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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतUPSC मेरिट लिस्ट विवाद से बच सकता है. ट्रेनिंग के स्तर पर चुनाव और हर सिविल सर्विसेज के लिए अलग एग्जाम हों

UPSC मेरिट लिस्ट विवाद से बच सकता है. ट्रेनिंग के स्तर पर चुनाव और हर सिविल सर्विसेज के लिए अलग एग्जाम हों

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की बेटी ने दूसरी सूची में जगह बनाई है. क्या यूपीएससी की दो किस्तों में परिणाम घोषित करने की नीति आरक्षित श्रेणियों को लाभान्वित करती है?

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सिविल सेवा परीक्षा-2019 का परिणाम विवाद का विषय बना हुआ है. 4 अगस्त, 2020 को इस बार जब संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने IAS, IPS, IFS और केंद्रीय सेवा समूह ‘A’ और समूह ‘B’ की 927 रिक्तियों के लिए 829 उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए सिफारिश करते हुए अंतिम परिणाम घोषित किया, तो चयनित उम्मीदवारों की पूरी सूची की घोषणा न करने और उम्मीदवारों की आरक्षित/प्रतीक्षा सूची बनाने के लिए आयोग की आलोचना हुई. आयोग ने अपनी आलोचना पर स्पष्टीकरण जारी करते हुए अपने निर्णय का बचाव किया था कि उसकी उक्त नीति आरक्षित वर्ग- अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों के हित में है.

अब आयोग ने बीते सप्ताह 89 उम्मीदवारों के चयन की सिफारिश किया है, जिसमें 73 सामान्य, 14 ओबीसी, 01 ईडब्ल्यूएस और 01 एससी शामिल हैं. इस नयी सूची में किसी भी एसटी उम्मीदवार के चयन की सिफ़रिश नहीं हुई है. इस बार आरक्षित वर्ग से नाममात्र के उम्मीदवारों की सिफ़ारिश ने इस पूरे विवाद को नए सिरे से जीवित कर दिया है. चूंकि नयी सूची में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की बेटी अंजलि बिड़ला का भी नाम है, इसलिए इस पूरे विवाद में सेक्सिज़म (Sexsim) और दुष्प्रचार (Disinformation) भी जुड़ गया है, क्योंकि सोशल मीडिया पर कुछ लोग अंजलि बिडला के ड्रेसिंग सेन्स पर सेक्सिस्ट टिप्पणी के साथ उसकी तस्वीरें साझा कर रहे हैं और यह बात फैला रहे हैं कि बिना सिविल सेवा परीक्षा में शामिल हुए उनका नाम चयनित उम्मीदवारों की सूची में शामिल कर लिया गया है.

इस लेख में सिविल सेवा परीक्षा, 2019 के परिणाम पर विवाद की उत्पत्ति का विश्लेषण करने की कोशिश की गयी है, साथ ही यूपीएससी के इस दावे की जांच की गयी है कि प्रतीक्षा सूची बनाकर परिणाम घोषित करने की उसकी नीति आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के लिए किस हद तक फायदेमंद है? इस लेख में इस विवाद के संभावित समाधानों पर भी बातचीत करने की कोशिश की गयी है.


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विवाद की उत्पत्ति

सिविल सेवा परीक्षा परिणाम के वर्तमान विवाद की उत्पत्ति सिविल सेवा परीक्षा नियमावली (संशोधन दिनांक 4.12.2009) में संशोधन से शुरू होता है. यह संशोधन आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों को उनकी सेवाओं का चुनाव करने में सक्षम बनाने के लिए किया गया था, जिसको सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी. जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की एक संवैधानिक पीठ ने भारत संघ बनाम रमेश राम और अन्य के मामले में 07 मई, 2010 को दिए अपने निर्णय में उक्त संशोधन को सही ठहराया. इस निर्णय को पढ़ने से सिविल सेवा परीक्षा परिणाम की तैयारी/घोषणा के आसपास के विवाद के बारे में स्पष्ट जानकारी मिल जाती है.

