‘इंडियन एक्स्प्रेस’ के ‘अड्डा’ कार्यक्रम में पिछले सप्ताह विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-चीन शिखर वार्ता के बारे में कथित तौर पर यह टिप्पणी की की ‘ये वार्ताएं इन बातों को लेकर हैं कि हम आगे बढ़ रहे हैं, आप आगे बढ़ रहे हैं, हम दुनिया की महाशक्तियों में गिने जाने वाले हैं. हम दोनों प्राचीन सभ्यताओं वाले देश हैं, जो चौथी औद्यगिक क्रांति में योगदान देंगे…. और संयोग से हम लगभग समानान्तर किस्म के कालखंड में आगे बढ़ रहे हैं.’
इस तरह की कहानी तीन दशक पहले शुरू हुई थी, दो विशाल एशियाई देश प्रगति की राह पर चल पड़े थे. यह समझने के लिए जयशंकर जैसी प्रतिभा या चीन के बारे में विषाद ज्ञान की जरूरत नहीं है कि यह लाइन अपनी समयसीमा पीछे छोड़ चुकी है. चीन ने भारत को हर मोर्चे पर पीछे छोड़ दिया है और अब वह इस महादेश पर अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है. शक्ति असंतुलन हर पैमाने पर साफ दिखता है और वह बढ़ता ही जा रहा है. चीन अब बीते दौर की महाशक्ति को चुनौती दे रहा है, जबकि भारत अपने प्रभाव क्षेत्र में अड़चन नहीं, तो चुनौती महसूस कर रहा है. दोनों देश बेशक समानान्तर किस्म के कालखंड में आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन दोनों की कामयाबियों की तुलना करें तो इस बात का खास महत्व नहीं रह जाता.
अगर शी जिनपिंग के साथ वार्ता में यह कहा जाता कि भारत और चीन साथ-साथ प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहे हैं, तो सत्ता के उनके सरीखे खिलाड़ी ने इस संदेश को किस तरह लिया होता? चीन की आज वह हालत नहीं है, जो 2010 में थी जब मनमोहन सिंह और चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने एक संयुक्त बयान में कहा था, ‘दुनिया में इतनी गुंजाइश तो है ही कि चीन और भारत दोनों विकास कर सकें, और इतने अवसर तो हैं ही कि दोनों देश सहयोग कर सकें.’ चीन अपनी ताकत और अपना वर्चस्व बढ़ाता गया है, जबकि भारत उससे पीछे पड़ता गया है और इससे शक्ति असंतुलन बढ़ता गया है. चीन दुनिया का अग्रणी मैनुफैक्चरर है, व्यापारिक सामान का सबसे बड़ा निर्यातक है और ऐसी कई तकनीक में आगे बढ़ चुका है जिनका सैन्य उपयोग हो सकता है. हम आज एकदम अलग चीन से रू-ब-रू हैं. उसके बराबर होने का दावा खुद को शर्मसार किए जाने को निमंत्रित करना है.
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इस संदर्भ में सेवानिवृत्त राजनयिक राजीव डोगरा की किताब ‘इंडियाज़ वर्ल्ड : हाउ प्राइम मिनिस्टर शेप्ड फॉरेन पॉलिसी’ ज्ञान वृद्धि कर सकती है. इसमें बताया गया है कि 1962 के युद्ध के समय चीनी राष्ट्रपति लिउ शाओकी ने श्रीलंका के फेलिक्स भंडारनायके से कहा था कि यह युद्ध ‘भारत की अकड़ और उसकी शान के मुगालते को तोड़ने’ के लिए है. इसको ध्यान में रखते हुए पिछले साल लोकसभा में वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान को देखिए—’जब भी मैं जम्मू-कश्मीर और पीओके की बात करता हूं तो उसमें अकसाई चीन की बात भी शामिल होती है. हम उसके लिए जान दे देंगे.’ हकीकत से वाकिफ लोग इसे बड़बोलापन ही मान कर खारिज कर देंगे. और चीन इसे फिर भारत की ‘अकड़’ के रूप में ले सकता है.
पॉल केनेडी ने अपनी किताब ‘द राइज़ ऐंड फॉल ऑफ ग्रेट पावर्स’ में सैन्य टक्कर को आर्थिक परिवर्तन के संदर्भ देखने की कोशिश की है, ‘अर्थशास्त्र और सामरिक नीति के बीच संवाद’ के रूप में देखने की. उनका मानना है कि मुद्दा यह है कि कोई देश युद्ध नहीं बल्कि शांतिकाल में किस तरह प्रगति या अवनति करता है, और दूसरे देशों की तुलना में वह कहां पहुंचा है. जयशंकर के बयान के संदर्भ में देखें तो लगेगा कि भारत ने चीन के साथ अपने संवादों में केनेडी के ठोस तर्कों की अनदेखी की है— अगर ‘दोनों देशों ने साथ-साथ प्रगति की है’ वाली टिप्पणी को वास्तविकता के संदर्भ में देखें तो.
