नई दिल्ली : पिछले साल 15 जून को गलवान घाटी में भारतीय सेना के साथ हुई सीधी झड़प में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कितने जवान मारे गए थे? क्या यह आंकड़ा 4 था? या 9? या फिर 14?
ऐसा लगता है कि पीएलए को भी वास्तविक संख्या ठीक से पता नहीं है.
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत के साथ विभिन्न स्तरों पर बातचीत के दौरान गैर-आधिकारिक रूप से चीनी अधिकारियों ने गलवान घाटी में मारे गए अपने सैनिकों को लेकर विरोधाभासी आंकड़े दिए.
आंकड़े अनौपचारिक तौर पर साझा किए गए, खासकर बातचीत के सत्रों के दौरान ब्रेकटाइम में हल्की-फुल्की चर्चा के बीच ये आंकड़े 5 से 14 तक बताए गए, यद्यपि चीन ने सार्वजनिक रूप से अब तक केवल चार मौतें होने की बात ही स्वीकारी है.
सूत्रों ने कहा कि इस धारणा के उलट कि गलवान घाटी में पीएलए जवान भारतीयों पर भारी पड़े थे, वह चीनी सेना थी जिसे अपने यहां से मदद की गुहार लगानी पड़ी थी, जिसे पहुंचने में रात हो गई थी.
उन्होंने कहा कि यह पूरा संघर्ष वाई-जंक्शन क्षेत्र में हुआ, जो भारतीय इलाके में आता है और यहां पर घुसपैठ चीनी सेना की तरफ से की गई थी.
हालांकि, भारतीय सेना के पास चीन के हताहत सैनिकों के बारे में कोई ठोस आंकड़ा नहीं है, लेकिन उनका अनुमान है कि पीएलए ने अपने 25 से 40 कर्मियों को गंवाया है जिसमें कम से कम एक अधिकारी भी शामिल है.
गलवान घाटी संघर्ष 45 वर्षों में पहला ऐसा मौका रहा है जब भारत-चीन सीमा पर संघर्ष के दौरान सैनिकों की मौत हुई है. इस झड़प में एक कर्नल समेत भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हुए थे.
भारत और चीन चूंकि 1996 के समझौते के अनुरूप नो-फायरिंग प्रोटोकॉल का पालन करते हैं, चीनियों ने यहां पर लोहे की कीलें लगे लाठी-डंडों जैसे देसी हथियार रख रखे हैं. गलवान घाटी संघर्ष के मद्देनजर भारतीय सैनिकों को आत्मरक्षा में एलएसी पर फायरिंग की अनुमति दी गई थी.
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चीन के अलग-अलग अनुमान
पिछले सितंबर में यह जानकारी सामने आई थी कि चीनियों ने भारतीय पक्ष को बताया है कि संघर्ष में एक कमांडिंग अधिकारी सहित पीएलए के पांच सैनिकों की मौत हुई थी. उस समय साउथ ब्लॉक के एक शीर्ष अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा था, ‘अगर चीनी पांच कह रहे हैं, तो हम इसे तीन गुना न भी मानें तो आसानी से दोगुना मान ही सकते हैं.
हालांकि, नवीनतम खुलासे में सामने आया कि चीनियों ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग आंकड़े बताए हैं जिसमें एक अनुमान में 14 पीएलए जवानों की मौतों होने की बात कही गई है.
सूत्रों के अनुसार, दोनों पक्ष बातचीत के दौरान एक दूसरे से ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने की कोशिश करते हैं, खासकर ब्रेक के दौरान.
एक जानकार सूत्र ने कहा, ‘चीनी अधिकारियों ने एक मौके को छोड़कर कभी आधिकारिक तौर पर आंकड़े (द्विपक्षीय वार्ता के दौरान) नहीं दिए जब उसने एक उच्च-स्तरीय वार्ता के दौरान माना था कि कर्नल-रैंक के एक अधिकारी को भी गंवाया है.’
एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘वार्ता प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए कई सब-टीम भी बातचीत में शामिल रहती हैं. बातचीत के दौरान एक बार एक चीनी अधिकारी ने कहा कि उनके पांच सैनिक हताहत हुए हैं. वहीं. एक अन्य मौके पर दूसरे ने दावा कि यह आंकड़ा 9 था, और आगे की बातचीत में यह संख्या बढ़कर 14 तक पहुंच गई.’
सूत्रों ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि विभिन्न मौकों पर अलग-अलग आंकड़े बताना कहीं भारतीय पक्ष को भ्रमित करने की चीनी रणनीति का हिस्सा तो नहीं था.
एक तीसरे सूत्र ने कहा, ‘यह तो जाहिर बात है कि चीनी सैनिक हताहत हुए हैं. कई महीनों के बाद अब चीन ने यह स्वीकारा है कि उनके चार सैनिकों की मौत हुई है. याद कीजिए कि उन्होंने चार सैनिकों को मरणोपरांत सम्मानित किया है लेकिन कुल हताहतों का आंकड़ा नहीं दिया है.
उक्त सूत्र इस तथ्य के बारे में बात कर रहा था कि चीन ने संघर्ष के आठ महीने बाद 19 फरवरी को पांच सैनिकों को सम्मानित किया है जिसमें चार को मरणोपरांत सम्मानित किया गया है.
‘गलवान झड़प रातभर चलती रही’
झड़प के 8 महीने बाद अब इस सारे टकराव की परिस्थितियों की तस्वीर उभरती नजर आ रही है.
सूत्रों के मुताबिक गलवान घाटी में झड़प 15 जून को तड़के शुरू हुई और रातभर चलती रही. सूत्रों ने बताया कि वह तो अगली सुबह जाकर झड़प बंद हुई और दोनों पक्ष पीछे हटे और अपने घायल जवानों को वहां से ले गए.
सूत्रों ने बताया कि झड़प में शामिल लोगों के साथ डिब्रीफिंग सेशन के दौरान पाया गया कि उन सभी को केवल यही याद है कि उनके आसपास के क्षेत्र में क्या हुआ, पूरे घटनाक्रम के बारे में कुछ पता नहीं है.
कुछ सैनिकों ने जरूर इस झड़प के बारे में थोड़े विस्तार से जानकारी दी कि कैसे वह चीनी सैनिकों को मार गिराने में सक्षम हो पाए.
ऊपर उद्धृत एक सूत्र ने बताया, ‘झड़प अंधेरे में ही शुरू हुई और हर तरफ भ्रम की स्थिति थी. काफी समय तक इस अंधेरे में ही जमकर हाथापाई होती रही. भारतीय सैनिकों के पास फाइबर की रॉड थीं और चीनी कुछ देसी हथियारों से लैस थे. कई मामलों में तो चीनियों से उनके हथियार छीनकर उन्हें ही उनके खिलाफ इस्तेमाल किया गया.’
सूत्र ने बताया कि चीनियों की ओर से जबर्दस्त तरीके से उकसाए जाने के बावजूद किसी भी सैनिक ने उन पर गोली नहीं चलाई जबकि उनके पास हथियार थे.
उन्होंने कहा, ‘फायरिंग केवल इसका आदेश मिलने पर ही की जा सकती है. जमकर हाथापाई हो रही थी लेकिन किसी ने फायरिंग नहीं की क्योंकि इसका आदेश नहीं मिला था. इसके अलावा ऐसे टकराव के बीच भारतीयों और चीनियों दोनों ही पक्षों के लिए फायरिंग करना नामुमकिन था क्योंकि इससे उन्हें अपने पक्ष को ही गोलीबारी का निशाना बना बैठने का भी खतरा था.’
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