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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थबेपरवाह लोग, उलझाऊ नियम और लड़खड़ाती व्यवस्था- कोविड मरीजों के इलाज में लगी नर्सों के कैसे रहे अनुभव

बेपरवाह लोग, उलझाऊ नियम और लड़खड़ाती व्यवस्था- कोविड मरीजों के इलाज में लगी नर्सों के कैसे रहे अनुभव

महामारी के दौरान नर्सें अपने परिवारों से दूर रहते हुए मरीज़ों की मांगों, स्टाफ की कमी और हर दूसरे हफ्ते क्वारेंटाइन में रहने के मनोवैज्ञानिक असर से जूझती रही हैं.

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नई दिल्ली: हर बार जब गिरजा शर्मा को कोई बिना मास्क पहने हुए टकराता है तो उन्हें बहुत चिढ़ और मायूसी होती है. अपनी झुंझलाहट को ज़ाहिर करते हुए वो कहती हैं, ‘बहुत मायूसी होती है. लोग बहुत लापरवाही कर रहे हैं जिसकी वजह से दूसरों को मुसीबत झेलनी पड़ती है’.

शर्मा नई दिल्ली के शालीमार बाग के फोर्टिस अस्पताल में चीफ नर्सिंग ऑफिसर हैं और इस साल अपना पूरा समय उन्होंने कोरोनावायरस महामारी से जूझने में बिताया है.

इस जानलेवा वायरस से लड़ाई में नर्सिंग स्टाफ बिल्कुल अगले मोर्चे पर तैनात रहा है. लेकिन पूरे साल उन्हें कोविड इलाज के शुरू में भ्रामक प्रोटोकॉल्स, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर की खामियों, काम और ज़िंदगी के असंतुलन और असहनीय पीपीई सूट्स से जूझना पड़ा है.

पूरे देश के नर्सिंग स्टाफ ने इस प्रकोप के अपने अनुभव साझा किए और बताया कि ये दूसरी महामारियों से कैसे अलग रहा है. उन्होंने कहा कि महामारी में कोविड मरीज़ों की देखभाल में बहुत दबाव था, आइसोलेशन का मनोवैज्ञानिक असर था और महामारी के आकार और गंभीरता के बावजूद लोगों की लापरवाही देखकर झुंझलाहट होती थी.


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कोविड के शुरूआती दिनों की अव्यवस्था

महामारी के शुरुआती महीनों में नर्सें और अन्य हेल्थकेयर स्टाफ अंजाने में फंस गए थे, चूंकि कोरोनावायरस के बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं थी.

शर्मा ने समझाया, ‘मैंने अपने करियर में दूसरी बहुत सी संक्रामक बीमारियां देखी हैं और हम जानते थे कि वो कैसे फैलती हैं. लेकिन किसी को पता नहीं था कि कोविड कैसे फैलता है. बहुत सारा भ्रम था, इलाज की गाइडलाइन्स तक हर रोज़ बदलतीं थीं’. उन्होंने कहा कि महामारी के शुरुआती दिनों में पूरी अव्यवस्था फैली हुई थी.

पालम विहार, गुरुग्राम के कोलंबिया एशिया अस्पताल में नर्सिंग सेवाओं की प्रमुख लवलीन सुनील ने याद किया कि उन्होंने स्वाइन फ्लू का इलाज देखा था लेकिन कोविड महामारी के साथ जो कनफ्यूज़न पैदा हुआ, वो पहले कभी नहीं देखा गया.

सुनील ने कहा, ‘मुझे नर्सों की एक टीम को संभालना पड़ा जिनमें हर कोई डरी हुई और गुस्से में थी और काम करने से मना कर रही थी. कुछ नर्सों ने तो नौकरी छोड़ने की भी धमकी दे दी थी लेकिन सभी को हैंडल करना पड़ा’.

