नई दिल्ली: बीजेपी का बिहार में एक समर्पित ऊंची जाति का वोटबैंक है, और पार्टी के टिकट बटवारे में ये साफ नज़र आता है. बीजेपी के 110 उम्मीदवारों में से, 51 ऊंची जातियों से हैं, हालांकि बिहार की आबादी में वो केवल 16 प्रतिशत हैं.
ऊंची जाति के इन 51 उम्मीदवारों में, 22 टिकट राजपूतों को गए हैं, 15 भूमिहारों को, 11 ब्रहमणों को और तीन कायस्थों को.
बाक़ी 59 सीटें अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी), अनुसूचित जातियों, और अनुसूचित जनजातियों को गई हैं, जो राज्य की आबादी का 74 प्रतिशत हैं. इनमें से 15 टिकट यादवों को गए हैं, जो बिहार में एक प्रमुख ओबीसी जाति हैं, जिनसे विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को अपनी ताक़त मिलती है.
बीजेपी चुनावों में उच्च जातियों पर भरोसा करने की, अपनी पारंपरिक रणनीति पर चल रही है. मसलन, 2015 के विधानसभा चुनावों में, बीजेपी ने उच्च जातियों के 65 उम्मीदवार उतारे थे, जो किसी भी दल से ज़्यादा थे. उस समय बीजेपी ने 243 सीटों में से 157 पर चुनाव लड़ा था, और उनमें से 53 सीटें जीतीं थीं.
एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने अपनी लिस्ट में हर जाति को शामिल किया है, लेकिन बीजेपी को उन जातियों के हिसाब से सीटें आवंटित करनी पड़ती हैं, जो उसका समर्थन करती हैं’.
‘पिछले 30 सालों में, उच्च जातियों ने लालू प्रसाद यादव के जंगल राज के ख़िलाफ लड़ाई की है. इसलिए स्वाभाविक है कि उन्हें बेहतर प्रतिनिधित्व दिया गया है, लेकिन ओबीसी और एससी को भी बराबर का प्रतिनिधित्व मिला है’.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डिवेलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) के संजय कुमार कहते हैं कि बीजेपी उच्च जातियों के साथ बनी हुई है, चूंकि इस बार वोटों का कोई धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं हुआ है.
कुमार ने कहा, ‘उच्च जातियां पारंपरिक रूप से बीजेपी की रीढ़ रही हैं. धार्मिक ध्रुवीकरण आमतौर से जातीय गणित को गड़बड़ा देता है, लेकिन इस बार कोई ध्रुवीकरण नहीं हुआ है. इसलिए बीजेपी उच्च जातियों और ओबीसी वर्गों के अपने वोट बैंक पर ही बनी हुई है’.
इसके मुक़ाबले, बीजेपी के सहयोगी जद(यू) की ओर से जारी, 115 प्रत्याशियों की सूची में, केवल 19 उम्मीदवार उच्च जाति के हैं. इनमें से 10 भूमिहार हैं, सात राजपूत हैं, और दो सीटें ब्रहमणों को गई हैं. लेकिन जद(यू) ने यादवों को 18 टिकट दिए हैं.
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राजपूतों पर फोकस
भूमिहार बीजेपी के सबसे निष्ठावान वोटर रहे हैं, लेकिन साथ ही पार्टी 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से, प्रदेश में राजपूतों को भी संगठित करने में लगी है.
2015 के विधानसभा चुनावों में, बीजेपी ने 30 राजपूत, 18 भूमिहार, 14 ब्राह्मण और तीन बनिया उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.
बीजेपी ने एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत का भी सियासी फायदा उठाने की कोशिश की, जिसने जून में आत्महत्या कर ली थी. पार्टी ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बिहार चुनाव प्रचार का प्रभारी बना दिया, ताकि वो एक्टर की मौत का मुद्दा उठा सकें, जिसका संबंध बिहार से था.
पार्टी ने सुपौल जिले की छातापुर सीट से सिटिंग विधायक, नीरज कुमार सिंह बबलू को फिर से नामांकित किया है, जो मृतक एक्टर के कज़िन हैं.
पार्टी की स्टार प्रचारक सूची में राधामोहन सिंह, सुशील सिंह और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह जैसे प्रमुख राजपूत नाम भी शामिल हैं.
बिहार बीजेपी इकाई के एक उपाध्यक्ष ने कहा, ‘राजपूत काफी हद तक बीजेपी को वोट देते हैं, सिवाय तब के, जब उनकी जाति के प्रमुख उम्मीदवार दूसरे टिकट पर लड़ रहे हों.
‘राजपूतों ने प्रभुनाथ सिंह का समर्थन किया, जब वो जद(यू) छोड़कर आरजेडी में गए. उन्होंने रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह का भी समर्थन किया, जो दोनों आरजेडी के साथ थे. लेकिन राजपूत वोटों के बटे बिना, उन्हें हासिल करने की बीजेपी की कोशिश रंग ला रही है’.
यादवों को प्रतिनिधित्व मिला
बीजेपी यादवों को अच्छा प्रतिनिधित्व देने के, अपने रिकॉर्ड पर भी क़ायम रही है. 2015 में उसने यादवों को 22 टिकट दिए थे, जबकि इस बार 15 टिकट दिए हैं.
ये इसके बावजूद पिछले चुनावों में, 22 में से केवल 6 उम्मीदवार ही जीत हासिल कर पाए थे.
अधिकांश यादव आरजेडी का समर्थन करते हैं, और 2015 के चुनावों में वो हावी रहे थे. निवर्तमान विधानसभा के कुल 243 विधायकों में, 61 यादव हैं- हर चौथा विधायक.
उनमें से अधिकांश, 42 आरजेडी से थे, जिसके बाद 11 जद(यू) से और 6 बीजेपी से थे.
लेकिन 2014 के बाद से बीजेपी युवा यादव मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है. तब 2014 में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने, नित्यानंद राय को बिहार बीजेपी अध्यक्ष नियुक्त किया था. उन्हें अब केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया है.
पार्टी ने कभी लालू प्रसाद यादव के क़रीबी विश्वासपात्र रहे रामकृपाल यादव, नंद किशोर यादव, हुकुम देवनारायण यादव और भूपेंद्र यादव को भी स्टारक प्रचारक बनाया है.
राम कृपाल यादव ने, जो अब एक बीजेपी सांसद हैं, कहा, ‘पूरे बिहार में यादवों का आरजेडी से मोहभंग हो रहा है, बड़ी उम्र के यादव अभी भी आरजेडी के साथ हैं, लेकिन नई पीढ़ी की जातिगत राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है. वो महत्वाकांक्षी है और पीएम मोदी से प्रेरित है’.
‘लालू के बाद, तेजस्वी इस यादव वोट बैंक को संभाल नहीं पाएंगे. वो बीजेपी की तरफ आ जाएंगे’.
पटना स्थित एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ के डीएम दिवाकर ने कहा, ‘बीजेपी-जद(यू) सीधे गणित पर काम करते हैं. बीजेपी काफी हद तक उच्च जाति के वोट जद(यू) को स्थानांतरित करती है, और नीतीश ईबीसी और ओबीसी वोट लाते हैं. इसलिए बीजेपी उच्च जातियों को ज़्यादा टिकट देती है, और जद(यू) ईबीसी और ओबीसी वर्गों को ज़्यादा देती है’.
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