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Friday, 26 April, 2024
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लोजपा ‘बाहरी ताकतों’ के इशारे पर चल रही है- चिराग पासवान के फैसले को समझाने में बिहार भाजपा को हो रही मुश्किल

भाजपा नेताओं का दावा है कि लोजपा के पीछे ‘हाथ किसी और का है लेकिन दिमाग प्रशांत किशोर का है’ और वह इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि उनके इस कदम से बिहार में वास्तव में एनडीए को नुकसान होगा.

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पटना: 1970 के दशक में पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेने वाले राजनीतिक और सामाजिक उबाल की व्याख्या में असमर्थ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसके पीछे ‘विदेशी हाथ’ बताया था.

अब बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन होने के बावजूद भाजपा खुद को कुछ इसी स्थिति में पा रही है. पार्टी के लिए यह समझाना मुश्किल होता जा रहा है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का घटक होने के बावजूद लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) राज्य विधानसभा चुनाव अपने दम पर क्यों लड़ रही है.

इस घटनाक्रम ने भाजपा और जदयू के बीच भरोसे को पहले ही कमजोर कर दिया है क्योंकि इस तरह की धारणा बनती जा रही है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कद घटाने के लिए भाजपा ने ही लोजपा प्रमुख चिराग पासवान को आगे किया है.

लोजपा ने स्थिति को आसान रहने भी नहीं दिया है. पार्टी 143 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है लेकिन उसने साफ कर दिया है कि वह भाजपा के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी. चिराग ने बिहार के मतदाताओं को बाकायदा पत्र लिखकर जदयू को वोट न देने की अपील की है, साथ ही इस बात पर जोर दिया है कि राज्य में अगली सरकार भाजपा-लोजपा की होगी.

और बस इतना ही काफी नहीं था, लोजपा ने भाजपा नेताओं को अपने साथ लाना शुरू कर दिया है और वह उन्हें टिकट देने की भी तैयारी कर रही है. इसमें प्रमुख नाम है झारखंड इकाई के पूर्व भाजपा संगठन सचिव राजेंद्र सिंह का.

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भाजपा के और ज्यादा नेताओं में लोजपा का टिकट हासिल करने की होड़ लग सकती है.


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‘एनडीए को नुकसान की इच्छा रखने वाला कोई व्यक्ति चिराग का मददगार’

भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने दिप्रिंट से बातचीत में इसके संकेत दिए कि चिराग की मदद कोई ऐसा व्यक्ति कर रहा है जो बिहार में एनडीए को नुकसान पहुंचाना चाहता है.

उन्होंने कहा, ‘भाजपा हमेशा सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे को लेकर स्पष्ट और पारदर्शी रही है. इस घोषणा के बाद कि हमारी सीटों की संख्या कुछ भी हो नीतीश ही मुख्यमंत्री बनेंगे, नीतीश के बिना एनडीए सरकार के सत्ता में आने की संभावना कहां बचती है?’

मोदी ने चिराग की बगावत के पीछे भाजपा के होने की अटकलों का जोरदार तरीके से खंडन किया.

भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘चिराग पासवान पर एक गैर-गंभीर राजनेता होने का ठप्पा लगा है. फिर जिस तरह वह खासकर नीतीश के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में व्यापक भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठा रहे हैं. मैदान में उतारने के लिए जैसे प्रत्याशियों का चयन कर रहे हैं. और जिस तरह से एनडीए मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति कायम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे यही लगता है कि उनके पीछे चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का दिमाग काम कर रहा है. चिराग पासवान को हम जानते हैं कि वह अपने बलबूते ऐसे कदम उठाने में असमर्थ हैं और उनके पिता बीमारी की वजह से कोई भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं हैं.’

दिप्रिंट ने इस बाबत प्रशांत किशोर से संपर्क किया लेकिन उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. हालांकि, चुनाव रणनीतिकार के एक करीबी सहयोगी ने कहा कि वह आखिरी बार दो साल पहले चिराग पासवान से मिले थे. सहयोगी ने कहा, ‘क्या भाजपा चाहती थी चिराग वह नहीं करें जो आज वह कर रहे हैं. भाजपा अब जिम्मेदारी कहीं और डालना चाहती है.’

किशोर ने फरवरी में एक प्रेस कांफ्रेंस की थी जिसमें उन्होंने घोषणा की थी कि वह बिहार विधानसभा चुनाव के लिए किसी भी पार्टी से नहीं जुड़ेंगे.


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‘लोजपा के कदम से हमें कोई लाभ नहीं’

भाजपा नेताओं का यह भी दावा है कि चिराग के कदम से एनडीए को कोई लाभ नहीं होने वाला है.

ऊपर उद्धृत वरिष्ठ भापजा नेता ने कहा, ‘लोजपा 143 सीटों में से सिर्फ पांच सीटें जीत सकती है. लेकिन एनडीए प्रत्याशियों का गणित बिगाड़कर महागठबंधन के उम्मीदवारों को फायदा पहुंचा सकती है. उदाहरण के लिए पालीगंज की पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी लोजपा में शामिल हो गई हैं और उसी सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में है जिससे जदयू उम्मीदवार जयवर्धन यादव के खेमे को झटका लगा है. पालीगंज में उच्च जाति भूमिहार मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग है, जो परंपरागत रूप से भाजपा को वोट देते रहे हैं. विद्यार्थी भले ही चुनाव हार जाएं लेकिन उन्हें भूमिहारों के बड़े तबके का वोट मिल सकता है क्योंकि वह उसी वर्ग से आती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इस बात को समझना होगा कि लोजपा के उम्मीदवार महागठबंधन के बजाए एनडीए के वोट काटेंगे.’

एक तीसरे भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी करीब 110 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और कितना भी शानदार प्रदर्शन हो 80 से 90 के बीच सीटें मिलेंगी जो 243 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए पर्याप्त नहीं हैं. ‘ऐसे में यह भाजपा के लिए बिहार में नीतीश के बिना स्थिर सरकार बनाने में कैसे मददगार हो सकता है?’

लोजपा अपने स्तर पर इन आरोपों से इनकार कर रही है कि यह ‘भाजपा की बी टीम’ है या यह फिर उसे भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए कोई समर्थन मिल रहा है.

लोजपा प्रवक्ता अशरफ अंसारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘चिराग पासवान उन्हीं मुद्दों को उठा रहे हैं जिस पर वह पिछले एक साल से मुखर रहे हैं. वह तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमें नजरअंदाज करते रहे हैं और अब लोग एक बदलाव चाहते हैं.’

लोजपा में शामिल होने वाले भाजपा नेता भी इन बातों से इनकार कर रहे हैं कि वह किसी ‘बाहरी ताकत’ के प्रभाव में ऐसा कर रहे हैं.

उषा विद्यार्थी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे लिए यह बहुत मुश्किल फैसला था क्योंकि मैं दो दशक से भी ज्यादा समय से भाजपा में हूं. लेकिन हम एक ऐसी सीट किसी दूसरी पार्टी को सौंपने की अनुमति नहीं देंगे जो भाजपा का गढ़ रही है.’

इसी तरह लोजपा के टिकट पर झाझा से चुनाव लड़ रहे रवींद्र यादव ने कहा कि उन्होंने 2015 में यह सीट भाजपा के टिकट पर जीती थी जब नीतीश और लालू ने हाथ मिला लिया था. यह सीट समझौते के तहत जदयू के खाते में गई है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे यह सीट उस पार्टी को क्यों देनी चाहिए जिसके खिलाफ मैंने जीत हासिल की थी.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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