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Thursday, 19 December, 2024
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10 राज्यों व केंद्र-शासित क्षेत्रों में कोविड फैलने के बाद से, 10,000 से अधिक हेल्थकेयर वर्कर्स पॉज़िटिव हुए

डॉक्टर्स, नर्सें, पैरामेडिकल स्टाफ, लैब टेक्नीशियंस और आशा वर्कर्स, उस श्रम बल में शामिल हैं जो संक्रमित हुआ. जनरल प्रेक्टीशनर्स और आउट-पेशंट सुविधाओं में काम करने वाले, सबसे ज़्यादा निशाना बने.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि पिछले पांच महीनों में, नौ राज्यों और दिल्ली में, 10,088 हेल्थकेयर वर्कर्स के टेस्ट कोविड-19 पॉज़िटिव पाए गए हैं. इनमें डॉक्टर्स, नर्सें, पैरामेडिकल स्टाफ, लैब टेक्नीशियंस और आशा वर्कर्स वग़ैरह शामिल हैं.

इनफेक्शन के लगभग आधे मामले, दिल्ली और पश्चिम बंगाल से हैं. सिर्फ इन दो राज्यों में अप्रैल से अब तक, 4,900 हेल्थकेयर कर्मियों के टेस्ट पॉज़िटिव पाए जा चुके हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल में केवल जुलाई अंत तक के आंकड़े उपलब्ध थे.

देश भर में संक्रमित हेल्थकेयर वर्कर्स के कोई केंद्रीय आंकड़े नहीं हैं, लेकिन 23 मई को इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में छपी एक स्टडी में, उस समय पॉज़िटिव मामलों की संख्या का अनुमान, 1,073 लगाया गया था.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का कहना है, कि वो ये आंकड़े इसलिए संकलित नहीं करता, चूंकि राज्यों के हेल्थकेयर वर्कर्स के वर्गीकरण में अंतर होता है.

मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हमारे पास संक्रमित हुए हेल्थकेयर वर्कर्स की कुल संख्या नहीं है, क्योंकि हर राज्य हेल्थकेयर वर्कर का मतलब, अपने हिसाब से लगाता है. हमारे पास राज्यों में संक्रमित हुए हेल्थकेयर वर्कर्स का प्रतिशत है, जो उनके सैम्पल्स पर आधारित है, और जिसे हमने राज्यों से साझा भी किया है”

दिप्रिंट ने दिल्ली और नौ राज्यों से आंकड़े हासिल किए हैं, और इनके लिए अधिकारियों और हेल्थकेयर वर्कर निकायों का सहारा लिया है.


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दिल्ली और पश्चिम बंगाल- सबसे अधिक प्रभावित राज्य

दिप्रिंट ने दिल्ली और नौ राज्यों से आंकड़े हासिल किए हैं-पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, असम, मणिपुर, नागालैण्ड, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़- जहां कुल 10,088 हेल्थकेयर वर्कर्स संक्रमित हुए हैं (बॉक्स देखें).

पश्चिम बंगाल में संक्रमित हेल्थकेयर वर्कर्स की संख्या, सबसे अधिक दर्ज की गई है, और राज्य के स्वास्थ्य विभाग का कहना है, कि जुलाई तक लगभग 2,800 स्वास्थ्य व्यवसायी पॉज़िटिव पाए जा चुके थे.

उसके बाद दिल्ली का नम्बर आता है, जहां स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अनुसार, काम की जगह पर कम से कम 2,100 हेल्थकेयर वर्कर्स संक्रमित हुए हैं.

तीसरे नम्बर पर तेलंगाना है, जहां राज्य के जन स्वास्थ्य निदेशक डॉ जी श्रीनिवास ने पुष्टि की है, कि अगस्त तक 1,500 से अधिक हेल्थकेयर वर्कर्स पॉज़िटिव निकल चुके थे.

असम के नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) के निदेशक, एस लक्षमणन ने कहा कि 10 अगस्त तक राज्य में, 1,215 हेल्थकेयर वर्कर्स संक्रमित हो चुके थे.

आंध्र प्रदेश में, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा, कि कम से कम 1,000 हेल्थकेयर वर्कर्स संक्रमित हुए हैं, जिनमें से 800 सरकारी मेडिकल व्यवसाई हैं.

