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Wednesday, 4 December, 2024
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अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी के पीछे उद्धव 2.0 के उभरने का संदेश छिपा है

महाराष्ट्र पुलिस द्वारा अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी मोदी-शाह के लिए उद्धव ठाकरे का स्पष्ट संदेश है, ‘मैं बिना मुकाबले के हार नहीं मानूंगा.’

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आत्महत्या के एक मामले में गुण-दोषों पर विचार किए बिना रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी एक चौंकाने वाला राजनीतिक घटनाक्रम है. हाल तक तो यह अकल्पनीय ही रहा होगा. यह उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास अघाडी सरकार का बेहद साहसिक कदम हैं, जिसे राजनीति के चश्मे से देखा जाना जरूरी है.

भूल जाइये कि अर्णब गोस्वामी को कथित तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार का वरदहस्त हासिल है या किस तरह कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता तुरंत उनके समर्थन में उतर आए थे. इसके बिना भी अर्णब गोस्वामी बेहद ताकतवर इंसान हैं. वह भारत में हंगामा खड़ा करने वालों के सरदार हैं. वह हर रात लोगों को उकसाते हैं. अर्णब गोस्वामी से ज्यादा कोई भी पत्रकार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार के पतन के लिए जिम्मेदार नहीं था. एक ऐसे देश जहां राजनेताओं को अपनी नजरों के सामने बड़े पैमाने पर होने वाले दंगों के लिए भी बहुत ज्यादा जवाबदेही का सामना नहीं करना पड़ता, गोस्वामी की गिरफ्तारी एक बड़े राजनीतिक संदेश और दूरगामी नतीजों के रूप में सामने आती है.

एमवीए के खिलाफ भाजपा का मुख्य हथियार बेअसर

देवेंद्र फडणवीस को सुबह 7.50 बजे शपथ ग्रहण कराने समेत भाजपा की हरसंभव कवायद के बावजूद जिस अंदाज में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) अस्तित्व में आया, उससे भाजपा की खासी किरकिरी हुई थी. निस्संदेह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पार्टी उद्धव सरकार गिराने की कोशिशें करती रही है, जैसे उसने मध्य प्रदेश और कर्नाटक में विपक्ष की सरकारों को गिराया और राजस्थान में भी ऐसा करने के करीब पहुंच गई थी.

मुंबई में एमवीए सरकार को गैर-वैधानिक करार देने के भाजपा के प्रयासों में अर्णब गोस्वामी अहम खिलाड़ी की भूमिका निभा रहे थे. और अब गोस्वामी की गिरफ्तारी के साथ हम कह सकते हैं कि भाजपा का यह दांव उलटा पड़ गया है.

16 अप्रैल को पालघर में दो साधुओं और उनके ड्राइवर को पीटकर मार डाला गया था. भाजपा नेताओं, भाजपा-समर्थक सोशल मीडिया योद्धाओं और भाजपा-समर्थक न्यूज मीडिया सबने घटना को सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश की, किसी न किसी तरह इसे मुस्लिम एंगल पर मोड़ने के प्रयास किए गए. इस सबका नेतृत्व अर्णब गोस्वामी कर रहे थे.

उद्धव 2.0

पिछले महीने की ही बात है जब मुंबई पुलिस ने पालघर की घटना को सांप्रदायिक रूप देने संबंधी टिप्पणी के लिए अर्णब गोस्वामी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. अप्रैल से अक्टूबर के बीच जो हुआ वो उद्धव ठाकरे के भद्र महानुभाव से योद्धा बन जाने की कहानी है जो केंद्र की मोदी सरकार से मोर्चा लेने को तैयार है. ऐसे में मुंबई के राजनीतिक हलकों में उन्हें उद्धव 2.0 कहा जा रहा है.

चूंकि चुनाव आयोग कोविड-19 महामारी के कारण मई में चुनाव नहीं करा रहा था, इसलिए उद्धव ठाकरे को शपथ ग्रहण के छह महीने के भीतर विधायक न बन पाने जैसी विकट स्थिति का सामना करना पड़ा. तब उन्हें ऐसा कराने के लिए प्रधानमंत्री को फोन करना पड़ा था.

उद्धव ठाकरे ने अगस्त में सोनिया गांधी के साथ विपक्षी मुख्यमंत्रियों की एक ऑनलाइन बैठक में कहा भी था कि अब समय आ गया कि विपक्ष यह तय कर ले कि उसे लड़ना है या फिर डरकर जीना है. उनके शब्द थे, ‘डरना है या लड़ना है.’

अंततः भाजपा भले ही उद्धव सरकार को गिराने में सफल हो जाए मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि वह बिना लड़े हार नहीं मानने जा रहे हैं. अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी में यही संदेश छिपा है.

