scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतड्रोन से पहुंचाई जा सकती है कोविड वैक्सीन, बस मोदी सरकार को बदलनी होगी नीति

ड्रोन से पहुंचाई जा सकती है कोविड वैक्सीन, बस मोदी सरकार को बदलनी होगी नीति

लचीली और बहुपयोगी ड्रोन तकनीक की अनदेखी करके भारत ‘आत्मनिर्भर’ बनने और 5 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता.

Text Size:

जबकि हम कोविड-19 की वैक्सीन की खोज पूरी करने के करीब पहुंच रहे हैं- फ़ाइज़र, मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड आस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन के 90 प्रतिशत से ज्यादा असरदार होने की घोषणाएं कर रही हैं, तब भारत समेत तमाम देशों की सरकारें अपनी व्यापक आबादी के टीकाकरण की तैयारियां कर रही हैं. नरेंद्र मोदी सरकार को उम्मीद है कि ऑक्सफोर्ड आस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन ‘कोवीशील्ड’ और भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन’ जनवरी 2021 तक उपलब्ध हो जाएंगी और अप्रैल 2021 के अंत तक चार और वैक्सीन आ जाएंगी. लेकिन मुख्य चुनौती होगी वैक्सीन को देश के कोने-कोने तक, अंतिम घर तक पहुंचाना.

भारत में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम की वजह से वैक्सीन के वितरण की सुचारु व्यवस्था मौजूद है. लेकिन कोविड-19 के मामले में यह बहुत विशद काम साबित होगा. भारत की रेल और सड़क परिवहन व्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था है और वह उन पर भरोसा कर सकता है. लेकिन परिस्थिति की भयावहता और देश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए वैक्सीन को पहुंचाने की नयी और दुरुस्त व्यवस्था जरूरी है. यहीं पर ड्रोन-आधारित वितरण व्यवस्था की जरूरत महसूस होती है.

2018 के बाद से कई देश वैक्सीन के वितरण के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं. सबसे पहले इसकी शुरुआत प्रशांत क्षेत्र के एक छोटे-से देश वनुआतु ने की थी. 2019 में घाना ने ड्रोन से वैक्सीन वितरण का दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क तैयार किया. इस व्यवस्था में पूरे सप्ताह 24 घंटे 30 ड्रोनों से देश के 1.2 करोड़ लोगों की सेवा की जाती है. कोविड-19 के संकट के दौरान घाना में टेस्टिंग किट भी ड्रोन के जरिए वितरित किए गए. रवांडा में ड्रोनों के जरिए मरीजों के लिए खून और उपचार के साधन भी देश के विभिन्न स्थानों तक पहुंचाए जा रहे हैं. रवांडा में फिलहाल दूर-दूर स्थित 21 क्लीनिकों के नेटवर्क के जरिए पूरे देश में मरीजों के लिए 35 प्रतिशत खून पहुंचाने का काम ड्रोन कर रहे हैं.


यह भी पढ़ें: योगी बनाम मोदी की शुरुआत हो चुकी है और यह 2024 से पहले दिलचस्प हो जाएगा


भारत में ड्रोन का इक्का-दुक्का इस्तेमाल

भारत में भी आपात स्थिति में ड्रोन के इस्तेमाल के उदाहरण मिलते हैं. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने 2013 में उत्तराखंड में और 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान ड्रोन का प्रयोग किया था. 2019 में कर्नाटक के बांदीपुर के जंगल में लगी आग के दौरान वन विभाग ने ड्रोन का उपयोग किया था. भारतीय सेना कई मौकों पर ‘अनमैंड एरियल वेहिकल’ (यूएवी) का इस्तेमाल करती रही है जैसे सियाचीन में चट्टान खिसकने, पुलवामा और उरी में आतंकवादी हमलों और अलगाववादीयों से निपटने के लिए इनका प्रयोग किया गया था.

मेडिकल सप्लाई के मामलों में भारत में ड्रोन के इस्तेमाल की कुछ ही कोशिशें की गई हैं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक, सितंबर 2019 में महाराष्ट्र सरकार और ड्रोन सेवा कंपनी ‘ज़िपलाइन’ ने ‘आपात स्थिति में दवाओं और अहम उपचार साधन की सप्लाई के लिए ड्रोनों के स्वायत्त नेटवर्क का इस्तेमाल करने की पार्टनरशिप’ के गठन की घोषणा की’.

इसी तरह, उत्तराखंड के ‘ड्रोन एप्लिकेशन ऐंड रिसर्च सेंटर’ (डीएआरसी) ने हाल में दूरदराज़ के इलाकों तक वैक्सीन पहुंचाने के सफल परीक्षण किए. इस परियोजना के विस्तार के लिए राज्य सरकार निजी उपक्रमों के साथ साझीदारी करने की तैयारी कर रही है.

