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Wednesday, 18 December, 2024
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UP में धार्मिक स्थलों का होगा रजिस्ट्रेशन, चंदे-चढ़ावे पर योगी सरकार की नजर, ला रही है अध्यादेश

यूपी में धार्मिक स्थलों पर लाए जा रहे अध्यादेश पर कोई भी मंत्री अभी बोलने को तैयार नहीं, सरकार नहीं चाहती कैबिनेट मीटिंग से पहले हो कोई विवाद.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जल्द ही धार्मिक स्थलों क संचालन के लिए अध्यादेश लाने जा रही है. इसमें धार्मिक स्थलों के रजिस्ट्रेशन , संचालन के तौर-तरीके व सुरक्षा को लेकर नियमावली तय की जाएगी. वहीं चंदे व चढ़ावे के रखने के तरीके भी इसके जरिए तय किए जायेंगे. इस अध्यादेश में सभी धर्मों के धार्मिक स्थल शामिल होंगे.

हालांकि, सरकार की ओर से इसका औपचारिक ऐलान अभी नहीं हुआ है लेकिन सीएम योगी के सामने अधिकारियों ने एक प्रजेंटेशन दिखाई है. जल्द ही कैबिनेट की बैठक बुलाकर इसे पास कर दिया जाएगा.


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जानें क्या होगा अध्यादेश में

सरकार से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि इस अध्यादेश का नाम- ‘धार्मिक स्थल रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन अध्यादेश’ होगा. इसके तहत सभी धार्मिक स्थलों का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा.

धार्मिक संस्थान के आने वाले चंदे व चढ़ावे के लिए फाइनेंस बॉडी भी रहेगी जो इसका ब्यौरा रखेगी. इसके अलावा सुरक्षा को लेकर क्या गाइडलाइन्स होंगी उसके मापदंडों को भी जिक्र होगा.

अधिकारी के मुताबिक, ‘इसके दायरे में बड़े व प्रतिष्ठित धार्मिक स्थल आएंगे.’ अधिकारी ने यह भी कहा, ‘बड़े व प्रतिष्ठित धार्मिक स्थलों को अध्यादेश आने के बाद पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया जाएगा.श्रद्धालुओं की सुविधा और धर्मिक स्थलों के रखरखाव के अलावा मंदिर से जुड़े लोगों के रोजगार से संबंधित गाइडलाइन्स भी इसमें शामिल हो सकती हैं.’

सीएम ऑफिस से जुड़े सूत्रों ने बताया, ‘ सीएम योगी ने प्रजेंटेशन देखने के बाद इसमें कुछ जरूरी सुधार के साथ विधि विशेषज्ञों से राय लेने का सुझाव दिया है.’

सूत्र ने यह भी बताया, ‘राज्य सरकार चाहती है कि धार्मिक स्थलों पर हक को लेकर होने वाला विवाद खत्म हो जाएं और इसके बेहतर संचालन के लिए एक नीति बने. इसके लिए धर्मार्थ कार्य विभाग जुटा है.’

बता दें कि बीते 12 दिसबंर को योगी सरकार ने ऐलान किया था कि प्रदेश में धर्मार्थ कार्य विभाग का निदेशालय गठित किया जाएगा. निदेशालय का मुख्यालय बनारस में होगा और निदेशालय का उप कार्यालय गाजियाबाद में होगा. निदेशालय गठन के बाद ये तय हो गया था कि सरकार सभी धार्मिक स्थलों के ‘रजिस्ट्रेशन और रेगुलेशन’ के लिए अध्यादेश लेकर आएगी.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद से थी तैयारी

विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि इस अध्यादेश की तैयारी पिछले साल से थी. दरअसल 22 अक्टूबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बुलंदशहर के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि राज्य में मंदिरों और धार्मिक संस्थाओं को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून क्यों नहीं है?

अदालत ने कहा था, ‘यूपी सरकार इस संबंध में कानून बनाने पर विचार करे, जिसके तहत सरकार गलत प्रबंधन के आरोपों पर मंदिर व धार्मिक संस्था का मैनेजमेंट अपने अधिकार क्षेत्र में ले सके.’

सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी एक याचिका पर आई थी जिसमें याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें मंदिर के चढ़ावे को वहां काम करने वाले पंडों को दे दिया गया था.

इसके बाद से ही सरकार ऐसा कानून लाना चाहती थी जिससे धार्मिक स्थलों से जुड़े विवाद सुलझ जाएं. सरकार से जुड़े सूत्रों ने बताया, ‘ऐसे विवाद सुलझाने के लिए कई जगह समितियां हैं लेकिन विवाद होने पर कोर्ट में ही मामले जाते हैं.’

सरकार को विवाद का भी डर

योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री व प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने अध्यादेश से जुड़ी कोई भी जानकारी देने से इनकार करते हुुए दिप्रिंट से कहा, ‘अभी इसको लेकर तैयारी चल रही है. जब ये अध्यादेश आ जाएगा तभी व इस पर आधिकारिक प्रतिक्रिया देंगे.’ अभी धर्मार्थ कार्य विभाग ने सीएम को इसका प्रेजेंटेशन दिखाया है.

वहीं मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े सूत्रों की मानें तो योगी आदित्यनाथ ने इसको लेकर ‘हामी’ भर दी है लेकिन इस अध्यादेश को सरकार बिना शोर मचाये लाना चाहती है क्योंकि उसे संतो के नाराज होने का डर है.

पिछले दिनों अखाड़ा परिषद ने अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने कहा था कि सरकार अगर ऐसा कोई भी अध्यादेश लाती है तो संतों से डिस्कशन पहले करना चाहिए.

सरकार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, कैबिनेट मीटिंग से पहले कोई अभी मंत्री व अधिकारी टिप्पणी करने से बच रहा ताकि कोई विवाद खड़ा न हो.दरअसल अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने पिछले दिनों मीडिया से  कहा था कि यदि सरकार को धार्मिक स्थलों के लिए कोई ‘अध्यादेश’ लाना है तो इससे पहले संतों की भी राय ली जानी चाहिए.

उनका मानना था कि मठ व मंदिरों में रहने वाले किसी भी तरीके से साधु-संतों को राज्य सरकार व अधिकारियों के अधीन लाना उचित नहीं होगा. प्रदेश में पहले से जो व्यवस्था चल रही है वह उचित है.

हालांकि, नरेंद्र गिरी ने बाद में कहा, ‘सूबे के मुखिया सीएम योगी आदित्यनाथ खुद भी एक संत हैं और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं, इसलिए वे जो भी कदम उठाएंगे सोच समझकर ही उठाएंगे.’

मुस्लिम और चर्च के धार्मिक गुरुओं को नहीं है अध्यादेश की जानकारी

दिप्रिंट से बात करते हुए शिया धर्म गुरू मौलाना सैफ अब्बास ने कहा,  ‘उनके पास अभी इस अध्यादेश से जुड़ी कोई जानकारी नहीं आई है. बस स्थानीय मीडिया के जरिए पता चला है कि ऐसा कुछ होने वाला है.’

सैफ ने आगे कहा, ‘ फार्म बिल लाते वक्त किसानों से भी डिस्कशन नहीं हुआ था. कम से कम यूपी सरकार धर्म से जुड़े मामले में तो ऐसा न करे.’

उन्होंने कहा, ‘मुस्लिम धर्म में तो शिया व सुन्नी वक्फ बोर्ड पहले से हैं जिनके जरिए रजिस्ट्रेशन समेत धार्मिक स्थलों से संबंधित जानकारियां मिल सकती हैं. इसलिए इस अध्यादेश पर थोड़ी क्लीयरिटी जरूरी है.’

लखनऊ के एबीसी चर्च के फादर मॉरिस ने भी प्रिंट द्वारा अध्यादेश की जानकारी के बारे में जब जानना चाहा तो उन्होंने कहा, ‘अभी तो इससे जुड़ी कोई भी जानकारी प्रशासन की ओर से नहीं दी गई है और न ही किसी तरह के डिस्कशन के लिए ही बुलाया गया है.’

फादर मॉरिस ने आगे कहा, ‘अगर बुलाया जाता है तो हम जरूर जाएंगे. धर्म से जुड़े किसी भी मामले में अध्यादेश लाने से पहले डिस्कशन जरूर होना चाहिए.’


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