श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर संपदा विभाग यह पता लगाने में जुटा है कि बेदखली का नोटिस जारी होने के बावजूद सरकारी आवास खाली न करने वाले कम से कम 90 राजनेताओं, पूर्व विधायकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और अधिवक्ताओं के कारण सरकार पर कितना वित्तीय बोझ पड़ रहा है.
इन सरकारी आवासों की सुविधा का लाभ उठाने वाले राजनेताओं में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस (एनसी), अपनी पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस और जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के प्रमुख नाम शामिल हैं.
केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन से जुड़े आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि संपदा विभाग ने यह कार्यवाही 5 दिसंबर के जम्मू- कश्मीर हाई कोर्ट के आदेश के संदर्भ में शुरू की है. इस मंगलवार को सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और उनकी जगह चीफ जस्टिस बने न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की एक पीठ ने अधिकारियों से पूर्व विधायकों को आवास प्रदान किए जाने पर होने वाले खर्च का विवरण मांगा था.
इससे पहले, जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने आवंटन की अवधि के बाद भी सरकारी आवासों में डेरा डाले लोगों के नाम मांगे थे. अदालत विधायकों, राजनेताओं और सुरक्षा खतरे का सामना कर रहे अन्य लोगों को मिलने वाली सरकारी आवास सुविधा की स्थिति को लेकर इसी साल जुलाई में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
नाम उजागर न करने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अभी दो तरह की कवायद चल रही है. पहली संपदा विभाग की ओर से तैयार और बेंच को सौंपी गई एक सूची में शामिल सभी लोगों को हाई कोर्ट के ताजा आदेश से अवगत कराना. यह आदेश उनके लिए एक नोटिस की तरह होगा. दूसरा, संपदा विभाग की तरफ से सूचीबद्ध आवास सुविधाओं पर होने वाले सरकारी खर्च का ब्योरा जुटाना.’
यह जानकारी जुटाने के साथ कि क्या अनधिकृत रूप से रहने वालों ने विभाग को ऑक्यूपेंसी चार्ज, लाइसेंस फी, लीज मनी आदि का भुगतान किया है या नहीं, यह भी पता लगाया जा रहा है कि क्या वे परिसर के लिए बिजली और पानी के बिल जैसे खर्च वहन कर रहे हैं.
उच्च न्यायालय ने मामले को 22 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया है.
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डिफॉल्टर सूची में भाजपा, पीडीपी, एनसी व अन्य के नाम
इस सूची में भाजपा के प्रमुख नामों में जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष रविंदर रैना, पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता और पूर्व विधायक सुनील शर्मा शामिल हैं. पार्टी से जुड़े एक दर्जन से अधिक राजनेता, पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक और एमएलसी के नाम मंत्रियों को आवंटित होने वाले बंगले के लाभार्थियों में शामिल हैं जबकि कुछ अन्य ए, बी और सी टाइप आवासों में काबिज हैं.
अन्य प्रमुख नामों में नेशनल कांफ्रेस के पूर्व मंत्री शफी उरी, अब्दुल रहीम राथेर, चौधरी मुहम्मद रमजान, डोगरा स्वाभिमान संगठन के संस्थापक और पूर्व मंत्री चौधरी लाल सिंह, पैंथर पार्टी के भीम सिंह, अपनी पार्टी के जफर इकबाल मन्हास और पीडीपी के निजामुद्दीन भट शामिल हैं.
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, ‘प्रतिवादियों को अपनी सूची में स्पष्ट तौर पर अलग-अलग यह जानकारी देनी होगी कि काबिज व्यक्तियों का नाम क्या है, संपत्तियां और जब अधिकारियों ने इन्हें खाली किया तो इनमें से प्रत्येक के रखरखाव, मरम्मत, सफेदी-धुलाई आदि पर विभाग की तरफ से कितना व्यय किया गया. इन अनधिकृत कब्जेदारों द्वारा कानून के हर संभावित सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए सार्वजनिक धन खर्च किया गया है. सेवारत अधिकारियों को इन सरकारी आवासों में रहने की सुविधा देना बेहद जरूरी है. इस स्थिति को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.’
सरकारी अधिकारियों के अनुसार, संपदा विभाग इन सरकारी सुविधाओं में सुरक्षा मुहैया कराने और घरेलू सहायक, माली और सुपरवाइजर जैसे कर्मचारियों को वेतन देने पर हर माह होने वाले खर्च का विवरण भी जुटा रहा है.
अदालत ने कहा, ‘हम इन कार्यालयों/आवासों में अनधिकृत कब्जे, बिजली, पानी, आवश्यक सुरक्षा सेवाओं के लिए शुल्क वसूलने के संबंध में उचित आदेश पारित करने पर विचार करेंगे, जो इन सरकारी आवासों में मैनपॉवर तैनात किए जाने पर खर्च हुआ है.’
