नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि पूरा साल कोरोनावायरस की भेंट चढ़ गया है. सभी की निगाहें 2021 पर लग गई हैं, और अब बस एक ही चीज़ का इंतज़ार है- एक कोविड-19 वैक्सीन. वो कब सामने आएगी? उसकी क़ीमत क्या होगी? हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति हासिल करने में, और कितना समय लगेगा? क्या एक वैक्सीन दूसरी वैक्सीन्स से ज़्यादा सुरक्षित और असरदार होगी?
दुनिया भर में 100 से अधिक वैक्सीन्स, विकास के अलग-अलग चरणों में हैं, जिनमें अलग-अलग तकनीक इस्तेमाल की जा रही हैं. इस व्याख्या में नज़र डाली जाएगी कि फिलहाल ट्रायल से गुज़र रहीं सबसे आशाजनक वैक्सीन कैंडिडेट्स कौन सी हैं, उन्हें कौन कंपनियां बना रही हैं, इस समय वो विकास के किस चरण में हैं, और उनकी चरणबद्ध डिलीवरी और वितरण की क्या योजनाएं बनाई गई हैं.
लेकिन पाठक को विवेक इस्तेमाल करने की सलाह है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ज़रूरी नहीं है कि वैक्सीन के आने से हमारी चिंताएं ख़त्म हो जाएं.
पब्लिक हेल्थ फाउण्डेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के अध्यक्ष, डॉ के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, ‘विकास की गति उस महामारी के जवाब में है जिसने दुनिया भर में स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था को हिला दिया है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘जब हम किसी चीज़ को इतनी तेज़ी से विकसित करके सार्वजनिक इस्तेमाल में लाते हैं- तो दो संभावित चिंताएं होती हैं. एक तो ये कि प्रभाव की तलाश में, सुरक्षा की अनदेखी की जा सकती है, और दूसरी ये कि क्या सुरक्षा की अवधि का, सही से मूल्यांकन हुआ है’.
‘उसके लिए, हमें मार्केटिंग के बाद फॉलो-अप करना होता है. प्रभाव के मामले में भी हम, सेलुलर प्रतिरक्षा की प्रकृति का अंदाज़ा नहीं लगा सकते, जिसका सुरक्षा की अवधि पर असर होता है. हम एंटीबॉडी के स्तर और गंभीर संक्रमण को रोकने पर ध्यान लगा रहे हैं. हम सेलुलर प्रतिरक्षा की अवधि को नहीं देख पा रहे हैं. इन पर लाइसेंसिंग फेज़ के बाद नज़र रखने की ज़रूरत है’.
1. सिरम संस्थान- कोविशील्ड
मूलरूप से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट के रिसर्चर्स द्वारा विकसित, कोविशील्ड को व्यापक रूप से दुनियाभर में, कोविड वैक्सीन की रेस में अग्रणी माना जा रहा है.
इसे एक वायरस (सीएचएडीओएक्स1) से बनाया गया है, जो एक कॉमन कोल्ड वायरस (एडिनोवायरस) का कमज़ोर रूप होता है, जिसे चिंपैंज़ियों से निकाला जाता है. व्यवसायिक रूप से इसका निर्माण, स्वीडिश-ब्रिटिश फर्म एस्ट्राज़ेनेका, और सेरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा किया जा रहा है, जो ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका प्रयास में एक साझीदार है.
एसआईआई और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर), फिलहाल देशभर में 15 केंद्रों पर कोविशील्ड के फेज़ 2/3 के क्लीनिकल ट्रायल्स कर रहे हैं- इन चरणों में बड़ी संख्या में- सैकड़ों से लेकर हज़ारों तक- प्रतिभागी शामिल हो रहे हैं. 31 अक्तूबर तक, 1,600 प्रतिभागियों का नामांकन पूरा कर लिया गया था.
इसमें जुटे शोधकर्ताओं द्वारा किए गए डेटा विश्लेषण से पता चला है, कि वैक्सीन ने औसतन 70 प्रतिशत प्रतिभागियों को बीमार होने से बचा लिया.
इस वैक्सीन के असर के यूके, ब्राज़ील, साउथ अफ्रीका, और अमेरिका में भी, बड़े पैमाने पर ट्रायल किए जा रहे हैं. एसआईआई पहले ही वैक्सीन के 4 करोड़ डोज़ बना चुकी है, जिन्हें सरकारी नियामक ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) के, एट-रिस्क मैन्युफेक्चरिंग और स्टॉक पाइलिंग लाइसेंस के तहत बनाया गया है.
