नई दिल्ली: बिहार की राजनीति को धन और बाहुबल के बोलबाले के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इसे बदलने के लिए राजनेताओं की एक नई नस्ल चुनाव मैदान में है. इन्हीं में दो 25 साल से गढ़ रही बांकीपुर सीट (2008 तक इसका नाम पटना वेस्ट था) पर भाजपा को चुनौती दे रहे हैं. इनमें से एक हैं ऑक्सफोर्ड से पढ़े पूर्व सरकारी अधिकारी मनीष बरियार और दूसरी हैं लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की पूर्व छात्रा पुष्पम प्रिया चौधरी.
ये इस सीट पर तीन बार से विधायक नितिन नबीन के खिलाफ मैदान में उतरे हैं, जिनके पिता नबीन किशोर प्रसाद सिन्हा पूर्व में यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
बांकीपुर में एक तीसरे युवा उम्मीदवार अभिनेता-राजनेता शत्रुघ्न सिन्हा के पुत्र लव सिन्हा हैं, जो कांग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं. भाजपा को यहां चौथी चुनौती पार्टी की ही बागी सुषमा साहू से मिल रही है.
भाजपा की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक बांकीपुर में काफी दिलचस्प बनती जा रही दिप्रिंट ने चुनावी जंग पर एक नजर डाली, जहां विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 3 नवंबर को मतदान होना है.
मनीष बरियार
एक हाई कोर्ट वकील के पुत्र बरियार इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड से एमबीए हैं और ऑर्गनाइजेशन लीडरशिप प्रोग्राम के तहत ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई कर चुके हैं. उन्होंने वाणिज्य मंत्रालय में ए-ग्रेड अधिकारी के तौर पर भी काम किया पर कुछ ही समय बाद इसे छोड़कर पटना लौट गए और मैनेजमेंट पाठ्यक्रम के इच्छुक छात्रों को ट्यूशन पढ़ाने लगे.
अब 44 वर्ष की आयु में उन्होंने बिहार में शिक्षा, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह ‘सबसे उपेक्षित’ है, का चेहरा बदलने के लिए एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में बांकीपुर से चुनाव लड़ने का फैसला किया है. साथ ही कहते हैं कि उनका इरादा वोक्सएक्स (VOXx) नाम से एक राजनीतिक पार्टी लांच करने का है. लैटिन में इस शब्द वोक्स (vox) का आशय होता है ‘आवाज’.
बरियार करते हैं, ‘हमारे शिक्षण संस्थानों के हालात देखें. स्कूलों और कॉलेजों में ढंग से पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं. एक बार आप इसे बदल देंगे हैं, तो बाकी सब कुछ अपने-आप ठीक हो जाएगा.’
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यह पूछे जाने पर कि चुनाव लड़ने के लिए वह धन कैसे जुटा रहे हैं, बरियार ने कहा, ‘मेरे दोस्तों और पूर्व सहपाठियों ने क्राउड-फंडिंग शुरू कर दी है. हमारे पास चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त पैसा होगा, लेकिन पैसा मुद्दा नहीं है. मुद्दा यह है कि इन राजनीतिक दलों ने असली बदलावों को कैसे नजरअंदाज किया है. जब मैं लोगों से मिलता हूं तो वे कहते हैं कि राजनीति में मेरे जैसे लोगों की जरूरत है. अब देखते हैं कि वे मुझे वोट देते हैं या नहीं.’
पुष्पम प्रिया चौधरी
33 साल की पुष्पम प्रिया चौधरी की महत्वाकांक्षाएं और भी ज्यादा हैं. एलएसई की यह पूर्व छात्रा जदयू नेता विनोद चौधरी की बेटी है, लेकिन चुनाव मैदान में अपनी पारी की शुरुआत के लिए उन्होंने प्लूरल्स नाम से खुद की पार्टी लांच करने का फैसला किया.
प्लूरल्स पार्टी ने 25 से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. हालांकि, शुरुआत में पुष्पम प्रिया चौधरी ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था लेकिन उनके कई उम्मीदवारों के नामांकन तकनीकी आधार पर खारिज कर दिए गए. उन्होंने यह दावा भी कि कई प्रत्याशी कथित तौर पर अन्य दबंग उम्मीदवारों की तरफ से डाले गए दबाव के कारण नामांकन से पहले ही ‘गायब’ हो गए.
लेकिन इससे उनका उत्साह ठंडा नहीं हुआ है. चौधरी ने पटना में पूरे पन्ने के दो विज्ञापन छपवाए हैं और मार्च से ही पटना में कुछ होर्डिंग लगवा रखे हैं जिसने कुछ दिग्गज राजनीतिक हस्तियों का ध्यान भी खींचा हैं. उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार के रूप में पेश किया है.
चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं बिहार की राजनीति को बदलने के लिए यहां हूं. शक्तिशाली लोग हमारे उम्मीदवारों पर मैदान छोड़ने का दबाव डाल रहे हैं. लेकिन उनमें से कुछ अपराधियों की कोई परवाह न करके आखिरी क्षणों तक मैदान में डटे हुए हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मैंने महिलाओं को 50 प्रतिशत टिकट देने का फैसला किया था, लेकिन कई लोगों ने अंतिम क्षण में लड़ने से इनकार कर दिया. लेकिन यही वजह है कि मैं यहां पर हूं….परिणाम कुछ भी हो, मैं यहां से भागूंगी नहीं.’
वह और उनकी मित्रमंडल उनके अभियान के लिए क्राउड-फंडिंग में लगी है. चौधरी ने कहा, ‘बिहार की राजनीति में पैसा कोई समस्या नहीं है. दबंगई यहां की सबसे बड़ी समस्या है. सुशासन बाबू (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए इस्तेमाल होने वाला उपनाम) के सत्ता में होने के बावजूद यहां अपराधी चुनाव लड़ रहे हैं, दूसरों पर नामांकन वापस लेने का दबाव बना रहे हैं….कोई भी समाज इन परिस्थितियों में कैसे फलफूल सकता है?’
चौधरी ने कहा, ‘बिहार एक विफल राज्य है… केवल लालू को ही दोष क्यों दें? सभी विफल नीति-निर्माता हैं. उन्हें लगता है कि यह नौकरशाहों का काम है.’
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘जाओ और देखो शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षकों की गुणवत्ता कैसी है…कोई रोजगार नहीं है, कोई उद्योग नहीं है. मैं नेतृत्व और शासन की इसी गुणवत्ता को बदलना चाहती हूं. मैं लंदन में खुश थी, लेकिन जब अपने शोध पत्र के सिलसिले में राज्य का दौरा किया तो शासन की गुणवत्ता की जो स्थिति देखी, उसी ने मुझे भारत लौटने के लिए प्रेरित किया.
लव सिन्हा
अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा के साथ रहने के दौरान 12 साल तक राज्यसभा सांसद रहे और फिर 2009 से 2019 तक लोकसभा में पटना साहिब सीट के प्रतिनिधि रहे. अब जब वह कांग्रेस में हैं तो पार्टी ने बांकीपुर सीट से उनके 37 वर्षीय बेटे लव सिन्हा को मैदान में उतारने का फैसला किया है.
इस निर्वाचन क्षेत्र में 25 फीसदी से अधिक मतदाता कायस्थ समुदाय के हैं जिससे सिन्हा आते हैं. कायस्थ परंपरागत रूप से भाजपा के मतदाता हैं और 2009 और 2014 में शत्रुघ्न सिन्हा की जीत और 2019 में भाजपा के केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के हाथों उनकी हार का एक बड़ा फैक्टर भी थे. प्रसाद भी एक कायस्थ हैं.
शत्रुघ्न सिन्हा के एक सलाहकार ने कहा, ‘हमारी जीत कायस्थ वोट हासिल होने और उच्च जाति के वोटों में विभाजन पर निर्भर करती है. शत्रुघ्न सिन्हा चुनाव प्रचार करेंगे, लेकिन यह तय नहीं है कि लव की बहन सोनाक्षी सिन्हा चुनाव प्रचार करेंगी या नहीं …उन्होंने अभी तक किसी भी चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लिया है, लेकिन मुकाबला कड़ा है.’
हालांकि, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि लव राजनीति में नए हैं और उनके पास अपने पिता जैसी ब्रांड वैल्यू भी नहीं है, और वह भाजपा को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे.’
वे किसके खिलाफ खड़े हैं-भाजपा का वर्चस्व
भाजपा की निश्चितंता इसी में निहित है कि बतौर विधायक नितिन नबीन की पकड़ कितनी मजबूत है और पटना साहिब लोकसभा सीट और उसके तहत आने वाली बांकीपुर विधानसभा सीट भाजपा का कितना मजबूत गढ़ है.
नितिन नबीन ने खुद कहा था, ‘पटना साहिब भाजपा का किला है और बांकीपुर इस किले का ताज है.’
2005 से लगातार तीन बार इस सीट पर चुनाव जीतने वाले नितिन दिवंगत भाजपा नेता नबीन किशोर सिन्हा के बेटे हैं, जो पहले इस सीट का प्रतिनिधित्व करते थे.
विधायक ने कहा, ‘वे आते रहेंगे जाते रहेंगे, लेकिन मैं पिछले 30 सालों से यहां हूं. मतदाताओं के साथ मेरा रिश्ता एक परिवार की तरह है. कई उम्मीदवार इस सीट को छीनने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन कभी सफल नहीं हुए.’
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