छत्तीसगढ़ में, अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, कि अभी तक लगभग 540 डॉक्टर्स, नर्सें, और अन्य मेडिकल स्टाफ संक्रमित हो चुके हैं. राज्य के कोविड-19 सेंटर के एक अधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘पिछले डेढ़ महीने में वायरस से संक्रमित होने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स की संख्या, 325 प्रतिशत या साढ़े तीन गुना बढ़ी है’.

दस राज्यों में सबसे कम संक्रमण नागालैण्ड में है, जहां स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, अभी तक केवल 110 हेल्थकेयर वर्कर्स संक्रमित हुए हैं.

महाराष्ट्र ने, जहां कोविड का केस लोड सबसे अधिक है, कोविड से संक्रमित होने वाले डॉक्टरों, और नर्सों की संख्या के विशिष्ट आंकड़े नहीं रखे हैं. लेकिन, महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल राज्य में, संक्रमण के शिकार डॉक्टरों की संख्या 500 से अधिक बताती है, जिसमें 8 प्रतिशत की ऊंची मृत्यु दर है.

यूपी स्वास्थ्य विभाग ने भी अभी तक आंकड़े जमा नहीं किए हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ (पीएमएसए) के अनुसार, 200 डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ, कोविड से संक्रमित हुए हैं.


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सबसे अधिक चपेट में हेल्थकेयर वर्कर्स

दिप्रिंट ने राज्यों में जिन डॉक्टरों, और सरकारी अधिकारियों से बात की, उनका कहना था कि हेल्थकेयर वर्कर्स पर, इनफेक्शन का सबसे ज़्यादा ख़तरा आउट पेशंट डिपार्टमेंट में रहता है, जो सभी मरीज़ों से मिलने की पहली जगह होता है.

मिसाल के तौर पर पश्चिम बंगाल में, एनआरएस मेडिकल कॉलेज व अस्पताल, और कोलकाता मेडिकल कॉलेज व अस्पताल जैसे सरकारी अस्पताल, बहुत बार क्लस्टर बने हैं, और संबंधित इकाइयों को अस्थाई तौर पर बंद करके, सैनिटाइज़ेशन के बाद खोलना पड़ा है.

राज्य में संक्रमित हुए हेल्थकेयर वर्कर्स की सूची बनाकर रखने वाले, वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम के, एक सीनियर डॉक्टर ने कहा, ‘ओपीडी में, मरीज़ आते हैं और हम उनका इलाज करते हैं, लेकिन बाद में उनमें से कुछ कोविड पॉज़िटिव निकलते हैं. हम सरकार से टेस्टिंग सुविधाएं बढ़ाने का अनुरोध कर रहे हैं, ताकि हमें नतीजे जल्दी मिल सकें.’

महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल ने भी कहा, कि जनरल फ़िज़ीशियंस को ख़तरा ज़्यादा है. काउंसिल के अध्यक्ष डॉ शिवकुमार उत्तूरे ने कहा, ‘किसी भी मरीज़ से सबसे पहले वही मिलते हैं, और मरीज़ की जांच में सोशल डिस्टेंसिंग नामुमकिन है. जब मरीज़ पहली बार चेकअप के लिए आता है, तो पता नहीं होता कि वो कोविड पॉज़िटिव है कि नहीं.’

दूसरी ओर असम में, हालांकि ड्यूटी पर रहना संक्रमण का एक मुख्य कारण रहा है, लेकिन लक्षमणन के अनुसार, ’30-40 प्रतिशत हेल्थकेयर व्यवसाइयों को, कोविड-19 संक्रमण कम्यूनिटी स्प्रेड की वजह से हुआ था’.


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सुरक्षात्मक गियर की कमी

जिन डॉक्टरों से दिप्रिंट ने बात की, उन्होंने बताया कि इन ओपीडी सेवाओं में पीपीई किट्स की कमी, संक्रमण का एक प्रमुख कारण है. डॉ उत्तूरे ने कहा, “ओपीडी में डॉक्टरों के पास एन-95 जैसे उचित उपकरण नहीं हैं, चूंकि वो महंगे होते हैं- क़रीब 140-150 रुपए का एक. हम सरकार से एन-95 मास्क की क़ीमत को कैप करने के लिए कह रहे हैं. पीपीई के लिए भी सरकार के कोई मानक नहीं हैं. उपलब्ध पीपीई किट्स के दाम 150 से 2,000 रुपए तक हैं”.