अगर वैक्सीन को यूके नियामक से स्वीकृति मिल जाती है, तो संभव है कि उसे भारत में भी इस साल के अंत, या अगले साल के शुरू में, तेज़ी से हरी झंडी मिल जाए. ड्रग रेगुलेशन नियमों में एक प्रावधान है, जिसमें ऐसे उत्पाद के लिए अपवाद की अनुमति मिल जाती है, जिन्हें यूके या जर्मनी जैसे कुछ देशों से स्वीकृति मिल चुकी हो.
इसके असर के आंकड़ों का अभी इंतज़ार है, लेकिन सुरक्षा विश्लेषण के शुरुआती नतीजों में, इसे सुरक्षित और प्रतिरक्षाजनक पाया गया है, यानी कि ये शरीर के भीतर, एक इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करती है.
इतना ही नहीं, ट्रायल्स में ये भी सामने आया है कि युवाओं की अपेक्षा अधिक उम्र के वयस्क, इसे ज़्यादा अच्छे से सहन करेंगे. ये विशेष रूप से अच्छी ख़बर है, क्योंकि बड़ी उम्र के लोग को, कोविड-19 का ख़तरा सबसे ज़्यादा होता है.
एसआईआई ने शुरू में ऐलान किया था कि वैक्सीन की कीमत 3 डॉलर या लगभग 225 प्रति डोज़ रखी जाएगी. लेकिन, अब उसने कहा है कि इसकी क़ीमत उस रक़म की दोगुनी होगी.
इस वैक्सीन के अप्रैल 2021 से उपलब्ध होने की संभावना है.
2. मॉडर्ना – एमआरएनए-1273
एमआरएनए-1273, इंसानी ट्रायल्स में जाने वाली सबसे पहली कोविड वैक्सीन थी- जो इस साल मार्च में शुरू हुए– और जिसे उस समय सबसे आशाजनक माना जा रहा था.
ये वैक्सीन एक मैसेंजर आरएनए प्लेटफॉर्म पर आधारित है, जो सार्स-सीओवी-2 स्पाइक प्रोटीन के लिए कोड कैरी करता है. ये मिकैनिज़्म शरीर को वायरस को पहचानना सिखाता है, और जब वास्तविक हमला होता है तो एक इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करता है.
वैक्सीन के असर के पहले अंतरिम विश्लेषण- जिसे इस महीने सार्वजनिक किया गया- से कथित रूप से पता चला कि ये वैक्सीन 94.5 प्रतिशत कारगर थी. इसमें कोई तात्कालिक सुरक्षा चिंताएं नहीं थीं, और इसके साइड इफेक्ट्स में इंजेक्शन की जगह पर दर्द, मांसपेशी में दर्द, सर दर्द और थकान शामिल थीं.
इस स्टडी में, जिसे कोव कहा जाता है, अमेरिका में 30,000 से अधिक प्रतिभागी नामांकित किए गए, और इसे अमेरिकी सरकार के नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के एक हिस्से, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिज़ीज़ेज़ (एनआईएआईडी), तथा कई दूसरी संस्थाओं के सहयोग से चलाया जा रहा है.
इस वैक्सीन की क़ीमत 35 डॉलर (लगभग 2,600 रुपए) प्रति डोज़ के आसपास रहने की संभावना है. ये 2 डिग्री से 8 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच स्थिर रहती है, जो 30 दिन तक घरों के आम फ्रिज, या मेडिकल रेफ्रिजरेटर में रखी जा सकती है. रिसर्चर्स कह कहना है कि माइनस 20 डिग्री सेंटीग्रेड पर, इसे चार महीने तक रखा जा सकता है.
अभी स्पष्ट नहीं है कि ये भारत में कब उपलब्ध हो पाएगी.
3. फाइज़र- बीएनटी 162बी2
ऐसे समय जब दुनिया किसी वैक्सीन की ख़बर सुनने को बेचैन थी, दिग्गज अमेरिकी दवा कंपनी फ़ाइज़र और उसकी जर्मन साझीदार बायोएनटेक ने उस समय सनसनी फैला दी, जब उन्होंने इस महीने ऐलान किया कि उनकी वैक्सीन कैंडिडेट बीएनटी 162बी2 ने- जो एक एमआरएनए वैक्सीन भी है- क्लीनिकल ट्रायल डेटा के अंतिम विश्लेषण में, 95 प्रतिशत असर दिखाया था.
