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Friday, 20 December, 2024
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बिहार चुनाव सिर्फ तेजस्वी यादव और चिराग पासवान ही नहीं कई अन्य राजनीतिक वारिसों के लिए भी अग्निपरीक्षा

बिहार के चुनावी मैदान में जहां थोड़ी-बहुत पहचान बना चुके कई वारिस अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे लोग भी अपनी जमीन तैयार करने की कवायद में जुटे हैं जो पहली बार राजनीति में अपनी पारी शुरू कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के मैदान में उतरे दो वंशजों राजद प्रमुख तेजस्वी यादव और लोजपा प्रमुख चिराग पासवान के लिए अग्नीपरीक्षा नहीं है. बल्कि तमाम अन्य प्रमुख नेताओं के बेटे-बेटी भी अपनी सियासी जमीन तैयार करने की कवायद में जुटे हैं.

बिहार के चुनावी मैदान में जहां थोड़ी-बहुत पहचान बना चुके कई वारिस अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, वहीं राजनीति में कदम रखने की शुरुआत कर रहे ऐसे कुछ लोग भी अन्य तरीकों अपनी जमीन पुख्ता करने में जुटे हैं जो संभवत: इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे.

इनमें स्वर्गीय केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह के पुत्र सत्य प्रकाश सिंह भी हैं, जो गुरुवार को औपचारिक रूप से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल हो गए. पेशे से इंजीनियर सत्या दिल्ली में एक कॉर्पोरेट फर्म के साथ काम करते हैं.

उनके पिता रघुवंश प्रसाद ने राजद छोड़ने से पहले 30 साल लालू प्रसाद यादव की इस पार्टी के साथ बिताए थे. अपनी पार्टी में जो कुछ भी चल रहा है, उससे नाखुश रघुवंश प्रसाद ने एम्स अस्पताल के बिस्तर पर रहते हुए अपना इस्तीफा लिखा था. तब से ही जदयू दिवंगत समाजवादी नेता के निधन से रिक्त हुई राजनीतिक जगह को हासिल करने की कवायद में जुटा है.

सत्या चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन जदयू सूत्रों का कहना है कि उन्हें चुनाव के बाद विधान परिषद (एमएलसी) का सदस्य बनाया जा सकता है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं राजद में शामिल नहीं हो सकता क्योंकि यह अब समाजवादी पार्टी नहीं रही है. यह समाजवादी मूल्यों के खिलाफ का खिलाफ काम कर रही है.’


यह भी पढ़ें : लोजपा ‘बाहरी ताकतों’ के इशारे पर चल रही है- चिराग पासवान के फैसले को समझाने में बिहार भाजपा को हो रही मुश्किल


सत्या ने बताया, ‘मेरे पिता कहा करते थे कि परिवार के एक सदस्य को राजनीति में होना चाहिए.’

जदयू और राजद ने अचरज में डाला

2018 में जदयू में शामिल हुईं डॉ. अस्मा प्रवीण लालू की बेटी और राजद सांसद मीसा भारती की दोस्त हैं. नीतीश कुमार ने उन्हें वैशाली में महुआ विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है. पहले इस सीट का प्रतिनिधित्व लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव करते थे, जो इस साल समस्तीपुर जिले की हसनूर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

अस्मा पटना में अपना क्लिनिक चलाती हैं. उनके पिता इलियास हुसैन लालू के काफी विश्वस्त सहयोगी थे. अलकतरा घोटाले के सिलसिले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने तक वह सड़क निर्माण मंत्री थे, और मौजूदा समय में जेल में हैं.

अस्मा ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं टिकट के लिए यहां नहीं आई हूं. मैं सही मायने में नीतीश कुमार के किए कामों की कायल हूं.’

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्वी चंपारण जिले की केशरिया विधानसभा सीट से शालिनी मिश्रा को उम्मीदवार घोषित करके सबको चौंका दिया है. शालिनी चंपारण क्षेत्र के कद्दावर भाकपा नेताओं में से एक और चार बार के सांसद स्वर्गीय कमला मिश्र मधुकर की बेटी हैं.

वह मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए काम करती है और इस साल फरवरी में ही जदयू में शामिल हुई हैं.

वह कहती हैं, ‘जदयू और नीतीश कुमार वही काम कर रहे हैं जो मेरे पिता ने जीवन भर किया था.’

जदयू के एक नेता ने कहा, ‘हालांकि, शालिनी की केशरिया में कोई खास पहचान नहीं है लेकिन अभी भी उनके पिता के लिए लोगों में काफी सम्मान का भाव है.’

खगड़िया से लोजपा सांसद महमूद अली कैसर के पुत्र यूसुफ कैसर ने हाल ही में तेजस्वी यादव की मौजूदगी में राजद का हाथ थामा है.

यूसुफ सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. इस सीट का प्रतिनिधित्व उनके पिता और दादा करते रहे हैं. महमूद ने 2014 में लोजपा की सीट पर चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस से नाता तोड़ा और दो बार एनडीए प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल कर चुके हैं.

महमूद ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने अपने बेटे को राजद में शामिल न होने के लिए मनाने की कोशिश की लेकिन शायद उसके निर्वाचन क्षेत्र का दबाव होगा. मैं खुद मजबूती से लोजपा के साथ खड़ा हूं और केंद्र में भाजपा का समर्थन करता हूं.

शूटर श्रेयसी सिंह भाजपा में शामिल

2005 के बाद नीतीश कुमार और दिवंगत केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह के बीच प्रतिद्वंद्विता खुलकर सामने आ गई थी. रिश्ते इतने बिगड़े कि नीतीश ने 2009 में बांका से दिग्विजय को टिकट देने से इनकार कर दिया और दिग्विजय ने निर्दलीय के तौर पर जीत हासिल की. वे आखिरी समय तक नीतीश कुमार के घोर आलोचक रहे.

2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने दिग्विजय की पत्नी और पूर्व भाजपा सांसद पुतुल सिंह को समायोजित करने से मना कर दिया और उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी हार का सामना किया.

लेकिन इस बार दिग्विजय की बेटी और चिरपरिचित भारतीय शूटर श्रेयसी सिंह जमुई से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. दिग्विजय परिवार के निकट सहयोगी केटी सिंह ने कहा, ‘वह अपने पिता की विरासत संभालने आई हैं और हमें उम्मीद है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनकी राह आसान करेंगे.’

पटना स्थित ए.एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज में प्रोफेसर डीएन दिवाकर ने वंशवादी राजनीति के अपेक्षाकृत नए परिदृश्य को स्पष्ट करते हुए कहा, ‘नई पीढ़ी अपनी राजनीतिक संभावनाओं को खोज रही है. वे अपने माता-पिता की तुलना में अधिक शिक्षित हैं. पार्टी कार्यकर्ता के तौर पर शुरुआत करके अपनी पहचान वाले माता-पिता की तुलना में नई पीढ़ी का पार्टी या पार्टी की विचारधारा से कोई खास भावनात्मक संबंध नहीं है. वे अपने माता-पिता की विरासत का लाभ उठा सकते हैं, लेकिन इससे कोई जुड़ाव नहीं रखते हैं. यही वजह है कि चिराग पासवान खुद को जदयू से दूर कर रहे हैं और भाजपा से निकटता बढ़ा रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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