रायपुर: छत्तीसगढ़ में माओवादी विरोधी अभियान में एक नया फार्मूला अपनाते हुए बस्तर पुलिस ने मंगलवार को मीम-पोस्टर अभियान की शुरुआत की जिसमें मीम और डेटा के माध्यम से नक्सल गतिविधियों को दर्शाया गया है.
बस्तर के पुलिस अधिकारियों का दावा है कि सोशल मीडिया के युग में माओवादियों को उनके अपनी भाषा में जवाब देने का यह एक सटीक और असरदार कदम साबित होगा.
बस्तर पुलिस ने अपने पोस्टर अभियान को ‘छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ प्रोपगैंडा’ बताया और इसे ‘माओवादी कैडरों के असली चेहरे को बेनकाब करने वाला कदम’ कहा है.
पुलिस अधिकारियों के अनुसार यह अभियान अंग्रेजी में ‘वॉयस ऑफ बस्तर’, हिंदी में ‘बस्तर की आवाज़’, गोंडी में ‘बस्तर ता माटा’ और हल्बी में ‘बस्तर चो आवाज’ के नाम से लांच किया गया है.
गोंडी और हल्बी में पोस्टर रिलीज करने का मकसद स्थानीय जनता विशेषकर युवाओं के लिए इसे अनुकूल और सुगम बनाना है ताकि माओवादियों के कुकृत्य का प्रचार अधिक से अधिक जनता तक पहुंचे.
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स्थानीय लोगों को संवेदनशील बनाने का कदम
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह प्रोपगैंडा अभियान राज्य में माओवादी नेताओं के ‘आदिवासी और विकास विरोधी कार्यों’ के विरोध में स्थानीय आबादी को संवेदनशील बनाने के लिए एक अहम कदम है.
पोस्टर अभियान के प्रस्तावक और बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने दिप्रिंट से बात करते हुए जानकारी दी कि, ‘यह अवधारणा नई नहीं है लेकिन इस बार यह अधिक सघन है. यह एक परसेप्शन प्रबंधन है जो सुरक्षाबलों की कार्यशैली का हिस्सा होता है.’
उन्होंने कहा, ‘पहले भी हम पर्चे और लीफलेट्स के द्वारा प्रचार करते थे लेकिन तब ऐसे प्रोपगैंडा का दायरा बहुत कम था जो मुख्यतः अंग्रेजी और हिंदी भाषाओं तक सीमित था. अब स्थानीय हल्बी और गोंडी बोली को भी शामिल किया गया है जो नक्सलियों के खिलाफ स्थानीय जनता का विश्वास जीतने और उन्हें जागरूक करने में मददगार साबित होगा.’
दंतेवाड़ा के एसपी अभिषेक पल्लव ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस कदम से पुलिस को सोशल मीडिया के इस दौर में पुलिस को स्थानीय लोगों तक माओवादी विरोधी अभियान में आसानी और तेजी से पहुंचने में मदद मिलेगी. इसके सबसे ज्यादा फायदा युवाओं को होगा.’
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तीन पोस्टर और संदेश
बस्तर पुलिस द्वारा जारी किए गए तीन पोस्टरों के पहले सेट में से एक में माओवादी नेता बसवराज को अपने अधीनस्थ नक्सली और एक डिवीज़न कमेटी सदस्य देवा के बीच बातचीत पर व्यंग्य किया गया है.
बसवराज पोस्टर में देवा से नक्सलियों के गढ़ों में पुलिस कैम्पों के विस्तार और उसके बारे में जनता की राय पर रिपोर्ट मांग रहा है. बसवराज, देवा को निर्देशित करता है की वह ग्रामीणों को पुलिस के ‘जनता कैम्प’ में भाग लेने से रोकने के लिए अपने फ्रंटल संगठनों पर दबाव बनाए, नहीं तो जनता जागरूक हो जाएगी और माओवादियों का सफाया हो जाएगा. इस पर देवा कहता है कि उसे नहीं लगता वे जनता को झूठे प्रचार से बहुत दिनों तक गुमराह कर सकते हैं, फिर भी वह कोशिश करेगा.
बाकी दो पोस्टर पिछले 20 वर्षों में राज्य में माओवादियों की हिंसा का लेखा-जोखा दे रहे हैं.
बस्तर के आईजी सुंदरराज ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी जैसे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की मदद से राज्य पुलिस ने सीपीआई माओवादियों के गढ़ों में काफी घुसपैठ की है. इसके अलावा डीआरजी, एसटीएफ और कोबरा जैसे नक्सल विरोधी सुरक्षा टुकड़ियों के गठन से माओवाद विरोधी लड़ाई में राज्य पुलिस को काफी बढ़त मिली है.
सुंदरराज ने कहा, ‘रेड गुरिल्लों के खिलाफ चल रहे सशस्त्र अभियानों के अतिरिक्त, माओवादियों का असली रूप जनता के सामने लाना बेहद आवश्यक है. इसी उद्देश्य से बस्तर पुलिस ने नक्सलियों के कुकर्मों के खिलाफ एक काउंटर प्रोपगैंडा अभियान शुरू किया है.’
बस्तर आईजी ने कहा कि आने वाले दिनों में इस अभियान में पोस्टर के साथ लघु फिल्मों, ऑडियो क्लिप और प्रचार की दूसरे तरीकों की एक लंबी सीरीज़ दिखाई देगी क्योंकि बस्तर पुलिस नक्सलियों के खिलाफ एक के बाद एक अभियान चलाएगी.
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