शी के साथ जो भी बातचीत हुई हो, किस्मत से भारत हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा रहा.
चीन के साथ अपने शक्ति असंतुलन को उसने दूसरे देशों से ज्यादा संपर्क करके कम करने की कोशिश की है. सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए उसने लद्दाख तक पहुंचने के लिए सुरंगें बनाई हैं, उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र पर फूलों का निर्माण किया है और विवादित सीमाओं पर सुविधाएं बढ़ाने के लिए कई रास्तों का निर्माण किया है. अफसोस की बात यह है कि करगिल युद्ध के समय और आज भी हमारी सेना अपनी जमीन खोने के बाद ही नींद से जागी. भारत आज 1962 वाली स्थिति में बेशक नहीं है. लेकिन उसका ज़ोर अब और जमीन न गंवाने पर है, जबकि बाकी सब कुछ कूटनीति के भरोसे छोड़ने पर है, जिसका खास नतीजा नहीं मिल रहा है.
कंजूसी वाले बजट से मजबूत सेना नहीं बन सकती. मैनुफैक्चरिंग की ताकत और तकनीकी क्षमता बढ़ाने की भी जरूरत है. अगर भारत के मानव विकास संकेतक, प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े दूसरे देशों के आंकड़ों में नीचे से तीसरे नंबर पर होंगे तो यह संभव नहीं हो पाएगा. इसके साथ सीमा पर जो टकराव और अनिश्चितता बनी है वह यह एहसास दिलाती है कि काल्पनिक नहीं बल्कि वास्तविक महाशक्ति बनने के लिए जाग जाने का समय आ गया है.
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आपने कहा कि भारत की स्थिति ये है कि वो और ज़मीन न गंवाए , वाह क्या बात है!, ये आपके निष्पक्षता पर सवाल है , और आपने कहा कि भारत ज़मीन गंवाने के बाद जागा , जबकी हकीकत ये है कि 2014 के बाद से ही बॉर्डर पर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कई गुना करने की शुरुआत हो चुकी थी, जो कि पिछली सरकार के चीन परस्त अथवा चीन से डरने के कारण नही हो पा रहा था ,मेरी टिप्पणी पर जरूर विचार कीजियेगा,
चीन का मुकाबला करने के लिए हम सभी को चर्खा चलाना चाहिये। चर्खा चलाकर बापू ने उन अंग्रेजों को भगा दिया जिनके राज में सूरज नहीं डूबता था।
चर्खे में कम शक्ति नहीं है, इसके सामने चीन के सब इसाइल मिसाइल तथा तोप तलवार फेल हो जायेंगे।
आपके जैसी देशद्रोही पत्रकारिता आज तक नहीं देखी ।
मुझे लगता है कि उन्हें सबसे कम संभव स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए पैसा मिलता है। ये वे लोग हैं जो कभी भी उस देश का समर्थन नहीं करते जहां हम शांति से रहते हैं। ये लोग अपना देश बेचना चाहते हैं। इस तरह के मीडिया आउटलेट देश में असहिष्णुता फैलाते हैं और दंगों के लिए जिम्मेदार हैं।
Desh k liye kuch bhi, first in the list is unsubscribing this . Jis thali mai khate ho wahi chhed kardo ho.
You forgot to mention, one thing China does better is kicking the ass of these kinda journalists. Yours should be kicked harder.
Ur anti india and pro china and pakistani sentiments are well known. Now as per ur article,even if india is a lot backward than china, its capable of giving china a befitting reply. It has done so in 2017 at doklam, 1987, 1967 and 2020. Imagine the situation if it were comparable with china. And believe or not, another few years, india will gain traction, just because china is communist, it has so many issues, all these issue will join hands and then it will be countered. Same thing happened with Hitler and his nazi party.
देश में कितने पत्रकार कम्युनिस्ट चीन से तनख्वाह पाते हैं ?