मौजूदा अनुमानों के आधार पर, कंपनी को उम्मीद है कि वो दुनिया भर में, वैक्सीन के 2020 में 5 मिलियन डोज़ और 2021 में 1.3 बिलियन डोज़ तक का उत्पादन कर सकती है.
लेकिन, अभी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट नहीं है कि ये वैक्सीन भारत कब पहुंचेगी- इसे माइनस 80 से माइनस 90 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखने की ज़रूरत की वजह से, इसके ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज को लेकर चिंता ज़ाहिर की जा रही है.
4. रूस – स्पुतनिक 5
अगस्त में, स्पुतनिक 5, जिसे रूसी सरकार के गमालेया सेंटर, और रशियन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट फंड (रूस के सॉवरेन वेल्थ फंड) ने मिलकर विकसित किया था, रजिस्टर होने वाली दुनिया की सबसे पहली कोविड वैक्सीन बनी.
पहले अंतरिम विश्लेषण के बाद निर्माताओं ने कहा कि वैक्सीन कोविड रोकने में 92 प्रतिशत प्रभावी पाई गई. कोई अनपेक्षित प्रतिकूल प्रभाव देखने को नहीं मिला. वैक्सीन दिए जाने वाले कुछ लोगों पर, कुछ देर के लिए विपरीत प्रभाव हुए, जैसे इंजेक्शन की जगह पर दर्द, और बुख़ार, कमज़ोरी, थकान और सरदर्द जैसे, फ्लू की तरह के लक्षण.
भारत और रूस की सरकारें जल्द से जल्द, भारत में क्लीनिकल ट्रायल करने के लिए सहयोग कर रही हैं. हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डीज़ की लैबोरेटरियों को, इस दिशा में एक छोटे ट्रायल की मंज़ूरी मिली है.
अंतर्राष्ट्रीय साझीदारों के साथ आरडीआईएफ के मौजूदा समझौतों की बदौलत, रूस के बाहर स्पुतनिक 5 के 50 करोड़ डोज़ हर साल बनाए जा सकेंगे.
अभी तक स्पष्ट नहीं है कि इस वैक्सीन की क़ीमत कितनी होगी.
5. भारत बायोटेक – कोवैक्सिन
भारत बायोटेक की स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन- कोवैक्सिन, आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के साथ मिलकर विकसित की गई है. वैक्सीन के पहले और दूसरे दौर के क्लीनिकल ट्रायल्स पूरे हो चुके हैं, और कंपनी अब तीसरा दौर शुरू करने जा रही है.
ये वैक्सीन 2021 से पहले उपलब्ध नहीं होगी, लेकिन भारत बायोटेक के एमडी डॉ कृष्णा एला का ये कहते हुए हवाला दिया गया है, कि इसकी लागत ‘पानी की एक बोतल से कम’ होगी. वैक्सीन की उत्पत्ति और सस्ती वैक्सीन्स बनाने के, कंपनी के रिकॉर्ड को लेकर काफी उत्साह है, लेकिन इसकी संभावना कम ही है कि ये भारत में, सबसे पहले उपलब्ध हो पाएगी.
हरियाणा मंत्री अनिल विज ने शुक्रवार को, वैक्सीन का पहला ट्रायल डोज़ लिया. कोवैक्सिन ट्रायल के पहले दौर में, एक ट्रायल प्रतिभागी के साथ एक प्रतिकूल घटना हुई, लेकिन कंपनी का दावा है कि उसका संबंध वैक्सीन से नहीं था. मरीज़ को अब ठीक बताया जा रहा है.
6. ज़ाइडस कैडिला – ज़ाइकोव डी
भारत के बायोटेक्नोलजी विभाग के साथ मिलकर विकसित की गई ज़ाइकोव डी एक डीएनए वैक्सीन है, जिसके तीसरे दौर के ट्रायल शुरू होने वाले हैं. प्री-क्लीनिकल दौर में पाया गया कि वैक्सीन ने, चूहे, गिनी पिग्स और ख़रगोश जैसे बहुत से जानवरों में, बहुत ताकतवर इम्यून रेस्पॉन्स पैदा किया था.
