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Monday, 25 November, 2024
होमदेशदिल्ली में उन बच्चों को पैसा दिया जाएगा जिनके माता-पिता में से कोई जेल में है, तैयार हो रहा है कैबिनेट नोट

दिल्ली में उन बच्चों को पैसा दिया जाएगा जिनके माता-पिता में से कोई जेल में है, तैयार हो रहा है कैबिनेट नोट

यह कदम उन सात संशोधनों का हिस्सा है जिसे सरकार जेल में बंद माता-पिता के बच्चों के लिए वित्तीय पोषण, शिक्षण और कल्याणकारी योजना, 2014 में शामिल करने पर विचार कर रही है.

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नई दिल्ली: दिल्ली सरकार का समाज कल्याण मंत्रालय उन संशोधनों के लिए एक कैबिनेट नोट तैयार कर रहा है जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि माता-पिता में से किसी एक के भी जेल में बंद होने पर उनके बच्चों को वित्तीय और शैक्षणिक सहायता मिले.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, यह उन कुल सात संशोधनों का हिस्सा है जिसे जेल में बंद माता-पिता के बच्चों के लिए वित्तीय पोषण, शिक्षण और कल्याणकारी योजना, 2014 में शामिल किया जाना है.

यह कदम दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की तरफ से समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को बदलाव संबंधी सिफारिशों पर एक विशेष रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद उठाया गया है.

दिल्ली सरकार में मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने इसकी पुष्टि की. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘कैबिनेट नोट अगले 15 दिनों में तैयार हो जाना चाहिए. हमने रिपोर्ट का अध्ययन किया है और उसकी सिफारिशें एकदम जायज लगती हैं.’

डीसीपीसीआर की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस योजना के तहत मौजूदा व्यवस्था में केवल उन्हीं बच्चों को वित्तीय और शैक्षणिक सहायता मिलती है जिनके माता-पिता दोनों जेल में हैं.

इसमें कहा गया है कि जिन बच्चों के माता-पिता में से कोई एक भी जेल में होता है उनकी स्थिति भी समान रूप से संवेदनशील होती है और इसलिए उन्हें वित्तीय सहायता के लिए पात्र बनाया जाना चाहिए.

मौजूदा योजना उन बच्चों को भी सहायता से वंचित करती है जिनके माता-पिता को गिरफ्तार किया गया हो लेकिन उन्हें दिल्ली में आकर रहते हुए पांच साल से भी कम समय बीता हो.

डीसीपीसीआर की रिपोर्ट, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, के अनुसार, ऐसी कोई वजह नहीं है कि बच्चों के कल्याण की योजना उनके माता-पिता के दिल्ली प्रवास की तारीख पर निर्भर हो.

इसमें यह भी कहा गया है कि ‘पांच साल से यहां बसे होना साबित करना, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवारों के लिए, एक भयावह अनुभव साबित हो सकता है.’

सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि मौजूदा निवास पात्रता नियमों में संशोधन की आवश्यकता पर भी आम सहमति बन चुकी है.


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रिपोर्ट में वित्तीय सहायता बढ़ाने की सिफारिश

डीसीपीसीआर की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2014 में इस योजना को लागू किए जाने के बाद से जीवनयापन काफी महंगा हो गया है, ऐसे में सरकार को पहले बच्चे के लिए वित्तीय सहायता को बढ़ाकर 4,000 रुपये प्रति माह और उसके बाद वाले बच्चों के लिए 3,500 रुपये प्रति माह करने पर विचार करना चाहिए.

अभी जेल में बंद माता-पिता के पहले बच्चे को हर महीने 3,500 रुपये मिलते हैं जबकि उसके बाद अन्य बच्चों को हर महीने 3,000 रुपये प्रति माह के हिसाब से मिलते हैं.

रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की गई है कि ट्यूशन फीस रिइम्बर्स की जाए या फिर यह सुनिश्चित किया जाए कि यदि परिवार स्कूल फीस वहन नहीं कर सकता है, तो बच्चे को निकटतम सरकारी स्कूल में भर्ती कराया जा सके.

सिफारिशों संबंधी रिपोर्ट के मुताबिक डीसीपीसीआर ने पाया कि बच्चों के लिए स्कूल जाकर पढ़ना काफी कठिन है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसे बच्चों को स्कूल में अलग से पढ़ाए जाने, बार-बार स्कूल बदलने और यहां तक कि कुछ को तो पढ़ाई छोड़ने के लिए बाध्य होने जैसी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं. अपने माता-पिता से अलग हो जाने पर इन बच्चों में असीम दुख के अलावा आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रति गुस्से की भावना घर कर जाती है.’

डीसीपीसीआर अध्यश्र अनुराग कुंडू ने दिप्रिंट से बातचीत करते हुए कहा कि जेल में बंद माता-पिता के बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं और सरकार को उन पर खास ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘हमने पाया कि दोषियों के बच्चे होने के नाते उन्हें नाते-रिश्तेदारों और परिचितों, यहां तक की कुछ मामलों में शिक्षकों की तरफ से भी असंवेदनशीलता और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.’

सिफारिशों के लिए दो साल तक रिसर्च की

ये सिफारिशें जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामाजिक कार्य विभाग में प्रोफेसर डॉ नीलम सुखरमानी की तरफ से 2017 और 2019 के बीच की गई रिसर्च का नतीजा हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैंने डीसीपीसीआर के पूर्व प्रमुख रमेश नेगी को विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया था और हमने ठीक एक साल पहले लॉकडाउन लागू होने से पूर्व 28 फरवरी को सभी संबंधित पक्षों के साथ बैठक भी की थी.’

लॉकडाउन हटने के बाद स्थितियां जब सामान्य हो गईं तो सुखरमानी ने महीनों तक विचार-विमर्श के बाद सिफारिशों को अंतिम रूप देने में अनुराग कुंडू की मदद की.

सुखरमानी ने कहा, ‘जेल के अंदर बच्चों पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है और लेकिन जो बाहर है उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है और इसलिए ये बच्चे एक तरह से अदृश्य आबादी बन गए हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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