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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतमैं आसिम बाजवा हूं, मैं पाकिस्तान में पीज़्ज़ा और डिजिटल आर्मी लेकर आया, लेकिन आप मुझे जनरल पापा जॉनी बुलाते हैं

मैं आसिम बाजवा हूं, मैं पाकिस्तान में पीज़्ज़ा और डिजिटल आर्मी लेकर आया, लेकिन आप मुझे जनरल पापा जॉनी बुलाते हैं

रिटायर्ड ले. जन. आसिम बाजवा और उनका परिवार, अपने पीज़्ज़ा साम्राज्य को लेकर निशाने पर हैं, लेकिन पाकिस्तान के डिजिटल प्रचार में उनके ‘योगदान’ से, कोई इनकार नहीं कर सकता.

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वो अब मुझे जनरल पापा जॉनी कह रहे हैं. आपको पता है क्यों? क्योंकि मैं- रिटायर्ड ले. जन, आसिम सलीम बाजवा ने, इस ग़रीब मुल्क पाकिस्तान को बेहतरीन पैपरॉनी पीज़्ज़ा से परिचित कराकर, एक गुनाह किया है. मुझे इल्ज़ाम दीजिए, बेहतर होगा कि फांसी चढ़ा दीजिए, लेकिन आप देश के लिए मेरी महान ख़िदमात से इनकार नहीं कर सकते. हां, ये मामला निजी है, और ये मेरी पीज़्ज़ा बहादुरी की बात है.

मैं दुनिया की नम्बर वन फौज से, एक लेफ्टिनेंट जनरल की हैसियत से रिटायर हुआ, और मैंने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं देखा जिससे अब दोचार हूं. मैं जानता हूं कि पिछले कुछ दिनों में, आपने दुनियाभर में फैले मेरे कारोबार के बारे में सुना है- 99 कंपनियां, 133 पीज़्ज़ा ज्वॉयंट्स, अमेरिका में कोई 13 कमर्शियल प्रॉपर्टीज़, जिनमें दो शॉपिंग मॉल्स शामिल हैं- क्या हम सब को मॉल्स पसंद नहीं हैं. मैं तमाम शिकायत करने वालों से कहता हूं: मेहनत कर दोस्त, हसद ना कर. सच तो ये है कि पाकिस्तान जैसे ग़रीब मुल्क में, मेरे जैसा साम्राज्य खड़ा करना कोई मामूली कारनामा नहीं है.


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मेरी कारें और पीज़्ज़ा

वो लोग जो कहते हैं कि दूसरे मुल्कों के पास सेनाएं हैं, लेकिन पाकिस्तानी सेना के पास मुल्क है, अस्ल में एक गहरी दुविधा में हैं. हम अमीर आदमी हैं जो एक ग़रीब मुल्क में फंस गए हैं. आपको हमारी मुसीबतें नज़र नहीं आतीं? आपको लगता है कि ये आसानी से आ गईं? मैं आटा गूंधते हुए ऊपर चढ़ा हूं, और वो भी बिना ईस्ट का. दिल पर हाथ रखकर, ज़रा मेरे संघर्ष का अंदाज़ा कीजिए.

मेरा बैंक बैलेंस, मेरी जायदाद, मेरे कॉर्नर प्लॉट्स, मेरी शानदार टोयोटा ज़ेडएक्स 2016, सब पाकिस्तान के बड़े राष्ट्रीय हित में हैं. अगर पाखंड का कोई चेहरा होता, तो वो मेरा होता, लेकिन फिर भी आप चाहते हैं, कि मैं आपको अपनी दौलत का रास्ता बता दूं. आप इसे भ्रष्टाचार कहते हैं? क्या आपको हमारे नेशनल नैरेटिव का 101 नम्बर याद है: इस अज़ीम मुल्क में सिर्फ सियासतदां करप्ट हैं, सिविल सोसाइटी करप्ट है, मेरे जैसे नहीं हैं. इसे सौ बार दोहरा लीजिए, बेहतर होगा कि अपने बिस्तर के पास टांग लीजिए.

अगर आप मुझे नहीं जानते, तो आपको उससे ज़्यादा जानने की ज़रूरत नहीं है, जितना आप पहले से जानते हैं. माफी चाहता हूं, लेकिन मेरे रिटायरमेंट फायदों के लिए, मुझे ज़िम्मेदार ठहराने से कुछ नहीं बदलेगा.


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पूरी तरह पेशेवर

अब मैं अपनी ज़िंदगी के उस हिस्से पर आता हूं, जिसमें मैं एक सियासतदां के तौर पर काम करता हूं. हालांकि मेरे दोस्त मुझसे कहते हैं कि मेरी क़िस्मत तब बिगड़नी शुरू हुई, जब मैं वज़ीरे आज़म इमरान ख़ान के साथ शामिल हुआ, क्योंकि जिस चीज़ को छूते हैं, कचरा हो जाती है.

