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Friday, 22 November, 2024
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मोहन भागवत का दशहरा भाषण सुनें, फिर आप नहीं कहेंगे कि संघ के पास बौद्धिक सोच का अभाव है

भारत में मुख्यधारा का मीडिया आरएसएस की आलोचना और मखौल बनाने का आदी रहा है. लेकिन अब यह संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों को पहले पेज की खबर के तौर पर प्रकाशित कर रहा है.

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कल सुबह अखबारों ने मोहन राव भागवत के विजयादशमी संबोधन को पहले पेज पर जगह दी. यह न केवल अभूतपूर्व बदलाव बल्कि महत्वपूर्ण सफलता का लक्षण है. मुख्यधारा का मीडिया, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना और उपहास करने का खासा आदी रहा है. अब उसके सरसंघचालक के बयानों को हेडलाइन न्यूज की तरह छाप रहा है.

यह परिवर्तन क्यों और कैसे आया? इसका जवाब है राष्ट्र सेवा को लेकर आरएसएस के अटूट निश्चय, त्याग और तपस्या की गाथा. आरएसएस ने 25 अक्टूबर 2020 को विजयदशमी पर अपनी 95वीं वर्षगांठ मनाई. 1925 में नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित संघ ने दशकों के संघर्ष और विरोध के बाद आज भारतीय समाज और राज्यतंत्र में अहम स्थान हासिल कर लिया है.

भागवत का एक घंटे का भाषण व्यापक, गहन, समझ से परिपूर्ण हिन्दुत्व और भारत के भविष्य के साथ-साथ कोविड-19 महामारी, आर्थिक संकट, आंतरिक और बाहरी सुरक्षा, कृषि, चीन से खतरे जैसे विभिन्न और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को समेटे था. इसे सुनने के बाद कोई भी यह नहीं कहेगा कि संघ के पास बौद्धिक या राजनीतिक बैंडविड्थ की कमी है. संघ को मुख्यधारा में लाने और व्यापक प्रसार प्रदान करने में भागवत अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में ज्यादा सफल रहे हैं. हालांकि, इस साल का जश्न कोविड-19 के खतरे के कारण मात्र 50 श्रोताओं तक ही सीमित होने के बावजूद भागवत का भाषण बेहद शानदार और किसी राजमर्मज्ञ जैसा था.

आरएसएस 80 लाख से ज्यादा अनुमानित सदस्य संख्या के साथ न केवल दुनिया का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन है, बल्कि सैकड़ों संबंधित और सहायक संगठनों को अंकुरित, पोषित और स्थापित करने वालों में रहा है. भारत के सबसे बड़े श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के अलावा यह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का जनक भी है. लाखों एकल विद्यालय, सरस्वती शिशु मंदिर और पूर्ण-विद्या भारती स्कूल संघ द्वारा प्रायोजित और समर्थित हैं.

लेकिन इसकी सबसे बड़ी सफलता की परिचायक मौजूदा सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) है. अपने पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ की तरह भाजपा को भी प्रेरित, पोषित और प्रचारित करने के पीछे संघ ही रहा है. आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा के तमाम शीर्ष नेता ने अपनी शुरुआत संघ स्वयंसेवक के तौर पर ही की थी.


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पिछले दशहरे के बाद के प्रमुख राष्ट्रीय घटनाक्रम की समीक्षा करते हुए भागवत ने निर्धारित विधायी प्रक्रिया के पालन के साथ अनुच्छेद 370, राम जन्मभूमि के फैसले और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) आदि के कारण संवैधनिक बदलावों को सराहा. साथ ही उन लोगों की निंदा की जिन्होंने ‘गलत धारणा फैलाकर हमारे मुस्लिम भाइयों को गुमराह किया’ और साथ ही आंदोलनकारियों के कारण ‘सांप्रदायिक सौहार्द’ को पहुंचे नुकसान पर खेद जताया.

सामाजिक निर्माण

भागवत ने महामारी के कारण उपजी अभूतपूर्व चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने दावा किया कि इसने अप्रत्याशित रूप से सामान्य और सदियों पुराने भारतीय मूल्यों को सुदृढ़ किया है जैसे किसी के घर में प्रवेश करने से पहले जूते बाहर उतारना, घर लौटने पर हाथ-पैर धोना, और सबसे महत्वपूर्ण यह कि उन लोगों की मदद करना जो हमसे ज्यादा जरूरतमंद हैं.

भागवत के अनुसार, हालांकि कोविड-19 ने अर्थव्यवस्था को कमजोर किया है जिसकी वजह से लाखों लोगों को नौकरी जाने और अन्य संकटों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन भारत में इससे उबरने की सामाजिक और राजनीतिक क्षमता है. उन्होंने इस आपदा के दौरान डॉक्टरों, सरकारी अधिकारियों, पुलिस, स्वास्थ्यकर्मियों और नगर निगम के सफाईकर्मियों की तरफ से दिखाई गई राष्ट्र सेवा की भावना को जमकर सराहा.