वैक्सीन कैंडिडेट के लिए रिपीट डोज़ टॉक्सीकॉलजी स्टडीज़ में कोई सुरक्षा चिंताएं नहीं देखी गईं, जिन्हें इंट्रा-मस्कुलर और इंट्रा-डर्मल दोनों तरीक़ों से दिया गया था. ख़रगोशों में, इंसानों के लिए सोची गई ख़ुराक का तीन गुना डोज़ भी, सुरक्षित, अच्छी तरह सहन किया हुआ और प्रतिरक्षाजनक पाया गया.
अगर तीसरे दौर के ट्रायल्स के नतीजे अपेक्षा के मुताबिक़ रहते हैं, तो वैक्सीन के अगले साल मार्च तक लॉन्च होने की संभावना है. चूंकि ये बायोटेक्नॉलजी विभाग के ख़र्च पर विकसित हो रही है, इसलिए इसके सस्ता रहने की संभावना है.
इसकी प्रतिरक्षाजनकता की जांच चल रही है.
7. जेनोवा बायोफार्मास्यूटिकल्स की कोविड वैक्सीन
ये भारत की बिल्कुल अपनी एमआरएनए वैक्सीन है, जिसका मूल-फंड बायोटेक्नॉलजी विभाग से मिला है. वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल्स जल्द शुरू होने वाले हैं, और इसे उपलब्ध होने में कुछ समय लगेगा.
8.बायोलॉजिकल ई – एडी26.सीओवी2.एस
हैदराबाद स्थित बायोलॉजिकल ई लिमिटेड ने, वैक्सीन कैंडिडेट एडी26.सीओवी2.एस बनाने के लिए, जैनसेन फार्मास्यूटिकल्स के साथ एक समझौता किया है, जो जॉनसन एंड जॉनसन की सहायक कंपनी है
ये एक एडिनोवायरस वेक्टर पर आधारित है, लेकिन जो चीज़ इसे अनोखा बनाती है, वो ये है कि ऊपर लिखी दूसरी वैक्सीन्स के मुक़ाबले, इस वैक्सीन का एक ही डोज़ है. ये वैक्सीन फिलहाल फेज़ 1/2ए क्लीनिकल ट्रायल्स से गुज़र रही है (2ए ट्रायल्स ख़ुराक की ज़रूरतों पर फोकस करते हैं, जबकि 2बी में असर टेस्ट किया जाता है.
‘टेक्नोलॉजी से कोई ख़ास फर्क़ नहीं’
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अलग-अलग वैक्सीन द्वारा अपनाई गई टेक्नोलॉजी से, नतीजे पर असर पड़ने की संभावना नहीं है. और वो नतीजा है मरीज़ों को इस बीमारी से सुरक्षा देना.
क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लौर में, गैस्ट्रोइंटेस्टिनल साइंसेज़ विभाग की प्रोफेसर डॉ गगनदीप कांग का कहना था कि तकनीक की अहमियत है लेकिन सिर्फ एक सीमित हद तक.
उन्होंने कहा, ‘सभी वैक्सीन्स का एक ही लक्ष्य है. और वो लक्ष्य ये है कि लोगों को बीमारी से बचाया जाए और संभव हो तो संक्रमण से सुरक्षित किया जाए. प्लेटफॉर्म से फर्क़ नहीं पड़ता लेकिन इससे तय होता है कि वैक्सीन कैसे काम करती है, सिस्टम में कैसे फिट होती है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘एक निष्क्रिय की हुई वैक्सीन, रेप्लिकेटिंग वैक्सीन से अलग होती है. बाद वाली में- चाहे वो रेप्लिकेटिंग निष्क्रिय की हुई सार्स-सीओवी2 वैक्सीन हो या कोई दोहराने वाला वायरल वेक्टर हो- उसमें वैक्सीन का एक ही डोज़ होता है. अन्य के लिए आपको एक से अधिक डोज़ लेना होगा’.
‘अगर आप सेलुलर इम्यून रेस्पॉन्स को, किसी ख़ास दिशा में ले जाना चाहते हैं…तो वो प्लेटफॉर्म से निर्धारित हो सकता है. दूसरा पहलू ये है कि प्लेटफॉर्म वैक्सीन को स्टोर करने और उसे वितरित करने की हमारी क्षमता को तय करता है’.