अर्णब का गलत आकलन

जगजाहिर है कि अर्णब गोस्वामी ने दिल्ली के बजाये मुंबई में अपना ठिकाना बनाने का फैसला किया था क्योंकि वह लुटियंस दिल्ली के ‘भ्रष्ट’ प्रभाव से दूर रहना चाहते थे. वह दिल्ली में राजनेताओं के साथ नजदीकी नहीं बढ़ाना चाहते थे ताकि कहीं वह मुंबई में सत्ता के गलियारों में न उलझ जाएं. यह विडंबना ही है कि उन्होंने खुद को मुंबई की सत्ता की लड़ाई में उलझा लिया है.

गोस्वामी कुछ समय से उद्धव ठाकरे को लगातार चुनौती दे रहे थे. पालघर की घटना के बाद बांद्रा में प्रवासी मजदूरों ने जब विरोध प्रदर्शन किया थो तब भी अर्णब गोस्वामी ने इसे एक नजदीकी मस्जिद से जोड़कर घटना को सांप्रदायिकता का रंग देने का प्रयास किया था. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में अर्णब गोस्वामी ने आदित्य ठाकरे के शामिल होने की दुर्भावनापूर्ण और आधारहीन अफवाहों का हवाला देते हुए इसमें शिवसेना की भूमिका बताने की पूरी कोशिश की. किसी भी विपक्षी नेता से ज्यादा तीखे अंदाज में बोलते हुए गोस्वामी के निशाने पर सीधे तौर पर उद्धव ठाकरे होते थे, ‘आप अपनी कुर्सी गंवा देंगे.’


यह भी पढ़ें : अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी फ्री स्पीच और राजनीतिक प्रतिशोध पर दक्षिणपंथी पाखंड को उजागर करती है


अर्णब गोस्वामी को शायद यह लग रहा था कि महाराष्ट्र सरकार उन्हें छू भी नहीं पाएगी. जेल भेजना तो बहुत दूर की बात है. दिल्ली से उन्हें पूरा समर्थन मिल रहा था. उससे भी ज्यादा उद्धव सरकार बदले की कार्रवाई करती न दिखने के लिए भी उन्हें गिरफ्तार नहीं कराएगी. इसलिए तमाम सवाल उठाते रहे. ऐसा लगता है कि उनका आकलन यह था कि उद्धव अगर अर्णब के खिलाफ कुछ नहीं करते तो कमजोर दिखेंगे और अगर कुछ करते हैं तो आक्रामक नजर आएंगे. भारत के सबसे निर्भीक टीवी न्यूज एंकर को जेल भेजकर उद्धव ने वही किया जो अर्णब को असंभव लग रहा था.

पलटवार के लिए तैयार

उद्धव की तरफ से मोदी को यही संदेश है, मेरे साथ खिलवाड़ बंद करो. यह संदेश इस हद तक साहसिक है कि मोदी सरकार को प्रतिक्रिया के लिए विवश होना पड़ा. अर्णब गोस्वामी को बचाने के लिए भाजपा न केवल किसी भी हद तक जा सकती है बल्कि केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के बीच दूरगामी असर डालने वाले रिश्तों को भी बिगाड़ सकती है. क्या उद्धव ठाकरे पलटवार से नहीं डरते? उन्होंने अपनी क्षमता से ज्यादा बड़ा कदम उठा लिया है?

उद्धव सरकार मराठी कार्ड खेलकर, पिछली भाजपा सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू कराकर और महाराष्ट्र में पार्टी को कमजोर करने के लिए भाजपा नेताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश करके इस पलटवार का जवाब देने को तैयार नजर आ रही है. दूसरे शब्दों में कहें तो महाराष्ट्र सरकार तमाम चुनौतियों से मोदी-शाह की पार्टी वाले अंदाज में ही निपट रही है.

मराठी ‘अस्मिता’

शिवसेना अर्णब गोस्वामी की छवि ऐसे बाहरी व्यक्ति के तौर पर बना रही है जो दिन-रात उद्धव ठाकरे को निशाना बनाकर मराठी गौरव को आहत कर रहा था. केंद्र सरकार एमवीए सरकार पर जितना दबाव बढ़ाएगी शिवसेना के लिए मराठी अस्मिता का कार्ड उतना ही मजबूत होगा, जैसे कानूनी चुनौतियों या दिल्ली में मीडिया की आलोचना का सामना करने की स्थिति आने पर नरेंद्र मोदी गुजराती ‘अस्मिता’ की बात करते रहे हैं.

यही कारण है कि महाराष्ट्र के पत्रकार संघों ने यह कहते हुए अर्णब की गिरफ्तारी की निंदा करने से इनकार कर दिया है कि उन्हें ऐसे मामले में गिरफ्तार किया गया है, जिसका पत्रकारिता या फ्री स्पीच से कोई लेना-देना नहीं है. यहां तक कि सुशांत सिंह राजपूत मामले में आदित्य ठाकरे को बदनाम करने के प्रयासों का जवाब भी उद्धव ठाकरे ने मराठी कार्ड खेलकर दिया, उन्होंने कहा, ‘बिहार के बेटे के लिए न्याय की दुहाई देने वाले महाराष्ट्र के बेटे की हत्या में लिप्त हैं.’