नागरिक विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने 2018 में ‘ड्रोन रेगुलेशन 1.0’ नियम बनाया जिसमें दृष्टि सीमा से दूर (बीवीएलएस) ओपरेशन्स के लिए ‘कोई अनुमति नहीं, कोई उड़ान नहीं’ निर्देश और प्रतिबंध जारी किया गया. इस निर्देश ने ड्रोन सेवा देने वालों के लिए कड़े नियम जारी कर दिए और सरकारी आपातसेवा संगठनों को भी कुछ शर्तों के तहत अनुमति लेना जरूरी बना दिया गया. 2019 में डीजीसीए ने ‘ड्रोन रेगुलेशन 2.0’ नियम के बारे में एक नीतिपत्र जारी किया. इस नियम को अभी लागू नहीं किया गया है. इस नियम के तहत बीवीएलएस ओपरेशन्स की मंजूरी देने, ‘डिजाइन में प्राइवेसी’ जरूरी बनाने और मानव रहित विमान सिस्टम (यूएएस) तथा रिमोट से चलाए जाने वाले विमान सिस्टम (आरपीएएस) में 100 फीसदी विदेशी निवेश की मंजूरी देने की व्यवस्था है. रेगुलेशन 1.0 के तहत नियंत्रित संचालन की अनुमति थी मगर रेगुलेशन 2.0 के तहत व्यापारिक क्षमता के उपयोग के लिए रियायती निर्देश जारी करने का प्रस्ताव किया गया है.


यह भी पढ़ें: क्या वजह है कि योगी आदित्यनाथ भाजपा के बाकी मुख्यमंत्रियों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं


एक क्रांतिकारी तकनीक की अनदेखी न हो

कोविड-19 महामारी और उसके कारण उभरी चुनौतियां बताती हैं की स्थिति सामान्य नहीं है इसलिए मोदी सरकार को उसके अनुकूल परंतु अलग कदम उठाने की जरूरत है. नागरिक विमानन मंत्रालय ने नवंबर 2020 में मानव रहित विमान सिस्टम मैनेजमेंट (यूटीएम) को लेकर एक परिचर्चा पत्र जारी किया जिसमें ‘डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म’ के साथ विभिन्न सेवा दाताओं और भागीदारों को जोड़ने के लिए दिशानिर्देश सुझाए गए हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि नीतिगत मसौदा पत्र में इस बात को स्वीकार किया गया है कि भारत में ‘यूएवी’ का विकास हो रहा है लेकिन अफसोस की बात है कि पूरे मसौदे में वैक्सीन शब्द का कोई जिक्र नहीं है. वैसे इस पत्र से यह उम्मीद बंधती है कि वैक्सीन के वितरण में ड्रोन के उपयोग को लेकर सरकार जरूरी कदम उठाएगी.

‘डीजीसीए’ ‘डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म’ के जरिए कुछ ऐसे यूएवी की पहचान और पूर्व-मंजूरी दे सकती है जिनका उपयोग ‘जी क्लास’ यानी अनियंत्रित हवाई मार्ग के आगे भी किया जा सकता है बशर्ते सेवाएं देने वाले ड्रोन में ऐसे यंत्र (‘आरआईटी’) लगाएं, जो उसके लापता हो जाने पर उसकी पहचान और उसका पता लगाने में मदद करें. ‘परमीशन आर्टीफ़ैक्ट’ या उड्डयन के लिए ‘डिजिटल की’ की मंजूरी बैच के हिसाब से दी जा सकती है या तब दी सकती है जब यूएवी प्रक्रियागत एवं सुरक्षा संबंधी मानकों को पूरा कर ले.

नीति पत्र में यह भी सुझाव दिया गया है कि सभी डेटा भारत के भौगोलिक क्षेत्र के अंदर रहें और अगर आदेश मिले तो वह राष्ट्रीय सुरक्षा सरोकारों के मामले में रियायत दे सकता है. इस तरह, हमारा प्रस्ताव है कि ‘कोई अनुमति नहीं, कोई उड़ान नहीं’ के नियम में शर्तों के साथ रियायत दी जा सकती है.

आगे का रास्ता ‘भरोसे के साथ व्यवसाय’ के नियम के तहत पूरा किया जा सकता है. उद्योग में भागीदारी रखने वाले और सरकारी एजेंसियां अपनी क्षमता का उपयोग दूर तक वैक्सीन पहुंचाने में कर सकती है जिसकी संभावना और उपयोगिता का परीक्षण और सत्यापन किया जा चुका है, वह भी ऐसे देश में जहां से हिमालय पर्वत शुरू होता है और जहां रेगिस्तान खत्म होता है. लेकिन अनुकूल नीति के अभाव में मौजूदा क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता. उद्योग और उसमें भागीदारी रखने वालों से विचार-विमर्श और काम आसान करने वाली नीति को अस्थायी तौर पर ही सही सरकार के जरूरी कामों में ज्यादा अहमियत दी जानी चाहिए.

‘आत्मनिर्भर भारत’ बनने और 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य उस लचीली, बहुपयोगी और बहुद्देशीय क्रांतिकारी तकनीक की अनदेखी करके हासिल नहीं किया जा सकता जो कोविड-19 महामारी से लड़ने वाली हमारी उपलब्ध क्षमता को और मजबूती दे सकती है.

(अभिषेक चक्रवर्ती चैन्नई स्थित साई विश्वविद्यालय में कानून के सहायक प्रोफेसर हैं और दक्षा फेलोशिप में फैकल्टी हैं)

(अभिजीत राजखोवा मैकेनिकल इंजीनियर हैं और पब्लिक पॉलिसी में रुचि रखते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: जरूरत से ज्यादा लोकतंत्र होने का भ्रम: बिना राजनीतिक आज़ादी के कोई आर्थिक आज़ादी टिक नहीं सकती


 

share & View comments