नई दिल्ली: विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली में बड़ी संख्या में अप्रामाणिक रैपिड एंटीजन जांच होने की वजह से ऐसे समय में कोविड-19 के मामलों में इजाफा होने की आशंका है, जब प्रदूषण बढ़ रहा है तथा त्योहारों के मौसम में बाजारों में भीड़ है.
वहीं, विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि आरटी-पीसीआर जांच बढ़ाने से बड़ी संख्या में संक्रमण के मामलों का पता लगाने में भी मदद मिली है, अन्यथा उनका पता ही नहीं चल पाता.
राष्ट्रीय राजधानी में देशभर की प्रवृत्ति के विपरीत पिछले कुछ दिन में कोविड-19 के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है. शुक्रवार को दिल्ली में संक्रमण के 5,891 नये मामले सामने आए.
फोर्टिस अस्पताल, वसंत कुंज की डॉ रिचा सरीन के मुताबिक, ‘अगर आरटी-पीसीआर जांच और बढ़ाई जाए, तो यह संख्या और भी भयावह होगी. मैं समझती हूं कि लोग खासतौर पर युवा घरों में बैठे-बैठे मानसिक रूप से थक गये हैं और लोगों से मिलना-जुलना चाहते हैं. लेकिन अधिक जिम्मेदार नागरिक होने के बजाय उन्होंने सारी सावधानियों और एहतियात को तिलांजलि दे दी हैं.’
जानेमाने फेफड़ा रोग विशेषज्ञ अरविंद कुमार ने कहा कि रैपिड एंटीजन जांच में सिर्फ 50 प्रतिशत जांच की रिपोर्ट ही सही आती है.
उन्होंने कहा, ‘रैपिड एंटीजन जांच का खतरा यह भी है कि अगर कोई व्यक्ति जिसे संक्रमण के लक्षण नहीं हैं, लेकिन वह संक्रमित है और जांच में उसके संक्रमित नहीं होने की पुष्टि हुई है तो उसे सही जानकारी नहीं मिल पाएगी और वह लोगों के बीच जाकर उन्हें भी संक्रमित कर सकता है.’
सर गंगाराम अस्पताल में सेवाएं दे रहे डॉ कुमार के अनुसार दिल्ली में अचानक से संक्रमण के मामलों में वृद्धि के कारणों में प्रदूषण, त्योहारों की वजह से सार्वजनिक स्थानों पर अधिक भीड़ और बाजारों, रेस्तरांओं तथा अन्य स्थानों पर लोगों का लापरवाह रवैया प्रमुख हैं.
दिल्ली सरकार ने अपनी दैनिक औसत जांच क्षमता को काफी बढ़ा दिया है और अगस्त में जहां रोजाना 18,000 जांच होती थीं, वहीं अक्टूबर में अब करीब 56,000 जांच की जा रही हैं. लेकिन इनमें से आरटी-पीसीआर जांच केवल करीब 28 प्रतिशत हैं.
अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक सुरनजीत चटर्जी ने कहा, ‘प्रदूषण, त्योहारों का मौसम और लोगों, खासकर युवाओं द्वारा दिशानिर्देशों का पालन करने में लापरवाही बरतना बहुत खतरनाक साबित हो सकता है.’