सिविल सेवा परीक्षा नियमावली के नियम 16 में चयन का तरीका, मेरिट लिस्ट तैयार करने की विधि और उम्मीदवारों के चयन का तरीक़ा शामिल है. नियम 16(1) बताता है कि साक्षात्कार के बाद, उम्मीदवारों को योग्यता के क्रम में आयोग द्वारा व्यवस्थित किया जाएगा. तत्पश्चात, आयोग अनारक्षित रिक्तियों के लिए उम्मीदवारों की सिफारिश करने के उद्देश्य से, मुख्य परीक्षा के आधार पर भरी जाने वाली अनारक्षित रिक्तियों की संख्या के संदर्भ में एक सामान्य योग्यता मानक (Merit) तय करेगा. आरक्षित रिक्तियों के लिए एससी, एसटी और ओबीसी से संबंधित आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों की सिफारिश करने के उद्देश्य से, आयोग मुख्य परीक्षा के आधार पर इन श्रेणियों में से प्रत्येक में भरे जाने वाले आरक्षित रिक्तियों की संख्या के संदर्भ में सामान्य योग्यता मानक में ढील दे सकता है. अनारक्षित सूची बनाते समय सामान्य योग्यता मानक से ज़्यादा अंक पाए सभी उम्मीदवारों को आयोग अनारक्षित सूची में जगह देगा चाहे वह उम्मीदवार एससी, एसटी और ओबीसी का ही क्यों न हो? बशर्ते एससी, एसटी और ओबीसी के उम्मीदवार ने परीक्षा में किसी भी स्तर पर पात्रता या चयन मानदंडों में रियायत या छूट का लाभ नहीं लिया हो. एससी, एसटी और ओबीसी के उम्मीदवार- (1) आयु सीमा, (2) न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता (3) प्रयासों की संख्या, और (4) परीक्षा के किसी भी चरण में अर्हक अंक में रियायत/छूट ले सकते हैं. अगर आरक्षित वर्ग के किसी उम्मीदवार ने परीक्षा के किसी भी स्तर पर उक्त रियायतों/छूट को प्राप्त किया है, तो उसे अनारक्षित/सामान्य सूची में शामिल नहीं किया जा सकता भले ही उसका अंक सामान्य योग्यता मानक से ज़्यादा क्यों ना हो? इसी कारण से आजकल कई परीक्षाओं में आरक्षित श्रेणी का कट आफ सामान्य श्रेणी से ज़्यादा चला जाता है.

सिविल सेवा चयन नियमावली का नियम 16 (1) स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार जिन्होंने सामान्य योग्यता मानक से ऊपर अंक हासिल किए हैं, उन्हें सामान्य वर्ग में सिफारिश किया जाएगा बशर्ते उन्होंने कोई छूट न लिया हो. यह नियम आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी में शामिल करने में सक्षम बनाता है, लेकिन इससे सेवा (सर्विस) आवंटन में समस्या भी पैदा होती है, क्योंकि ऐसी संभावना बनती है कि ऐसे उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में रहते हुए उच्च सर्विसेज प्राप्त नहीं कर पाएंगे. अतः ऐसे उम्मीदवारों को सेवा आवंटन में मदद के लिए DoPT ने सिविल सेवा परीक्षा नियमावली में संशोधन किया और नियम 16(2) को जोड़ा, जिसके तहत सेवा आवंटन करते समय सामान्य श्रेणी में चयनित एससी, एसटी और ओबीसी को च्वाइस मिल जाती है कि बेहतरीन सेवा/सर्विस पाने के लिए वह अपनी आरक्षित सूची में चले जाएं, अगर ऐसा करने से उन्हें अपनी पसंद की सेवा/सर्विस मिलती है तो.

व्यक्तिगत अधिकार और सामूहिक हित में टकराव

सिविल सेवा परीक्षा नियमावली का नियम 16(2) आरक्षित श्रेणी के उन उम्मीदवारों के लिए अपनी मनपसंद सेवाएं/सर्विस प्राप्त करने में फ़ायदेमंद है, जो सामान्य श्रेणी मे जगह प्राप्त करते हैं. लेकिन ऐसे उम्मीदवारों के सामान्य श्रेणी से आरक्षित श्रेणी में आ जाने से सामान्य सूची में रिक्ति बन जाती है और आरक्षित श्रेणी में ज़्यादा उम्मीदवार हो जाने की सम्भावना बन जाती है. चूंकि सभी श्रेणियों में चयनित किए जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या विज्ञापन जारी करते समय ही निर्धारित कर दी जाती है, इसलिए किसी भी श्रेणी में निर्धारित संख्या से ज़्यादा उम्मीदवार होने पर आयोग के लिए समस्या पैदा हो सकती है. इस समस्या से निपटने के लिए आयोग ने प्रतीक्षा सूची की तरकीब निकाली है, जिसके बारे में आगे चर्चा की गयी है.