एक्सपर्ट्स के बीच अभी तक के प्रकाशित नतीजों को लेकर, एक सतर्क आशावाद है. डॉ रेड्डी ने कहा, ‘ये अलग अलग निर्माताओं की नई रिलीज़ हैं. हमने अभी वैज्ञानिक पत्रिकाओं में ये नतीजे नहीं देखे हैं, और ये अंतरिम नतीजे हैं. इन शानदार नतीजों को देखकर हम आशावादी हो सकते हैं, लेकिन हमें जोश में कुछ ज़्यादा ही उत्साहित नहीं हो जाना चाहिए, क्योंकि इन्हें अभी वैज्ञानिक जांच और विनियामक मूल्यांकन से गुजरना है’.
‘लेकिन, इससे हमें उम्मीद बंधती है कि हो सकता है कि पिछले कुछ प्रयासों के मुक़ाबले, कुछ ज़्यादा कामयाबी देखने को मिल सकती है’.
समय सीमाएं
दुनिया के बहुत से देश पहले से ही वैक्सीन के स्टॉक ख़रीद रहे हैं, लेकिन भारत अभी इंतज़ार करो-और-देखो की राह पर चल रहा है. फिर भी सरकार ने वितरण की एक रणनीति तैयार की है जिसमें डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लगाने में प्राथमिकता दी जाएगी.
ऐसे में, जब भारत टीकाकरण के लिए कमर कस रहा है, मुख्य मुद्दा होगा वैक्सीन की उपलब्धता, इसे देने का तरीक़ा, और भंडारण की ज़रूरतें.
इसी महीने, एम्स निदेशक डॉ रण्दीप गुलेरिया ने कहा, कि कोविड टीकाकरण 2022 तक चलेगा. डॉ कांग ने भी ये कहते हुए सहमति जताई कि एक आम नागरिक जो किसी प्राथमिकता समूह में नहीं है, वास्तविक रूप से 2021 के बाद ही वैक्सीन की उम्मीद कर सकता है.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम वैक्सीन के सभी प्राथमिकता समूहों को देखें, स्वास्थ्यकर्मी, बुज़ुर्ग, वो लोग जिन्हें अन्य बीमारियां भी हैं, तो ये किसी भी देश की आबादी का क़रीब 30 प्रतिशत होते हैं. भारत में ये संख्या क़रीब 40 करोड़ बैठती है’.
‘इसलिए अगर हम अगले साल 80 करोड़ से अधिक डोज़ देते हैं…तो मैं डॉ गुलेरिया से सहमत हूं, हम 2022 की बात कर रहे होंगे, लेकिन जब तक हमारे पास कोई लाइसेंसशुदा उत्पाद आ नहीं जाता, तब तक कुछ कहना मुश्किल है’.
‘वैक्सीन्स इसका अंत नहीं हैं’
इसी महीने विश्व संवास्थ्य संगठन ने कहा कि केवल वैक्सीन्स से महामारी का अंत नहीं होगा.
डॉ. रेड्डी ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किए. ‘हमें नहीं मालूम कि सुरक्षा की अवधि कितनी लंबी होगी और ये भी नहीं पता कि क्या टीका दिए गए लोगों में भी (संक्रमण का) दूसरा चक्र शुरू हो जाएगा.
उन्होंने आगे कहा, ‘हम नहीं जानते कि आबादी के स्तर पर अति-संवेदनशीलता कितनी है. हमें म्यूटेंट स्ट्रेन्स के बारे में भी पता नहीं है. दुनिया भर में वैक्सीन के वितरण में अगर नाइंसाफी होगी, तो कुछ लोगों को वैक्सीन पहले मिल जाएगी और कुछ को बाद में मिलेगी. जिन लोगों को टीके बाद में लगे होंगे, वो ऐसे मुल्कों में जा सकते हैं, जहां ये पहले लग चुके हैं, और अगर इम्यूनिटी एक-दो साल की है, तो ये चक्र फिर से शुरू हो सकता है.
‘इसके अलावा, वैक्सीन्स वायरस को नाक में बने रहने से नहीं रोकतीं और लोग इन्हें फिर भी फैला सकते हैं. यही वजह है कि जन स्वास्थ्य के उपाय किसी हद तक जारी रखने होंगे, जब तक कि ये भूत पूरी दुनिया से ग़ायब नहीं हो जाता’.
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