नई दिल्ली: सेंट स्टीफंस की तीसरे वर्ष की अंडरग्रेजुएट छात्रा, 20 वर्षीय नीलम फ़िरदौस ख़ान के लिए पिछले 10 महीने की ऑनलाइन क्लासेज़, किसी बुरे सपने से कम नहीं रही हैं.
ख़ान कश्मीर के बारामूला ज़िले में रहती हैं और 2जी की मदद से अपनी ऑनलाइन क्लासेज़ ले रही हैं, क्योंकि केंद्र-शासित क्षेत्र में मोबाइल इंटरनेट पर लगातार प्रतिबंध चल रहा है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘ये समय बहुत मुश्किल भरा रहा है. बहुत बार वीडियो अटक जाता है. मेरे लिए ये एक बहुत बड़ी बाधा रही है’.
अब, जब दिल्ली यूनिवर्सिटी फाइनल वर्ष के विज्ञान छात्रों के लिए, जिन्हें लैबोरेटरी काम पूरा करना है, कालेजों को फरवरी में फिर से खोलने जा रही है, तो ख़ान ने, जो फिज़िक्स में डिग्री कोर्स कर रही हैं, कोविड-19 के व्यापक डर के बावजूद, कालेज वापस जाने का विकल्प चुना है.
उन्होंने समझाया, ‘हम सबसे कम ख़तरे वाले ग्रुप में आते हैं. अगर हम सही से एहतियात बरतें, तो सब ठीक रहेगा. ज़्यादा चिंता की बात ये है कि हमारी पढ़ाई का हर्ज हो रहा है’. उन्होंने आगे कहा कि क़रीब एक साल से, उन्होंने कोई लैबोरेटरी प्रैक्टिस नहीं की है.
देशभर के दूसरे शिक्षण संस्थानों की तरह, दिल्ली यूनिवर्सिटी के कालेज भी, महामारी की वजह से पिछले साल मार्च में बंद हो गए थे, और उसके बाद से छात्र ऑनलाइन क्लासेज़ ही ले रहे हैं.
ख़ान जैसे बहुत से छात्र कालेज लौटने को उत्सुक हैं, लेकिन कोविड को लेकर चिंताएं अभी बरक़रार हैं. दिल्ली में अभी तक वायरस के 6.3 लाख मामले दर्ज हो चुके हैं, और अभी भी हर रोज़, कम से कम 200 मामले सामने आ रहे हैं.
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DU अंतिम वर्ष के छात्रों का कहना है कि ऑफलाइन क्लासेज़ अब समय की बर्बादी
लेकिन डीयू के सभी छात्र कालेज वापस नहीं आना चाहते, लैबोरेटरी कार्य के लिए भी नहीं.
ख़ान की सहपाठी, 21 वर्षीय इवाना संगमा शिलॉन्ग से हैं और वो भी, ऑनलाइन क्लासेज़ के लिए अपर्याप्त डेटा और एकांतता, दोनों की समस्या से जूझ रही है. ऊपर से वो कोविड-19 से भी संक्रमित हो गई लेकिन वो कालेज नहीं लौट रही हैं, क्योंकि कालेज ने कोई भी ज़िम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है.
संगमा के अनुसार, ‘कालेज कोई आवास मुहैया नहीं करा रहा है, जिसका मुझे ख़ुद से प्रबंध करना होगा. और अगर कुछ हो जाता है, तो कालेज ज़िम्मेदार नहीं होगा. आख़िरी बात ये कि मैं अपने घर से दूर रहूंगी. यहां अगर मुझे कुछ हो जाता है, तो कम से कम मेरे परिवार के सदस्य मौजूद हैं, जो मेरी देखभाल कर सकते हैं’.
दूसरे कोर्सेज़ के छात्रों ने भी कहा कि अगर डीयू जल्द ही फ़िज़िकल क्लासेज़ शुरू भी करता है, तो भी वो उनसे दूर ही रहेंगे.
अमित कुमार और सहज चड्ढा- हंसराज तथा वेंकटेश्वर कालेज में क्रमश: इतिहास तथा राजनीति शास्त्र के तीसरे वर्ष के छात्र- के पास अभी फ़िज़िकल क्लासेज़ का विकल्प नहीं है, लेकिन अगर वो शुरू होती हैं तो भी, वो उनमें शामिल नहीं होंगे.
