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Thursday, 2 May, 2024
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कोविड वैक्सीन कितनी प्रभावी? दिल्ली के टीकाकरण केंद्र खुराक के पहले और बाद एंटीबॉडी टेस्ट करेंगे

कई संस्थान और विशेषज्ञ इसे एक प्रभावकारिता परीक्षण के तौर पर देखने की वकालत करते हैं जो टीकों के प्रति भरोसा बढ़ाने में मददगार होगा, खासकर भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के लिए जो ट्रायल के तीसरे चरण में है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी स्थित कुछ कोविड-19 टीकाकरण केंद्र जल्द ही लाभार्थियों के वैक्सीन लेने के पहले और बाद में एंटीबॉडी टेस्ट करना शुरू कर देंगे. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक यह इसकी प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए होगा.

यह रिसर्च अस्पतालों या टीकाकरण केंद्रों को अपनी संबंधित समितियों से आवश्यक अनुमति मिलने के बाद शुरू की जाएगी.

नई दिल्ली स्थित सबसे बड़े कोल्ड चेन प्वाइंट और वैक्सीन भंडारण केंद्र राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल को अपनी एथिकल कमेटी से पहले ही अनुमति मिल चुकी है. इसके चिकित्सा निदेशक डॉ. बी.एल. शेरवाल ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया, ‘टीकाकरण के असर का पता लगाने के लिए लाभार्थियों को विश्वास में लेकर पहली खुराक से पहले और दूसरी खुराक के बाद एंटीबॉडी टेस्ट करने की योजना है.’

सरकारी अधिकारियों सहित कई अन्य चिकित्सा संस्थानों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह तरीका अपनाने की वकालत की है. मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की सब-डीन और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की सलाहकार डॉ. सुनीला गर्ग ने कहा, ‘मेरा आईसीएमआर से यही कहना कि देखें क्या उन्हें ऐसा कोई और प्रस्ताव मिला है, लेकिन हम टीकाकरण अभियान में एक महीने में लोगों का एंटीबॉडी टेस्ट करने की योजना बना रहे हैं.’

हालांकि, डॉ. गर्ग ने स्पष्ट किया कि रिसर्च में शामिल होने को तैयार स्वास्थ्य कर्मियों से एक सहमतिपत्र भराया जाएगा, क्योंकि इसमें टेस्ट के लिए रक्त के नमूने लेने होते हैं.

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उन्होंने कहा, ‘यह टीकाकरण के बारे में लोगों की झिझक को कम करने में भी मददगार हो सकता है, क्योंकि इससे यह बात खुद उनके सामने होगी कि इसका नतीजा क्या होता है.’

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में महानिदेशक स्वास्थ्य सेवा राजीव गर्ग ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार के स्तर पर ऐसी कोई औपचारिक योजना नहीं है, लेकिन ‘अस्पताल चाहें तो इसे अपने स्तर पर कर सकते हैं और इस रिसर्च के उद्देश्यों के मद्देनजर अपनी एथिकल कमेटी से अनुमति लेने की उन्हें पूरी स्वतंत्रता है.


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कोवैक्सीन वाले अस्पताल रिसर्च के पक्ष में

जिन अस्पतालों को भारत बायोटेक की कोवैक्सीन मिली है, वे विशेष रूप से इस कदम के पक्ष में हैं. खासकर ये देखते हुए कि इसे प्रभावकारिता के लिए तीसरे चरण का ट्रायल पूरा करने से पहले ही मंजूरी दे दी गई है.

दिल्ली में सिर्फ कोवैक्सीन प्राप्त करने वाले छह टीकाकरण केंद्रों में से एक राम मनोहर लोहिया अस्पताल के त्वचा रोग विशेषण डॉ. कबीर सरदाना स्पष्ट करते हैं, ‘यह और ज्यादा लोगों के टीकाकरण के लिए आगे आने में मददगार हो सकता है, खासकर वहां जहां स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पास अपने अस्पताल में कोवैक्सीन लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. किसी ट्रायल के दौरान मरीजों को टीके लगाने से पहले सीरोलॉजिकल टेस्ट से गुजरना पड़ता है और स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों के मामले में भी यही किया जा सकता है.’

सरदाना ने आगे कहा, ‘मान लो अगर कोवैक्सीन लेने वाले 100 स्वास्थ्यकर्मियों का अगले छह महीने तक निरीक्षण किया जाता है, और उनमें से 10 में संक्रमण होता है, तो यह 90 प्रतिशत प्रभावकारिता दर दिखाएगा. लेकिन अगर 50 पहले ही संक्रमण के शिकार हो चुके हैं और सीरोलॉजिकल एंटीबॉडी पॉजिटिव हैं, तो वास्तविक प्रभावकारिता सिर्फ 40 फीसदी है, क्योंकि जाहिर है कि वे संक्रमित हुए हैं. और, अगर किसी भी स्थिति में इनमें से कुछ टीके के बावजूद संक्रमित हो जाते हैं तो फिर भी हमारे पास इसे सफल बताने की कोई वजह नहीं होगी.’

अपना नाम न बताने की शर्त पर आरएमएल अस्पताल में एक और डॉक्टर ने कहा, ‘संस्थानों में सीरोलॉजिकल टेस्ट के मौजूदा संसाधनों का उपयोग करके टीके से पहले और पहली और संभवतः दूसरी खुराक के तीन हफ्ते बाद एंटीबॉडी के लिए एक निश्चित नमूने का टेस्ट किया जा सकता है. यह प्रभावकारिता के बारे में पुख्ता जानकारी दे सकता है और मौजूदा ट्रायल प्रोटोकॉल को प्रतिबिंबित भी करेगा.’

पल्मोनोलॉजिस्ट और मेडिकल रिसर्चर अनुराग अग्रवाल ने भी इस तरह के शोध की वकालत की. जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी) के निदेशक अग्रवाल ने कहा, ‘जितने भी टीकाकरण केंद्रों में संभावित हो इसे डिफॉल्ट मोड बनाया जाना चाहिए. यह तार्किक बात है, और किसी को वैक्सीन की पहली और दूसरी खुराक देने के पहले और बाद एंटीबॉडी परीक्षण करना चाहिए ताकि किसी में इसके वैरीएशन का स्तर पता किया जा सके.

हालांकि, निजी स्वामित्व वाले सर गंगाराम अस्पताल के अधिकारी एंटीबॉडी टेस्ट शुरू करने से पहले सरकार की ओर से औपचारिक घोषणा की प्रतीक्षा कर सकते हैं. चिकित्सा अधीक्षक डॉ. डीएस राणा ने कहा, ‘हमारे पास एंटीबॉडी टेस्ट के उतने संसाधन नहीं हैं जितने हम चाहिए होंगे. अगर अप्रैल तक सरकार की ओर से कुछ नहीं किया जाता है तो फिर हम इसे अपने स्तर पर रिसर्च के बारे में विचार कर सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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