नई दिल्ली: गृह मंत्रालय (एमएचए) को ‘अभी वो नियम बनाने हैं’ जो नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (सीएए) को संचालित करेंगे, हालांकि इस विवादास्पद क़ानून को संसद में पारित हुए, एक साल हो गया है. इस क़ानून ने देश भर में विरोध प्रदर्शनों और दंगों की चिंगारी भड़का दी थी.
जब तक नियम बनाकर अधिसूचित नहीं हो जाते, तब तक नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 लागू नहीं किया जा सकता, और ये लगभग बेअसर ही रहेगा.
एमएचए के एक सूत्र ने कहा, ‘नियम अभी बनाए जाने हैं. उनपर काम किया जाएगा’. अधिकारी ने इस पर टिप्पणी करने से मना कर दिया, कि इस प्रक्रिया में कितना समय लग सकता है. उन्होंने कहा, ‘ये एक जटिल प्रक्रिया है. इसमें समय लगता है, अभी हमारे पास समय है’.
सीएए को लोकसभा ने 9 दिसंबर 2019, और राज्यसभा ने 11 दिसंबर 2019 को पारित कर दिया था. 12 दिसंबर को उसे राष्ट्रपति की सहमति मिल गई, और एमएचए ने एक अधिसूचना जारी कर दी, कि ये एक्ट 10 जनवरी 2020 से लागू हो जाएगा.
सीएए के तहत छह धर्मों के लोग- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई- जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हैं, उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी, अगर वो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए थे.
इसका मतलब है कि इन छह देशों के लोगों के पास, अगर वैध दस्तावेज़ नहीं हैं, तो उन्हें देश से वापस नहीं भेजा जाएगा, बल्कि उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी. इसके अलावा, अवैध तरीक़े से भारत में दाख़िल होने के लिए, उनके खिलाफ चल रही तमाम क़ानूनी कार्यवाहियां, बंद कर दी जाएंगी.
2019 संशोधन त्रिपुरा, मिज़ोरम, असम, और मेघालय के आदिवासी इलाक़ों पर लागू नहीं होता, चूंकि उन्हें संविधान की छठी अनुसूचि में शामिल किया हुआ है.
जो इलाक़े बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित किए गए इनर लाइन परमिट में आते हैं, वो भी इस एक्ट के दायरे से बाहर रहेंगे. इससे लगभग पूरा अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नागालैण्ड इस एक्ट के दायरे से बाहर हो जाते हैं.
दो एक्सटेंशन
प्रक्रिया के अनुसार, किसी भी क़ानून के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए, एक्ट के पारित हो जाने के छह महीने के भीतर, संबंधित मंत्रालयों को नियम बना लेने होते हैं.
अगर संबंधित मंत्रालय वो नियम नहीं बना पाता, तो उसे अधीनस्थ विधान समिति से एक्सटेंशन लेना पड़ता है, जो एक समय पर तीन महीने से अधिक का नहीं हो सकता. दिप्रिंट को पता चला है कि एमएचए अभी तक दो एक्सटेंशंस ले चुकी है.
संसदीय प्रक्रिया के मैनुअल में कहा गया है, ‘अगर मंत्रालय अथवा विभाग, निर्धारित छह महीने के भीतर नियम नहीं बना पाते, तो उन्हें अधीनस्थ विधान समिति से, इसके लिए एक्सटेंशन मांगना चाहिए, और ऐसे एक्सटेंशन के कारण बताने चाहिएं’.
उसमें आगे कहा गया है, ‘ऐसे एक्सटेंशन एक समय पर, तीन महीने से अधिक के नहीं होंगे. ये आवेदन मंत्री की मंज़ूरी हासिल करने के बाद ही किया जाना चाहिए’.
इस मामले में, एमएचए ने जुलाई में एक एक्सटेंशन मांगा था, जो अक्तूबर में पूरा हो गया. उसके बाद एक और एक्सटेंशन मांगा गया, जो अब जनवरी में ख़त्म हो जाएगा.
ऊपर हवाला दिए गए सूत्र ने कहा, ‘हमारे पास जनवरी तक का समय है, और अपेक्षा है कि तब तक ये प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी’.
अभी तक स्पष्ट नहीं है कि एमएचए ने दो बार एक्सटेंशन मांगने के पीछे क्या कारण दिए थे.
नियमों को अंतिम रूप दिए जाने के बाद, मंत्रालय या संबंधित विभाग उन्हें गज़ट में छपवाने के लिए क़दम उठाएंगे, और जहां एक्ट में इसका प्रावधान है, उन्हें दोनों सदनों के पटल पर रखा जाएगा.
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