नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 के इलाज के लिये बगैर किसी मंजूरी के ही कथित रूप से रेमडेसिविर और फेवीपिराविर दवाओं के इस्तेमाल को लेकर दायर याचिका पर बृहस्पतिवार को केन्द्र से जवाब मांगा.
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने इस याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी किया और उसे चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया.
यह जनहित याचिका अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने दायर की है. याचिकाकर्ता ने विश्व स्वास्थ संगठन की 15 अक्टूबर की रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि कोरोना वायरस के लिये इन दवाओं को आधिकारिक रूप से कहीं भी नामित नहीं किया गया है.
पीठ ने कहा कि वह इस बारे में केन्द्र सरकार को सचेत करने जा रही है और इसीलिए उसे नोटिस जारी कर रही है.
इससे पहले, 16 सितंबर को न्यायालय ने नई दवायें और क्लिनिकल ट्रायल नियम, 2018 का उल्लेख करते हुये कहा था कि सरकार ने कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज के लिये इन दवाओं के इस्तेमाल की अनुमति दी है.
शीर्ष अदालत कोविड-19 के इलाज की इन दो दवाओं का कथित रूप से बगैर वैध लाइसेंस के ही उत्पादन और बिक्री करने वाली दस भारतीय दवा कंपनियों के खिलाफ सीबीआई द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने के लिये दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
रेमडेसिविर और फेवीपिराविर एंटी वायरल दवायें हैं और कोविड-19 के मरीजों के इलाज में इनकी उपयोगिता को लेकर चिकित्सा विशेषज्ञों में बहस छिड़ी हुयी है.
शर्मा ने जनहित याचिका दायर करके कोविड-19 के इलाज की इन दो दवाओं का कथित रूप से बगैर वैध लाइसेंस के ही उत्पादन और बिक्री करने वाली दस भारतीय दवा कंपनियों के खिलाफ सीबीआई द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध न्यायालय से किया था.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिये केद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन से वैध लाइसेंस के बगैर ही भारत में इन दवाओं का उत्पादन और बिक्री की जा रही है.
याचिका में कहा गया है कि इन दवाओं को कोविड-19 के मरीजों के लिये आज तक किसी भी देश ने प्रमाणित नहीं किया है.