its a report from hare brained anti national journalists who are paid by china to spread panic.. india is poorer than china doesnt mean india is eeaker than china.. any misadventure by china would be to its own detriment
Lambi lambi fekna na mujhe aata h aur na mujhe fekne ka shauk h…Gupta ho isliye har cheej ko paise aur tarakki se dekhte ho lekin sacchai tumhare dimag se bhut dur h…Bharat ki reedh ki haddi bhut mazboot h aur isko core me jo Congress ka keeda laga hua tha aaj vo Ghun hamesa ke liye ja chuka hai…me to sirf yahi khuga ki agar cheen apni barbadi chahta h to ek baar bharat me attack krke dekh le…haddiyo ka choorna na Nikal jaye to dekhna…Bharat bhut alag aur Mahan desh h bhai ise barbad karne wale kai aaye aur chale gye Rise aur fall ki continues series se gujra h ye desh lekin aaj bhi seena tane khada hai aur hamesa khada rahega Jay Hind Bharat Mata ki jay
जी आप ठीक कह रहे हैं कि चीन हमसे हर क्षेत्र में बोहत आगे है,
लेकिन हम 2014 के बाद ही उनसे पिछड़े हैं,
पहले हम उनसे हर क्षेत्र में बोहत आगे थे,
धन्यवाद इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए, इस देश से विपक्ष को खत्म करने के लिए राजनीतिक दल ही जिम्मेदार नही हैं बल्कि आप जैसे पत्रकार, बुद्धिजीवी और विशेषज्ञ भी शामिल है
किसी भी देश को विकसित करने के लिए की सरकार की महत्व पूर्ण भूमिका होती है
जिस देश का आप महिमा मंडन कर रहे उसे विकसित करने का मौका भी पूर्व की सरकारों ने दिया।
छः सात दशको में आम आदमी आम ही बना रहा मानव विकास पर कभी ध्यान ही नही दिया ।एक राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए हर एक मानव का विकसित होना, आत्म निर्भर होना जरूरी है।
आज हम चीन को हर क्षेत्र में आगे होने की दुहाई दे रहे है उसकी एक वजह यह भी उसका अन्य किसी देश से कोई सीमा विवाद नही है हम कई दशकों से कई मोर्चो पर आज भी लड़ रहे है।
राष्ट्र को विकसित करने में एक बडा़ कारण जनसंख्या भी है वहाँ हम दो हमारे एक ,यहाँ हम दो, हमारे बहुत सारे।
हमें अपने राष्ट्र में कुछ भी बोलने लिखने की आजादी है कम्यूनिस्टो के देश में नही।
पत्रकारिता की हद पार कर दी आप जैसे कम्युनिस्ट पत्रकारों ने, हमेशा देश को निचा दिखाने का काम किया है ।
Manta hu China humse aagey tha lekin abhi ki stithi dekh kar ye lag raha hai ki China ki tarraki sab bekar ho gaye jis tarah humari sena ke aagey China ki hawa nikal gaye hai agar Bharat ki sena aagey badh gaye to Chin .apni vistarvadi ki neeti bhool jaayega.
That does not mean India should not stand up n look China in the eye n give then a bloody nose.
Congress ki chin se mili bhagat hai satta me wapasee ke liye ye 1999 me pakistaan ke saath mil ke ye kar chuke hai
जो देश के एयरपोर्ट रेल्वे लाल किला एल आई सी को बेच दे उस सरकार से हम क्या आस कर सकते है
“Nindak niyare rakhiye angan kuti chchavaye” ki pramanikta ko sthapit karne wali tippani / samalochana ki praroop diya aap badhaiye ke patr hain. Kam se kam vartman-netritwa ne desh ko dhakne mein rakhne ka prayas to nahin hi kar raha hai lekin , 65-70 vershon tak desh ko dhokhe mein rakhte huye apni akshamata ki pehchan heen ko saunpata chala gaya, apne udyog / samrikata ki matr COMMUSSION – KHORI KI BALI CHDHATA , APNI ASMITA KI BALI CHADHATA chala gaya ki APNA SONA CHEEN KO SAUNPATA CHALA AYA jiske badle Khel- khilauna, plastic, khokhale TAKNIKI WALE JHUN-JHUNE BHARAT ko bechata chala AYA DESH KO JAGRIT KARNE KI DISHA mein AATMANIRBHARTA KA BEENNA TO UTTHAYA hi nishchay jo nikat bhavishya mein BHARAT ko apne Arthik, Samrik, Atmnirbharta aur Desh ko MAJBOOT v GAURAVSHALI sthiti ki Dasha aur Disha ki Pardarshi Ayam to de hi chuka hai jo , kam se kam DESH KI ASMITA ko Dao par lagne par viram to laga hi diya. BHARAT AUR VERTMAN NETRITVA KI is VERTMAN vyavastha se POORA VISHW PARICHIT HO CHUKA HAI. JAI BHARAT MATA.
Useless, misguiding and antinational journalism
Cheen Ke Chance Ab Yahan BHI As Gaye Hain.
चीन और पाकिस्तान से पत्रकारों का वेतन आना बंद हो गया है क्या? थोड़ा और भारत विरोधी लिखिए शायद दुबारा फंडिंग शुरू हो जाए! शर्म आती है जब पूरा देश इस मुद्दे पर साथ खड़ा है तब आप निष्पक्ष पत्रकारिता के नाम पर अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए है।
दी प्रिंट, भारत की चिंता न करे वो चीन की करें। भारत पिछड़ा है या आगे निकल गया ये जब युद्ध होगा तब पता लग जाऐगा। तुमलोग अपनी सोचो अगर भारत चीन को हर देगा तो तुमलोगों का खर्चा पानी निश्चित ही बंद हो जाएगा।
वाह रे तुम्हारी पत्रकारिता, सालो और अपने पाठको से सहयोग मांगते हो। अभी के अभी तुम्हारा चैनल unsubscribe करता हु। जाओ अपने बाप के पास उसी से भीख मांगो और उसी का महिमामंडल करो।।