लेकिन दिप्रिंट ने जिन अधिकारियों से बात की, उनका कहना था कि संक्रमित होना, हेल्थकेयर वर्कर के लिए एक व्यवसायिक ख़तरा है. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ नूतन मुंडेजा ने कहा, ‘ये बस एक व्यवसायिक ख़तरा है, हेल्थकेयर वर्कर होने का. ये वायरस बहुत स्मार्ट है, ये बहुत विषैला नहीं है, लेकिन आसानी से संक्रमित कर देता है.’

उन्होंने ये भी कहा कि दिल्ली में पीपीई किट्स की कोई कमी नहीं है. ‘डॉक्टर्स अच्छी तरह से संरक्षित हैं और पीपीई किट्स की कमी नहीं है. कभी कभी छोटी-मोटी ग़लतियां हो सकती हैं, लेकिन प्रोटोकोल्स के मुताबिक़, सभी हेल्थकेयर वर्कर्स को पीपीई किट्स दी जा रही हैं.’

तेलंगाना में भी अधिकारियों ने कहा, कि सरकार अग्रिम मोर्चे के वर्कर्स को सुरक्षित करने के लिए सभी क़दम उठा रही है. निदेशक (जन स्वास्थ्य) डॉ जी श्रीनिवास ने कहा, ‘हम मेडिकल कैंप्स लगाकर भी सुनिश्चित कर रहे हैं, कि उनकी नियमित जांच होती रहे’.


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डॉक्टरों में ऊंची मृत्यु दर

8 अगस्त को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा, जिसमें हेल्थकेयर वर्कर्स के सामने पेश आ रहे ख़तरों पर रोशनी डाली गई थी. आईएमए डेटा के अनुसार, 27 अगस्त तक 2,000 डॉक्टर संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 296 डॉक्टर्स काम के दौरान अपनी जान से हाथ धो चुके हैं.

आईएमए महासचिव डॉ आरवी अशोकन ने दिप्रिंट को बताया था, कि संस्था की ओर से पीएम को लिखे गए पत्र का, जिसमें डॉक्टरों की समुचित देखभाल, और निजी व सरकारी सभी डॉक्टरों के लिए 50 लाख रुपए मुआवज़े की मांग की गई थी, अभी तक कोई जवाब नहीं मिला था.

निकाय ने 30 अगस्त को प्रधानमंत्री को एक और पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि कोविड से मरने वाले डॉक्टरों को, ‘शहीद’ का दर्जा दिया जाए, और एक ‘समावेशी राष्ट्रीय मुआवज़े’ का ऐलान किया जाए, जिसमें उनके नज़दीकी परिजन के लिए, मुआवज़ा और नौकरी शामिल हो.

आईएमए डेटा से पता चलता है, कि जिन डॉक्टरों ने अपनी जानें गंवाई हैं, उनमें 40 प्रतिशत से ज़्यादा जनरल फिज़ीशियंस रहे हैं. डॉ अशोकन ने कहा, ‘केंद्र ने अस्पतालों को तो पीपीई किट्स से लैस कर दिया है, लेकिन जो डॉक्टर्स अस्पताल भर्ती से पहले, मरीज़ का इलाज करते हैं, वो अच्छे से संरक्षित नहीं हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘केंद्र सरकार की गाइडलाइन्स के अनुसार, ओपीडी डॉक्टर्स के लिए पीपीई में केवल एन-95 मास्क और ग्लव्ज़ होते हैं. लेकिन मौहल्लों के अधिकांश क्लीनिक्स छोटे और भीड़-भाड़ वाले होते हैं. बुख़ार वाले मरीज़ भी दूसरों के साथ बैठकर इंतज़ार करते हैं. मास्क और ग्लव्ज़ पर्याप्त नहीं हैं. यहां पर बुख़ार और बिना-बुख़ार के मरीज़ों को अलग भी नहीं किया जाता, और आख़िरकार ऐसे हालात में हेल्थकेयर वर्कर्स भी संक्रमित हो जाते हैं’.

(अंगना चक्रवर्ती, मानसी फडके, मधुपर्णा दास, प्रशांत श्रीवास्तव और पृथ्वीराज सिंह के इनपुट्स के साथ )

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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