हर दिन, प्रोटोकॉल्स बदल रहे थे जिससे नर्सों के लिए एक तरह के इलाज का सहारा लेना मुश्किल हो रहा था. सुनील ने याद किया कि किस तरह, वो एक कोविड मरीज़ के बिस्तर के पास खड़ीं थी जबकि वो बिल्कुल ‘खौफज़दा’ थीं. उन्होंने अपनी टीम को दिखाने की ठान रखी थी कि वो अपना फर्ज़ निभा रहीं थीं.

उन्होंने कहा, ‘अगर मैं दिखा देती कि मैं डर रही हूं, तो टीम बिखर जाती’.


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खतरनाक पदार्थ और मास्क से ढका निजी स्पर्श

बेंगलुरू के व्हाइटफील्ड स्थित कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल की नर्स, धान्या ने याद किया कि भावनात्मक रूप से उन्होंने कैसा महसूस किया, जब वो एक 65 वर्षीय मरीज़ की देखभाल कर रहीं थीं, जो 2-3 दिन से अस्पताल में भर्ती थी.

धान्या ने कहा, ‘एक दिन, जब मैं उनके वाइटल्स चेक करने उनके कमरे में गई, तो देखा कि वो रो रहीं थीं’. वो बेहद अकेला महसूस कर रहीं थीं क्योंकि आने वालों पर पाबंदी की वजह से वो अपने परिवार से नहीं मिल पा रहीं थीं.

धान्या ने याद किया, ‘जब मैं उनके वॉर्ड में गई तो उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया और मुझसे कहा कि मैं ही उनकी बेटी हूं. मेरे लिए उस स्थिति से निपटना बहुत मुश्किल हो गया’.

आमतौर से हर मरीज़ के लिए एक तीमारदार मुहैया कराया जाता है. लेकिन कोविड-19 के मामले में हर मरीज़ पर एक तीमारदार लगाना मुमकिन नहीं है जिससे नर्सों पर काम का बोझ बढ़ गया क्योंकि उन्हें तीमारदार के काम भी करने पड़े.

पारस अस्पताल, गुरुग्राम की चीफ नर्सिंग ऑफिसर कैथरीन जेकब्स ने कहा, ‘नर्सों को हमेशा संक्रमित हो जाने का डर रहता है…लेकिन हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है. बीमारों की सेवा करना हमारा फर्ज़ है’.

जेकब्स ने बताया कि कोविड-19 मरीज़ों की तरफ से बजने वाली कॉल बेल्स की संख्या में भी इज़ाफा हो गया था.

उन्होंने कहा, ‘जानकारी न होने से बहुत सी दिक्कतें पैदा हो जाती हैं. नर्सों को लगातार मरीज़ों को आश्वस्त करते हुए उनके सवालों के जवाब देने होते हैं. कॉल बेल्स भी ज़्यादा बजने लगती हैं, चूंकि भर्ती किए गए मरीज़ अपने कमरों में अकेले होते हैं’.

नर्सिंग स्टाफ को मरीज़ों के सामने एक संघर्ष ये भी था कि दूसरे मरीज़ों की तरह कोविड मरीज़ों को दिलासा देना एक मुश्किल काम था. जेकब्स ने कहा कि मरीज़ से एक दूरी बनाकर रखनी पड़ती थी.

हेल्थकेयर सिस्टम में एक निजी स्पर्श देने के लिए नर्सों की सराहना की जाती है. लेकिन जब बात कोविड-19 की हो तो उन्हें एक हैज़मेट सूट पहनना होता है जिसमें मरीज़ नर्सों की सिर्फ आंखें देख सकते हैं. इससे निपटने के लिए बहुत सी नर्सें, पीपीई किट्स पर अपने नाम लिखने लगीं.

अन्य नर्सों ने कहा कि उन्हें मरीज़ों से बात करने में भी परेशानी होती थी, चूंकि मास्क उनकी आवाज़ को दबा देते थे.