सामान्य श्रेणी में चयनित एससी, एसटी और ओबीसी के उम्मीदवारों के बेहतर सर्विस पाने की छह में आरक्षित सूची में वापस आ जाने से सिविल सेवा में चयनित होने वाले आरक्षित श्रेणी के कुल उम्मीदवारों की संख्या को कमी हो जाती है, जो कि आरक्षित श्रेणियों के सामुदायिक हित के लिए हानिकारक है. लेकिन आरक्षित श्रेणी के उन उम्मीदवारों को जिन्होंने कड़ी मेहनत करके सामान्य श्रेणी में जगह बनायी हो, उन्हें अच्छी सेवाओं के लिए आरक्षित श्रेणी में दावा करने की अनुमति नहीं देना वास्तव में उन्हें उनकी कड़ी मेहनत के लिए दंडित करने के समान है, क्योंकि आरक्षित श्रेणी के अन्य उम्मीदवारों उनसे कम अंक प्राप्त करके भी उच्च सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं. हमारा संविधान सामुदायिक हित पर व्यक्तिगत अधिकारों को प्राथमिकता देता है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षा नियमावली में संशोधन को बरकरार रखा है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है.

प्रतीक्षा सूची का तर्क

बेहतरीन सर्विस की चाह में अनारक्षित श्रेणी में चयनित एससी, एसटी और ओबीसी के उम्मीदवारों का अपनी आरक्षित सूची में वापस आने से सामान्य सूची में रिक्ति बन जाती है. चूंकि इसका उल्टा नहीं होता इसलिए आरक्षित श्रेणी में सीटें उत्पन्न नहीं होती हैं. सामान्य श्रेणी और आरक्षित श्रेणी के कुछ उम्मीदवार सर्विस नहीं भी ज्वाइन करते, इससे भी इन श्रेणियों में रिक्ति उत्पन्न होती है. हर साल चयनित उम्मीदवारों में कुछ उम्मीदवार ऐसे भी होते हैं जो कि पिछले साल ही किसी सेवा में चयनित हुए रहते हैं, वह परीक्षा में बेहतरीन सर्विस की चाह में बैठते हैं, जिसके न मिलने पर वह सर्विस नहीं ज्वाइन करते.

सामान्य श्रेणी से एससी, एसटी और ओबीसी अभ्यर्थियों की आरक्षित श्रेणी में वापसी से आरक्षित श्रेणी के निचले पायदान के उम्मीदवारों को बाहर होना पड़ सकता है. इससे बचने के लिए आयोग पहली बार सभी रिक्तियों के लिए परिणाम घोषित नहीं करता बल्कि उसे विभाजित कर देता है. एक तरीक़े से कहें तो पहली सूची बनाते समय आयोग सिर्फ़ सैधान्तिक तौर पर ही एससी, एसटी और ओबीसी के योग्य उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी में शामिल करता है, व्यवहारिक तौर पर यह मान कर चलता है कि ऐसे उम्मीदवार बेहतरीन सर्विस की चाह में अपनी संबंधित आरक्षित सूची में वापस चले जाएंगे, शायद इसीलिए प्रतीक्षा सूची में वह ज्यादातर सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों को ही रखता हैं. बड़ी संख्या में रिक्तियां भी केवल सामान्य श्रेणी में उत्पन्न होती हैं, आरक्षित श्रेणियों में रिक्ति तभी निकल सकती हैं जब आरक्षित श्रेणी के कुछ चयनित उम्मीदवार सर्विस ज्वाइन न करें, जो कि बहुत कम होता है. यही कारण हो सकता है कि प्रतीक्षा सूची से हाल ही में अनुशंसित उम्मीदवारों में सिर्फ़ एक एससी और कोई भी एसटी उम्मीदवार नहीं है.

विवाद का संभावित समाधान

सिविल सेवा के चयन प्रणाली में आयी यह विसंगति आरक्षित वर्गों के सामूहिक हित के ख़िलाफ़ है, इसलिए यह संवैधानिक आरक्षण के उद्देश्यों के भी विरोधाभास में है. अतः इस समस्या का वैकल्पिक समाधान खोजा जाना चाहिए. एक समाधान यह हो सकता है कि सभी सर्विसेज़ के लिए एक ही परीक्षा न करायी जाए, प्रत्येक सिविल सर्विस के लिए अलग-अलग परीक्षा या फिर सर्विसेज़ को तीन-चार भागों में पुनर्गठित करके परीक्षा हो. एक अन्य समाधान यह हो सकता है कि केवल सिविल सेवा की परीक्षा के आधार पर ही सर्विसेज़ का आवंटन नहीं किया जाए, बल्कि प्रशिक्षण में प्राप्त स्कोर के आधार पर किया जाय, जिसका विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल दिया था, लेकिन उस पर भी गहन विचार-विमर्श की ज़रूरत है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक रॉयल हालवे, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी स्क़ॉलर हैं .ये लेखक के निजी विचार हैं.)


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