scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतपीएलए की नज़र 1959 की क्लेम लाइन पर है, मोदी और शी उसको नज़र अंदाज़ कर सर्दी से पहले शांति बहाल कर सकते हैं

पीएलए की नज़र 1959 की क्लेम लाइन पर है, मोदी और शी उसको नज़र अंदाज़ कर सर्दी से पहले शांति बहाल कर सकते हैं

1959 में किए गए दावे के अनुसार जो ‘क्लेम लाइन’ है वह अक्साइ चीन के अलावा चीनी सेना ‘पीएलए’ द्वारा 1962 के युद्ध से पहले और उसके दौरान कब्जा किए गए क्षेत्रों के मामले में भारत के लिए सभी सामरिक विकल्प समाप्त करती है.

Text Size:

मॉस्को में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात के 12 दिन बाद दोनों देशों के बीच कमांडर स्टार की बहुप्रतीक्षित वार्ता मोल्दो में हुई ताकि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव खत्म करने और फौजों की वापसी की विस्तृत योजना बनाई जा सके.

इस बैठक के बाद 22 सितंबर को यह संयुक्त बयान जारी किया गया— ‘वे इस बात पर सहमत हुए कि दोनों देशों के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण सहमति बनी है उसे गंभीरता से लागू किया जाए, जमीनी स्तर पर संवाद को मजबूत किया जाए, गलतफहमियों और गलत आकलनों से बचा जाए, अग्रिम मोर्चों पर और सेना न भेजी जाए, जमीनी हालात को बदलने की एकतरफा कोशिश न की जाए, ऐसे कदमों से परहेज किया जाए जिनसे हालात जटिल होते हों.’

एक लंबा वाक्य है यह लेकिन इससे यह उम्मीद नहीं जागती कि हालात में जल्दी कोई सुधार होंगे. यह सिर्फ राजनयिक गतिरोध का संकेत देता है और यही संभावना जताता है कि वर्तमान विस्फोटक स्थिति जारी रहेगी.


यह भी पढ़ें: पीएलए का अधिक ज़ोर साइबर एवं इलेक्ट्रॉनिक युद्ध होगा, भारत को इससे निपटने के लिए इनोवेशन का सहारा लेना होगा


पीएलए की स्थिति – 1959 ‘क्लेम लाइन’

मैं यहां हालात का जायजा 1959 के ‘क्लेम लाइन’ पर पीएलए के वास्तविक नियंत्रण के मद्देनजर, और देपसांग प्लेन्स या दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) सेक्टर के नाम से मशहूर सब-सेक्टर नॉर्थ (एसएसएन) पर विशेष ध्यान देते हुए लूंगा.
चीन का तात्कालिक राजनीतिक और सैन्य लक्ष्य भारत को सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करने से रोकना ताकि वह अक्साइ चीन और 1962 के युद्ध से पहले या उस दौरान चीन द्वारा कब्जा किए गए इलाकों के लिए खतरा न बने. यानी वह अपने ये लक्ष्य 1959 की ‘क्लेम लाइन’ तक के इलाके पर अपना कब्जा मजबूत करके हासिल कर सके. इस ‘1959 क्लेम लाइन’ का पहली बार जिक्र चाउ एनलाइ ने जवाहरलाल नेहरू को लिखे पत्र में किया था. अब इस साल के मई महीने से चीन ने गलवान, हॉट स्प्रिंग्स-कुग्रांग नदी-गोगरा और पैंगोंग झील के उत्तर में ‘1959 क्लेम लाइन’ पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. एसएसएन इलाके में अभी उसने अपनी मौजूदगी नहीं जताई है लेकिन हमारी सेना को एलएसी तक गश्त करने से जबरन रोक रखा है. ‘1959 क्लेम लाइन’ के पश्चिम में हमारी सेना की तैनाती रोक रखी है. केवल डेमचोक बचा हुआ है, जहां आबादी बसी है. इसके बारे में फैसला शायद बाद में किया जाएगा, या इसे भी कब्जा किया जा सकता है.

