कोलकाता: 21 साल से कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, पश्चिम बंगाल की बरहामपुर सीट से सांसद चले आ रहे हैं- वो 2014 और 2019 की दो मोदी लहरों से भी बच निकले.
लेकिन अपने पांच कार्यकालों के दौरान ज़्यादातर, पश्चिम बंगाल के इस कांग्रेस नेता के पास पार्टी या सरकार में कोई अहम पद नहीं रहा. इसमें बदलाव तब शुरू हुआ, जब 2019 में उन्हें पहली बार लोकसभा में कांग्रेस का नेता, और फिर लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बना दिया गया.
बुधवार को, चौधरी का करियर एक पायदान और ऊपर चढ़ गया, जब उन्हें पश्चिम बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. ये पद एक महीना पहले सोमेंद्र मित्रा की मौत के बाद ख़ाली हुआ था.
चौधरी 2014 से 2018 के बीच, पहले भी इस पद पर रह चुके हैं, लेकिन इस बार उनकी तरक्की दो मायनों में अहम है- एक तो, ये 2021 के विधान सभा चुनावों से पहले हुई है, जो दिलचस्प रहने वाले हैं, और दूसरा ये, कि पश्चिम बंगाल के इस नेता में, कांग्रेस हाई कमान का भरोसा बढ़ रहा है.
चौधरी ने फोन पर दिप्रिंट से कहा, ‘मेरे पास पहले से ही कुछ अहम ज़िम्मेदारियां हैं, इसलिए शुरू में मैंने इसका विरोध किया, और दूसरे नेताओं के नाम सुझाए, लेकिन मैडम (सोनिया गांधी) ने मुझे कॉल किया, और राज्य में पार्टी की कमान संभालने को कहा’.
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ममता के लिए अभिशाप
चौधरी की तरक्की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए, एक बड़ा झटका हो सकती है, जो कांग्रेस के क़रीब आने की फिराक़ में थीं. ममता उन सात मुख्यमंत्रियों में थीं, जिन्होंने अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बुलाई, एक बैठक में शिरकत की थी. लेकिन चौधरी राज्य के एकमात्र कांग्रेस नेता हैं, जो बिना किसी लाग लपेट के, मुख्यमंत्री के सबसे घोर आलोचक बने रहे हैं.
शुक्रवार को, उन्होंने बिल्कुल साफ कर दिया, कि उनकी प्राथमिकता सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस से दो दो हाथ करना है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘बेशक, मुख्य चुनौती बीजेपी से ही है लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ये हमारे लिए भी एक मौक़ा है. पिछले साल (लोकसभा चुनावों में) बीजेपी को जो वोट मिले, वो बीजेपी के वोट नहीं थे’. उन्होंने आगे कहा, ‘बीजेपी को जो वोट मिले, वो ममता विरोधी वोट थे. हम अपने मज़बूत क्षेत्रों में, अपनी जगह बनाए रख सकते हैं और ‘किंगमेकर’ की भूमिका में आ सकते हैं. मैं पार्टी को उसी दिशा में ले जाऊंगा’.
एक सीनियर कांग्रेसी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, कि चौधरी का तर्क ये है कि यदि कांग्रेस को 2024 में अच्छा करना है, तो उसे 2021 में ममता बनर्जी को घेरना होगा.
उन्होंने आगे कहा, ‘ये गणित कुछ इस तरह से है. ममता को लगने वाला चुनावी झटका, 2024 चुनावों में कांग्रेस का रास्ता साफ करेगा’.
प्रदेश कांग्रेस के एक और नेता ने कहा कि चौधरी कभी नहीं चाहेंगे कि ममता को ‘कांग्रेस कार्यकर्ताओं का वांछित समर्थन मिले’, और वो मुख्यमंत्री को ज़्यादा से ज़्यादा नुक़सान पहुंचाने की कोशिश करेंगे.
चौधरी की नियुक्ति ने तृणमूल कांग्रेस का उत्साह ठंडा करने का काम किया है. तृणमूल कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने कहा, ‘हम अपेक्षा कर रहे थे कि कुछ कांग्रेसी नेता, बीजेपी के खिलाफ हमारी हिमायत में बोलेंगे लेकिन अब अधीर के इंचार्ज होने से, ऐसा कभी नहीं होगा’.
