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Thursday, 21 November, 2024
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सचिन वाजे- शोहरत के लोभी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अर्णब मामले से फिर सुर्ख़ियों में आए

वाजे, जो अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार करने वाली टीम का हिस्सा थे, एक बार शिवसेना में भी शामिल हो गए थे, और उन्होंने हुसैन ज़ैदी और एड्रियन लेवी जैसे मशहूर लेखकों के लिए, रिसर्च में भी योगदान दिया है.

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मुम्बई: 2011 में मुम्बई पुलिस के कुछ बदनाम शार्प शूटर्स में से एक सचिन वाजे, जो कुछ समय के लिए शिवसेना में शामिल हो गए थे, ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनके हर शिकार को जाना ही चाहिए था, और उन्होंने ये सब पैसे के लिए नहीं, बल्कि पहचान के लिए किया.

घाटकोपर बम धमाके के संदिग्ध ख़्वाजा यूनुस की कथित हिरासत में हत्या के आरोप में, निलंबित किए जाने के सात साल बाद, दि गार्जियन को दिए एक इंटरव्यू में वाजे ने कहा, ‘ये मेरे ख़ून में है, मैं एक पुलिस वाला हूं. मैंने ये पैसे के लिए नहीं किया. मैंने जो किया वो शोहरत, पहचान और लोगों की सेवा के लिए था’.

इंटरव्यू के नौ साल बाद वाजे, जिनके लिए कहा जाता है कि अपने करियर में उन्होंने 63 लोगों की हत्या की थी, फिर से एक्शन में हैं, फिर से सुर्ख़ियों में हैं, और सुनिश्चित कर रहे हैं कि उन्हें वो शोहरत मिले जो वो चाहते हैं.

असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर मुम्बई पुलिस के सबसे हाई प्रोफाइल, और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले- टेलीविज़न रेटिंग प्वॉइंट्स (टीआरपी) में कथित धांधलेबाज़ी, जिसमें अर्णब गोस्वामी का स्थापित किया हुआ रिपब्लिक टीवी शामिल है. इसके अलावा बुद्धवार को, वाजे उस टीम का भी हिस्सा थे, जो 2018 के इंटीरियर डिज़ाइनर, अन्वय नायक की ख़ुदकुशी मामले में, गोस्वामी को गिरफ्तार करने उनके वर्ली आवास पर गई थी.


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एनकाउंटर स्पेशलिस्ट और शिवसेना सदस्य

1990 बैच के स्टेट काडर अधिकारी वाजे उन पुलिस कर्मियों में शामिल थे, जिनका टाइम मैगज़ीन ने एक बार, ‘मुम्बई के डर्टी हैरीज़’ के तौर पर ज़िक्र किया था.

इन ‘डर्टी हैरीज़’ में अन्य के अलावा प्रदीप शर्मा, दया नायक, रवींद्र आंगड़े, प्रफुल भोसले, और विजय सालस्कर जैसे नाम शामिल थे, जो 1990 के दशक में बहुत चर्चित हो गए थे. ये एनकाउंटर स्पेशलिस्ट उस समय के आसपास उभर कर सामने आए थे, जब शिवसेना-भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) गठबंधन सत्ता में था, और मुम्बई के रईस और विशिष्ट लोगों- बिल्डर्स, बॉलीवुड एक्टर्स और व्यवसाइयों- को धमकी और फिरौती के लिए आने वाली कॉल्स बढ़ रहीं थीं.

मौजूदा मुम्बई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह, 1990 के दशक में, मुम्बई में उपायुक्त पुलिस (डीसीपी) थे, जब तथाकथित अंडरवर्ल्ड शहर में सबसे अधिक सक्रिय था, जिसकी अगुवाई दाऊद इब्राहिम कास्कर, अरुण गावली और राजेंद्र निखलजे उर्फ छोटा राजन जैसे लोग कर रहे थे.

विजय सालस्कर, जिनकी 2008 के आतंकी हमले में मौत हो गई थी, और प्रफुल भोसले जैसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट, जो सीधे सिंह के अंतर्गत काम करते थे, वो प्रदीप शर्मा जैसे शार्पशूटर्स के लिए भी काम करते थे, जिन्हें वाजे का गुरू माना जाता है.