‘1959 क्लेम लाइन’ का रणनीतिक महत्व है और यह अक्साइ चीन और चीनी कब्जे वाले दूसरे क्षेत्रों पर भारत के किसी दावे के विकल्पों को समाप्त करती है. यह रेखा एसएसएन, हॉट स्प्रिंग्स-कोंग्का ला-गोगरा और पैंगोंग झील के उत्तर में हमारी सैन्य प्रतिरक्षा काफी कमजोर करती है और पराजय के कगार पर पहुंचा देती है. अगले दो महीने में दोनों पक्ष यथास्थिति बनाए रखने की तैयारी कर सकते हैं, या कोई भी पक्ष अपने राजनीतिक तथा सैन्य लक्ष्यों की खातिर दांव बढ़ाने की कोशिश कर सकता है. पीएलए ने अग्रिम पहल करके अपनी क्षमताओं और सामरिक ताकत में जो बढ़त हासिल कर ली है उसके कारण भारत अपना दांव ऊंचा कर सके इसकी संभावना कम लगती है. मैं पहले ही इस बात पर चर्चा कर चुका हूं कि सीमित युद्ध की स्थिति में पीएलए के आक्रमण का क्या स्वरूप हो सकता है. इस लेख में केवल इस संभावना का आकलन किया गया है कि पीएलए 1959 के अपने दावे को किस तरह पूरा कर सकता है.

एसएसएन का टेरेन मूल्यांकन

देप्सांग का मैदानी इलाका तिब्बत के पठार का ही विस्तार है, जो 17,000 फुट की ऊंचाई पर है. इसमें 18 से 19,000 के बीच के पहाड़ भी मौजूद हैं. मैदानी इलाका ऊबड़-खाबड़ है, जो पूरब से पश्चिम तक 60-70 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण तक 40-50 किमी तक फैला है. इसके उत्तर में काराकोरम पहाड़ियां हैं, पूरब में लाक सुंग पहाड़ियां हैं, पश्चिम में कारकश नदी का इलाका है, तो दक्षिण में शाही कांगड़ी पहाड़ियां हैं. सियाचिन ग्लेशियर पश्चिम में 50 किमी दूर स्थित है. पहाड़ियों वाले इस इलाके में पहिये वाले वाहन और टैंकों आदि का ही इस्तेमाल हो सकता है. यानी यह क्षेत्र मशीनी कार्रवाई के लिए उपयुक्त है. देखें चित्र—

गूगल मैप से प्राप्त तस्वीर
गूगल मैप से प्राप्त तस्वीर

28 मई के अपने लेख में मैंने लिखा था कि देप्सांग का मैदान ‘अपर्याप्त संचार व्यवस्था के कारण हमारी कमजोर कड़ी है, भले ही दौलत बेग ओल्डी हवाईअड्डे को फिर से चालू कर दिया गया है, जो एलएसी से तोप के निशाने पर है. यही एकमात्र क्षेत्र है जहां से भारत से अक्साइ चीन तक सीधा पहुंचा जा सकता है. चीन एसएसएन में कोई खतरे वाला जमावड़ा नहीं चाहता. 15 साल पहले चीन ने एक सैन्य युद्ध का खेल किया था जिसमें यह कल्पना की गई थी कि एक डिवीजन के आकार की सेना मशीनी सेना के साथ एसएसएन से अक्साइ चीन पर हमला कर रहा है.’

मैंने लिखा था—’अपनी कमजोर स्थिति के मद्देनजर हमने 2007 में एसएसएन तक दो सड़क बनाना शुरू किया. पहली सड़क नुबरा घाटी में सोसोमा से सासर ला दर्रे से होते हुए गुजरने वाली थी. दुर्भाग्य से, सासर ला में बर्फ जमी रहती है. जब तक हम सुरंग नहीं बनाएंगे, यह सड़क केवल गर्मियों के लिए काम की होगी. दूसरी, 225 किमी लंबी सड़क दार्बुक से शुरू होकर श्योक नदी घाटी के किनारे-किनारे मार्गो और देप्सांग से गुजरती हुई बनाई गई. श्योक नदी की घाटी से गुजरती यह सड़क इंजीनियरिंग का एक चमत्कार ही है लेकी बदकिस्मती से यह एलएसी के समानान्तर चलती है और श्योक तथा गलवान नदियों के संगम पर या एलएसी से मात्र पांच किमी दूर है.’

