नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने संभवत: अगले साल बाजार में आ जाने वाली कोविड-19 वैक्सीन के लिए जमीनी स्तर पर तैयारियों के क्रम में उपलब्ध वैक्सीनेटर की संख्या का जायजा लेने के लिए निजी क्षेत्र से संपर्क साधा है.
सरकार की योजना के मुताबिक अगर पहले चरण में तीन करोड़ डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों का टीकाकरण होता है तो यह सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) के तहत काम कर रहे करीब 70,000 वैक्सीनेटर पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है, जो अभी हर साल जन्म लेने वाले 2.64 बच्चों और मांओं को 11 टीके लगाए जाने के काम में लगे हैं.
दिप्रिंट ने पूर्व में जानकारी दी थी कि मोदी सरकार ने कोविड वैक्सीन उपलब्ध होते ही इसको लगाने की व्यवस्था करने के लिए उपलब्ध स्वास्थ्यकर्मियों का डेटाबेस तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘कोविड-19 वैक्सीन के प्रबंधन से संबंधित नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप फिक्की और सीआईआई के संपर्क में है ताकि यह पता लगाया जा सके कि इन दोनों संगठनों से जुड़े अस्पताल/अस्पताल चेन में कितने वैक्सीनेटर उपलब्ध हैं.’
फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) और कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) स्वास्थ्य और फार्मा समेत विभिन्न उद्योग क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘हमारे पास कितने वैक्सीनेटर उपलब्ध हो सकते हैं, यह पता लगाने के लिए हम अलग से भी उन कॉर्पोरेट अस्पताल चेन से संपर्क कर रहे हैं जो फिक्की या सीआईआई का हिस्सा नहीं हैं. हमने उन प्रशिक्षुओं की संख्या भी पूछी है जो उन्हें हर साल मिलते हैं जिन्हें टीकाकरण के कार्य के लिए अलग किया जा सकता है. हम नए वैक्सीनेटर तैयार करने के लिए डिजिटल आईगॉट प्लेटफॉर्म का उपयोग करने पर भी विचार कर रहे हैं, जिन्हें एक दो फिजिकल सेशन के बाद प्रशिक्षित करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं होगा.’
आईगॉट या इंटीग्रेटेड गवर्नमेंट ऑनलाइन ट्रेनिंग पोर्टल अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को महामारी से निपटने में दक्ष बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. पोर्टल ने महामारी फैलने के बाद से जरूरत के मुताबिक नया वर्कफोर्स तैयार करने के लिए कई नए पाठ्यक्रम जोड़े हैं और साथ ही यह सुनिश्चित कर रहा है कि आवाजाही सीमित होना संसाधनों के पूरे उपयोग में किसी तरह बाधा न बने.
अभी मां और बच्चों का टीकाकरण सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम), महिला हेल्थ विजिटर (एएनएम की सुपरवाइजर), नर्सों और डॉक्टरों द्वारा किया जाता है. हालांकि, सरकार के भीतर कार्यबल को यूआईपी से इतर किसी कार्य में लगाने को लेकर चिंताएं भी हैं क्योंकि लॉकडाउन पाबंदियों के कारण कई राज्यों में टीकाकरण का काम प्रभावित हुआ है और लंबे समय तक इसके बाधित होने पर आने वाले समय में बच्चों की मृत्यु दर बढ़ सकती है.
अक्टूबर में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लिखे पत्र में सरकार ने कहा था कि कोविड वैक्सीन के प्रबंधन में एक साल तक का समय लग सकता है.
कोविड पर विशेषज्ञ समूह के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘सैद्धांतिक रूप से हर डॉक्टर, नर्स, डेंटिस्ट तक एक वैक्सीनेटर है. इसलिए, प्रबंधन स्तर पर कौशल चिंता का विषय कतई नहीं है. यह उपलब्ध संख्या का मामला है क्योंकि मौजूदा वैक्सीनेटर कोविड के काम में लगा देने से न केवल शिशुओं के टीकाकरण बल्कि नियमित प्राथमिक देखभाल, टीबी का इलाज, स्वास्थ्य एवं जनकल्याण केंद्रों का कामकाज भी बाधित हो जाएगा. यही वह चीज है जो हम नहीं चाहते क्योंकि हमने पहले महामारी के शुरुआती चरण में ही, विशेष रूप से लॉकडाउन के दौरान नियमित स्वास्थ्य सेवा में काफी अड़चनें देखी हैं.’
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‘फाइजर के साथ अब तक कोई बातचीत नहीं’
यद्यपि फार्मा दिग्गज फाइजर को उम्मीद है कि उसका एमआरएनए आधारित वैक्सीन कैंडीडेट बीएनटी162बी2 भारत में कोविड के खिलाफ जंग में कारगर विकल्प के तौर पर उभरेगा, लेकिन सरकार इस हफ्ते के शुरू में कंपनी की ओर से की गई इस घोषणा से बहुत प्रभावित नजर नहीं आ रही कि उसके टीके ने अंतरिम विश्लेषण में 90% प्रभावकारिता दिखाई है.
कोविड वैक्सीन को लेकर जारी वार्ताओं और विचार-विमर्श में गहराई से जुड़े स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘जैसा मंगलवार को कोविड ब्रीफिंग के दौरान स्पष्ट किया गया था भारत सरकार उन कंपनियों के संपर्क में है, जो अब तक कुछ नियामक मंजूरियां, खासकर अपने देश में, हासिल करने में सफल रही हैं. फाइजर के पास अभी ऐसा नहीं है, इसलिए हम इन सवालों को लेकर परेशान ही क्यों हो रहे हैं कि हमारी कोल्ड चेन में इस वैक्सीन के लिए जरूरी माइनस 80 डिग्री तापमान की क्षमता है या नहीं.’
अधिकारी ने कहा, ‘हमें अभी उनसे बात क्यों करें चाहिए जबकि उन्होंने अपने देश में ही कोई नियामक मंजूरी हासिल नहीं की है? साफ बात है कि हम भारतीय कंपनियों जैसे जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल को लेकर उत्साहित हैं, जो एमआरएनए आधारित वैक्सीन पर ही काम कर रही है. भारत बायोटेक, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और जायडस कैडिला का भी अलग से उल्लेख करने की जरूरत नहीं है.’
इन चार कंपनियों के अलावा सरकार हैदराबाद स्थित एक कंपनी बायोलॉजिकल-ई के संपर्क में भी है.
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