‘लड़ाई तृणमूल और बीजेपी के बीच रहेगी. अधीर की अगुवाई में ये तीसरी शक्ति, कुछ क्षेत्रों में किसी एक पार्टी की, जीत का अंतर घटा सकती है. अब हमें देखना है कि ये हमारे लिए कैसा रहने वाला है’.
लेकिन सीपीआई(एम) ने चौधरी की नियुक्ति का स्वागत किया है और उसे उम्मीद है कि इससे, कांग्रेस-सीपीएम गठबंधन की संभावना मज़बूत होगी.
सीपीआई(एम) के पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम ने कहा, ‘मैं सोनिया जी को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने अधीर बाबू को पीसीसी अध्यक्ष बनाया. वो अकेले इंसान हैं जो बंगाल में ममता बनर्जी और बीजेपी से मुक़ाबला कर सकते हैं’.
‘हमने 2016 में साथ मिलकर काम किया था और अच्छा ख़ासा वोट शेयर हासिल किया था लेकिन 2019 में, गठबंधन नहीं हो पाया और हमने नुकसान उठाया. कांग्रेस-सीपीएम गठबंधन हमेशा तृणमूल और बीजेपी जैसी ताक़तों को पीछे धकेलेगा’.
बंगाल की रणभूमि
चौधरी की नियुक्ति ने पश्चिम बंगाल की चुनावी पिच को और गड़बड़ा दिया है. कांग्रेस भले ही इस सूबे में अपनी ज़मीन खो रही हो, लेकिन उसके पास अभी भी 44 विधानसभा सीटें हैं, जो उसने 2016 में चौधरी की अगुवाई में जीतीं थीं.
सीटों की संख्या के मामले में, पार्टी अभी भी राज्य विधान सभा में मुख्य विपक्ष की भूमिका में है.
प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के तौर पर चौधरी का पिछला कार्यकाल, मुख्यमंत्री से वाकयुद्ध के बाद भले ही अनौपचारिक तरीक़े से ख़त्म हो गया हो लेकिन उनके आलोचक भी मानते हैं कि इस समय इस पद के लिए, वो सबसे अच्छा चुनाव हैं.
एक वरिष्ठ पीसीसी लीडर ने कहा, ‘उनके ऊपर गंभीर शिकायतें थीं कि वो गुटबाज़ी की राजनीति करते हैं और ग्रुप बनाते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन सोमेन दा की मौत के बाद वो अकेले नेता हैं जो यहां इस पार्टी को चला सकते हैं. इसके अलावा वो गांधी परिवार के भी सबसे चहेते नेताओं में से एक हैं. वो अभी भी एक ऐसे नेता हैं, जो दो टूक बात करते हैं’.
लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है कि उन्हें अभी बहुत काम करना है. कांग्रेस का वोट शेयर जो 2016 के विधानसभा चुनावों में क़रीब 13 प्रतिशत था, 2019 के लोकसभा चुनावों में घटकर 5.5 प्रतिशत रह गया- पार्टी के पास केवल दो लोकसभा सीटें रह गईं.
कोलकाता स्थित एक राजनीतिक विश्लेषक प्रो. समीर दास ने कहा, ‘अधीर चौधरी में बेहतरीन नेतृत्व के गुण हैं लेकिन उनका प्रभाव दो-एक ज़िलों तक ही सीमित है’.
‘अपना खोया जनाधार वापस पाने के लिए, पार्टी संगठन को मज़बूत होना पड़ेगा. इस बीच ऐसा लगता है कि उन्होंने सोनिया गांधी का भरोसा जीत लिया है. उनका नेतृत्व ममता की जीत के अंतर को कम कर सकता है लेकिन चुनावों में एक निर्णायक फैक्टर बनने के लिए, उनकी पार्टी को सड़कों पर उतरना होगा’.
दास ने ये भी कहा कि लेफ्ट और कांग्रेस के ‘निष्क्रिय गठबंधन’ ने, दोनों पार्टियों को नुक़सान पहुंचाया है.
दास ने कहा, ‘कांग्रेस को अपनी ख़ातिर अब अकेले चलना चाहिए लेकिन ये भी सच है कि दोनों पार्टियां, एक तीसरी शक्ति के रूप में काम कर सकती हैं जिससे विरोधी पार्टियों- तृणमूल या बीजेपी के हितों को नुक़सान पहुंच सकता है’.
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