गूगल मैप इमेज
गूगल मैप इमेज

एलएसी बनाम 1959 क्लेम लाइन देपसांग प्लान

‘1959 क्लेम लाइन’ काराकोरम पहाड़ियों से उत्तर से दक्षिण तक ‘बॉटल नेक/ वाई जंक्शन’ से होते हुए गुजरती है और दक्षिण में जीवन नाला तक जाती है. 1962 से पहले हमारी चौकियां ‘1959 क्लेम लाइन’ से पूरब में 5-10 किमी की दूरी पर मैदानी क्षेत्र के आधे उत्तरी हिस्से में डीबीओ हवाईअड्डे के सामने बनी थीं. दक्षिण के आधे हिस्से में चौकियाँ ‘बॉटल नेक/ वाई जंक्शन’ से 30-40 किमी पूरब तक बनी थीं. 1993 में एलएसी और ‘1959 क्लेम लाइन’ मैदानी इलाके के आधे उत्तरी भाग में एक-दूसरे से मिल गईं. लेकिन ‘बॉटल नेक/ वाई जंक्शन’ के पूरब में उनमें 18-20 किमी की दूरी थी. लेकिन हमने आधे दक्षिणी भाग पर कभी कब्जा नहीं किया, और बुरत्से सैनिक अड्डे से तिब्बत सीमा पुलिस पैट्रोलिंग पॉइंट 10,11,12,13 तक गश्त करती रही.

जब हमने डीबीओ सड़क बना ली और एलएसी तक संपर्क सड़कें न बनानी शुरू की तो पी एलए ‘बॉटल नेक/ वाई जंक्शन’ से 20 किमी पूरब तक अंदर नहीं जाने दिया. और 2013 में उसने टकराव के बाद फिर से वह दावा कर दिया. उस टकराव के बाद हम इस साल अप्रैल तक एलएसी तक गश्त करते रहे थे. आज पीएलए हमें ‘बॉटल नेक/ वाई जंक्शन’ से पूरब जाने से रोक रही है. वैसे, ऐसा लगता है कि उसने पूरी ताकत से अपनी सेना वहां तैनात नहीं की है.
उपाय क्या है.

इस बात पूरी संभावना है कि पीएलए अपनी ‘1959 क्लेम लाइन’ तक पहुंचने के लिए ‘बॉटल नेक/ वाई जंक्शन’ तक देप्सांग के आधे दक्षिणी भाग पर कब्जा कर सकटी है. यह चीन के लेई बहुत आसान है क्योंकि मई से हमें गश्त करने से जिस तरह रोका गया है उस पर हमने आपत्ति नहीं की है. अपनी कमजोरी के कारण यह कम ही संभव है कि हम पीएलए से बढ़त लेंगे या उसके खिलाफ आपत्ति करेंगे.

ऐसा लगता है कि अब डेमचोक को छोड़कर सभी क्षेत्रों में ‘1959 क्लेम लाइन’ ही नयी एलएसी बन जाएगी. लेकिन ‘1959 क्लेम लाइन’ को औपचारिक तौर पर स्वीकार करने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घरेलू साख कमजोर होगी, सबसे व्यावहारिक समाधान यह होगा कि ‘1959 क्लेम लाइन’ और 1993 की एलएसी के बीच के पूरे क्षेत्र को विस्तृत ‘बफर ज़ोन’ घोषित किया जाए, जहां कोई सेना तैनात न की जाए और इन्फ्रा-स्ट्रक्चर का कोई विकास न किया जाए. इससे मोदी और शी जिंपिंग, दोनों की नाक बच जाएगी. इस आधार पर कोई समझौता हो तो जाड़े से पहले तनाव घटाने और फौजें वापस बुलाने का रास्ता खुल सकता है.


यह भी पढ़ें: भारत ने ब्लैक टॉप पर कब्जा किया, हेलमेट चोटी भी नियंत्रण में- चीन अब 1962 की रणनीति अपना सकता है


(ले. जनरल एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (रि.) ने भारतीय सेना की 40 साल तक सेवा की है. वे उत्तरी कमान और सेंट्रल कमान के जीओसी-इन-सी रहे. सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments