वाली 15 चीनी मिलों को ख़रीदने में रूचि दिखाई थी, जो बंद हो गईं थीं.

लेकिन, 2008 में एनसीपी प्रमुख शराद पवार की अगुवाई में, तब के कृषि मंत्रालय ने बिहार सरकार के, एथनॉल उत्पादन के स्वचलित कारख़ानों के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था.

उस समय के बिहार के गन्ना मंत्री नीतीश मिश्रा, जिन्होंने इस प्रयास की अगुवाई की थी, ने बताया कि निवेशकों के पीछे हट जाने की वजह से, राज्य ने 14,000 करोड़ रुपए के निवेश के प्रस्ताव गंवा दिए थे.

मिश्रा ने, जो अब एक बीजेपी विधायक हैं, कहा, ‘तब की केंद्र सरकार (यूपीए) के एथनॉल उत्पादन के स्वचलित कारख़ानों की मंज़ूरी से इनकार की वजह से, ये प्रयास विफल हो गया. लेकिन अब अगर दूसरी बार इसे सफल होना है, तो उद्योग विभाग को सुनिश्चित करना होगा, कि निवेशकों के लिए ज़मीन उपलब्ध कराई जाए’.

‘दूसरे, हालांकि कहने को बिहार में एकल खिड़की प्रणाली है, लेकिन दरअस्ल ये एक बहु-खिड़की प्रणाली है, जहां निवेशकों को इंतज़ार कराया जाता है, और प्रस्तावों के लागू किए जाने से पहले, उन्हें काफी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. निवेशकों के पास बिहार से बाहर निवेश करने का विकल्प होता है, इसलिए बहुत ज़रूरी है कि यहां उनका अच्छे से स्वागत किया जाना चाहिए’.

‘मोदी सरकार का समर्थन है’

लेकिन, हुसैन ने कहा कि इस बार बिहार सरकार को, नई नीति के लिए मोदी सरकार का समर्थन हासिल है, जिसमें प्रमुख रूप से स्वचलित एथनॉल उत्पादन इकाइयों को बढ़ावा दिए जाएगा. उन्होंने कहा, ‘ये नीति 19 लाख नौकरियां देने के हमारे चुनावी घोषणापत्र के वादे को, पूरा करने में भी सहायक साबित होगी’.

उद्योग विभाग प्रभारी अतिरिक्त मुख्य सचिव ब्रजेश मल्होत्रा ने दिप्रिंट को बताया, कि सरकार निवेशकों को बहुत सी रिआयतें देने के बारे में विचार कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘हम प्राथमिकता के आधार पर उन्हें वो ज़मीन देने जा रहे हैं, जो बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार की मिल्कियत है. हमारे पास एथनॉल उत्पादन कारख़ानों के लिए एक समर्पित प्रकोष्ठ है, और हम हर सप्ताह उनकी स्थिति में सुधार करेंगे’. उन्होंने आगे कहा, ‘हमने ये भी लक्ष्य बनाया है कि प्रस्तावित हासिल होने के 30 दिनों के भीतर, उन्हें मंज़ूरी दे दी जाए’.

लेकिन, फिलहाल निवेशक वादों को लेकर सतर्क हैं. एक दिल्ली स्थित व्यवसायी राजेश दयाल, जिन्होंने बिहार में एक प्लांट लगाने के लिए प्रस्ताव भेजा है, का कहना है, ‘एथनॉल उत्पादन एक सुरक्षित कारोबार है क्योंकि हमारे ख़रीदार तेल कंपनियां होंगी, और चूंकि सरकार मिश्रण को बढ़ाना चाहती है, इसलिए इसकी काफी मांग होगी’.

‘लेकिन, हम उस इनफ्रास्ट्रक्चर को देखेंगे, जो हमें मुहैया कराया जाएगा, और क़ानून व्यवस्था की स्थिति भी देखेंगे’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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