बात न कर पाने की वजह से मरीज़ बेचैन होने लगते थे जिससे नर्सों की चुनौतियां और बढ़ जाती थीं.

शर्मा ने आगे कहा, ‘हाल ही में मरीज़ बहुत अपेक्षा करने लगे हैं. वो ऐसी मांगें करते हैं जैसे कि सब कुछ सामान्य है और कोई महामारी नहीं है’. उन्होंने आगे कहा कि इसकी वजह से नर्सें भी बहुत तनाव में आ जातीं थीं.

इसके अलावा शर्मा ने कहा कि चूंकि मरीज़ अपने परिवारों से नहीं मिल पाते थे इसलिए वो अपनी ‘भड़ास नर्सों पर निकालते’ थे और उनपर चिल्लाते थे.

स्टाफ की कमी से, ये समस्याएं और बढ़ जातीं थीं.

शर्मा ने पहले दिप्रिंट को बताया कि सामान्य वॉर्ड्स में नर्सों और मरीज़ों का अनुपात 1:5 और क्रिटिकल केयर यूनिट्स में 1:2 होता था. लेकिन महामारी के बाद इस अनुपात को बढ़ाकर सामान्य वॉर्ड्स में 1:12 और क्रिटिकल केयर में 1:5 कर दिया गया है.


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मनोवैज्ञानिक असर

ये पूछे जाने पर कि महामारी से संघर्ष में सबसे बोझिल करने वाला पहलू कौन सा था, इन नर्सों ने अपनी सूची में पीपीई किट को बर्दाश्त करने और क्वारेंटाइन को सबसे ऊपर रखा.

उनमें से जो कोविड वॉर्ड्स में हैं, वो महामारी की शुरूआत से अपने परिवारों से नहीं मिली हैं. मसलन, दिल्ली के शालीमार बाग के फोर्टिस अस्पताल में नर्सें अप्रैल से अपने घर नहीं जा पाईं हैं. अस्पताल ने उन्हें एक हॉस्टल में रखा हुआ है.

अधिकतर अस्पतालों में नर्सें शिफ्ट में काम करती हैं जिनमें सातों दिन की ड्यूटी शामिल है, जिसके बाद सात दिन का आइसोलेशन होता है.

बेंगलुरू के कोलंबिया एशिया रेफरल हॉस्पिटल की एक वॉर्ड नर्स, अमू पॉलोज़ ने कहा: ‘खुद को क्वारेंटाइन करना सबसे खराब काम है, जो मुझे करना पड़ा है’.

धान्या ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए. ‘आईसोलेशन सच में सबसे खराब अनुभव होता है क्योंकि हम बाहर जाकर लोगों से मिल-जुल नहीं सकते’. उन्होंने कहा कि वो उस हॉस्टल में रहती हैं जो उनके अस्पताल में दिया हुआ है, जहां नर्सें एक दूसरे से बात करती हैं और कोविड मरीज़ों के इलाज के अपने अनुभव साझा करती हैं.

पॉलोज़ ने ये भी बताया कि चूंकि उनके मरीज़, अपने चाहने वालों से नहीं मिल सकते इसलिए नर्सों पर उनकी भावनाओं का ध्यान रखने का भी अतिरिक्त दवाब रहता है. जो लोग अपने परिवार से मिल पाते हैं, वो भी अपनी सुरक्षा को लेकर डरे रहते हैं.

पालम विहार अस्पताल में सुनील ने कहा, ‘मेरे बच्चे करीब 15 साल के हैं. मुझे हर समय डर लगा रहता है कि मैं वायरस कैरी कर रही हूं और उसे बच्चों को पास कर दूंगी’. उन्होंने चिंता जताई कि वो अपने बच्चों को गले नहीं लगा सकतीं और उनसे दूसरी बनाकर रखनी पड़ती है.

ड्यूटी के सातों दिन, कम से कम छह घंटे तक पीपीई किट पहनकर रहना होता है.