मैं अब प्रधानमंत्री के साथ विशेष सूचना सहायक हूं. ये इंटर सर्विसेज़ पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआऱ) में बतौर डायरेक्टर जनरल, मेरे पिछले अनुभव की वजह से है. मेरे बाद जो लोग आए वो मेरे जलवे का मुक़ाबला नहीं कर पाए. और जो मुझसे पहले आए, उन्हें पता ही नहीं था कि आईएसपीआर को कैसे चलाते हैं.

आईएसपीआर में, पाकिस्तान की सूचना क्रांति मेरे साथ शुरू हुई. डिजिटल ट्रोल सेनाएं, हैशटैग्स, तब के आर्मी चीफ़ जनरल रहील शरीफ- तब मैं एक गेम चेंजर था, और अब मैं यहां हूं. आप सब को याद होगा मेरा मशहूर हैशटैग #ThankYouRaheelSharif, जो मेरे बॉस के सम्मान में था. जब रहील सोते थे, तो मैं ट्रेंड करता था ‘थैंक्स’, जब वो चलते थे तो मैं ट्रेंड करता था ‘थैंक्स’, जब वो नमाज़ पढ़ते थे ‘तो भी मैं ट्रेंड करता था ‘थैंक्स’. मेरे बॉस का चेहरा ट्रक्स पर था, कारों के बोनट्स पर था, सड़कों पर था. मेरी सबसे बड़ी कामयाबी? मैं पहला इंसान था जिसने पाकिस्तानी आर्मी चीफ का चेहरा बनियान पर छपवाया- मुझमें इतनी ताक़त है फौजी लोगों को महान बनाने की. डीजी के तौर पर मेरा कार्यकाल जल्द ख़त्म हो गया, वरना, अगला नम्बर शरीफ अंडरवियर का था.

बाजवा को फिर से महान बनाना

मैं लोगों की तकलीफ भी समझता हूं.

मैंने कई हिट गाने बनाए जैसे बड़ा दुश्मन बना फिरता है जो बच्चों से लड़ता है, जो दिसम्बर 2014 में पेशावर के एक स्कूल में, तालिबान के हाथों 140 बच्चों के हलाक होने के, फौरन बाद जारी हुआ. क़त्लेआम की पहली बरसी पर मैंने लिखा मुझे दुश्मन के बच्चों को पढ़ाना है. मैंने दुश्मन के बच्चों को स्पेशल ट्यूशन्स दिए, और ये वही ट्यूशन फीस थी, जिससे मैंने अपनी करोड़ों की मिल्कियत खड़ी की. ठीक इसी तरह मैंने पाकिस्तान से दहशतगर्दी का सफाया किया. लगता है किसी को वो सब याद ही नहीं है.

जब मैंने आईएसपीआर को छोड़ा, तो अपने 30 लाख ट्विटर फॉलोअर्स भी अपने साथ ले आया. मैंने ऑफीशियल अकाउंट को कभी आपके चहेते, अगले डीजी आसिफ ग़फ़ूर को सौंपा ही नहीं. मैं अपनी मेहनत को ऐसे कैसे जाने देता? मेरे बारे में राय मत बनाइए, ये सब मुल्क की भलाई के लिए था.

मेरा मक़सद ख़िदमत करना है. ऐसा मैंने 111 ब्रिगेड के कमांडर के तौर पर किया- वो ब्रिगेड जो फौजी तख़्तापलट के लिए बदनाम है- लेकिन फिर भी मैंने ऐसा कुछ नहीं किया. 2014 में, मुझे धरना अन्वेषक के रूप में जाना जाता था, क्योंकि बहुत लोगों को लगता है, कि मैं इस्लामाबाद के डी चौक पर, एक डीजे शो कराने में इमरान ख़ान की मदद कर रहा था.


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ये वो विशेषताएं हैं जिनकी वजह से, सीनियर बाजवा के पास भी, मुझपर भरोसा करने के अलावा कोई चारा नहीं है. लोग मुझे छोटा बाजवा कहना पसंद करते हैं, लेकिन बड़ा हो या छोटा, साथ मिलकर हम दोनों, बाजवाओं को फिर से महान बना सकते हैं!

जैसा कि आप जानते हैं मेरे अंदर बहुत सी सलाहियतें हैं. मैं चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का चेयरमैन भी हूं. मुझे पूरा भरोसा है कि चीनियों के पास, मुझपर भरोसा न करने की कोई वजह नहीं है. इसीलिए मैं ज़ोर देकर कहता हूं, कि जो कोई मेरे भ्रष्ट होने के बारे में एक लफ़्ज़ भी कहता है, उसपर राजद्रोह का मुक़दमा चलना चाहिए. अगर आप बाजवा पर सवाल उठाते हैं, तो आप अपने वजूद पर सवाल उठाते हैं. आप बाजवा के अमेरिका से कारोबार पर सवाल उठाते हैं, चीन से नहीं, इसलिए आप दुश्मन के एजेंट और साज़िशी हैं.

(यह पाकिस्तानी मुद्दों पर जनरल ट्विटर की अनियमित और अप्रासंगिक टिप्पणी का एक अंश है. लेखकों के वास्तविक नाम का खुलासा नहीं किया जाएगा क्योंकि वे नहीं चाहते कि उन्हें ज़्यादा गंभीरता से लिया जाए. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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