उन्होंने हमें जागरूकता फैलाने और रोजमर्रा की कठिनाइयों से जूझ रहे लोगों की मदद करने में स्वैच्छिक संगठनों, जिसमें उनका अपना भी शामिल है, की अथक सेवाओं का स्मरण भी कराया. संपूर्ण भारतीय समाज ‘एकता और संवेदनशीलता का उदाहरण’ पेश करते हुए इस कार्य के लिए उठ खड़ा हुआ था.

भागवत ने हमें याद दिलाया कि कोविड-19 महामारी ने हमारी जीवनशैली और मूल्यों के लिए एक चुनौती भी पेश की है. यह खपत घटाने, गैर-जरूरी रीति-रिवाजों और प्रथाओं को छोड़ने और प्रकृति का सम्मान करने का समय है.

उन्होंने प्रत्येक परिवार से स्वस्थ और अधिक पर्यावरण अनुकूल आदतें अपनाने का आग्रह किया. महामारी के समय में समाज के सभी वर्गों के बीच ज्यादा से ज्यादा सेवा भाव, सहयोग और परस्पर की जरूरत है. हमारे लिए विशेष रूप से नौकरी जाने, स्कूल और कॉलेज बंद होने और अवसरों में आई कमी की क्षतिपूर्ति की आवश्यकता होगी, अन्यथा इससे अवसाद, निराशा या फिर अपराध तक में वृद्धि हो सकती है.

वैश्वीकरण से आत्मनिर्भरता की ओर

भागवत ने इस पर भी बात की कि एक अबूझ वायरस ने अपनी जड़ों की ओर लौटने और आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित किया है. अंधाधुंध वैश्वीकरण को दरकिनार करके हर देश अब अधिक से अधिक आत्मनिर्भरता की बात कर रहा है. लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधों के अप्रत्याशित फायदे पूरी दुनिया में साफ आबो-हवा के रूप में सामने हैं. वर्षों बाद भूले-बिसराए पशु-पक्षी नजर आने लगे हैं. कोविड-19 युग के बाद क्या दुनिया इससे सबक सीखेगी और उन्हें याद रखेगी या फिर अपने पुराने लापरवाह रवैये और आत्म-विनाश के रास्ते को ही अपनाएगी?

भागवत ने संबोधन का कुछ अंश चीन और उसके शांतिपूर्ण तरीके से आगे न बढ़ने पर केंद्रित किया. उन्होंने इस देश को बैर भाव रखने वाला और धौंसिया करार दिया जो न केवल हमारी सीमाओं, बल्कि दुनियाभर में अपना वर्चस्व कायम करने और कम ताकतवर देशों का दमन जमाने की कोशिश करता है. चीन के खिलाफ भारत का खड़ा होना एक महत्वपूर्ण संकेत है. अपने सभ्यतागत मूल्यों के कारण भारत की प्रवृत्ति युद्ध की नहीं बल्कि सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने की है. पर इसका मतलब यह नहीं है कि कोई हमें झुका या दबा सकता है. चीन का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए भारत को सिर्फ आर्थिक और सैन्य ही नहीं, बल्कि सभी क्षेत्रों में खुद को विकसित करना होगा.

आत्मनिर्भर भारत की बात करते हुए भागवत ने कहा कि वह हमेशा से ही स्वदेशी की वकालत करते रहे हैं. लेकिन क्या हमने स्वदेशी में ‘स्व’ को प्रतिबिंबित किया है? इस ‘स्व’ को सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों के रूप में भारतीय सभ्यता के उच्च मूल्यों में अंगीकार करना होगा. भागवत के अनुसार यही हिंदुत्व का सही मायने है. उन्होंने कहा कि जब भी हमें खुद को हिंदू कहने में शर्म महसूस करते हैं, भारत को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. लेकिन हिंदू एक संप्रदायवादी शब्द नहीं है. स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और श्री अरबिंदो का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसका मतलब है एक एकीकृत और आत्मनिर्भर समाज जो सामूहिक रूप से बेहतरी के लिए काम कर रहा हो.

उन्होंने कृषि क्षेत्र के बारे में भी कुछ बातें कीं, खासकर इस पर कि देसी खेती के तरीकों और खाद्यान्न की स्थानीय किस्मों को कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है. किसानों को बहुराष्ट्रीय निगमों के कुचक्र से बचाया जाना चाहिए और उनका समर्थन किया जाना चाहिए ताकि वे हताशा की ओर न बढ़ें.

राजनीतिक संवाद

राजनीति की ओर रुख करते हुए उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्द्धा लोकतंत्र का हिस्सा है. विपक्षी दल सत्तारूढ़ दलों को हटाने की कोशिश करेंगे. यह स्वाभाविक है. लेकिन शक्ति प्रदर्शन के इस खेल में हम कहां तक जा सकते हैं? उन्होंने कहा कि निष्पक्ष लड़ाई, विचारों और विचारधाराओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा एक बात है जिसमें लोग चुनाव नतीजों के तौर पर फैसला सुनाते हैं.