धान्या के लिए पीपीई किट पहनना सबसे ‘खौफनाक चीज़’ रहा है. शर्मा ने कहा, ‘पीपीई किट पहनना बहुत बोझिल होता है. हम अपने ब्लैडर भी खाली नहीं कर सकते. तब और मुश्किल हो जाती है जब महिलाओं के मासिक धर्म या पीरियड्स चल रहे होते हैं’.


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हर रोज़ मौत का डर

वायरस अभी तक 1,44,789 लोगों की जानें ले चुका है इसलिए नर्सिंग स्टाफ के सामने रोज़ मौतें होती हैं.

नई दिल्ली के इंडियन स्पाइनल इंजरीज़ सेंटर की नर्सिंग प्रमुख नीतू मैत्रा ने कहा: ‘कभी-कभी अच्छे से अच्छे इलाज के बाद भी हमारे लिए मरीज़ों को बचाना मुमकिन नहीं होता’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मरीज़ इस हाल में होते हैं कि अपनी ज़िंदगी के लिए जूझ रहे होते हैं…बहुत खौफनाक होता है जब किसी को एक सांस के लिए संघर्ष करता देखते हैं. उनका काम अकसर मुश्किल हो जाता है, जब उन्हें मरीज़ के परिजनों के सवालों के जवाब देने होते हैं, ये जानते हुए भी कि मरीज़ बचने वाला नहीं है.

मौत का सामना करना वास्तव में इनके काम का एक हिस्सा है लेकिन जेकब्स ने कहा कि कोविड मृत्यु से निपटना बिल्कुल अलग होता है. पारस अस्पताल गुरुग्राम की चीफ नर्सिंग ऑफिसर ने बताया, ‘कोविड मृत्यु से निपटना बिल्कुल नई चीज़ है, चूंकि इनकी औपचारिकताएं अलग होती हैं’.

उन्होंने कहा कि अधिकतर मामलों में हेल्थकेयर स्टाफ और रिश्तेदार मरने वाले का चेहरा भी नहीं देख पाते. उन्होंने याद किया कि ज़्यादातर मरीज़ की आंखों में ‘मायूसी’ भरी रहती है, जब उन्हें समझ में आता है कि इस बीमारी के क्या नतीजे हो सकते हैं. इस तरह के ‘भावनात्मक आघात’ से उबर पाना बहुत मुश्किल होता है.


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‘लापरवाही बरतने वालों को कोविड वार्ड्स देखना चाहिए’

एच चीज़ जिस पर सभी नर्सें सहमत थीं, वो ये कि कोविड से जुड़ी एहतियात में लोग जो लापरवाही बरत रहे थे, उससे समस्या और बढ़ रही थी.

मैत्रा ने कहा कि जब भी वो किसी को बिना मास्क लगाए देखतीं थीं, तो उनका दिल चाहता था कि उन्हें किसी कोविड आईसीयू वॉर्ड में ले जाएं और दिखाएं कि ये बीमारी कितनी कठोर है.

उन्होंने कहा, ‘हम उन्हें (मरीज़ों को) बचाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन कभी-कभी ये मुमकिन नहीं हो पाता. मैं चाहती हूं कि आम लोग उसे देखें’.

जेकब्स का एक अलग तरीका है. ‘अगर मैं किसी को कोविड गाइडलाइन्स तोड़ते हुए देखती हूं, तो मैं हमेशा रुक कर उनसे एहतियात बरतने के लिए कहती हूं और उनसे कहती हूं कोविड के प्रति उनका रवैया बहुत ढीला है’.

इस बीच सुनील ने हमें याद दिलाया कि वायरस अभी देश से गया नहीं है. हर रोज़ अस्पताल को एक पॉज़िटिव रिपोर्ट मिलती है. उन्होंने कहा कि ये आज भी उतना ही बड़ा खतरा है जितना मार्च में था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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