एक रिटायर्ड सीनियर पुलिस ऑफिसर ने कहा, ‘शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे हमेशा इस तरह के एनकाउंटर स्पेशलिस्टों का समर्थन करते थे, इस बारे में हमेशा मुखर रहते थे. उन्होंने आगे कहा, ‘इन अधिकारियों की तरक़्क़ी शिवसेना सरकार के अंतर्गत हुई’.

वाजे को 2004 में पुलिस बल से निलंबित कर दिया गया, और ख़्वाजा यूनुस कस्टोडियल डेथ मामले में, उनपर हत्या और सबूत मिटाने के आरोपों के तहत मुक़दमा चल रहा है. बहाल होने की बार बार कोशिश करने के बाद, 2007 में उन्होंने पुलिस बल से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उनका इस्तीफा मंज़ूर नहीं किया गया.

उसके अगले साल वाजे उस समय औपचारिक रूप से शिवसेना में शामिल हो गए, जो पार्टी का साल का सबसे अहम आयोजन होता है- सालाना दशहरा रैली.

एक शिवसेना नेता, जो वाजे के आसपास ही शिवसेना में शामिल हुए थे, ने दिप्रिंट को बताया, ‘सचिन वाजे औपचारिक रूप से एक शिवसेना सदस्य थे, लेकिन वो कभी पार्टी के किसी कार्यक्रम या आयोजन में दिखाई नहीं पड़ते थे. वो पार्टी में सक्रिय नहीं थे. उन्होंने कभी औपचारिक रूप से तो नहीं छोड़ा, लेकिन वो बस साए में चले गए’.


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परमबीर सिंह के अंतर्गत बहाली

इस साल जून में, सिंह की अगुवाई में एक रिव्यू कमेटी ने, वाजे की पुलिस बल में बहाली को मंज़ूरी दे दी, और एक दिन बाद उनकी तैनाती मुम्बई पुलिस की क्राइम ब्रांच में हो गई.

वाजे उन 18 निलंबित पुलिसकर्मियों में थे, जिनमें तीन सिपाही भी शामिल थे, जिनपर ख्वाजा यूनुस केस में मुक़दमा चल रहा था, उन्हें कमेटी ने ये दलील देते हुए बहाल कर दिया, बहुत से पुलिस कर्मियों के कोविड पॉज़िटिव होने की वजह से, उनकी बहुत कमी पैदा हो गई है. दया नायक और प्रदीप शर्मा के बाद, वाजे ऐसे तीसरे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हैं, जो बल में वापस आने में कामयाब हुए हैं.

मुम्बई के एक पूर्व पुलिस आयुक्त ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसा लगता है कि किसी कारण से नियुक्ति प्राधिकारी ने वाजे के इस्तीफे पर फैसला नहीं लिया, और तकनीकी रूप से अगर कोई इस्तीफा मंज़ूर नहीं हुआ है, तो उस व्यक्ति को वापस लिया जा सकता है. वाजे का सियासी झुकाव भी वही है, जो मौजूदा सरकार का है, और ऐसा लगता है कि वो सरकार के चहेते हैं’.

उन्होंने आगे कहा कि ऐसी मिसालें पहले भी हैं, जिनमें एक तो एक महानिदेशक रैंक के अधिकारी की है.

16 सालों में जिनमें वाजे निलंबित रहे, वो ख़बरों में बने रहे, किताबें लिखते रहे, और हुसैन ज़ैदी, जेसन बर्क, और एड्रियन लेवी जैसे मशहूर लेखकों के रिसर्च के काम में योगदान देते रहे.

उन्होंने ख़ुद किताबें लिखीं जैसे कि मराठी भाषा में जिनकुन हरलेली कढ़ाई जिसमें 26/11 के मुम्बई हमलों का ब्यौरा दिया गया है; 2012 के शीना बोरा मर्डर केस पर लिखी शीना बोरा- द मर्डर दैट शुक इंडिया; और द स्काउट: द डेफिनिटिव अकाउंट ऑफ डेविड हैडली एंड द मुम्बई अटैक्स.


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(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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2 टिप्पणी

  1. Ek paid unofficial Bjp worker. Kya pata channel bhi bhakto ne chanda de ke open kiya hoo.

    Sensational journalist ka jail jane se kaun sa Pahad toot padega he was not like a Ravish kumar or Saint.

    India or Indian don’t want this kind of journalism or journalist also.

  2. सोनिया के लिये बैटिंग करने वाले निष्पक्ष पत्रकार??

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