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Friday, 22 November, 2024
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हाथरस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रात में मृतका के अंतिम संस्कार और DM को सस्पेंड न करने पर उठाए सवाल

मंगलवार देर शाम ऑर्डर में कहा गया, 'मामले में गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार का उल्लंघन किया गया. यह तय करना होगा कि इसका कौन जिम्मेदार है और पीड़िता के परिवार की क्षतिपूर्ति कैसे की जा सकती है.'

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लखनऊ: हाथरस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने निर्देश देते हुए सभी तरह की जांच को गोपनीय रखने के निर्देश दिए हैं. वहीं यूपी सरकार से हाथरस के डीएम को सस्पेंड न करने का कारण पूछा है.

बता दें कि सोमवार को हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई थी वहीं मंगलवार देर शाम कोर्ट की ओर से इस पर लिखित ऑर्डर आया है. 11 पेज के इस आदेश में हाईकोर्ट ने पीड़ित परिवार को कड़ी सुरक्षा देने को कहा है.

वहीं सख्त टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने मृतका का देर रात अंतिम संस्कार कराने को मानवाधिकार का हनन बताया है.
ऑर्डर में कहा गया, ‘मामले में गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार का उल्लंघन किया गया. यह तय करना होगा कि इसका कौन जिम्मेदार है और पीड़िता के परिवार की क्षतिपूर्ति कैसे की जा सकती है.’

डीएम को सस्पेंड क्यों नहीं किया

हाथरस कांड के बाद से ही विपक्षी दलों की ओर से डीएम को सस्पेंड करने की मांग की जा रही है. इस बीच कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा है कि जब वहां एसपी को सस्पेंड किया गया तो डीएम को क्यों नहीं. कोर्ट ने कहा- अंतिम संस्कार के मामले में डीएम की भूमिका थी तो क्या उन्हें हाथरस में बनाए रखना उचित है? इस पर अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने भरोसा दिलाया कि सरकार मामले के इस पहलू को भी देखेगी और इस पर निर्णय लेगी.


यह भी पढ़ें: हाथरस मामले में हाईकोर्ट की UP सरकार को फटकार, पीड़ित परिवार की केस बाहर शिफ्ट करने की गुहार


एडीजी प्रशांत कुमार के रेप से इंकार को लिया आड़े हाथों 

इसके अलावा कोर्ट ने एडीजी लाॅ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार के बलात्कार से इंकार करने को आड़े हाथों लेते हुए कोर्ट ने  कहा कि दुष्कर्म कानून में संशोधन के बारे में जानते हैं, फिर भी वह सीमेन की अनुपस्थिति वाली फॉरेंसिंक रिपोर्ट के आधार पर दुष्कर्म न होने का बयान देते रहे. उन्होंने फॉरेंसिक रिपोर्ट के हवाले से सार्वजनिक टिप्पणी की थी.

अदालत ने मीडिया ट्रायल पर नाराजगी जताई

हाईकोर्ट ने हाथरस कांड में मीडिया ट्रायल को लेकर भी नाराजगी जताई. कोर्ट ने कहा- मीडिया को यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं पीड़िता के परिवार व अभियुक्तों के अधिकारों का उल्लंघन न हो. वहीं ट्रायल पूरा होने से पहले अभियुक्तों को दोषी नहीं ठहराना चाहिए. इसके अलावा किसी को पीड़ित के चरित्र हनन में भी शामिल नहीं होना चाहिए.

बता दें कि मामले में अगली सुनवाई 2 नवंबर को होनी है.

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