राजनेताओं ने कहा किराया और बिल दे रहे, अन्य बोले खाली करने को तैयार हैं
संपदा विभाग के इस कदम पर अपनी प्रतिक्रिया नें जम्मू-कश्मीर के पूर्व डिप्टी सीएम और भाजपा के वरिष्ठ नेता कविंदर गुप्ता ने कहा, ‘हम सुरक्षा जोखिम के कारण सरकारी आवास में रह रहे हैं. लेकिन मैंने अपना सारा बकाया चुका दिया है. मैं नियमित रूप से किराया चुका रहा हूं.’
अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता जफर मिन्हास ने बताया कि उन्हें भी बेदखली का नोटिस मिला है, लेकिन वह भी कविंदर गुप्ता जैसा ही तर्क देते हैं. उन्होंने कहा, ‘सरकार के पास सारे रिकॉर्ड हैं. मेरा सारा बकाया क्लियर हो चुका है. साथ ही किराया भी चुका दिया है. सुरक्षा हमारे सरकारी आवास सुविधा लेने की प्रमुख वजह है, और अगर हमें प्रशासन की ओर से उचित सुरक्षा मुहैया कराई जाए तो कुछ सोच सकते हैं.
हालांकि, हाई कोर्ट की पीठ ने उल्लेख किया था, ‘हमें इस बात की जानकारी दी गई है कि जिन लोगों को सुरक्षा मुहैया कराई जा रही हो उनको सरकारी आवास मुहैया कराने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है.’
पीडीपी के वरिष्ठ नेता निजामुद्दीन भट ने कहा, ‘जब कोई मौजूदा विधायक चुनाव हारता है या उसका कार्यकाल पूरा होता है तो वे कानून के तहत उन्हें मिला सरकारी आवास खाली कर देते हैं या छोड़ देते हैं. यदि असेंबली भंग हो जाती है, जैसा जम्मू-कश्मीर में हुआ था तो आदर्श स्थिति यह है कि चुनाव होने तक विधायक को आवास में रहने दिया जाए. यहां पर ये नहीं हो रहा है. दूसरी बात यह है कि मैं किराया दे रहा हूं. वास्तव में तो मैं दोगुना भुगतान कर रहा हूं. लेकिन मैं अधिकारियों द्वारा कहे जाने पर परिसर खाली कर दूंगा.’
दिप्रिंट ने भाजपा नेताओं रैना और शर्मा से भी उनके मोबाइल फोन पर संपर्क की कोशिश की, लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी. फोन पर संपर्क किए जाने पर नेशनल कांफ्रेंस नेता शफी उरी भी अनुपलब्ध मिले.
पैंथर्स पार्टी के संस्थापक भीम सिंह का नाम भी सूची में है. हालांकि उनके मामले को विचाराधीन बताया गया है. भीम सिंह ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘पहले भी उन्होंने मुझे बेदखल करने की कोशिश की थी और मुझे अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ा था. मैं मुकदमा लड़ रहा हूं लेकिन साथ ही सारी बकाया राशि के भुगतान के साथ नियमित रूप से किराया भी चुका रहा हूं. मैंने तो उस समय पूरे कश्मीर का दौरा किया था जब आतंकवाद यहां चरम पर था.
भाजपा ने तो तब यहां आने की हिम्मत तक नहीं की थी. और अब वे हमारी चीजों को तय करने यहां आते हैं. सरकार अच्छी तरह जानती है कि गांव का एक कच्चा घर छोड़कर जम्मू-कश्मीर में मेरे पास कोई संपत्ति नहीं है. मुझे अपने किए काम के कारण मिलने वाली धमकियों को देखते हुए ही सुरक्षा मुहैया कराई गई है, ऐसे में मैं कहां रह सकता हूं. वे भाजपा नेताओं या अपनी पार्टी के लोगों को बेदखल नहीं करेंगे, जिन्हें इंटेलिजेंस ब्यूरो ने खड़ा किया है.”
नेशनल कांफ्रेंस के नेता चौधरी रमजान, जिनका नाम यूटी प्रशासन की सूची में है, ने दिप्रिंट को बताया कि देशभर में कहीं भी किसी ‘सरकारी संपत्ति’ पर उनका कब्जा नहीं है.
इस बारे में एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘चौधरी रमजान ने कुछ समय पहले ही संपत्ति खाली कर दी थी. हाई कोर्ट को दी गई सूची को अपडेट किया जाना है क्योंकि कुछ अन्य विधायकों ने सरकारी आवास खाली करने की मंशा जताई है.’
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