20 वर्षीय चड्ढा ने दिप्रिंट से कहा कि उनका अंतिम वर्ष बहुत अहम है, और ऑनलाइन क्लासेज़ में आ रही समस्याओं के बावजूद, वो वापस कैंपस जाने में समय बर्बाद नहीं करेगी.
उसने कहा, ‘इस समय कालेज वापस जाने का कोई मतलब नहीं बनता. मैं कहना चाहती हूं कि इस पिछले एक साल में, मैंने बहुत कुछ सीखा है लेकिन सच्चाई कुछ अलग है’.
चड्ढा ने कहा कि उसकी बजाय वो अपने अंतिम वर्ष का इस्तेमाल इंटर्न करने में करेंगी और किसी नौकरी की तलाश करेंगी.
पहले वर्ष के छात्र चाहते हैं क्लासेज़ बहाल हों
लेकिन, फिज़िकल क्लासेज़ को लेकर संशय पहले वर्ष के छात्रों में नहीं है.
डीयू में 2020 बैच के पहले साल की क्लासेज़ पिछले साल नवंबर में शुरू हुईं थीं, और उसके बाद से उनकी कालेज लाइफ स्क्रीन तक सीमित रही है. बहुत से छात्रों ने कहा कि कालेज का मतलब सिर्फ पढ़ाई नहीं होता और ऑनलाइन क्लासेज़ उनके व्यक्तित्व के विकास में बाधक हो रही हैं.
लेडी श्रीराम कालेज फॉर वूमन में पहले वर्ष की अंडरग्रेजुएट छात्रा, अल्का प्रिया ने दिप्रिंट से कहा कि पहले साल में, उसके ‘व्यक्तित्व का कोई विकास नहीं हुआ है’ और असल में वो ‘बेकार’ चला गया.
ऑनलाइन क्लासेज़ के बारे में उसने कहा, ‘मेरे पास इतना ज़्यादा डेटा नहीं है, हर किसी के पास वाई-फाई नहीं है. मैं लाइब्रेरी या कालेज संसाधनों तक नहीं पहुंच सकती’.
उसने आगे कहा, ‘कोविड की वजह से और कौन सी चीज़ रुक गई है? शिक्षा व्यवस्था के अलावा सब कुछ चल रहा है. सारे चुनाव योजना के हिसाब से हो रहे हैं’.
पहले वर्ष के दूसरे छात्र चाहते हैं कि ऑफलाइन क्लासेज़ बहाल हो जाएं, क्योंकि स्क्रीन पर बहुत ज़्यादा समय बिताने से, उनकी सेहत और निगाह पर बुरा असर पड़ा है. हिंदू कालेज में पहले वर्ष के इतिहास के छात्र अंकित बीरपल्ली की आंख में कंप्यूटर के सामने घंटों तक बैठे रहने से, समस्या पैदा हो गई है.
लेकिन, बहुत से छात्र ऐसे भी हैं जो इस सारे मामले को लेकर उलझन में हैं. ऑनलाइन क्लासेज़ में आने वाली भारी परेशानियों की वजह से, वो ये तो चाहते हैं कि क्लासेज़ फिर से बहाल हों लेकिन उनके दिमाग़ में अभी भी कोविड का डर मौजूद है.
डीयू में एमए के दूसरे साल के छात्र सिद्धांत ने कहा कि ‘कुल मिलाकर पूरा अनुभव बहुत ख़राब रहा है’.
दर्शन शास्त्र के इस छात्र ने, जिसका ताल्लुक़ मुम्बई से है, इस पर भी बात की कि उसके अधिकतर सहपाठी हिंदी में बात करते थे और उनके विभाग ने भी कोई लाइब्रेरी संसाधन या पाठ्य पुस्तकों के अनुवाद उपलब्ध नहीं कराए. इसकी वजह से उनमें से अधिकतर को मजबूरन, अपने वरिष्ठों से मदद लेनी पड़ी.
23 वर्षीय सिद्धांत ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे लगता है कि अपनी डिग्री से जो कुछ हासिल करना था, मैं उसका (सिर्फ) आधा ही ले पाया हूं’.
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