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Friday, 22 November, 2024
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महिला सुरक्षा के लिए CCTV कैमरा लगाने और पंचायत घर में लाइब्रेरी शुरू करने वाली कौन हैं हरियाणा की परवीन कौर

सरपंच के कार्यकाल के दौरान परवीन ने गांव में महिलाओं की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरा लगाने, वॉटर कूलर, 8वीं तक के बच्चों के लिए पंचायत घर में लाइब्रेरी शुरू कराने और सोलर लाइट्स लगाने का काम किया है.

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नई दिल्ली: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाल ही में राज्य की सबसे युवा महिला सरपंच की तारीफ करते हुए ट्विटर पर लिखा कि हरियाणा की बेटियों में अपनी आवाज़ और कार्यों के माध्यम से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की ताकत, संकल्प और जुनून है.

इसके बाद 21 साल की उम्र में कैथल जिले के ककराला कुचियां गांव की सरपंच बनी परवीन कौर की सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है.

दिप्रिंट से बात करते हुए परवीन कौर बताती हैं, ‘आगामी जनवरी 2020 में एक सरपंच के तौर पर मेरा कार्यकाल खत्म हो जाएगा. लेकिन इन पांच सालों में मैं अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि यही मानती हूं कि मैं अपने गांव की लड़कियों को बाहर निकलने और कुछ करने के लिए प्रेरित कर पाई. आज कई सारी लड़कियां सरपंच बनने के बारे में सोचती हैं.’

परवीन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा साल 2017 में महिला दिवस पर सम्मानित हो चुकी हैं. इसके अलावा हरियाणा सरकार भी उनके प्रयासों के लिए कई बार उन्हें सम्मानित कर चुकी है. इसके अलावा गुजरात से लेकर अन्य राज्यों की 200 से अधिक संस्थाओं ने उनके काम को सराहा है.

सरपंच के कार्यकाल के दौरान परवीन ने गांव में महिलाओं की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरा लगाने, वॉटर कूलर, 8वीं तक के बच्चों के लिए पंचायत घर में लाइब्रेरी शुरू कराने और सोलर लाइट्स लगाने का काम किया है.

सरपंच परवीन कौर | फोटो: विशेष प्रबंध

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परवीन की जर्नी क्या रही?

जनवरी 2016 के पंचायत चुनावों में हरियाणा सरकार ने शैक्षिक योग्यता को तरजीह दी थी. सामान्य महिला का 8वीं पास होना जरूरी थी और अनुसूचित जाति की महिला 5वीं. सामान्य पुरुष का 10वीं और अनुसूचित जाति के पुरुषों के लिए 8वीं. हालांकि उस वक्त सरकार के इस फैसले का विरोध भी किया गया था. लेकिन परवीन के लिए ये फैसला उनके हक में साबित हुआ.

परवीन के पिता 12वीं तक ही पढ़ पाए थे और उसके बाद बिजली विभाग में ठेकेदारी का काम करने लगे थे. परवीन की मां घरेलू कामकाज करती हैं. गांव में सड़क और बस की सुविधा के अभाव में वो शहर में रहने चले गए. परवीन का एक छोटा भाई अब बैंक में काम करता है और एक छोटी बहन ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही है.

वो दिप्रिंट से हुए टेलिफॉनिक साक्षात्कार में कहती हैं, ‘इस कार्यकाल के लिए मेरे गांव में महिला सरपंच के लिए सीट आरक्षित थी. गांव में पढ़ी-लिखी उम्मीदवार नहीं थी तो गांव वालों ने मिलकर मुझे बिना चुनाव के ही सर्वसम्मति से सरंपच चुन लिया था. मैं और मेरा परिवार पढ़ाई के लिए शहर आ गए थे. लेकिन गांव से जुड़ाव था तो मैंने पूरी लगन के साथ काम किया.’

वो आगे कहती हैं, ‘लेकिन मेरा सपना था इंजीनियर बनना. उसके बाद मैंने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. पिछले पांच साल में मैंने हफ्ते के पांच दिन पढ़ाई की है बाकी दो दिन गांव को दिए हैं.’

ककराला-कुचियां गांव में लगभग 1200 वोट हैं. हालांकि परवीन के सरपंच रहते हुए उनके पिता ने उनके कामों में ज़िम्मेदारी निभाई है. वो इसका क्रेडिट अपने पिता और गांव वासियों को देते हुए कहती हैं, ‘बिलकुल मेरे पिता और बाकी लोगों ने मदद कराई है. मैं पढ़ाई छोड़ना नहीं चाहती थी लेकिन सबके समर्थन की वजह से ही मैं अच्छा काम कर पाई.’

2016 में पूरे हरियाणा में 2565 महिला सरपंच चुनी गई थीं. इसके बाद सरपंच बनी कई महिलाओं ने अपने-अपने गांव में पर्दा प्रथा यानि घूंघट को खत्म करने का काम किया था जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर तारीफ की गई थी.

लेकिन पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षित सीटों की बजाए महिला केवल डमी कैंडिडेट का ही रोल निभा पाती हैं. वो ब्लॉक लेवल की मीटिंग्स तक अटेंड नहीं कर पाती. गांव से जुड़े फैसले या तो उनके ससुर या फिर पति या फिर देवर ही लेते हैं.

परवीन अपने अनुभव से बताती हैं कि पंचायत में महिलाओं को आरक्षण देने का फायदा हुआ है. भले ही महिलाएं अभी कम खुलकर सामने आ रही हैं लेकिन आगे चलकर ये नंबर बढ़ जाएंगे. दूसरी महिला सरपंचों से अपनी बातचीत के आधार पर वो कहती हैं कि महिलाएं गवर्नेंस में रूचि ले रही हैं और अक्सर इससे जुड़े मसलों पर चर्चा भी करती हैं.

फिलहाल परवीन चंडीगढ़ से वेब डिज़ाइनिंग कोर्स कर रही हैं और आगे नौकरी करना चाहती हैं.


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