उत्तराखंड के भगत सिंह कोश्यारी से लेकर हिमाचल प्रदेश की कंगना रनौत तक उद्धव ठाकरे पर निशाना साधने वाला हर कोई शिवसेना के लिए, मराठी अस्मिता को नुकसान पहुंचाने में जुटे बाहरी लोग हैं.

जनाधार वाले नेताओं पर नजर

शिवसेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) महाराष्ट्र में भाजपा को कमजोर करने के लिए अलग रास्ते अपना रही हैं. भाजपा ने अपनी ब्राह्मण-बनिया वाली छवि मिटाने के लिए महाराष्ट्र में काफी शिद्दत से ओबीसी नेतृत्व को तैयार किया था, लेकिन फिर एक ब्राह्मण देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बना दिया. 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इसने एनसीपी को फायदा पहुंचाया. अब एनसीपी ने भाजपा के ओबीसी नेता एकनाथ खडसे, एक लेवा पटेल, को अपने पाले में कर लिया है. ऐसी अटकलें हैं कि शिवसेना पंकजा मुंडे के साथ बातचीत कर रही है. उद्धव ठाकरे और शरद पवार महाराष्ट्र में भाजपा के साथ वही कर रहे हैं, जो भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के साथ करती रही है: कुछ बड़े जनाधार वाले भाजपा नेताओं की सेंधमारी.

भ्रष्टाचार की जांच

उद्धव सरकार ने सूखाग्रस्त जिलों में भूजल स्तर बढ़ाने के लिए शुरू की गई देवेंद्र फडणवीस सरकार की फ्लैगशिप योजना में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया है और फडणवीस सरकार में कथित भर्ती घोटाले की जांच कराने का वादा भी किया है.

जब अर्णब जमानत पर बाहर होंगे…

क्या होगा है जब अर्णब गोस्वामी को जमानत मिल जाएगी, जो उन्हें अन्य लोगों की तुलना में कुछ जल्दी ही मिल सकती है, यह देखते हुए कि वह सबसे अच्छे वकीलों की सेवाएं ले सकते हैं जिन्हें भाजपा का सहयोग भी हासिल होगा. अर्णब गोस्वामी फिर अपने स्टूडियो जाएंगे और उद्धव सरकार के खिलाफ अपना एजेंडा शुरू कर देंगे. वह अब महाराष्ट्र में व्यावहारिक रूप से मुख्य विपक्षी नेता बन गए हैं.

ऐसा नहीं है कि अर्णब गोस्वामी पहले उद्धव ठाकरे पर हमला नहीं कर रहे थे. वह इससे ज्यादा और क्या सकते हैं क्योंकि वह तो पहले भी 24×7 यही कर रहे थे. एमवीए सरकार शायद यह उम्मीद कर रही होगी कि कुछ समय जेल की हवा खाकर अर्णब यह समझ जाएंगे कि क्या यह उपयुक्त है. अर्णब गोस्वामी के खिलाफ दर्ज मामलों का अंबार भी इसमें मददगार हो सकता है और महाराष्ट्र सरकार उन्हें बार-बार गिरफ्तार करा सकती है.

अर्णब के बिना रिपब्लिक

अर्णब गोस्वामी को एक ही दिन के लिए भी जेल में डालना रिपब्लिक को चोट पहुंचाने के उद्देश्य को पूरा करता है. अंग्रेजी और हिंदी दोनों चैनलों में अर्णब गोस्वामी ही आकर्षण का केंद्र हैं. अर्णब का चीखना-चिल्लाना ही है जो टीआरपी और इसके आधार पर विज्ञापन दिलाता है. अर्णब के जेल में रहने तक कोई प्राइम टाइम इंटरटेनमेंट नहीं होगा. इतनी सारी खबरों के बीच कोई भी अर्णब गोस्वामी की जगह पर किसी नीरस से पत्रकार को पीड़ित की भूमिका निभाते देखना पसंद करेगा? यह कहानी लोगों को बोर करेगी और कोई धांधली हो या नहीं, वैसे ही रिपब्लिक टीवी और रिपब्लिक भारत की रेटिंग गिर जाएगी.

उद्धव ठाकरे ने हाल में अपने दशहरा भाषण में भाजपा और मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला था. उन्होंने कहा, ‘एक साल हो गया है. जिस दिन मैं सीएम बना था, उसी दिन से कहा जा रहा था कि राज्य सरकार गिर हो जाएगी. मैं चुनौती देता हूं और कहता हूं कि अगर आपमें दम हैं तो ऐसा करके दिखाओ.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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