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Friday, 22 November, 2024
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भारत में 2019 में वायु प्रदूषण से 16.7 लाख मौतें, 2.71 लाख करोड़ का नुकसान : लांसेंट अध्ययन

एम्स, आईसीएमआर और आईआईटी-दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा 2019 में वायु प्रदूषण का आर्थिक प्रभाव मापने के लिए किए गए अध्ययन से यह भी पता चलता है कि इसने कोविड की तुलना में 10 गुना अधिक जानें ली हैं.

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नई दिल्ली: 2019 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण 16.7 लाख से अधिक मौतें हुई हैं जो कि देश में कोविड- 19 से अब तक हुई मौतों से दस गुना अधिक हैं. द लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार प्रदूषण के कारण लगभग 36.8 बिलियन डॉलर (2,71,446 करोड़ रुपये) का आर्थिक नुकसान हुआ है.

एम्स, आईसीएमआर और आईआईटी-दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए और ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2019’ शीर्षक वाले इस अध्ययन में इनडोर और आउटडोर दोनों तरह से वायु प्रदूषण के आर्थिक प्रभाव को मापा गया, क्योंकि समयपूर्व मौतों और बीमारियों के कारण यह उत्पादन में कमी लाता है.

मंगलवार को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि देश में पिछले साल हुई कुल मौतों में 17.8 फीसदी प्रदूषण के कारण हुई थीं, जबकि आर्थिक नुकसान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.36 फीसदी के बराबर था.

शोधकर्ताओं ने कहा कि यद्यपि कई प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों से वायु प्रदूषण का संबंध अच्छी तरह स्थापित है, लेकिन इसके आर्थिक प्रभाव को बहुत कम समझा गया है. अध्ययन में शोधकर्ताओं ने लिखा कि भारत के राज्यों के लिए इस आर्थिक प्रभाव को स्पष्ट करना बेहद अहम है.

टीम, जिसमें सीएसआईआर और पीजीआईएमईआर जैसे संस्थानों के कंट्रीब्यूटर शामिल थे, ने अनुमान लगाया कि वातावरण में मौजूद पर्टिकुलेट मैटर प्रदूषण, घरेलू वायु प्रदूषण और ओजोन परत पर प्रदूषण के असर के कारण होने वाली मौतों से भारत का हर राज्य प्रभावित है.

वायु प्रदूषण के आर्थिक प्रभाव का अनुमान भारत के प्रत्येक राज्य के लिए लगाया गया.

आईसीएमआर में नेशनल चेयर ऑफ पॉपुलेशन हेल्थ और इस पत्र के वरिष्ठ लेखक ललित दंडोना ने एक बयान में कहा, ‘इस अध्ययन में भारत में पहले की तुलना में स्वास्थ्य और रोग पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का बेहतर तरीकों से व्यापक अनुमान लगाया गया है. वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभाव भारत के कम विकसित राज्यों में सबसे अधिक है, साथ ही एक असमानता है जिसे दूर किए जाने की जरूरत है.’


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वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतें

प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में से अधिकांश हवा में मौजूद पर्टिकुलेट मैटर और घरेलू वायु प्रदूषण के कारण होती हैं.

हालांकि, टीम ने पाया कि घरेलू वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर 1990 की तुलना में 2019 में 64.2 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि इसी अवधि में पर्टिकुलेट मैटर वाले प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में 115.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अध्ययन के अनुसार, ओजोन प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में 139.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने एक बयान में कहा, ‘विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना और उन्नत चूल्हा अभियान आदि ने भारत में घरेलू वायु प्रदूषण घटाने में कारगर भूमिका निभाई है. इस पत्र से पता चलता है कि इसका फायदा यह हुआ है कि घरेलू प्रदूषण के कारण मृत्यु दर घटी है.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसी सफलता हमें बाहरी वायु प्रदूषण को घटाने के प्रयास तेज करने के लिए भी प्रोत्साहित करती है.’

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में 40 फीसदी फेफड़ों के रोग के कारण होती हैं, शेष 60 प्रतिशत हृदय रोग, हृदयाघात, मधुमेह और नवजात शिशुओं की मौत की होती हैं.

भार्गव ने कहा, ‘यह बताता है कि वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर कितना व्यापक प्रभाव पड़ता है.’

आर्थिक नुकसान

अध्ययन में कहा गया है कि समय पूर्व मौतों के कारण 28.8 बिलियन डॉलर (2,12,436 करोड़ रुपये) का आर्थिक नुकसान हुआ है. साथ ही जोड़ा कि इसमें आबादी के बीच वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों के कारण होने वाला नुकसान 8 बिलियन डॉलर (59,010 करोड़ रुपये) है.

ये नुकसान भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.36 प्रतिशत है, लेकिन यह राज्यों के स्तर पर व्यापक रूप से अलग-अलग है.

उदाहरण के तौर पर दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा 62 डॉलर (4,573 रुपये) का प्रति व्यक्ति आर्थिक नुकसान हुआ.

आर्थिक नुकसान ऐसे राज्यों में सबसे अधिक था जिनमें प्रति व्यक्ति जीडीपी पहले से ही कम है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़.

वायु प्रदूषण के कारण कुल आर्थिक नुकसान यूपी में सबसे आगे था जहां अनुमानित तौर पर 5,130 मिलियन डॉलर (37,840 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के प्रमुख पर्यावरण अर्थशास्त्री पुष्पम कुमार ने बयान में कहा, ‘विभिन्न राज्यों में वायु प्रदूषण के कारण आर्थिक नुकसान का ये अनुमान केंद्र और राज्य स्तर के नीति-निर्धारकों को बेहद उपयोगी दृष्टिकोण प्रदान करता है. इससे वे समझ पाएंगे कि प्रदूषण नियंत्रण में निवेश न केवल जानमाल का नुकसान रोकने के लिहाज से बेहद फायदेमंद होगा बल्कि अच्छे स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक न्याय और समावेशी आर्थिक विकास के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने में भी मददगार होगा.’ उन्होंने ही इस अध्ययन में आर्थिक विश्लेषण के लिए तरीके की संकल्पना की थी.

कुमार ने कहा, ‘यह ऐतिहासिक अध्ययन सरकारी और निजी क्षेत्र के लिए देश में प्रदूषण नियंत्रण के संसाधन उपलब्ध कराने में मददगार होगा भारत और दुनिया के लिए स्थायी और समावेशी भविष्य सुनिश्चित होगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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