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लेकिन अंतर्विरोधी संघर्ष और खंडित समाज बनने की स्थिति लाने तक शोषण और मतभेदों को बढ़ाना बिल्कुल अलग बात है. ‘राष्ट्रविरोधी’ तत्वों ने जानबूझकर मतभेद और असंतोष के बीज बोकर समाज में द्वेषभाव बढ़ाया. वे आंतरिक संघर्ष चाहते थे, जो भारत को कमजोर करेगा. डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा ‘अराजकता के व्याकरण’ का विरोध किए जाने की याद दिलाकर उन्होंने नागरिकों से ‘भारत को तोड़ने’ वाली ताकतों से सावधान किया. शास्वत सतर्कता ही लोकतंत्र की कीमत है.

परिवार और सामुदायिक दोनों ही स्तरों पर ‘सभी के संग खुली बातचीत, चर्चा के माध्यम से आम सहमति बनाने, सहयोग और उसके बदले विश्वास बढ़ना सुनिश्चित करने’ पर जोर देते हुए उन्होंने संस्कृत का एक श्लोक उद्धृत किया-

समानो मन्त्रः सममम: समानी समानं मनः सहमित्तमेषाम् |

समानं मन्त्रममिमन्त्रये वः समानेन वो हमवषा जहोमम |

(अपनी बोली एक होने दें; अपने सुर एक करें. हमारे मन मनीषियों के विचारों के साथ एकाकार हों. एक समान उद्देश्य साझा कर, हम एक के रूप में पूजा करते हैं)

कुल मिलाकर भागवत ने दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने आरएसएस कार्यकर्ताओं और हिंदुत्व को मानने वालों को आश्वस्त किया कि कोविड-19 जैसी नई चुनौतियों और बदलते हालात के बावजूद संघ की विचारधारा और मूल धारणा बरकरार और प्रभावी है. एक बड़ी आबादी के समक्ष उन्होंने संघ को एक जिम्मेदार और लगनशील संगठन के रूप में चित्रित किया, जो एकता, स्थिरता, समृद्धि और इस सबसे ज्यादा नए भारत के सदा-उज्जवल भविष्य के लिए अथक मेहनत करा रहा है.

(लेखक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी, शिमला में प्रोफेसर और निदेशक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @makrandparanspe है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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4 टिप्पणी

  1. दुनिया भर के बनाये माल को हम खा रहें हैं, सरकार की आर्थिक नीतियों देश को गर्त में ले जा चुकी हैं, देश को बेचने पर लगा दिया गया हैं, शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार को कोई योजना दिखाई देती है क्या इस संघ के चेलों के पास? कोई आर्थिक विज़न दिखाई देता हैं क्या आपको? चापलूसी में झूठो का तड़का लगाने से क्या हासिल होगा? दुनिया का सबसे युवा देश चीन के सवा चार करोड़ फोन खरीद रहा हैं और चीन को कहाँ-कहाँ तक देश के उधोगो में घुसा दिया? इसका कुछ पता हैं भी क्या या बस लगी हैं चापलूसों की जमात ?

  2. भागवत को न आम आदमी के जीवन में बेरोजगारी, कंगाली और अनिश्चयता के बादल का कोई दुख है और न इनके निदान पर गंभीरता से विचार की जरूरत का अहसास।

  3. भारत की सीमाओं की रक्षा में सरकार की विफलताओं को छिपाने में भी भागवत ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। आज जब पूरे कश्मीर में धारा 370 को खत्म करने के परिणाम स्वरूप जनतंत्र के अंत की त्रासदी सबके सामने है, तब भी भागवत धारा 370 के संघ के पुराने मुद्दे की दुहाई देते हुए इस विवेकहीन कदम की सराहना कर रहे थे। उस कश्मीर को खोलो तो सही जिसे ताला लगाये बैठे हो , जिन्न बाहर निकलेगा, कश्मीर का शासन भारत के दुसरे राज्यों के नेता और अधिकारी कर रहे हैं , उसमे कश्मीरी कहाँ हैं? कोई दुसरे राज्य पर भी ऐसे ही शासन करने लगे तो ख़ुशी होगी या आत्मा दुखी! अभी हवा-हवाई बातें करने का वक्त है कर लीजियेगा, कश्मीर में बीजेपी के नेता आतंकी हमलों में जान गवा रहे हैं इसका पता भी हैं या भागवत गान गाने लग गए

  4. भागवत ने अपने भाषण में कई जगह भारत के प्रजातंत्र का जिक्र किया, राष्ट्र और समाज की एकता की बातें भी कीं, लेकिन उन्हें वास्तव में यदि इन चीजों की कोई चिंता होती तो वे मोदी सरकार की चरम अराजक, एकाधिकारवादी नीतियों और इसके निकम्मेपन के प्रति इस प्रकार चुप्पी नहीं साधे रहते। ED, CBI, CVC, IT, CIC, EC,RTI सही काम कर रहे हैं क्या? बात प्रजातंत्र की और व्यवहार तानाशाई वाला, इस न्यूज़ पोर्टल पर लिखने वाले शानदार पत्रकार कभी मुख्य मीडिया के शानदार पत्रकार थे जो आज सोशल मीडिया के फेसबुक, YOUTUBE जैसे प्लेटफोर्म पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, मीडिया में गुलाम बैठा दिए और हवाई वादें प्रजातंत्र के,

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