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Friday, 22 November, 2024
होमदेशसभी पीजी मेडिकल छात्रों के लिए अब जिला अस्पतालों में 3 महीने की पोस्टिंग अनिवार्य होगी

सभी पीजी मेडिकल छात्रों के लिए अब जिला अस्पतालों में 3 महीने की पोस्टिंग अनिवार्य होगी

अधिकारियों का कहना है कि यह कदम जिला अस्पतालों में अधिक विशेषज्ञों की मौजूदगी सुनिश्चित करेगा और साथ ही पीजी छात्रों को भी जिला स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर ढंग से समझने में आसानी होगी.

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नई दिल्ली: स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा में एक बड़ा बदलाव करते हुए केंद्र सरकार ने 2020-21 में शुरू होने वाले शैक्षणिक सत्र से एमडी या एमएस करने वाले सभी छात्रों के लिए जिला अस्पतालों में तीन महीने की पोस्टिंग अनिवार्य कर दी है.

छात्रों को उनके तीसरे, चौथे या पांचवें सेमेस्टर में जिला अस्पताल में तैनात किया जाएगा. पीजी मेडिकल एजुकेशन तीन साल का कार्यक्रम है.

पिछले हफ्ते जारी गजट अधिसूचना के मुताबिक, ‘भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के तहत सभी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों में व्यापक स्तर पर विशेषज्ञता के लिए एमडी/एमएस करने वाले सभी स्नातकोत्तर छात्रों के लिए पाठ्यक्रम के एक हिस्से के तौर पर जिला अस्पतालों/जिला स्वास्थ्य प्रणाली में तीन महीने का रेजिडेंशियल रोटेशन अनिवार्य होगा.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘इस तरह का रोटेशन पोस्टग्रेजुएट प्रोग्राम के तीसरे या चौथे या पांचवें सेमेस्टर में होगा. इस रोटेशन को ‘डिस्ट्रिक्ट रेजिडेंसी प्रोग्राम’ (डीआरपी) कहा जाएगा और प्रशिक्षण से गुजरने वाले स्नातकोत्तर मेडिकल छात्र को ‘डिस्ट्रिक्ट रेजिडेंट’ कहा जाएगा.’

अधिकारियों के अनुसार, इससे तीन चीजें हासिल करने में मदद मिलेगी- जिला अस्पतालों में ज्यादा संख्या में विशेषज्ञ होंगे, स्नातकोत्तर डिग्री धारकों में जिला स्वास्थ्य प्रणाली की बेहतर समझ विकसित होगी और इससे एक समय के बाद मेडिकल कॉलेजों में 10,000-12,000 अधिक पीजी सीटें बढ़ जाएंगी.

गजट अधिसूचना में कहा गया है, ‘डीआरपी का मुख्य उद्देश्य होगा-(i) स्नातकोत्तर छात्रों को जिला स्वास्थ्य प्रणाली से अवगत कराना और सेवा के दौरान सीखने के लिए जिला अस्पतालों में उपलब्ध कराई जा रही स्वास्थ्य सेवाओं में उन्हें शामिल करना, (ii) उन्हें जिला स्तर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों की योजना, कार्यान्वयन, निगरानी और नतीजों के मूल्यांकन से परिचित कराना और (iii) उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के विभिन्न वर्गों की तरफ से दी जाने वाली प्रोत्साहन, निवारक, उपचारात्मक और पुनर्वास सेवाओं की तरफ उन्मुख करना.’

इसमें साथ ही कहा गया है कि ऐसा करने से पीजी मेडिकल छात्र भी ‘जिला टीम का सदस्य होने के नाते विशेषज्ञ रेजीडेंट के तौर पर जिला स्वास्थ्य प्रणाली की सेवाओं को मजबूत बनाने में विशेष योगदान देंगे.’


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‘कार्यक्रम के फायदे ही फायदे’

भारतीय चिकित्सा परिषद के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष डॉ. वी.के. पॉल ने इसे हर तरह से ‘फायदेमंद’ कार्यक्रम बताया जो तीन काम करेगा.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘सबसे पहले, यह सुनिश्चित करेगा कि पीजी छात्रों को बुनियादी स्तर पर जिला स्वास्थ्य प्रणाली के साथ उन मुद्दों को भी समझने में मदद मिले जिनका लोग एक जिला अस्पताल में सामना करते हैं. इस प्रकार उन्हें पूरे सिस्टम की बेहतर समझ के साथ विशेषज्ञ बनाया जा सकेगा.’

उन्होंने कहा, ‘दूसरे ये ऐसे छात्र होंगे जो अपने पीजी कोर्स का एक साल पूरा कर चुके होंगे, जिसका मतलब है कि विशेषज्ञ बन चुके हैं. ऐसे में हर जिला अस्पताल को अलग-अलग विषयों के 7-8 ऐसे विशेषज्ञ मिलेंगे. तीसरा, अपने पीजी कोर्स के दौरान छात्रों के एक तिमाही समय रेजिडेंसी में बिताने से मेडिकल कॉलेजों के लिए पीजी सीटें बढ़ाने का आवेदन देने की राह खुलेगी. एक अंतराल के बाद इस कार्यक्रम के कारण 10,000-12,000 पीजी सीटें बढ़ने की उम्मीद नजर आ रही है.’

इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए किसी भी जिला अस्पताल को उस स्तर/सुविधा वाले किसी विशेषज्ञ के लिए निर्दिष्ट सुविधाओं/कर्मचारियों के साथ कम से कम 100 बेड वाले सार्वजनिक क्षेत्र/सरकारी वित्त पोषित अस्पताल के तौर पर सक्रिय होना चाहिए.

जिला स्वास्थ्य प्रणाली में सार्वजनिक क्षेत्र/सरकारी वित्त पोषित सभी अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उप स्वास्थ्य केंद्र और शहरी स्वास्थ्य केंद्र आदि) के साथ ही किसी भी जिले का कम्युनिटी आउटरीच सिस्टम शामिल होगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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